Monday, September 8, 2025

सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा (In-service Teacher Education)

 सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा 

(In-service  Teacher Education)


सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा से तात्पर्य उन प्रोफेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम और प्रशिक्षण अवसरों (Training Opportunities) से है जो वर्तमान में स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। ये प्रोग्राम शिक्षकों को अपना ज्ञान अपडेट करने, उनकी शिक्षण कौशल में सुधार करने, शिक्षा की बदलती ज़रूरतों के अनुसार स्वयं  को ढालने और अंततः छात्रों के सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।  

1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अध्यापक शिक्षा को भी शिक्षा के समान एक जीवनव्यापी प्रक्रिया के रूप में स्वीकृत किया गया है। अत सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा को भी अपरिहार्य एवं सेवापूर्व अध्यापक शिक्षा के महत्वपूर्ण अंग  के रूप में देखा जाने लगा। इस हेतु जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (District Institute of Education and Training) अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय और शिक्षा में उच्च अध्ययन संस्थान आदि की स्थापना को आवश्यक माना गया।

सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा में शिक्षकों द्वारा प्रारंभिक प्रमाणन (Initial certification) के बाद की सभी गतिविधियाँ और पाठ्यक्रम शामिल होते हैं, जिनका उद्देश्य शिक्षकों का निरंतर व्यावसायिक विकास करना है। इसका मुख्य उद्देश्य ज्ञान को अपडेट करना, कौशल में सुधार करना और शिक्षा से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए सकारात्मक व्यावसायिक दृष्टिकोण विकसित करना है। यह प्री-सर्विस शिक्षा से अलग है, जो शिक्षकों को पढ़ाने से पहले तैयार करती है, लेकिन दोनों को शिक्षक विकास के लिए पूरक प्रक्रियाएँ माना जाता है।

उद्देश्य (Objectives):

  • प्रोफेशनल क्षमता बढ़ाना  (Increase professional efficiency):  शिक्षकों को अपने विषय की जानकारी, शिक्षण कौशल और कक्षा प्रबंधन की क्षमता सुधारने में मदद करना। 

  • समस्या समाधान और चिंतन (Problem-solving and reflection): शिक्षकों को कक्षा में आने वाली चुनौतियों की पहचान करने और मिलकर उनका समाधान करने में मदद करना,  जिससे चिंतनशील और लचीली शिक्षण पद्धतियाँ अपनाई जा सकें।
  • मानसिक दृष्टिकोण को व्यापक बनाना (Broaden mental outlook): शिक्षकों को शिक्षा के नए ट्रेंड, तरीकों और नवाचारों से अवगत कराना , जिससे उनका दृष्टिकोण और अनुकूलन क्षमता बढ़े।
  • पॉजिटिव प्रोफेशनल सोच को बढ़ावा देना (Foster positive professional attitudes): पेशे के प्रति प्रतिबद्धता बढ़ाना (Promote commitment to the profession), निरंतर सीखने के लिए प्रेरित करना और नैतिक व्यवहार विकसित करना ।
  • शैक्षिक सुधारों को आसान बनाना (Facilitate educational reforms): शिक्षकों को नए पाठ्यक्रम लागू करने, तकनीक का उपयोग करने और बदलते शैक्षिक नियमों के अनुसार ढलने के लिए तैयार करना। 
  • सहयोग बढ़ाना (Build collaboration): समग्र शिक्षण पद्धतियों को बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों के बीच टीमवर्क और ज्ञान साझा करने को प्रोत्साहित करना।
  • शिक्षकों को और अधिक प्रभावी और छात्रों की ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील बनाना।

  • नवीन शिक्षण उपकरणों और रणनीतियों के बारे में जानकारी देना ।
  • उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए निरंतर व्यावसायिक विकास का समर्थन करना ।
  • सेवारत अप्रशिक्षित तथा न्यून योग्यता संपन्न अध्यापकों की योग्यता का उन्नयन करना। 
  • कुछ आलोचनात्मक क्षेत्र और मुद्दों के बारे में अध्यापकों को जागरूक बनाना, जैसे दक्षताधारित अधिगम, बहुवर्गीय, बहुस्तरीय तथा बहुआयामी शिक्षण, अनग्रसर (progressive) समूह के बच्चों की शिक्षा, अधिगम समस्याग्रस्त छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति,पूछताछ  कौशल विकास, शिक्षा में जनसंचार -माध्यम (Mass media) का प्रयोग करना, सामुदायिक सहभागिता, अक्षमता या त्रुटि वाले छात्रों की शिक्षा आदि। 


आवश्यकता (Needs):

शैक्षिक दृष्टिकोण, पाठ्यक्रम, तकनीक और छात्रों की अलग-अलग ज़रूरतों में लगातार बदलाव के कारण, कार्यरत शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि शिक्षक पेशेवर रूप से अपडेट रहें, प्रभावी ढंग से काम करें और कक्षा में बदलती ज़रूरतों के अनुसार काम कर सकें। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के अनुसार- उत्तरजीवितागत दक्षताओं या Survival competencies को अद्यतन (Update) रूप देने के लिए सेवाकालीन अध्यापक शिक्षा जरूरी है। ज्ञान के क्षेत्र में विस्फोट के साथ ही कई अन्य परिवर्तन भी आज निरन्तर शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे हैं। सामाजिक लक्ष्य एवं चेतना में निरन्तर परिवर्तन होता जा रहा है। साथ ही उसी के अनुसार शैक्षिक संरचना पाठ्यक्रम प्रारूप, पाठ्यक्रम प्रस्तुतीकरण, व्यूह रचना,  मूल्यांकन तकनीक,  प्रबन्धन प्रक्रिया आदि के क्षेत्र में भी निरन्तर परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। पाठ्यक्रम में  निरन्तर बदलाव आ रहे हैं मूल्यांकन पद्धति, श्रव्य-दृश्य अनुदेशनात्मक सामग्रियों के प्रयोग, कंप्यूटर तथा मल्टी मीडिया आदि का उपयोग, दूर-सम्प्रेषण तकनीकों का प्रचलन आदि भी क्रमागत अधिक होता जा रहा है, इस कारण अध्यापक को प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। 


  • निरंतर व्यावसायिक विकास (Continuous Professional Growth): प्रभावी और प्रेरित शिक्षक बने रहने के लिए, अध्यापन में शिक्षाशास्त्र, विषय की जानकारी और आत्म-चिंतन में लगातार विकास की आवश्यकता होती है।
  • शैक्षिक बदलावों के अनुकूल (Adapting to Educational Change): बार-बार पाठ्यक्रम में बदलाव, नई शिक्षण विधियों का उपयोग और तकनीक में प्रगति के कारण शिक्षकों को नवीनतम ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है।
  • विभिन्न छात्रों की ज़रूरतों को पूरा करना (Addressing Diverse Learner Needs): आज की कक्षाओं में अलग-अलग पृष्ठभूमि, सीखने के तरीके और क्षमता वाले छात्र होते हैं; समावेशी शिक्षा और अलग-अलग क्षमता वाले छात्रों के लिए शिक्षकों को नई रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
  • कक्षा में सुधार (Improving Classroom Practice): इन-सर्विस प्रशिक्षण से बेहतर शिक्षण विधियाँ, कक्षा प्रबंधन और छात्रों की भागीदारी में सुधार होता है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ता है।
  • तकनीकी का उपयोग (Integration of Technology): शिक्षकों को डिजिटल संसाधन, उपकरण और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  • शिक्षण कौशल में सुधार (Enhancement of pedagogical skills): यह शिक्षण रणनीतियों, कक्षा प्रबंधन और मूल्यांकन तकनीकों को बेहतर बनाता है।
  • विषय ज्ञान को अपडेट करना (Updating subject knowledge): यह शिक्षकों को उनके संबंधित विषय क्षेत्रों में नवीनतम जानकारी और उभरते ट्रेंड्स से अवगत कराता है।
  • छात्रों के परिणामों में सुधार (Improving student outcomes): इसका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से छात्रों की भागीदारी, सीखने और उपलब्धि को बढ़ाना है।






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