Tuesday, September 23, 2025

राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान (National Institute of Educational Planning and Administration, NIEPA)

 राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान 
(National Institute of Educational Planning and Administration, NIEPA)


NIEPA का अर्थ है राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन संस्थान, जो भारत में एक प्रमुख स्वायत्त संस्थान है जो शैक्षिक योजना एवं प्रशासन के क्षेत्र में अनुसंधान, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और नीति समर्थन पर केंद्रित है। शैक्षिक राष्ट्रीय प्रणाली में इस संस्थान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गत बीस वर्षों में देश के अन्तर्गत यह एक उच्च स्तरीय संगठन है। इसने शैक्षिक नियोजन एवं प्रशासन के क्षेत्र में व्यापक रूप में विकास एवं प्रशिक्षण का कार्य किया है
इसकी स्थापना मूलतः 1962 में यूनेस्को द्वारा एशियाई क्षेत्रीय शैक्षिक योजनाकारों एवं प्रशासकों के केंद्र के रूप में की गई थी। यह कई चरणों से गुज़रते हुए 1973 में राष्ट्रीय शैक्षिक योजनाकारों एवं प्रशासकों का स्टाफ कॉलेज बना और 1979 में इसका नाम बदलकर NIEPA  कर दिया गया। वर्ष 2006 में, भारत सरकार ने इसे मानद विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया, जिससे इसे अपनी डिग्रियाँ प्रदान करने की अनुमति मिल गई।

Monday, September 22, 2025

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (National Council for Teacher Education, NCTE)

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद 
(National Council for Teacher Education, NCTE)

  राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है। राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद, 1973 से अपनी पूर्व स्थिति में, केंद्र और राज्य सरकारों के लिए शिक्षक शिक्षा से संबंधित सभी मामलों पर एक सलाहकार निकाय थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE) 1986 और उसके अंतर्गत कार्ययोजना में शिक्षक शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन हेतु एक प्रारंभिक कदम के रूप में एक वैधानिक दर्जा और आवश्यक संसाधनों से युक्त राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद की परिकल्पना की गई थी। राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 (1993 का संख्या 73) के अनुसरण में 17 अगस्त, 1995 को अस्तित्व में आया। यह परिषद केंद्र और राज्य सरकारों के लिए शिक्षक शिक्षा से संबंधित सभी मामलों में कार्य करती है। इसका उद्देश्य पूरे देश में शिक्षक शिक्षा का नियोजित और समन्वित विकास करना और शिक्षक शिक्षा के मानदंडों एवं मानकों के नियमन एवं उचित रखरखाव का प्रबंधन करना है। यह संगठन अखिल भारतीय स्तर पर कार्यरत है और इसमें विभिन्न प्रभागों के साथ-साथ 4 क्षेत्रीय समितियाँ शामिल हैं। उत्तरी क्षेत्रीय समिति, पूर्वी क्षेत्रीय समिति, दक्षिणी क्षेत्रीय समिति और पश्चिमी क्षेत्रीय समिति, जो सभी नई दिल्ली में स्थित हैं। एन0सी0टी0ई0 द्वारा निष्पादित कार्यों का दायरा बहुत व्यापक है, जिसमें सभी शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम शामिल हैं, जैसे- प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा (D. El. Ed.), शिक्षा स्नातक (B.Ed.), शिक्षा स्नातकोत्तर (M.Ed.) आदि। इसमें छात्र-शिक्षकों का अनुसंधान और प्रशिक्षण शामिल है।

NCTE को एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है और इसने एकीकृत शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम (ITEP), शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (NPST) और राष्ट्रीय मार्गदर्शन मिशन (NMM) जैसे विभिन्न राष्ट्रीय अधिदेशों को अपने हाथ में लिया है। NCTE द्वारा अन्य शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों, जैसे विनियमन, पाठ्यक्रम और डिजिटल संरचना, का संशोधन भी NEP 2020 के अनुरूप किया जा रहा है। ऐसी पहलों के साथ, NCTE न केवल शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिए प्रयासरत है, बल्कि हमारे देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने का भी लक्ष्य रखता है। NEP 2020 शिक्षकों की भूमिका में एक व्यापक बदलाव की परिकल्पना करता है, जिसमें सेवा-पूर्व शिक्षक शिक्षा और सेवाकालीन शिक्षक क्षमता निर्माण पर विशेष जोर दिया गया है। NCTE का मुख्यालय जी-7, सेक्टर-10, द्वारका, मेट्रो स्टेशन के पास, नई दिल्ली-110075 में स्थित है। 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grant Commission, UGC)


Sunday, September 21, 2025

शिक्षक शिक्षा की एजेंसियाँ (Agencies of Teacher Education)

 शिक्षक शिक्षा की एजेंसियाँ

(Agencies of Teacher Education)


भारत में शिक्षक शिक्षा एजेंसियाँ राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर कार्यरत हैं, और प्रत्येक शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम और शैक्षिक मानकों को बेहतर बनाने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है।

Friday, September 19, 2025

पाठ्यक्रम विकास का व्यावसायिक/प्रशिक्षण मॉडल (Vocational/Training Model of Curriculum Development)

 

पाठ्यक्रम विकास का व्यावसायिक/प्रशिक्षण मॉडल (Vocational/Training Model of Curriculum Development)


पाठ्यक्रम विकास का व्यावसायिक/प्रशिक्षण मॉडल एक व्यावहारिक, करियर-उन्मुख दृष्टिकोण है जो शिक्षार्थियों को विशिष्ट व्यवसायों या उद्योगों के लिए आवश्यक विशिष्ट कौशल और ज्ञान से लैस करने पर केंद्रित है। यह मॉडल व्यावहारिक प्रशिक्षण (Hands-on training), वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों (Real-world Applications), नियोक्ताओं और उद्योग विशेषज्ञों (Collaboration with Employers and Industry experts) के साथ सहयोग पर ज़ोर देता है ताकि प्रासंगिकता और नौकरी की तत्परता सुनिश्चित हो सके। यह अक्सर तकनीकी कौशल को संचार और टीमवर्क जैसे आवश्यक सॉफ्ट स्किल्स के साथ एकीकृत करता है और इसमें लचीली कार्यक्रम संरचनाएँ और इंटर्नशिप या नौकरी के अवसर शामिल हो सकते हैं।

इस मॉडल का आधार नौकरी विश्लेषण और कार्यस्थल की आवश्यकताओं पर आधारित है। पाठ्यक्रम योजनाकार (Curriculum planners)  विभिन्न व्यवसायों और उद्योगों में आवश्यक कौशलों का अध्ययन करते हैं, फिर संरचित शिक्षण अनुभव तैयार करते हैं जो शिक्षार्थियों को वे दक्षताएँ प्रदान करते हैं। सीखने की प्रक्रिया अक्सर दक्षता-आधारित होती है, जहाँ प्रगति मानकीकृत परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के बजाय विशिष्ट कौशल में निपुणता प्रदर्शित करने पर निर्भर करती है।


Wednesday, September 17, 2025

पाठ्यक्रम विकास का भविष्योन्मुखी मॉडल (Futuristic Model of curriculum Development)

 

पाठ्यक्रम विकास का भविष्योन्मुखी मॉडल 

(Futuristic Model of curriculum Development)

पाठ्यक्रम विकास का एक भविष्योन्मुखी मॉडल, शिक्षार्थियों को एक अप्रत्याशित (unexpected), प्रौद्योगिकी-संचालित (Technology-driven) और वैश्वीकृत (Globalized) दुनिया में फलने-फूलने के लिए तैयार करने पर केंद्रित है। यह मॉडल कौशल-केंद्रित, प्रौद्योगिकी-एकीकृत और लचीला है, जो अनुकूलनशीलता (adaptability), वास्तविक दुनिया में अनुप्रयोग और आजीवन सीखने पर ज़ोर देता है। 


एक भविष्योन्मुखी पाठ्यक्रम लचीला और मॉड्यूलर होता है, जो शिक्षार्थियों को अपनी रुचियों के अनुरूप मार्ग चुनने की अनुमति देता है, चाहे वे शैक्षणिक, व्यावसायिक, उद्यमशीलता (entrepreneurship) या कलात्मक हों। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म व्यक्तिगत, अनुकूली शिक्षण अनुभव प्रदान करके एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, AI शिक्षार्थी की क्षमताओं का विश्लेषण कर सकता है और उसके अनुरूप संसाधन प्रदान कर सकता है, जबकि आभासी और संवर्धित वास्तविकता आभासी विज्ञान प्रयोगशालाओं (Virtual Science Labs) या ऐतिहासिक पुनर्निर्माण जैसे आकर्षक वातावरण का निर्माण करती है।

यह शिक्षार्थी की आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता, समस्या-समाधान, सहयोग, डिजिटल साक्षरता और भावनात्मक बुद्धिमत्ता विकसित करते हैं। कोडिंग, डेटा साक्षरता, डिज़ाइन थिंकिंग और स्थिरता प्रथाओं जैसे भविष्य के लिए तैयार कौशल भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। मूल्यांकन भी रटने पर आधारित परीक्षाओं से विकसित होकर योग्यता-आधारित मूल्यांकन में बदल जाता है, जिसमें परियोजनाओं, पोर्टफोलियो, सिमुलेशन और AI-संचालित रीयल-टाइम फीडबैक का उपयोग किया जाता है। छात्र स्थानीय विरासत, समुदाय और भाषा से जुड़े रहते हुए वैश्विक मुद्दों—जलवायु परिवर्तन, प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक विविधता से जुड़ते हैं। पाठ्यक्रम को डेटा विश्लेषण और भविष्य के पूर्वानुमान के माध्यम से निरंतर अद्यतन किया जाता है, जिससे बदलती दुनिया में इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित होती है।

इस मॉडल के गुणों में भविष्य की नौकरियों के साथ बेहतर तालमेल, आजीवन सीखने को प्रोत्साहन और नैतिक एवं वैश्विक रूप से ज़िम्मेदार नागरिकों का पोषण शामिल है। हालाँकि, लागत, डिजिटल असमानता और पारंपरिक प्रणालियों के प्रतिरोध जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाना आवश्यक है।

 

पाठ्यक्रम का आवश्यकता मूल्यांकन मॉडल (Need assessment Model of Curriculum)

पाठ्यक्रम का आवश्यकता मूल्यांकन मॉडल

(Need assessment Model of Curriculum)


पाठ्यक्रम विकास में आवश्यकता मूल्यांकन मॉडल मौजूदा शैक्षिक प्रावधानों और वांछित परिणामों के बीच अंतराल की पहचान करने के लिए एक व्यवस्थित, डेटा-संचालित प्रक्रिया है, जो फिर पाठ्यक्रम के डिजाइन या संशोधन का मार्गदर्शन करती है।


Tuesday, September 16, 2025

शिक्षक शिक्षा के संदर्भ में एनईपी 2020 (NEP 2020 with reference to Teacher Education)


शिक्षक शिक्षा के संदर्भ में एनईपी 2020 

(NEP 2020 with reference to Teacher Education)


राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 भारत में शिक्षक शिक्षा पर केंद्रित महत्वपूर्ण सुधार लाती है, जिसमें शिक्षकों को शिक्षा प्रणाली की सफलता के लिए केंद्रीय माना जाता है और उनके निरंतर विकास और समर्थन पर जोर दिया जाता है।

  • अगली पीढ़ी के लिए शिक्षकों को तैयार करना (Preparing teachers for the next generation): 

अगली पीढ़ी को आकार देने वाले शिक्षकों की एक टीम के निर्माण में अध्यापक शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण है। शिक्षकों को तैयार करना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण (Multi-disciplinary Approach) और ज्ञान की आवश्यकता के साथ ही साथ, बेहतरीन मेंटरों के निर्देशन में मान्यताओं और मूल्यों के निर्माण के साथ ही साथ उनके अभ्यास की भी आवश्यकता होती है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अध्यापक शिक्षा और शिक्षण प्रक्रियाओं से संबंधित अद्यतन प्रगति के साथ ही साथ भारतीय मूल्यों, भाषाओं, ज्ञान, लोकाचार (Ethos) और परंपराओं जनजातीय परंपराओं सहित के प्रति भी जागरूक रहें।
  •  गुणवत्ता के उच्चतर मानक निर्धारित करना (Setting higher standards of quality):

न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा आयोग (2012) के अनुसार, स्टैंड- अलोन टीईआई, जिनकी संख्या 10,000 से अधिक है, अध्यापक शिक्षा के प्रति लेशमात्र गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके स्थान पर ऊंचे दामों पर डिग्रियों को बेच रहे हैं। इस दिशा में अब तक किए गए विनियामक (Regulatory) प्रयास न तो सिस्टम में बड़े पैमाने पर व्याप्त भ्रष्टाचार को रोक पाए हैं, और न ही गुणवत्ता के लिए निर्धारित बुनियादी मानकों को ही लागू कर पाए हैं, बल्कि इन प्रयासों का इस क्षेत्र में उत्कृष्टता और नवाचार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अतः इस सेक्टर और इसकी नियामक प्रणालियों में महत्वपूर्ण कार्यवाहियों के द्वारा पुनरुद्धार (Revival) की तात्कालिक आवश्यकता है जिससे कि गुणवत्ता के उच्चतर मानकों को निर्धारित किया जा सके और शिक्षक शिक्षा प्रणाली में अखंडता, विश्वसनीयता, प्रभाविता और उच्चतर गुणवत्ता को बहाल किया जा सके। 

  • निम्न स्तरीय और बेकार अध्यापक शिक्षा संस्थानों पर कार्यवाही करना (To take action against low quality and useless teacher education institutions): 

शिक्षण पेशे की प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए आवश्यक नैतिकता और विश्वसनीयता के स्तरों में सुधार को सुनिश्चित करने और फिर इसके द्वारा एक सफल विद्यालयी प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए, नियामक प्रणाली को उन निम्न स्तरीय और बेकार अध्यापक शिक्षा संस्थानों (TEI) के खिलाफ उल्लंघन के लिए एक वर्ष का समय दिये जाने के पश्चात, कठोर कार्यवाही करने का अधिकार होगा जो बुनियादी शैक्षिक मानदंडों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं । वर्ष 2030 तक, केवल शैक्षिक रूप से सुदृढ़ (very strong), बहु-विषयक (Multi disciplinary) और एकीकृत अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम ही कार्यान्वित होंगे।

  • संस्थानों को बहु विषयक बनाना (Making institutions multidisciplinary): 

अध्यापक शिक्षा के लिए बहु-विषयक / बहु-विषयक इनपुट के साथ ही साथ उच्चतर गुणवत्तायुक्त विषयवस्तु और शैक्षणिक प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है, अतः इसे ध्यान में रखते हुए सभी अध्यापक शिक्षा कार्यक्रमों को समग्र बहु-विषयी संस्थानों में ही आयोजित किया जाना चाहिए। इसके लिए, सभी बड़े बहु-विषयक विश्वविद्यालयों के साथ-साथ सभी सार्वजनिक विश्वविद्यालय और बड़े बहु- विषयक महाविद्यालय का लक्ष्य होगा कि वे अपने यहाँ ऐसे उत्कृष्ट शिक्षा विभागों की स्थापना और विकास करें, जो कि शिक्षा में अत्याधुनिक अनुसंधानों को अंजाम देने के साथ ही साथ मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, तंत्रिकाविज्ञान, भारतीय भाषाओं, कला, संगीत, इतिहास और साहित्य के साथ-साथ विज्ञान और गणित जैसे अन्य विशिष्ट विषयों से संबंधित विभागों के सहयोग से भविष्य के शिक्षकों को शिक्षित करने के लिए बी.एड. कार्यक्रम भी संचालित करेंगे। इसके साथ ही साथ वर्ष 2030 तक सभी एकल शिक्षक शिक्षा के संस्थानों को बहु-विषयक संस्थानों के रूप में बदलने की आवश्यकता होगी क्योंकि उन्हें भी 4-वर्षीय एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को संचालित करना होगा।

  • 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. कार्यक्रम  के साथ अन्य विषयों में डिग्री को सम्मिलित करना (Incorporating degrees in other subjects with the 4-year integrated B.Ed. programme): 

वर्ष 2030 तक बहु-विषयक उच्चतर शिक्षण संस्थानों द्वारा प्रदान किया जाने वाला यह 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. कार्यक्रम स्कूली शिक्षकों के लिए न्यूनतम डिग्री योग्यता बन जाएगा । यह 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. शिक्षा और इसके साथ ही एक अन्य विशेष विषय जैसे भाषा, इतिहास, संगीत, गणित, कंप्यूटर विज्ञान, रसायनविज्ञान, अर्थशास्त्र, आदि में एक समग्र ड्युअल मेजर स्नातक डिग्री होगी। अत्याधुनिक शिक्षा शास्त्र के शिक्षण के साथ ही साथ शिक्षक-शिक्षा में समाजशास्त्र, इतिहास, विज्ञान, मनोविज्ञान, प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा, बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान, भारत से जुड़े ज्ञान और इसके मूल्यों / लोकाचार / कला / परंपराएं और भी बहुत कुछ शामिल होगा । 4-वर्षीय एकीकृत बी.एड. प्रदान करने वाला प्रत्येक उच्चतर शिक्षण संस्थान, किसी एक विषय विशेष में पहले से ही स्नातक की डिग्री हासिल कर चुके ऐसे उत्कृष्ट विद्यार्थी जो आगे चलकर शिक्षण करना चाहते हैं, के लिए अपने परिसर में 2- वर्षीय बी.एड. कार्यक्रम भी डिजाइन कर सकते हैं। विशेष रूप से ऐसे उत्कृष्ट विद्यार्थी जिन्होंने किसी विशेष विषय में 4 वर्ष की स्नातक की डिग्री प्राप्त की है, के लिए 1-वर्षीय बी.एड. कार्यक्रम भी ऑफर किया जा सकता है। इन 4-वर्षीय, 2-वर्षीय और 1-वर्षीय बी.एड. कार्यक्रमों के लिए उत्कृष्ट उम्मीदवारों को आकर्षित करने के उद्देश्य से मेधावी विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्तियों की स्थापना की जाएगी।

  • विशेष विषयों में विशेषज्ञों की उपलब्धता कराना (Availability of experts in specific subjects): 

अध्यापक शिक्षा प्रदान करने वाले उच्चतर शिक्षण संस्थान, शिक्षा और इससे संबंधित विषयों के साथ ही साथ विशेष विषयों में विशेषज्ञों की उपलब्धता को सुनिश्चित करेंगे। प्रत्येक उच्चतर शिक्षा संस्थान के पास सघन जुड़ाव के साथ काम करने के लिए सार्वजनिक और निजी स्कूलों और स्कूल परिसरों का एक नेटवर्क होगा, जहाँ भावी शिक्षक अन्य सहायक गतिविधियों जैसे सामुदायिक सेवा, वयस्क और व्यावसायिक शिक्षा, आदि में सहभागिता के साथ शिक्षण का कार्य करेंगे।
  • एकसमान मानकों को बनाए रखना (Maintaining uniform standards):

शिक्षक शिक्षा के लिए एकसमान मानकों को बनाए रखने के लिए, पूर्व-सेवा शिक्षक तैयारी कार्यक्रमों में प्रवेश राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी द्वारा आयोजित उपयुक्त विषय और योग्यता परीक्षणों के माध्यम से होगा, और देश की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए मानकीकृत किया जाएगा।
  • शिक्षा विभाग में संकाय सदस्यों की प्रोफ़ाइल में विविधता होना एक आवश्यक लक्ष्य होगा। लेकिन शिक्षण/फील्ड / शोध के अनुभवों को महत्ता प्रदान की जाएगी। सीधे सीधे विद्यालयी शिक्षा से जुड़ने वाले सामाजिक विज्ञान के क्षेत्रों (जैसे, मनोविज्ञान, बालविकास, भाषा विज्ञान, समाजशास्त्र, दर्शन, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान) के साथ ही साथ विज्ञान शिक्षा, गणित शिक्षा, सामाजिक विज्ञान शिक्षा और भाषा शिक्षा जैसे कार्यक्रमों से संबंधित विषयों में प्रशिक्षण प्राप्त संकाय सदस्यों को शिक्षक शिक्षा संस्थानों मेंआकर्षित और नियुक्त किया जाएगा, जिससे कि शिक्षकों की बहु-विषयी शिक्षा को और उनके अवधारणात्मक विकास को मज़बूती प्रदान की जा सके।
  • सभी नए पीएच-डी. प्रवेशकर्ताओं, चाहे वे किसी भी विषय में प्रवेश लें, से अपेक्षित होगा कि वे अपनी डोक्टोरल प्रशिक्षण अवधि के दौरान उनके द्वारा चुने गए पीएच-डी विषय से संबंधित शिक्षण/ शिक्षा/ अध्यापन/लेखन में क्रेडिट आधारित पाठ्यक्रम लें। उनकी डॉक्टरेट प्रशिक्षण अवधि के दौरान उन्हें शैक्षणिक प्रक्रियाओं, पाठ्यक्रम निर्माण, विश्वसनीय मूल्यांकन प्रणाली और संचार जैसे क्षेत्रों का अनुभव प्रदान किया जाएगा, क्योंकि संभव है कि इनमें से कई शोध विद्वान अपने चुने हुए विषयों के संकाय सदस्य या सार्वजनिक प्रतिनिधि / संचारक बनेंगे। पीएच-डी. छात्रों के लिए शिक्षण सहायक और अन्य साधनों के माध्यम से अर्जित किए गए वास्तविक शिक्षण अनुभव के न्यूनतम घंटे भी तय होंगे। देशभर के विश्वविद्यालयों में संचालित पीएच-डी. कार्यक्रमों का इस उद्देश्य के लिए पुनरुन्मुखीकरण (reorientation) किया जाएगा।
  • कॉलेज और विश्वविद्यालय के शिक्षकों के लिए सेवारत सतत व्यावसायिक विकास का प्रशिक्षण मौजूदा संस्थागत व्यवस्था और जारी पहलों के माध्यम से ही जारी रहेगा; हालांकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए आवश्यक समृद्ध शिक्षण-अधिगम प्रक्रियाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इनका सुदृढ़ीकरण और विस्तार किया जाएगा। शिक्षकों के ऑनलाइन प्रशिक्षण के लिए स्वयम/दीक्षा जैसे प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा, ताकि मानकीकृत प्रशिक्षण कार्यक्रमों को कम समय के भीतर अधिक शिक्षकों को मुहैया कराया जा सके।
  • सलाह (मेंटरिंग) के लिए एक राष्ट्रीय मिशन को स्थापित किया जाएगा जिसमें बड़ी संख्या में वरिष्ठ /सेवानिवृत्त उत्कृष्ट संकाय सदस्यों को जोड़ा जाएगा। इनमें वे संकाय सदस्य भी शामिल होंगे जिनमें भारतीय भाषाओं में पढ़ाने की क्षमता है और जो विश्वविद्यालय / कॉलेज शिक्षकों को लघु और दीर्घकालिक परामर्श / व्यावसायिक सहायता प्रदान करने के लिए तैयार होंगे।
  • शिक्षक शिक्षा का पाठ्यक्रम अब विषय विशेषज्ञता और शिक्षणशास्त्र दोनों पर ज़ोर देता है, जिसमें वास्तविक कक्षा में इंटर्नशिप और मार्गदर्शन सहित पर्याप्त व्यावहारिक और अनुभवात्मक शिक्षा शामिल है।
  • NEP शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (NPST) प्रस्तुत करता है, जो करियर उन्नति, व्यावसायिक मूल्यांकन और वेतन वृद्धि का मार्गदर्शन करते हैं, साथ ही निरंतर व्यावसायिक कौशल उन्नयन और चिंतनशील अभ्यास को बढ़ावा देते हैं।
  • शिक्षकों के लिए सतत व्यावसायिक विकास (CPD) अनिवार्य होगा, जिसमें स्कूल-आधारित और आवश्यकता-विशिष्ट मॉडलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए लगातार कौशल उन्नयन, मार्गदर्शन, व्यावसायिक नेटवर्क और नेतृत्व प्रशिक्षण शामिल होगा।
  • CTET जैसी शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) उत्तीर्ण करना एक महत्वपूर्ण योग्यता बनी हुई है, जो यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी और निजी दोनों स्कूलों के शिक्षक राष्ट्रीय मानकों को पूरा करें।

Monday, September 15, 2025

अध्यापक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (National Curriculum Framework for Teacher Education)

अध्यापक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 
 (National Curriculum Framework for Teacher Education)


अध्यापक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCFTE) भारत में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) द्वारा विकसित एक नीति दस्तावेज है, जिसे पहली बार 2009 में जारी किया गया था, जो समकालीन (Contemporary) शैक्षिक आवश्यकताओं और सुधारों के साथ शिक्षकों की तैयारी और व्यावसायिक विकास के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है। NCFTE 2009 भारत सरकार का एक मसौदा (Draft) है, जो राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद में आवश्यक परिवर्तन और अद्यतन (Update) प्रस्तावित करने के लिए बनाया गया है। इसकी स्थापना राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 (73, 1993) के तहत 1995 में की गई थी।

यह रूपरेखा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) का एक प्रयास है जिसका उद्देश्य इच्छुक पक्षों और हितधारकों (Stakeholders) को स्कूल, स्नातक, स्नातकोत्तर, डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टरेट स्तरों पर शिक्षकों की शिक्षा में प्राप्त किए जा सकने वाले गुणात्मक और मात्रात्मक सुधारों पर अपने विचार देने के लिए प्रोत्साहित करना है। इससे पहले 1978 में परिषद द्वारा ही एक "पाठ्यचर्या रूपरेखा (Curriculum Framework)" विकसित की गई थी (जो उस समय एक स्वतंत्र निकाय न होकर केवल एक विभाग था), जिसके बाद 1988 में शिक्षक शिक्षा के लिए एनसीईआरटी (NCERT) रूपरेखा तैयार की गई, जिसके परिणामस्वरूप 1998 में एनसीटीई द्वारा "गुणवत्तापूर्ण शिक्षक शिक्षा के लिए पहला पाठ्यक्रम रूपरेखा" तैयार की गई। इसके बाद 2005 में मुकेश देवनाथ ने इसे आगे बढ़ाया। इसे भारतीय शिक्षा में समकालीन चुनौतियों, जैसे कि निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 की शुरुआत, को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया था।

NCFTE न केवल व्यक्तिगत शिक्षार्थियों, बल्कि राष्ट्र के भविष्य को आकार देने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देता है। यह दस्तावेज़ शिक्षक शिक्षा और स्कूली शिक्षा के बीच सहजीवी संबंध को रेखांकित करता है, और इस बात पर ज़ोर देता है कि दोनों क्षेत्र एक-दूसरे की गुणवत्ता और उद्देश्य को सुदृढ़ करते हैं। इसे व्यापक परामर्श के माध्यम से विकसित किया गया है, जिसमें पिछले पाठ्यक्रम ढाँचों, शिक्षा नीति अनुशंसाओं और देश भर के विशेषज्ञों से प्राप्त प्रतिक्रिया से अंतर्दृष्टि प्राप्त की गई है।


मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics)


  • चिंतनशील अभ्यास पर ध्यान (Reflective Practice Focus): एनसीएफटीई शिक्षकों को चिंतनशील अभ्यासकर्ता के रूप में तैयार करने पर केंद्रित है, जिससे उन्हें अपनी शिक्षण विधियों का आलोचनात्मक विश्लेषण और नवाचार करने का अधिकार मिलता है।
  • सिद्धांत और व्यवहार का एकीकरण (Integration of Theory and Practice): यह प्रशिक्षण कार्यक्रमों में विस्तारित, मार्गदर्शन प्राप्त स्कूल इंटर्नशिप को शामिल करके शैक्षिक सिद्धांत और वास्तविक कक्षा अनुभव के बीच की खाई को पाटने पर ज़ोर देता है।
  • आलोचनात्मक शिक्षाशास्त्र और रचनावाद (Critical Pedagogy and Constructivism): यह रूपरेखा एक रचनावादी दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है, शिक्षार्थी-केंद्रित और सहभागी शिक्षण को प्रोत्साहित करती है जो आलोचनात्मक जाँच और समस्या-समाधान के कौशल का निर्माण करती है।
  • विस्तारित अवधि और व्यापक पाठ्यक्रम (Extended Duration and Comprehensive Curriculum): शिक्षक शिक्षा, विशेष रूप से बी.एड. जैसे प्रारंभिक (सेवा-पूर्व) कार्यक्रमों को एक वर्ष से दो वर्ष में बदलने की सिफारिश की गई थी, जिसमें आधारभूत अध्ययन, पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति, और पर्याप्त स्कूल इंटर्नशिप शामिल हों।
  • सतत व्यावसायिक विकास (Continuous Professional Development):  एनसीएफटीई सेवा-पूर्व और सेवाकालीन शिक्षक शिक्षा, दोनों को एकीकृत करता है, निरंतर व्यावसायिक शिक्षा और नवाचार एवं समर्थन के लिए शिक्षण-अधिगम केंद्रों की स्थापना का समर्थन करता है।
  • मूल्यांकन और मूल्यांकन सुधार (Assessment and Evaluation Reforms): यह प्रशिक्षणरत शिक्षकों के निरंतर और व्यापक मूल्यांकन की वकालत करता है, जिसमें पोर्टफोलियो और अवलोकन जैसे उपकरणों के माध्यम से कौशल, दृष्टिकोण और चिंतनशील क्षमताओं का मूल्यांकन किया जाता है।
  • समावेश और समानता (Inclusion and Equity): यह ढांचा समावेशी शिक्षा को दृढ़ता से बढ़ावा देता है, लिंग, विविधता और सभी शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करता है, साथ ही डिजिटल साक्षरता के लिए आईसीटी को भी एकीकृत करता है।
  • शिक्षक प्रशिक्षकों का सुदृढ़ीकरण (Strengthening Teacher Educators): शिक्षकों के सतत व्यावसायिक विकास पर प्रशिक्षण, सहयोगात्मक अनुसंधान और नई पद्धतियों से परिचित कराने के माध्यम से ज़ोर दिया जाता है।
  • समुदाय और जीवन की प्रासंगिकता (Community and Life Relevance): ज्ञान के संबंधों को पाठ्यपुस्तकों से परे स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ा जाता है, जिससे सार्थक शिक्षा के लिए सामुदायिक ज्ञान और अनुभवों का लाभ उठाया जाता है।



मुख्य उद्देश्य (Main Objectives)

शिक्षक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCFTE) 2009 के उद्देश्य भारत में शिक्षक शिक्षा को पुनर्जीवित और आधुनिक बनाना है, ताकि यह समकालीन विद्यालयों और समाज की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी बन सके।

  • चिंतनशील अभ्यास को बढ़ावा देना (Promote Reflective Practice): शिक्षकों को चिंतनशील अभ्यासकर्ता के रूप में तैयार करना जो अपने शिक्षण विश्वासों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें और अपनी कक्षा रणनीतियों में निरंतर सुधार करें।
  • सिद्धांत और व्यवहार के बीच सेतु का निर्माण (Bridge Theory and Practice): यह सुनिश्चित करना कि शिक्षक शिक्षा, विशेष रूप से विस्तारित इंटर्नशिप और स्कूल सहभागिता के माध्यम से, शैक्षणिक सिद्धांत को व्यावहारिक कक्षा अनुभव के साथ घनिष्ठ रूप से एकीकृत करें।
  • बाल-केंद्रित और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना (Adopt Child-Centered and Inclusive Approaches): शैक्षणिक प्रथाओं को अधिक छात्र-केंद्रित और समावेशी बनाने की ओर मोड़ना, विविध शिक्षण आवश्यकताओं को समायोजित करना  और सक्रिय छात्र भागीदारी को प्रोत्साहित करना ।
  • पेशेवर और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देना (Foster Professional and Ethical Values): ऐसे शिक्षकों का विकास करना जो न केवल पेशेवर रूप से सक्षम हों, बल्कि मानवीय, नैतिक और समानता, लिंग और सामाजिक न्याय के मुद्दों के प्रति संवेदनशील भी हों।
  • सतत व्यावसायिक विकास सुनिश्चित करना (Ensure Continuous Professional Development): शिक्षकों के संपूर्ण करियर में उनके निरंतर सीखने और विकास में सहायता करना, प्रारंभिक प्रशिक्षण से आगे बढ़कर आजीवन सीखने और सेवाकालीन शिक्षा की ओर बढ़ाना ।
  • प्रौद्योगिकी और समुदाय का लाभ उठाना (Leverage Technology and Community): शिक्षक शिक्षा में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) को एकीकृत करना और कक्षा के ज्ञान और वास्तविक दुनिया के सामुदायिक जीवन के बीच संबंधों को प्रोत्साहित करना।
  • शिक्षक प्रशिक्षकों को सशक्त बनाना (Empower Teacher Educators): शिक्षक प्रशिक्षकों को उन्नत कौशल से सुसज्जित करना और शिक्षक प्रशिक्षण की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए उनके व्यावसायिक विकास में सहायता करना ।
  • छात्र-केंद्रित शिक्षा को बढ़ावा देना (Promote Student-Centered Learning): शिक्षकों को ऐसे शिक्षण को सुगम बनाने के लिए प्रोत्साहित करना जहाँ छात्र सक्रिय रूप से भाग लें और शिक्षण को निष्क्रिय के बजाय अंतःक्रियात्मक (interactive) बनाएँ।
  • समावेशी कक्षाएँ (Inclusive Classrooms): ऐसा शिक्षण वातावरण बनाना, जो सभी छात्रों को शामिल करे, विशेष आवश्यकता वाले छात्रों सहित, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक बच्चे को स्वागत और समर्थन (welcomed and supported) का अनुभव हो।
  • नैतिक और मानवीय शिक्षण (Ethical and Humane Teaching): ऐसे शिक्षकों का विकास करना जो उच्च नैतिक मानकों का पालन करें और विविधता के प्रति सम्मान को बढ़ावा दें, जिससे कक्षा में सकारात्मक और सम्मानजनक संस्कृति का निर्माण हो।
  • हितधारकों के साथ सहयोग (Collaboration with Stakeholders): शिक्षा की समग्र गुणवत्ता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए शिक्षकों, विद्यालयों और नीति निर्माताओं के बीच टीम वर्क को प्रोत्साहित करना ।

आवश्यकता और महत्व (Need and Importance)

शिक्षक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCFTE) 2009 की आवश्यकता और महत्व भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उभरती चुनौतियों और माँगों से उत्पन्न होता है, जो छात्रों के सीखने और सामाजिक प्रगति को आकार देने में शिक्षकों की आधारभूत भूमिका पर ज़ोर देता है।

 आवश्यकता (Need):

  • सिद्धांत और व्यवहार के बीच की खाई को पाटना (Bridging Theory and Practice Gap):  पहले के शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों की आलोचना इस बात के लिए की जाती थी कि वे सिद्धांत पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करते थे और पर्याप्त व्यावहारिक कक्षा अनुभव प्रदान करने में विफल रहते थे। NCFTE शिक्षक तैयारी को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए चिंतनशील अभ्यास और स्कूल इंटर्नशिप को एकीकृत करके इस समस्या का समाधान करता है।
  • शैक्षिक सुधारों पर प्रतिक्रिया (Responding to Educational Reforms): राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के कार्यान्वयन के साथ, शिक्षक शिक्षा को तदनुसार संरेखित (Aligned) करने की तत्काल आवश्यकता थी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शिक्षक समावेशी, बाल-केंद्रित और न्यायसंगत कक्षाओं में काम करने के लिए सुसज्जित हों।
  • शिक्षण का व्यवसायीकरण (Professionalization of Teaching): शिक्षण के लिए अन्य व्यवसायों की तरह गहन तैयारी की आवश्यकता होती है। इस ढाँचे का उद्देश्य शिक्षक शिक्षा को गहन, शोध-आधारित और नैतिकता-केंद्रित बनाकर शिक्षण की स्थिति को ऊँचा उठाना है।
  • विविधता और समावेशन पर ध्यान (Addressing Diversity and Inclusion): भारतीय कक्षाएँ विविध हैं, और उन्हें ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है जो हाशिए पर पड़े समूहों सहित विभिन्न शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें, जिस पर NCFTE समावेशी शिक्षाशास्त्र और समानता के माध्यम से ज़ोर देता है।
  • प्रौद्योगिकी का समावेश (Incorporation of Technology): शिक्षा में डिजिटल उपकरणों की बढ़ती भूमिका को स्वीकार करते हुए, NCFTE आधुनिक कक्षाओं के लिए शिक्षकों को तैयार करने हेतु शिक्षक प्रशिक्षण में आईसीटी कौशल को एकीकृत करने की वकालत करता है।


 महत्व (Importance):

  • शिक्षक गुणवत्ता में सुधार (Improving Teacher Quality):  यह एक व्यापक पाठ्यक्रम ढाँचा (Curriculum Stucture) प्रदान करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि शिक्षकों के पास छात्रों के सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए प्रासंगिक ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण हों।
  • चिंतनशील और आलोचनात्मक अभ्यास को बढ़ावा देना (Enhancing Reflective and Critical Practice):  यह शिक्षकों को चिंतनशील अभ्यासकर्ता के रूप में विकसित करता है जो अपने शिक्षण के बारे में गंभीरता से सोचते हैं और निरंतर सुधार की तलाश करते हैं।
  • व्यावसायिक विकास (Professional Development): प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद निरंतर सीखने और शिक्षक कौशल के उन्नयन पर ज़ोर देता है, जिससे आजीवन व्यावसायिक विकास की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
  • व्यवस्थित शैक्षिक सुधार (Systemic Educational Improvement): शिक्षक शिक्षा सुधार को स्कूली शिक्षा सुधार से जोड़कर, इस ढाँचे का उद्देश्य पूरे भारत में शिक्षा की गुणवत्ता में व्यवस्थित सुधार लाना है।
  • पाठ्यचर्या और शिक्षणशास्त्र को नया रूप देना (Reshaping Curriculum and Pedagogy): यह शिक्षार्थी-केंद्रित, गतिविधि-आधारित, समावेशी शिक्षण विधियों की वकालत करता है जो समकालीन शैक्षिक आदर्शों के अनुरूप हों।


  • (https://teachers.institute/contemporary-india-education/redefining-teacher-education-ncfte-2009/)
  • (https://www.scribd.com/document/693557408/Ncf-2005-and-Ncfte-2009)
  • (https://www.slideshare.net/slideshow/national-curriculum-framework-for-teacher-education/274425469)
  • (https://ncte.gov.in/website/PDF/NCFTE_2009.pdf)
  • (http://ijmsrr.com/downloads/020520177.pdf)
  • (https://www.iitms.co.in/blog/national-curriculum-framework-for-teacher-education.html)
  • (https://en.wikipedia.org/wiki/National_Curriculum_Framework_for_Teacher_Education)
  • (https://www.youtube.com/watch?v=kLTBlg1H3Lc)
  • (https://sprcemoocs.in/mod/resource/view.php?id=88)

Friday, September 12, 2025

पाठ्यक्रम प्रतिमान (MODEL OF CURRICULUM)

पाठ्यक्रम प्रतिमान

(MODEL OF CURRICULUM) 


प्रतिमान का अर्थ (MEANING OF MODEL):

प्रतिमान किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा क्रिया का ऐसा परिकल्पनात्मक या कार्यात्मक रूप होता है जिससे उसके वास्तविक स्वरूप का बोध होता है। 'प्रतिमान' अंग्रेजी के 'Model' शब्द का पर्यायवाची है। सामान्य जीवन में हमें विभिन्न वस्तुओं के 'मॉडल' देखने को मिलते हैं। 

"किसी आदर्श के अनुरूप व्यवहार क्रिया को ढालने तथा क्रिया की ओर निर्देशित करने की प्रक्रिया मॉडल या प्रतिमान होती है।" ("To confirm in behaviour, action and to direct one's to action according to some particular design or ideals." )- Henery Cecil Wyld


पाठ्यक्रम प्रतिमान (MODEL OF CURRICULUM) 

पाठ्यक्रम प्रतिमान का अर्थ पाठ्यक्रम के स्वरूप से है।  पाठ्यक्रम प्रतिमान का स्वरूप शैक्षिक लक्ष्यों पर आधारित होता है। समय-परिवर्तन एवं सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ शिक्षा के लक्ष्यों में भी परिवर्तन होता रहता है। इसीलिए पाठ्यक्रम विकास के प्रतिमान भी बदलते रहते है। पाठ्यक्रम में तीन तथ्यों उद्देश्य, प्रक्रिया एवं परिस्थिति को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसलिए पाठ्यक्रम प्रतिमानों को प्रमुख रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. उद्देश्य या मूल्यांकन प्रतिमान (The Objectives Model)
  2. प्रक्रिया प्रतिमान (The Process Model)
  3. परिस्थिति प्रतिमान (The Situational Model)।


  • पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रतिमान (The Objectives Model of Curriculum)-

पाठ्यक्रम के उद्देश्य प्रतिमान का आधार व्यावहारिक मनोविज्ञान है। इसमें शैक्षिक उद्देश्यों पर बल देते हुए पाठ्यक्रम के प्रारूप को विकसित किया जाता है। उद्देश्यों की प्राप्ति छात्रों के अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के रूप में की जाती है। व्यवहार परिवर्तन का ज्ञान मूल्यांकन से होता है। अतः इसे मूल्याकन प्रतिमान भी कहा जाता है।

बी० एस० ब्लूम (1962) ने शिक्षा में सुधार हेतु शिक्षण एव परीक्षण की क्रियाओं को उद्देश्य केन्द्रित बनाने पर बल दिया तथा कहा कि शिक्षण में जिन उद्देश्यों को महत्त्व दिया जाये उन्हीं उद्देश्यों के लिए परीक्षण भी किया जाना चाहिए। मूल्यांकन प्रतिमान के अन्तर्गत निम्नांकित सोपानों का अनुसरण किया जाता है-

  • शिक्षण उद्देश्यों का प्रतिपादन।
  • उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सीखने के अनुभवों का सृजन।
  • बालकों में होने वाले व्यवहार परिवर्तनों का मूल्याकन।

  • पाठ्यक्रम का प्रक्रिया प्रतिमान (The Process Model of Curriculum)-

पाठ्यक्रम के प्रक्रिया प्रतिमान में प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जाती है। इसमें उद्देश्यों को परिभाषित नहीं किया जाता है बल्कि पाठ्यक्रम के प्रारूप को विकसित करने में पाठ्य-वस्तु के ज्ञान को ही ध्यान में रखा जाता है। इसके अन्तर्गत पाठ्य-वस्तु की सहायता से मानवीय गुणों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। इसलिए इस प्रकार के पाठ्यक्रम को 'मानववादी पाठ्यक्रम' भी कहा जाता है। चूँकि इसमें प्रक्रिया को महत्त्व दिया जाता है तथा शिक्षा-प्रक्रिया शिक्षक द्वारा ही सम्पादित की जाती है। अतः इस प्रतिमान में शिक्षक की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रतिमान व्यवहार मनोविज्ञान पर आधारित होता है जबकि प्रक्रिया प्रतिमान' का प्रारूप 'मानव व्यवस्था सिद्धान्त पर आधारित होता है। 'मानव व्यवस्था' में परिवर्तन के साथ-साथ शिक्षा का पाठ्यक्रम भी बदलता रहता है। मानव व्यवस्था का परम्परागत सिद्धान्त कार्य केन्द्रित है तथा सम्बन्ध सिद्धान्त सम्बन्ध केन्द्रित है। मानव व्यवस्था का आधुनिक सिद्धान्त कार्य एवं सम्बन्ध केन्द्रित है।

मानव व्यवस्था के परम्परागत सिद्धान्त (Classical Theory of Human Organisation) की धारणा यह है कि व्यवस्था के सदस्यों में केवल कार्य करने की क्षमता होती है तथा वे निर्देशों का अनुसरण कर सकते हैं परन्तु उनमें कार्य को प्रारम्भ करने अर्थात् स्वोपक्रम (Imitation) की क्षमता नहीं होती है तथा न वे किसी प्रकार का निर्णय  ले सकते हैं। इस व्यवस्था में शिक्षण कार्य केन्द्रित तथा शिक्षक-नियन्त्रित होता है।

पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण पर अधिक बल दिया जाता है। छात्रों की रुचियों, क्षमताओं एवं अभिवृत्तियों को कोई स्थान नहीं दिया जाता। छात्र केवल मशीन के समान कार्य करता है। शिक्षण स्मृति स्तर का होता है तथा केवल ज्ञानात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति हो पाती है।

  • पाठ्यक्रम का परिस्थिति प्रतिमान (The Situational Model of Curriculum)- 

पाठ्यक्रम के परिस्थिति प्रतिमान के अन्तर्गत शिक्षा एवं पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों को महत्त्व प्रदान किया जाता है। इसमें 'प्रणाली विश्लेषण' (System Analysis) उपागम का प्रयोग करके परिस्थितियों का विश्लेषण किया जाता है। विश्लेषण के द्वारा शैक्षिक परिस्थितियों के बाह्य एवं आन्तरिक घटकों की पहचान की जाती है।

शैक्षिक परिस्थितियों के आन्तरिक घटक कक्षा-शिक्षण तथा विद्यालय की व्यवस्था सम्बन्धी क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। छात्रों की रुचियाँ (Interests) एवं अभिवृत्तियाँ (attitudes), शिक्षक का कौशल (Skill of the teacher), नैतिकता (ethics)  उपलब्ध साधन एवं उपकरण (available resources and equipment) तथा विद्यालय का वातावरण आदि आन्तरिक घटक (Internal Components)  में सम्मिलित किये जा सकते हैं। बाह्य घटक भी शैक्षिक परिस्थितियों को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। सामाजिक परिवर्तन (Social change), राजनैतिक परिवर्तन (Political change), आर्थिक स्थिति में परिवर्तन (Change in economic condition), समाज एवं अभिभावकों की आकांक्षाओं एव अभिवृत्तियों में परिवर्तन, नये विषयों का आविर्भाव आदि बाह्य घटक (External Components)  के रूप में कार्य करते हैं। अतः इन घटकों को ध्यान में रखकर ही पाठ्यक्रम का निर्माण करना होता है। कुछ अन्य घटक जैसे- परीक्षा प्रणाली पाठ्य-पुस्तकें तथा व्यवस्था भी पाठ्यक्रम प्रतिमान को प्रभावित करते हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अन्तर्गत माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा, नवोदय विद्यालय, उच्च शिक्षा स्तर पर सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण, दूरवर्ती शिक्षा आदि अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं। इन सुझावों को लागू भी किया गया है जिससे नवीन परिस्थितियाँ भी उत्पन्न हुई है। अतः पाठ्यक्रम विकास में इन परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा।

पाठ्यक्रम के परिस्थिति प्रतिमान के आधार पर ही विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम (Subject-centered curriculum), बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Child-centered curriculum), शिल्प-कला-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Craft-centered curriculum), सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम (Integrated curriculum), कोर पाठ्यक्रम (Core curriculum) आदि का विकास किया गया है।


  • पाठ्यक्रम के मॉडल के उद्देश्य (Objectives of models of Curriculum):

पाठ्यक्रम मॉडल शैक्षिक कार्यक्रमों की योजना बनाने, डिज़ाइन करने, लागू करने और मूल्यांकन के लिए रूपरेखा प्रदान करते हैं। इन मॉडलों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि शैक्षिक लक्ष्य व्यवस्थित रूप से प्राप्त हों, सीखने के अनुभव सार्थक रूप से व्यवस्थित हों और परिणामों का प्रभावी ढंग से मापन हो।

  • शैक्षिक लक्ष्य निर्धारित करना (Define Educational Goals): पाठ्यक्रम मॉडल व्यापक उद्देश्यों को स्पष्ट करते हैं और उन्हें विशिष्ट, मापनीय उद्देश्यों में विभाजित करते हैं जो यह मार्गदर्शन करते हैं कि छात्रों से शिक्षण अवधि के अंत तक क्या सीखने की अपेक्षा की जाती है।
  • विषयवस्तु चयन और संगठन का मार्गदर्शन (Guide Content Selection and Organization): मॉडल शिक्षण विषयवस्तु और अनुभवों के चयन, संगठन और अनुक्रमण के लिए मानदंड निर्दिष्ट करते हैं जो सरल से जटिल ज्ञान और कौशल की ओर प्रगति में सहायक होते हैं।
  • सहायक शिक्षण विधियाँ (Support Teaching Methods): ये उपयुक्त शिक्षण रणनीतियों और कार्यप्रणालियों को चुनने के लिए एक संरचना प्रदान करते हैं जो स्थापित उद्देश्यों के अनुरूप हों।
  • मूल्यांकन तंत्र स्थापित करना (Establish Evaluation Mechanisms): अधिकांश मॉडल मूल उद्देश्यों से जुड़े स्पष्ट रूप से परिभाषित मानदंडों का उपयोग करके, छात्र परिणामों और पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता, दोनों के मूल्यांकन के महत्व पर ज़ोर देते हैं।
  • पाठ्यक्रम सुधार को सक्षम करना (Enable Curriculum Improvement): मॉडल में अक्सर फीडबैक तंत्र शामिल होते हैं, इसलिए मूल्यांकन परिणाम निरंतर सुधार के लिए पाठ्यक्रम के चल रहे परिशोधन का मार्गदर्शन कर सकते हैं।

Tuesday, September 9, 2025

दूरस्थ/पत्राचार के माध्यम से शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम (Teacher Education Program through Distance/Correspondence Mode)


दूरस्थ/पत्राचार के माध्यम से शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम
(Teacher Education Program through Distance/Correspondence Mode)

दूरस्थ शिक्षा पद्धति के माध्यम से शिक्षक शिक्षा एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें शिक्षकों का प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास पारंपरिक आमने-सामने की शिक्षा के बजाय विभिन्न मीडिया और प्रौद्योगिकियों (Technologies) का उपयोग करते हुए दूरस्थ रूप से किया जाता है। आमतौर पर विभिन्न वितरण तकनीकों का उपयोग करके, शिक्षार्थियों और प्रशिक्षकों को स्थान या समय में पृथक किया जाता है। इसका लक्ष्य उन इच्छुक या कार्यरत शिक्षकों को शिक्षण कौशल (Teaching skills), शैक्षणिक सिद्धांत (Educational theory), विषयवस्तु ज्ञान (Subject matter knowledge) और व्यावसायिक दक्षता (Professional skills) प्रदान करना है जो नियमित संस्थानों में नहीं जा सकते हैं ।

दूरस्थ या पत्राचार माध्यम से शिक्षक शिक्षा, इच्छुक और सेवारत शिक्षकों को पारंपरिक (traditional), पूर्णकालिक कार्यक्रमों (full-time programs) में भाग लेने की आवश्यकता के बिना व्यावसायिक प्रशिक्षण (professional training) प्राप्त करने के लिए लचीले (flexible) एवं  सुलभ मार्ग प्रदान करती है।

दूरस्थ या पत्राचार  के माध्यम से शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम इच्छुक शिक्षकों को, खासकर कार्यरत पेशेवरों (Working Professionals) और नियमित कक्षाएं नहीं ले पाने वाले लोगों को, ओपन और डिस्टेंस लर्निंग (ODL) के ज़रिए B.Ed. जैसी टीचिंग योग्यता प्राप्त करने का अवसर देता है। ये कार्यक्रम भारत में मान्यता प्राप्त हैं और इन्हें इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि इनमें प्रवेश, लचीलापन और गुणवत्ता सुनिश्चित हो, बशर्ते कि संबंधित विश्वविद्यालय NCTE और UGC द्वारा मान्यता प्राप्त हो।


विशेषताएँ (Characteristics):

  • भौतिक पृथक्करण (Physical separation): शिक्षक और शिक्षार्थी स्थान और प्रायः समय से अलग होते हैं, जिसके कारण संचार (Communication) और अधिगम (Learning) प्रत्यक्ष संपर्क के बजाय मध्यस्थ मंचों और सामग्रियों (Moderated forums and contents) के माध्यम से होता है।
  • लचीला ढाँचा (Flexible framework): कार्यक्रम इस प्रकार डिज़ाइन किए गए हैं कि शिक्षार्थी अपनी गति से संलग्न हो सकें और अध्ययन को अन्य व्यक्तिगत और व्यावसायिक ज़िम्मेदारियों (Personal and Professional responsibilities) के साथ संतुलित कर सकें। छात्र काम करते हुए या अन्य जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं, इसके लिए अध्ययन सामग्री ऑनलाइन या प्रिंट के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है।
  • शिक्षार्थी स्वायत्तता और उत्तरदायित्व (Learner autonomy and responsibility): सफलता आत्म-प्रेरणा (self-motivation), समय प्रबंधन और स्वतंत्र अधिगम (Time management and independent learning)  पर निर्भर करती है, क्योंकि छात्रों को अपने लक्ष्य स्वयं निर्धारित करने चाहिए और अपनी प्रगति की निगरानी करनी चाहिए।
  • व्यवस्थित और उन्नत सामग्री डिज़ाइन (Organized and advanced material design): शैक्षिक सामग्री की सावधानीपूर्वक योजना बनाई जाती है, नियमित रूप से अद्यतन की जाती है, और विभिन्न माध्यमों (प्रिंट, ऑडियो, वीडियो, डिजिटल) का उपयोग करके वितरित की जाती है।
  • मज़बूत छात्र सहायता सेवाएँ (Strong student support services): शैक्षणिक परामर्श (Academic advising), प्रतिक्रिया (feedback) और तकनीकी सहायता (technical support) जैसी सेवाएँ शिक्षार्थियों की सहायता के लिए और संकाय की व्यक्तिगत उपस्थिति की कमी की भरपाई के लिए उपलब्ध हैं।
  • दो-तरफ़ा संचार (Two-way Communication): दूरी के बावजूद, छात्र-शिक्षक और सहकर्मी संपर्क के अवसर फ़ोरम, ईमेल, चैट और आभासी बैठकों (virtual meetings) के माध्यम से सक्षम किए जाते हैं।
  • विविध तकनीकी एकीकरण (Various technology integrations): शिक्षण में ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म, रिकॉर्ड किए गए व्याख्यान (Recorded lectures), इंटरैक्टिव सामग्री, संदेश सेवा और संचार (Messaging services and communication) एवं सामग्री वितरण दोनों के लिए अन्य डिजिटल उपकरणों सहित तकनीक का लाभ उठाया जाता है।
  • व्यक्तिगत शिक्षण अनुभव (Personal Teaching experience): यह दृष्टिकोण अक्सर शिक्षार्थियों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने, व्यक्तिगत शिक्षण पथों (Individual learning paths) और अनुकूली आकलन (Adaptive assessment) का समर्थन करने पर ज़ोर देता है।
  • अनिवार्य व्यक्तिगत कार्यक्रम (Mandatory Contact Programs): अधिकांश पाठ्यक्रम ऑनलाइन होते हैं, लेकिन व्यावहारिक शिक्षण कौशल विकसित करने के लिए, अध्ययन केंद्रों पर कुछ समय के लिए व्यक्तिगत कार्यशालाएं (in-person workshops), व्यावहारिक प्रशिक्षण सत्र (Practical training sessions) और परीक्षाएँ अनिवार्य हैं।

उद्देश्य (Objectives):


दूरस्थ या पत्राचार  से टीचर एजुकेशन प्रोग्राम के उद्देश्य निम्न हैं -

  • एक्सेस और समावेशिता बढ़ाना (Enhancing Access and Inclusivity): टीचर एजुकेशन तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करना, खासकर उन लोगों के लिए जो भौगोलिक, आर्थिक या व्यक्तिगत कारणों से नियमित संस्थानों में नहीं जा पाते, जिससे उच्च शिक्षा का लोकतंत्रीकरण (Democratizing) हो और ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (GER) बढ़े।
  • गुणवत्तापूर्ण टीचर ट्रेनिंग (Quality Teacher Training): नई शिक्षण पद्धतियों और बहु-विषयक दृष्टिकोणों (Multidisciplinary approaches) के माध्यम से, नवीनतम शिक्षण कौशल, डिजिटल साक्षरता और विषय ज्ञान से लैस, कुशल और योग्य शिक्षकों को तैयार करना। 
  • फ्लेक्सिबिलिटी और आजीवन शिक्षा (Flexibility and Lifelong Learning): कई प्रवेश और निकास बिंदुओं के साथ लचीले शिक्षण मार्ग प्रदान करना, जिससे कामकाजी पेशेवरों (Working professionals) और सेवा में कार्यरत शिक्षकों के लिए निरंतर व्यावसायिक विकास और आजीवन शिक्षा के अवसर मिलें।
  • व्यावहारिक और समग्र विकास (Practical and Holistic Development): सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक शिक्षण क्षमता सुनिश्चित करना, जिससे आलोचनात्मक सोच, समस्या समाधान और बाल-केंद्रित शिक्षण पद्धतियाँ जैसे समग्र विकास को बढ़ावा मिले। 
  • तकनीक का उपयोग (Use of Technology): इंटरैक्टिव और सुलभ शिक्षा के लिए मल्टीमीडिया, ऑनलाइन मॉड्यूल और डिस्टेंस लर्निंग टेक्नोलॉजी का उपयोग करना।
  • किफायती और सुविधाजनक (Cost-Effectiveness and Convenience): आवागमन की लागत जैसे वित्तीय और लॉजिस्टिक बाधाओं को कम करना, जिससे छात्र अपनी गति और सुविधा के अनुसार सीख सकें। 
  • गुणवत्ता आश्वासन (Quality Assurance): पाठ्यक्रम डिजाइन, मूल्यांकन, सहायता सेवाओं और NCTE जैसे नियामक निकायों द्वारा मान्यता के माध्यम से शिक्षा के मानकों को बनाए रखना। 

लाभ (Merits):

 
दूरस्थ या पत्राचार मोड से टीचर एजुकेशन प्रोग्राम के फायदों में ये मुख्य लाभ शामिल हैं:

  • फ्लेक्सिबिलिटी और सुविधा (Flexibility and Convenience): छात्र अपनी गति और समय के अनुसार पढ़ाई कर सकते हैं, और कैंपस में फिजिकली मौजूद रहने की ज़रूरत के बिना काम, परिवार या अन्य कामों के साथ पढ़ाई का तालमेल बिठा सकते हैं।
  • पहुंच (Accessibility): ये प्रोग्राम दूर-दराज, ग्रामीण या पिछड़े इलाकों के छात्रों को बिना जगह बदले अच्छी टीचर एजुकेशन पाने का मौका देते हैं, जिससे शिक्षा के अवसर बढ़ते हैं। 
  • किफायती (Cost-Effectiveness): डिस्टेंस एजुकेशन से आवागमन, रहने-सहने और कभी-कभी कोर्स सामग्री पर होने वाले खर्च कम हो जाते हैं, जिससे टीचर ट्रेनिंग और भी किफायती हो जाती है। 
  • अलग-अलग कोर्स विकल्प (Diverse Course Options): छात्र कई तरह के कोर्स और स्पेशलाइजेशन चुन सकते हैं, जो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं हो सकते। 
  • टेक्निकल और टाइम मैनेजमेंट स्किल का विकास (Development of Technical and Time Management Skills): डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काम करने से छात्रों की तकनीकी कुशलता बढ़ती है, जबकि अपनी गति से सीखने से अनुशासन और समय का बेहतर प्रबंधन होता है। 
  • कार्य , ज़िंदगी और पढ़ाई का संतुलन (Work-Life-Study Balance): यह कामकाजी पेशेवरों को अपनी पढ़ाई जारी रखने और अपने काम की जगह पर सीधे सीखा हुआ ज्ञान लागू करने में मदद करता है, जिससे यह व्यावहारिक रूप से उपयोगी होता है।
  • पर्सनलाइज्ड लर्निंग अनुभव (Personalized Learning Experience): छात्र अपनी पसंद के अनुसार स्टडी मटीरियल और तरीके चुन सकते हैं, जिससे बेहतर जुड़ाव और शैक्षणिक सफलता मिलती है। 
  • नेटवर्किंग के अवसर (Networking Opportunities): ऑनलाइन प्लेटफॉर्म दुनिया भर के साथियों, शिक्षकों और विशेषज्ञों के साथ बातचीत करने में मदद करते हैं, जिससे प्रोफेशनल संबंध और एक्सपोज़र बढ़ता है। 

सीमायें (Demerits):


दूरस्थ या पत्राचार मोड से टीचर एजुकेशन प्रोग्राम की कमियों में कई चुनौतियाँ शामिल हैं:

  • कम फेस-टू-फेस इंटरैक्शन (Limited Face-to-Face Interaction): छात्रों को शिक्षकों और साथियों के साथ व्यक्तिगत बातचीत का मौका नहीं मिलता, जिससे उन्हें अकेलापन महसूस हो सकता है और उनकी पढ़ाई पर असर पड़ सकता है। 
  • प्रैक्टिकल लर्निंग की कमी (Lack of Hands-On Learning): टीचर एजुकेशन में असली क्लासरूम अनुभव के लिए ज़रूरी प्रैक्टिकल कंपोनेंट, वर्चुअल सिमुलेशन और वीडियो के मुकाबले असली दुनिया में प्रैक्टिस से कम असरदार हो सकते हैं। 
  • ज़्यादा सेल्फ-मोटिवेशन की ज़रूरत (High Self-Motivation Required): सफलता मुख्य रूप से छात्र के अनुशासन और मोटिवेशन पर निर्भर करती है, जो फिजिकल क्लासरूम के व्यवस्थित माहौल के बिना मुश्किल हो सकता है। 
  • टेक्निकल और इंटरनेट पर निर्भरता (Technical and Internet Dependency): भरोसेमंद इंटरनेट एक्सेस और डिजिटल डिवाइस ज़रूरी हैं; टेक्निकल समस्या या एक्सेस की कमी से पढ़ाई बाधित हो सकती है।
  • कम सोशल इंटरेक्शन (Reduced Social Engagement): पारंपरिक तरीकों की तुलना में साथियों के साथ नेटवर्किंग, टीमवर्क और सोशल स्किल डेवलपमेंट के मौके कम होते हैं। 
  • देर से फीडबैक (Delayed Feedback): शिक्षकों के साथ बातचीत तुरंत नहीं हो पाती, जिससे डाउट्स दूर करने या कांसेप्ट समझने में देरी हो सकती है। 
  • घर पर ध्यान भटकना (Distractions at Home): घर का माहौल हमेशा पढ़ाई के लिए सही नहीं होता, जिससे ध्यान भटक सकता है और पढ़ाई पर असर पड़ सकता है। 
  • कम विश्वसनीयता (Perceived Lower Credibility): नियोक्ता डिस्टेंस एजुकेशन डिग्री की गंभीरता और क़्वालिटी पर संदेह कर सकते हैं, जिससे नौकरी के मौके कम हो सकते हैं। 
  • एक्सेस की समस्या (Accessibility Issues): ज़्यादा लोगों तक पहुँचने के मकसद के बावजूद, डिस्टेंस एजुकेशन सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध नहीं हो सकती, खासकर ग्रामीण या कम आय वाले इलाकों में जहाँ डिजिटल गैप है। 
  • पढ़ाने के प्रैक्टिकल स्किल में चुनौतियाँ (Challenges in Practical Teaching Skills): असली क्लासरूम प्रैक्टिस की कमी से छात्र असली टीचिंग रोल के लिए कम तैयार हो सकते हैं। 


Monday, September 8, 2025

सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा (In-service Teacher Education)

 सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा 

(In-service  Teacher Education)


सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा से तात्पर्य उन प्रोफेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम और प्रशिक्षण अवसरों (Training Opportunities) से है जो वर्तमान में स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। ये प्रोग्राम शिक्षकों को अपना ज्ञान अपडेट करने, उनकी शिक्षण कौशल में सुधार करने, शिक्षा की बदलती ज़रूरतों के अनुसार स्वयं  को ढालने और अंततः छात्रों के सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।  

1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अध्यापक शिक्षा को भी शिक्षा के समान एक जीवनव्यापी प्रक्रिया के रूप में स्वीकृत किया गया है। अत सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा को भी अपरिहार्य एवं सेवापूर्व अध्यापक शिक्षा के महत्वपूर्ण अंग  के रूप में देखा जाने लगा। इस हेतु जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (District Institute of Education and Training) अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय और शिक्षा में उच्च अध्ययन संस्थान आदि की स्थापना को आवश्यक माना गया।

सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा में शिक्षकों द्वारा प्रारंभिक प्रमाणन (Initial certification) के बाद की सभी गतिविधियाँ और पाठ्यक्रम शामिल होते हैं, जिनका उद्देश्य शिक्षकों का निरंतर व्यावसायिक विकास करना है। इसका मुख्य उद्देश्य ज्ञान को अपडेट करना, कौशल में सुधार करना और शिक्षा से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए सकारात्मक व्यावसायिक दृष्टिकोण विकसित करना है। यह प्री-सर्विस शिक्षा से अलग है, जो शिक्षकों को पढ़ाने से पहले तैयार करती है, लेकिन दोनों को शिक्षक विकास के लिए पूरक प्रक्रियाएँ माना जाता है।

उद्देश्य (Objectives):

  • प्रोफेशनल क्षमता बढ़ाना  (Increase professional efficiency):  शिक्षकों को अपने विषय की जानकारी, शिक्षण कौशल और कक्षा प्रबंधन की क्षमता सुधारने में मदद करना। 

  • समस्या समाधान और चिंतन (Problem-solving and reflection): शिक्षकों को कक्षा में आने वाली चुनौतियों की पहचान करने और मिलकर उनका समाधान करने में मदद करना,  जिससे चिंतनशील और लचीली शिक्षण पद्धतियाँ अपनाई जा सकें।
  • मानसिक दृष्टिकोण को व्यापक बनाना (Broaden mental outlook): शिक्षकों को शिक्षा के नए ट्रेंड, तरीकों और नवाचारों से अवगत कराना , जिससे उनका दृष्टिकोण और अनुकूलन क्षमता बढ़े।
  • पॉजिटिव प्रोफेशनल सोच को बढ़ावा देना (Foster positive professional attitudes): पेशे के प्रति प्रतिबद्धता बढ़ाना (Promote commitment to the profession), निरंतर सीखने के लिए प्रेरित करना और नैतिक व्यवहार विकसित करना ।
  • शैक्षिक सुधारों को आसान बनाना (Facilitate educational reforms): शिक्षकों को नए पाठ्यक्रम लागू करने, तकनीक का उपयोग करने और बदलते शैक्षिक नियमों के अनुसार ढलने के लिए तैयार करना। 
  • सहयोग बढ़ाना (Build collaboration): समग्र शिक्षण पद्धतियों को बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों के बीच टीमवर्क और ज्ञान साझा करने को प्रोत्साहित करना।
  • शिक्षकों को और अधिक प्रभावी और छात्रों की ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील बनाना।

  • नवीन शिक्षण उपकरणों और रणनीतियों के बारे में जानकारी देना ।
  • उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए निरंतर व्यावसायिक विकास का समर्थन करना ।
  • सेवारत अप्रशिक्षित तथा न्यून योग्यता संपन्न अध्यापकों की योग्यता का उन्नयन करना। 
  • कुछ आलोचनात्मक क्षेत्र और मुद्दों के बारे में अध्यापकों को जागरूक बनाना, जैसे दक्षताधारित अधिगम, बहुवर्गीय, बहुस्तरीय तथा बहुआयामी शिक्षण, अनग्रसर (progressive) समूह के बच्चों की शिक्षा, अधिगम समस्याग्रस्त छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति,पूछताछ  कौशल विकास, शिक्षा में जनसंचार -माध्यम (Mass media) का प्रयोग करना, सामुदायिक सहभागिता, अक्षमता या त्रुटि वाले छात्रों की शिक्षा आदि। 


आवश्यकता (Needs):

शैक्षिक दृष्टिकोण, पाठ्यक्रम, तकनीक और छात्रों की अलग-अलग ज़रूरतों में लगातार बदलाव के कारण, कार्यरत शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि शिक्षक पेशेवर रूप से अपडेट रहें, प्रभावी ढंग से काम करें और कक्षा में बदलती ज़रूरतों के अनुसार काम कर सकें। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के अनुसार- उत्तरजीवितागत दक्षताओं या Survival competencies को अद्यतन (Update) रूप देने के लिए सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा जरूरी है। ज्ञान के क्षेत्र में विस्फोट के साथ ही कई अन्य परिवर्तन भी आज निरन्तर शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे हैं। सामाजिक लक्ष्य एवं चेतना में निरन्तर परिवर्तन होता जा रहा है। साथ ही उसी के अनुसार शैक्षिक संरचना पाठ्यक्रम प्रारूप, पाठ्यक्रम प्रस्तुतीकरण, व्यूह रचना,  मूल्यांकन तकनीक,  प्रबन्धन प्रक्रिया आदि के क्षेत्र में भी निरन्तर परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। पाठ्यक्रम में  निरन्तर बदलाव आ रहे हैं मूल्यांकन पद्धति, श्रव्य-दृश्य अनुदेशनात्मक सामग्रियों के प्रयोग, कंप्यूटर तथा मल्टी मीडिया आदि का उपयोग, दूर-सम्प्रेषण तकनीकों का प्रचलन आदि भी क्रमागत अधिक होता जा रहा है, इस कारण अध्यापक को प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। 


  • निरंतर व्यावसायिक विकास (Continuous Professional Growth): प्रभावी और प्रेरित शिक्षक बने रहने के लिए, अध्यापन में शिक्षाशास्त्र, विषय की जानकारी और आत्म-चिंतन में लगातार विकास की आवश्यकता होती है।
  • शैक्षिक बदलावों के अनुकूल (Adapting to Educational Change): बार-बार पाठ्यक्रम में बदलाव, नई शिक्षण विधियों का उपयोग और तकनीक में प्रगति के कारण शिक्षकों को नवीनतम ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है।
  • विभिन्न छात्रों की ज़रूरतों को पूरा करना (Addressing Diverse Learner Needs): आज की कक्षाओं में अलग-अलग पृष्ठभूमि, सीखने के तरीके और क्षमता वाले छात्र होते हैं; समावेशी शिक्षा और अलग-अलग क्षमता वाले छात्रों के लिए शिक्षकों को नई रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
  • कक्षा में सुधार (Improving Classroom Practice): इन-सर्विस प्रशिक्षण से बेहतर शिक्षण विधियाँ, कक्षा प्रबंधन और छात्रों की भागीदारी में सुधार होता है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ता है।
  • तकनीकी का उपयोग (Integration of Technology): शिक्षकों को डिजिटल संसाधन, उपकरण और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  • शिक्षण कौशल में सुधार (Enhancement of pedagogical skills): यह शिक्षण रणनीतियों, कक्षा प्रबंधन और मूल्यांकन तकनीकों को बेहतर बनाता है।
  • विषय ज्ञान को अपडेट करना (Updating subject knowledge): यह शिक्षकों को उनके संबंधित विषय क्षेत्रों में नवीनतम जानकारी और उभरते ट्रेंड्स से अवगत कराता है।
  • छात्रों के परिणामों में सुधार (Improving student outcomes): इसका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से छात्रों की भागीदारी, सीखने और उपलब्धि को बढ़ाना है।






Friday, September 5, 2025

पाठ्यक्रम विकास (Curriculum Development)

  पाठ्यक्रम विकास 
(Curriculum Development) 


पाठ्यक्रम विकास (Curriculum Development) एक नियोजित, प्रगतिशील और व्यवस्थित प्रक्रिया (Planned, progressive and systematic process) है, जिसके अंतर्गत शैक्षिक सामग्री, शिक्षण अनुभवों और आकलन विधियों की संरचना, संगठन और परिष्करण (Finishing) किया जाता है ताकि छात्रों को सार्थक और गुणवत्तापूर्ण अधिगम अनुभव प्राप्त हो।

  • इसमें शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं, संस्थागत लक्ष्यों और समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप पाठ्य-निर्माण, शिक्षण विधियों का चयन तथा मूल्यांकन का समावेश होता है।

  • पाठ्यक्रम विकास निरंतर सुधार की प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न हितधारकों (छात्र, शिक्षक, समुदाय) की भागीदारी व फीडबैक के आधार पर अद्यतन और परिष्करण किया जाता है।

  • इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षा को संगठित, प्रासंगिक व विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए उपयोगी बनाना है।


विशेषताएँ (Characteristics):-

पाठ्यक्रम विकास की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं:

  • सम्पूर्ण विद्यालय कार्य का कार्यक्रम (The entire school's work schedule): पाठ्यक्रम केवल विषयों का समूह नहीं, बल्कि विद्यालय में होने वाले सभी शैक्षिक और अतिरिक्त क्रियाकलापों को समाहित करता है, जो विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में सहायक होते हैं।

  • गतिशीलता (Mobility): पाठ्यक्रम समय के साथ विकसित होता रहता है ताकि छात्रों की बदलती आवश्यकताओं और समाज के परिवर्तनों के अनुरूप बना रहे।

  • अनुभवों का संग्रह (Collection of experiences): यह विद्यार्थियों को विविध और व्यावहारिक अनुभव प्रदान करता है, जिससे उनका समग्र विकास होता है।

  • उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक (Helpful in achieving objectives): पाठ्यक्रम शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मार्गदर्शन करता है।

  • शैक्षिक प्रवृत्तियों का प्रतिबिंब (A reflection of educational trends): यह वर्तमान शिक्षा प्रणाली और उसके लक्ष्यों को दर्शाता है।

  • जीवन्त जीवन प्रक्रिया (Living life processes) : पाठ्यक्रम केवल स्थिर सामग्री नहीं, बल्कि व्यक्ति और उसके वातावरण के बीच की क्रिया-प्रतिक्रिया है जो समय के साथ बदलती रहती है।

  • निर्देशन का महत्वपूर्ण अंग (An important aspect of guidance): यह विद्यार्थियों को उचित मार्गदर्शन और विषय चयन में मदद करता है।

  • निरंतर संशोधन प्रक्रिया (Continuous revision process): समाज और व्यक्तियों की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम का निरंतर पुनरावलोकन और संशोधन आवश्यक होता है।


पाठ्यक्रम विकास के उपागम 

(Approaches of Curriculum Development)


पाठ्यक्रम विकास के प्रमुख तरीकों में विषय-केंद्रित (Subject-centered), शिक्षार्थी-केंद्रित (Student Centered), समस्या-केंद्रित (Problem Centered) और कई सैद्धांतिक/प्रबंधन मॉडल (Theoretical/Managerial Models) शामिल हैं, जैसे व्यवहारवादी (Behavioral), प्रणालीगत (System), मानवतावादी (Humanistic), प्रबंधकीय और पुनर्व्याख्यात्मक दृष्टिकोण (Managerial and re-conceptualist approaches)। ये दृष्टिकोण शैक्षिक पाठ्यक्रमों की योजना, संगठन और मूल्यांकन के लिए आधारभूत ढाँचा प्रदान करते हैं।


विषय - केंद्रित दृष्टिकोण 
(Subject-Centered Approach)


विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम परम्परावादी पाठ्यक्रम है। ऐसे पाठ्यक्रम में विषयों को महत्त्व अधिक दिया जाता है। यह बात पूर्व निर्धारित होती है कि बालक को क्या पढ़ना है और शिक्षक को क्या पढ़ाना है। इसमें विषय के प्रत्येक प्रकरण की विस्तृत व्याख्या की जाती है। शिक्षक केवल उन्हीं विषयों और उन्हीं प्रकरणों को पढ़ाता है जो शिक्षण के लिए निश्चित किये जाते हैं । शेष विषय और प्रकरण चाहे कितने ही उपयोगी और महत्त्वपूर्ण क्यों न हों, शिक्षक के द्वारा नहीं पढ़ाये जाते। इस पाठ्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य पाठ्य-विषय को पूर्ण रूप से व्यवस्थित करके बालकों को तर्कयुक्त और क्रमपूर्वक ज्ञान प्रदान करना है।

विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में पाठ्यपुस्तकों के पूर्वनिश्चित ज्ञान, मानव जाति के संचित अनुभवों और विषयों के सहसम्बन्ध पर बल दिया जाता है। अलबर्टी (Alberty) ने कहा है कि, "विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में छात्रों की क्रियाओं को विषय-केन्द्रित आधार पर निश्चित तथा संगठित किया जाता है।" 

प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics) 

  • विषयवस्तु पर बल (Content Emphasis) : इस दृष्टिकोण में शिक्षण की रूपरेखा विषय की संरचना और उसकी अवधारणाओं के अनुसार बनाई जाती है, न कि विद्यार्थियों की रुचियों के अनुसार।
  • शिक्षक केंद्रित(Teachers Centered): शिक्षक का इस प्रक्रिया में प्रमुख स्थान होता है तथा शिक्षण विधियाँ सामान्यतः व्याख्यान, पाठ्यपुस्तक अध्ययन और मूल्यांकन आधारित होती हैं।
  • क्रमिक अध्ययन (Sequential Study): ज्ञान को आधारभूत से जटिल रूप में क्रमिक रूप से व्यवस्थित किया जाता है, जिससे विषय में दक्षता प्राप्त की जा सके।
  • मूल्यांकन (Assessment): विद्यार्थियों के ज्ञान का आकलन परीक्षाओं और लिखित कार्यों द्वारा विषयवस्तु की समझ के आधार पर किया जाता है।


विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण (Merits of Subject-Centred Curriculum)


  • विषयों पर आधारित पाठ्यक्रम समझने में सदैव सरल होता है। इसमें छात्रों और शिक्षकों दोनों को यह पता रहता है कि उन्हें क्या पढ़ना है और क्या पढ़ाना है।
  • इस पाठ्यक्रम में विषय का ज्ञान क्रमबद्ध सुव्यवस्थित, संगठित और तर्कसंगत ढंग से प्राप्त हो जाता है।
  • इस पाठ्यक्रम में पूर्व योजना एवं लक्ष्य निहित होते हैं जिससे शिक्षण प्रक्रिया को अच्छी तरह से संचालित करने में सुविधा रहती है।
  • परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार इस प्रकार के पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना सरल होता है।
  • इस पाठ्यक्रम में बालकों का मूल्यांकन करने में सरलता रहती है क्योंकि जिस विषय की परीक्षा ली जानी है उससे सम्बन्धित पाठ्यवस्तु निश्चित रूप से बालकों को मालूम रहती है।
  • इस पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों तथा उपविषयों को बड़ी सरलता से एक दूसरे से सहसम्बन्धित किया जा सकता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक के बौद्धिक विकास में बहुत सहायक है। ज्ञान के संगठन एवं रचना के बल पर इस पाठ्यक्रम की सहायता से बौद्धिक विकास की ओर ध्यान दे सकता है।
  • इस पाठ्यक्रम में ज्ञान, चिन्तन-मनन और सूझ-बूझ पर आधारित विषय-सामग्री बालक के व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन लाने में सहायता कर सकती है।

विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष (Demerits of Subject-Centred Curriculum)


  • विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम अमनोवैज्ञानिक है क्योंकि इस पाठ्यक्रम में विषयों का चयन करते समय बालकों की रुचियों, आवश्यकताओं और योग्यताओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
  • इस पाठ्यक्रम में पाठ्य-पुस्तकें शिक्षा का केन्द्र बिन्दु हो जाती हैं। बालक पाठ्य-पुस्तक की विषय-वस्तु को रट लेते हैं और परीक्षा उत्तीर्ण कर लेते हैं, चाहे उन्हें वास्तविक ज्ञान या अनुभव हो या न हो।
  • इस पाठ्यक्रम से बालक का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। इससे बालक का मानसिक और बौद्धिक विकास भले ही हो जाये लेकिन शारीरिक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता। 
  • इसमें उन क्रियात्मक गतिविधियों के लिए कोई स्थान नहीं होता जो शिक्षा को सतत जीवन क्रिया बनाती हैं।
  • इस पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत भेदों की अवहेलना की जाती है। प्रगतिशाली, सामान्य और पिछड़े बालक एक कक्षा में साथ-साथ ही पढ़ते हैं।
  • विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम में  शिक्षक न तो शिक्षण की नयी विधियों और नये-नये शिक्षण सूत्रों का प्रयोग करने में उत्साह दिखा पाता है और न ही वह अपनी शिक्षण शैली में बदलाव ला पाता है। 
  • विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम प्रजातांत्रिक देशों के बालकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ रहता है क्योंकि इसके द्वारा बालकों में प्रजातांत्रिक आदर्श और मूल्यों का विकास नहीं किया।
  • इस पाठ्यक्रम का कार्यान्वयन यांत्रिक ढंग से होता है, अतः अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं होती। अतः यह अप्रेरणादायी और कृत्रिम प्रतीत होता है। 

 क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Activity-Centred Curriculum)


 क्रिया-केंद्रित पाठ्यक्रम (Activity Centred Curriculum)  एक ऐसा शैक्षिक दृष्टिकोण है, जिसमें सीखने को केवल सैद्धांतिक सामग्री के बजाय, आकर्षक, व्यावहारिक और व्यावहारिक गतिविधियों के माध्यम से व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रकार का पाठ्यक्रम व्यक्तिगत छात्रों की ज़रूरतों, रुचियों और अनुभवों पर ज़ोर देता है, और उन्हें सक्रिय रूप से भाग लेने और करके सीखने के लिए प्रोत्साहित करता है। बालक स्वभावतः क्रियाशील होता है। यदि बालक की इस क्रियाशीलता को विकसित होने का पूर्ण अवसर मिले तो बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का पूर्ण विकास हो सकता है। क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम क्रिया को आधार मानता है। क्रियाओं के माध्यम से बालक सभी प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है। क्रियाओं की सहायता से प्राप्त शिक्षा मौखिक शिक्षण की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती है। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री जॉन ड्यूवी (John Dewey) इस पाठ्यक्रम के प्रबल समर्थक हैं। इस पाठ्यक्रम में क्रियाओं का आयोजन बालक की आवश्यकताओं और रुचियों को ध्यान में रखकर किया जाता है। क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम के विषय में विभिन्न शिक्षाविदों ने जो विचार व्यक्त किये हैं, वे इस प्रकार हैं-


रूसो (Rousseau) - "बालकों को पुस्तकीय ज्ञान देने की अपेक्षा यह अच्छा है कि उसे कार्यशाला में मग्न रखा जाये ताकि वह हाथों से कार्य करके अपने मस्तिष्क का भी विकास कर सकें।"

कमेनियस (Comenius)- "जो कुछ भी सीखना है करके सीखा जाना चाहिए।"

जॉन ड्यूवी (John Dewey)- "क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम बालक की क्रियाओं की निरन्तर बहने वाली धारा होती है जिसमें क्रमबद्ध विषयों द्वारा कोई व्यवधान नहीं आता और जिसका जन्म बालक की रुचियों तथा निजी रूप से अनुभूत आवश्यकताओं द्वारा होता है।"

प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics):

  • अधिगमकर्ता -केंद्रित (Learner-Centered): छात्रों को अपनी रुचि और क्षमता के आधार पर गतिविधियों को चुनने और उन्हें दिशा देने की आज़ादी होती है, जिससे उनका उत्साह और भागीदारी बढ़ती है।
  • गतिविधि केंद्रित (Activities Centred): इसमें शारीरिक (खेल-कूद), पर्यावरणीय (प्राकृतिक अध्ययन, भ्रमण), रचनात्मक (हस्तशिल्प, प्रयोग), कलात्मक (संगीत, कला) और सामुदायिक गतिविधियाँ (सामाजिक सेवा, परियोजनाएँ) शामिल हैं।
  • सामग्री उन्मुख (Process Oriented): सीखने की प्रक्रिया पर ज़ोर दिया जाता है, इसलिए केवल सामग्री को याद करने के बजाय अनुभव और भागीदारी को महत्व दिया जाता है।
  • समग्र विकास (Holistic Development): यह न केवल बौद्धिक बल्कि शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक कौशल का भी विकास करता है, जिससे हर छात्र का 'दिमाग, दिल और हाथ' सक्रिय होता है।
  • व्यावहारिक मूल्यांकन (Practical Assessment): मूल्यांकन पारंपरिक परीक्षाओं के बजाय प्रोजेक्ट, प्रेजेंटेशन, पोर्टफोलियो और अन्य प्रदर्शन-आधारित तरीकों से किया जाता है।

क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण (Merits of Activity-Centred Curriculum):-

  • क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम बालक की प्रकृति के अनुकूल है क्योंकि बालक स्वभाव से ही क्रियाशील होता है। वह सदैव कोई न कोई कार्य करना चाहता है। कार्य से उसको आनन्द मिलता है। यह पाठ्यक्रम बालक की स्वाभाविक इच्छा को पूरा करता है और उसे करके सीखने के अवसर प्रदान करता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक के बहुमुखी विकास में सहायक होता है क्योंकि इसके माध्यम से वह विभिन्न क्रियाओं में भाग लेकर अपनी कार्यक्षमता प्रदर्शित करता है, अपनी विभिन्न इन्द्रियों का प्रयोग करता है और खोज तथा नयी वस्तुओं के विषय में जिज्ञासा पैदा करता है।
  • यह रचनात्मकता, सहयोग, आलोचनात्मक सोच और समस्या समाधान को बढ़ावा देता है।
  • यह अवधारणाओं को छात्रों के वास्तविक जीवन के अनुभवों से जोड़कर सीखने को सार्थक और यादगार बनाता है।
  • यह स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और स्वयं से सीखने की क्षमता को बढ़ावा देता है।
  • यह पाठ्यक्रम पूर्णतः मनोवैज्ञानिक है। अपनी रचनात्मक प्रवृति के कारण बालक अपने चारों ओर पड़ी हुयी वस्तुओं को जानकर उनका प्रयोग करना सीखता है, इसलिए रचनात्मक और उपयोगी क्रियाओं के द्वारा शिक्षा देना उसके स्वभाव और रुचि के अनुकूल है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक की खोज प्रवृति और जिज्ञासा की प्रवृति की प्रोत्साहन देता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक के सामाजिक विकास में बहुत सहायता करता है। इसमें बालक परस्पर मिलकर कार्य करते हैं, कठिनाई में एक-दूसरे की सहायता करते हैं, जिससे उनमें सहयोग, प्रेम, सहानुभूति, सहनशीलता आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  • इस पाठ्यक्रम से बालकों को भावी जीवन में स्वयं क्रिया करके सीखने की प्रेरणा मिलती है। वे क्रियाओं की सहायता से ज्ञान प्राप्त करके उसे अपने भावी जीवन में प्रयोग करने में सफल हो जाते हैं।


क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष (Demerits of Activity-Centred Curriculum)


  • इसके लिए पर्याप्त योजना, संसाधन और शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • मानक परीक्षण और पारंपरिक पाठ्यक्रम सामग्री के साथ इसे तालमेल बिठाना मुश्किल हो सकता है।
  • यह सभी छात्रों के लिए समान रूप से उपयुक्त नहीं हो सकता, खासकर उन छात्रों के लिए जिन्हें अधिक संरचना या समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • यह पाठ्यक्रम क्रिया पर अत्यधिक बल देता है। ज्ञान के प्रत्येक अंग को जानने के लिए क्रियाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। क्रिया ही क्रिया बस यही सब कुछ बालकों से कराया जाता है जिससे अतिक्रियाशीलता का भय पैदा हो जाता है और अत्यधिक क्रिया से सीखने के प्रति अरुचि भी उत्पन्न हो जाती है।
  • यह पाठ्यक्रम अतीत के अनुभवों की अवहेलना करता है जिससे यह पाठ्यक्रम संकुचित हो जाता है। सब कुछ क्रिया के द्वारा तो नहीं सीखा जा सकता। अतीत के अनुभवों की अपनी महत्ता है, उनकी अवहेलना नहीं की जा सकती।
  • यह पाठ्यक्रम छोटे बालकों के लिए अनुपयुक्त है क्योंकि इसमें उनके लिए उपयुक्त क्रियायें उपलब्ध नहीं हो पातीं।

शिक्षार्थी केन्द्रित पाठ्यक्रम (Learner-Centred Curriculum)

शिक्षार्थी केंद्रित पाठ्यक्रम एक शैक्षिक दृष्टिकोण है जो मुख्य रूप से छात्रों की ज़रूरतों, रुचियों, क्षमताओं और सीखने के तरीकों पर ध्यान देता है, न कि शिक्षक द्वारा सामग्री के प्रस्तुतीकरण पर। यह सक्रिय भागीदारी, व्यक्तिगत ध्यान और सहयोग को बढ़ावा देता है, और शिक्षक एक सुविधादाता के रूप में कार्य करता है जो छात्रों को उनकी सीखने की यात्रा में मार्गदर्शन करता है।
जेम्स स्ली (James Lee) के शब्दों में, "बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम वह है जो पूर्णता और समग्र रूप से सीखने जाते में निहित होता है।" इस पाठ्यक्रम में सीखने की समस्त सामग्री, पाठ्यवस्तु, क्रियायें, अनुभव आदि सभी बालकों की प्रकृति, आवश्यकताओं योग्यताओं और रुचियों के आधार पर निर्धारित किये जाते हैं। इसमें बालक को ही केन्द्र बिन्दु माना जाता है और इस सिद्धान्त में विश्वास किया जाता है कि "पाठ्यक्रम बालक के लिए है न कि बालक पाठ्यक्रम के लिए।" इस पाठ्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य बालक को पूर्ण सुविधायें प्रदान करके उसका बहुमुखी विकास करना है, इसलिए इसका बालक की विभिन्न अवस्थाओं की रुचियों, रूझानों, योग्यताओं, क्षमताओं, दक्षताओं, कौशलों आदि के अनुसार किया जाता है।


प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics):

  • स्टूडेंट  फोकस (Student Focus): यह पाठ्यक्रम हर स्टूडेंट की खास खूबियों, रुचियों और लक्ष्यों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिससे स्टूडेंट्स अपनी पढ़ाई के लिए खुद ज़िम्मेदार बन सकें।
  • एक्टिव लर्निंग (Active Learning): इसमें प्रैक्टिकल और अनुभव पर आधारित लर्निंग पर ज़ोर दिया जाता है, जहाँ स्टूडेंट्स समस्या समाधान, पूछताछ और मिलकर काम करने जैसी गतिविधियों में शामिल होते हैं।
  • शिक्षक एक सुविधादाता के रूप में (Teacher as Facilitator): टीचर सिर्फ़ जानकारी देना नहीं बल्कि सीखने में मदद करते हैं, ऐसा माहौल बनाते हैं जहाँ स्टूडेंट्स को खोज और नई चीज़ें सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • पर्सनैलाइज़ेशन (Personalization): पाठ और गतिविधियाँ हर स्टूडेंट की सीखने की शैली और ज़रूरतों के अनुसार होती हैं, और आसानी से उपलब्ध कराने के लिए अक्सर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है।
  • सहयोगी लर्निंग (Collaborative Learning): ग्रुप प्रोजेक्ट और साथियों से सीखने के ज़रिए स्टूडेंट्स के बीच टीमवर्क और कम्युनिकेशन को बढ़ावा मिलता है।
  • फॉर्मेटिव असेसमेंट (Formative Assessment): पारंपरिक परीक्षाओं के बजाय, लगातार मूल्यांकन से स्टूडेंट्स की प्रगति में मदद के लिए उपयोगी फीडबैक मिलता है।
  • प्रासंगिकता और असल दुनिया से जुड़ाव (Relevance and Real-World Connections): पाठ्यक्रम का कंटेंट असल ज़िंदगी की स्थितियों से जुड़ा होता है, जिससे सीखना सार्थक और उपयोगी बनता है।

शिक्षार्थी केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण (Merits of Learner-Centred Curriculum)


  • छात्र अपनी पढ़ाई में सक्रिय भागीदार बनते हैं, जिससे उनकी समझ और प्रेरणा दोनों बेहतर होती है।
  • यह समस्या समाधान, रचनात्मकता और स्व-अध्ययन जैसे महत्वपूर्ण कौशल विकसित करने में मदद करता है।
  • यह विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और सीखने की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखने की सुविधा देता है।बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम मनोवैज्ञानिक है क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित है। बालकों की रुचियों, योग्यताओं और आवश्यकताओं पर आधारित होने के कारण यह बालकों को सीखने के लिए प्रेरित करता है।
  •  इस पाठ्यक्रम में सैद्धान्तिक पक्ष की अपेक्षा व्यावहारिक पक्ष की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है अर्थात बालक को करके सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास में योग देता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालकों की जन्मजात शक्तियों का विकास करके उसे भावी जीवन के उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए तैयार करता है।
  • यह पाठ्यक्रम सीखने की क्रिया में समन्वय स्थापित करता है। इसके द्वारा कक्षा में तथा कक्षा के बाहर की क्रियाओं में समन्वय स्थापित करने की सुविधा प्राप्त होती है।

शिक्षार्थी -केन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष  (Demerits of Learner-Centred Curriculum) :


  • बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम ज्ञान के क्षेत्र, खोज की गहराई और विषय सामग्री की ग्राह्यता (acceptability) को सीमित करता है
  • इस पाठ्यक्रम में बालक की रुचियों, आवश्यकताओं और समस्याओं को ही केन्द्र में रखा गया है लेकिन व्यावहारिक रूप से यह निर्धारित करना बहुत कठिन काम है कि बालकों की रुचियाँ, आवश्यकतायें और समस्यायें क्या हैं?
  •  इस पाठ्यक्रम में बालक को ही अधिक महत्त्व दिया गया है, समाज को नहीं। इस प्रकार यह
  • पाठ्यक्रम समाज के प्रति विद्यालय के उत्तरदायित्वों को विशेष महत्त्व नहीं देता।  
  • इस पाठ्यक्रम में भी क्रियाशीलता के सिद्धान्त को अपनाया गया है, जिसके कारण अत्यधिक क्रियाशीलता का भय इसमें भी बना रहता है।  
  • यदि विद्यालयों में इस पाठ्यक्रम की सभी विशेषताओं को मानकर इसे लागू किया जाये तो विद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रम में अव्यवस्था उत्पन्न हो जायेगी।
  • प्रत्येक विद्यार्थी की रुचि और आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम बनाना काफी समय-साध्य होता है, जिससे सभी आवश्यक विषयों को कवर करना कठिन हो जाता है।
  • विद्यार्थियों की विविध कार्यप्रणालियों और परिणामों के कारण मूल्यांकन हमेशा ठोस और वस्तुनिष्ठ नहीं रह पाता।


समुदाय-केंद्रित पाठ्यक्रम (Community-centered Curriculum)

एक ऐसा तरीका है जो स्थानीय समुदाय की ज़रूरतों, मूल्यों, संस्कृति और वास्तविक जीवन की समस्याओं को शैक्षिक योजना और कक्षा गतिविधियों के केंद्र में रखता है। यह पाठ्यक्रम स्कूल की शिक्षा को सामुदायिक अनुभवों से जोड़ता है, और छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों और अन्य हितधारकों को एक सहयोगी प्रक्रिया में शामिल करता है। 

यह पाठ्यक्रम डिज़ाइन सामुदायिक सेवा, नागरिकता परियोजनाओं, पर्यावरण शिक्षा और स्थानीय संगठनों के साथ साझेदारी के माध्यम से सीखने पर ज़ोर देता है, जो कक्षा के कंटेंट को वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोग से जोड़ता है। 

यह छात्रों को स्थानीय चुनौतियों की जांच करने और उनका समाधान करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे सक्रिय भागीदारी और सामाजिक जिम्मेदारी बढ़ती है। 


प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics):

  • प्रासंगिकता और व्यवहारिकता (Relevance and Practicality):  सामग्री सीधे समुदाय और छात्रों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों और ज्ञान से जुड़ा होता है। 
  • सहयोगी दृष्टिकोण (Collaborative Approach): पाठ्यक्रम के डिज़ाइन और क्रियान्वयन में छात्र, शिक्षक, अभिभावक और समुदाय के सदस्य शामिल होते हैं, जिससे साझा स्वामित्व की भावना बढ़ती है। 
  • सांस्कृतिक संवेदनशीलता (Cultural Sensitivity): यह स्थानीय क्षेत्र के अद्वितीय मूल्यों, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है।
  • समस्या समाधान पर ध्यान (Problem-Solving Focus): छात्र अपने समुदाय की वास्तविक समस्याओं पर काम करते हैं, जिससे टीमवर्क, नेतृत्व और आलोचनात्मक सोच कौशल का विकास होता है। 
  • समग्र विकास (Holistic Development): यह नागरिक जिम्मेदारी, सामाजिक कौशल और जुड़ाव की मजबूत भावना को बढ़ावा देता है। 

समुदाय केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण (Merits of Community-Centred Curriculum)

  • शिक्षा को उनके जीवन से संबंधित बनाकर यह छात्रों की भागीदारी, प्रेरणा और वास्तविक दुनिया में सीखने के परिणामों को बढ़ाता है।
  • यह सांस्कृतिक समझ, सहयोग को बढ़ावा देता है और छात्रों को स्थानीय स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सशक्त बनाता है।
  • यह कक्षा में सिखाई गई जानकारी को वास्तविक जीवन की स्थितियों से जोड़ता है, जिससे छात्रों को अपनी शिक्षा की उपयोगिता समझ में आती है।
  • यह महत्वपूर्ण कौशल जैसे कि आलोचनात्मक सोच, टीमवर्क, संचार, नेतृत्व और समस्या समाधान को बढ़ावा देता है – ये ऐसे कौशल हैं जो कार्यक्षेत्र में बहुत मूल्यवान माने जाते हैं।
  • छात्रों को ऐसे सहयोगी प्रोजेक्ट्स में शामिल करके उनमें सहानुभूति, आत्मविश्वास और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना विकसित की जाती है, जो उनके समुदाय में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।
  • यह स्कूलों और समुदायों के बीच संबंध मजबूत करता है, जिससे शिक्षा एक साझा परियोजना बन जाती है, जिससे छात्रों और स्थानीय हितधारकों दोनों को लाभ होता है।
  • इसमें स्थानीय मूल्यों, ज्ञान और परंपराओं को शामिल किया जाता है, जिससे सीखने की प्रक्रिया समृद्ध होती है और समुदाय की विविधता को बढ़ावा मिलता है।

समुदाय-केन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष  (Demerits of Community-Centred Curriculum) :


  • यह स्थानीय चिंताओं पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे व्यापक शैक्षिक उद्देश्य या वैश्विक दृष्टिकोण की अनदेखी हो सकती है। 
  • इसमें संसाधनों की कमी हो सकती है और यह सामुदायिक भागीदारी पर बहुत अधिक निर्भर हो सकता है, जो हमेशा उपलब्ध नहीं हो सकती। 
  • यदि पाठ्यक्रम डिज़ाइन शैक्षिक मानकों के बजाय स्थानीय समुदाय के मूल्यों से बहुत अधिक प्रभावित होता है, तो पूर्वाग्रह या सीमित विशेषज्ञता का जोखिम हो सकता है। 
  • समुदाय के साथ भागीदारी स्थापित करना और स्थानीय स्तर पर उपयोगी सामग्री तैयार करना अक्सर काफी समय, मेहनत और संसाधनों की आवश्यकता होती है – कई स्कूलों के पास ये संसाधन नहीं होते।
  • स्थानीय मूल्य, दृष्टिकोण या रुचियाँ पाठ्यक्रम की सामग्री पर अनावश्यक प्रभाव डाल सकती हैं, जिससे पूर्वाग्रह पैदा हो सकता है और विविध या असहमति रखने वाले विचारों को नजरअंदाज किया जा सकता है।
  • स्थानीय चिंताओं पर ज़्यादा ज़ोर देने का मतलब यह हो सकता है कि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय कौशल, ज्ञान और क्षमताएं विकसित नहीं हो पातीं।
  • शिक्षकों के पास समुदाय आधारित गतिविधियों को पारंपरिक पाठ्यक्रम की ज़रूरतों के साथ प्रभावी ढंग से समन्वयित, योजनाबद्ध और एकीकृत करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण या आत्मविश्वास की कमी हो सकती है।




सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 

  1. https://www.teachingworld.in/characteristics-of-curriculum/
  2. https://www.youtube.com/watch?v=0PA9FNQ-V0M
  3. http://www.bhabhaeducation.org/wp-content/uploads/2021/06/C-5-3.pdf
  4. https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAED-612.pdf
  5. https://uou.ac.in/lecturenotes/education/MAED-17/unit-1-converted.pdf
  6. https://learnstudies.com/learn/b-ed-pathyakram-vikas-evam-vidyalaya/
  7. https://www.egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/45963/1/Unit-3.pdf

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