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Friday, September 5, 2025

पाठ्यक्रम विकास (Curriculum Development)

  पाठ्यक्रम विकास 
(Curriculum Development) 


पाठ्यक्रम विकास (Curriculum Development) एक नियोजित, प्रगतिशील और व्यवस्थित प्रक्रिया (Planned, progressive and systematic process) है, जिसके अंतर्गत शैक्षिक सामग्री, शिक्षण अनुभवों और आकलन विधियों की संरचना, संगठन और परिष्करण (Finishing) किया जाता है ताकि छात्रों को सार्थक और गुणवत्तापूर्ण अधिगम अनुभव प्राप्त हो।

  • इसमें शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं, संस्थागत लक्ष्यों और समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप पाठ्य-निर्माण, शिक्षण विधियों का चयन तथा मूल्यांकन का समावेश होता है।

  • पाठ्यक्रम विकास निरंतर सुधार की प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न हितधारकों (छात्र, शिक्षक, समुदाय) की भागीदारी व फीडबैक के आधार पर अद्यतन और परिष्करण किया जाता है।

  • इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षा को संगठित, प्रासंगिक व विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए उपयोगी बनाना है।


विशेषताएँ (Characteristics):-

पाठ्यक्रम विकास की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं:

  • सम्पूर्ण विद्यालय कार्य का कार्यक्रम (The entire school's work schedule): पाठ्यक्रम केवल विषयों का समूह नहीं, बल्कि विद्यालय में होने वाले सभी शैक्षिक और अतिरिक्त क्रियाकलापों को समाहित करता है, जो विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में सहायक होते हैं।

  • गतिशीलता (Mobility): पाठ्यक्रम समय के साथ विकसित होता रहता है ताकि छात्रों की बदलती आवश्यकताओं और समाज के परिवर्तनों के अनुरूप बना रहे।

  • अनुभवों का संग्रह (Collection of experiences): यह विद्यार्थियों को विविध और व्यावहारिक अनुभव प्रदान करता है, जिससे उनका समग्र विकास होता है।

  • उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक (Helpful in achieving objectives): पाठ्यक्रम शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मार्गदर्शन करता है।

  • शैक्षिक प्रवृत्तियों का प्रतिबिंब (A reflection of educational trends): यह वर्तमान शिक्षा प्रणाली और उसके लक्ष्यों को दर्शाता है।

  • जीवन्त जीवन प्रक्रिया (Living life processes) : पाठ्यक्रम केवल स्थिर सामग्री नहीं, बल्कि व्यक्ति और उसके वातावरण के बीच की क्रिया-प्रतिक्रिया है जो समय के साथ बदलती रहती है।

  • निर्देशन का महत्वपूर्ण अंग (An important aspect of guidance): यह विद्यार्थियों को उचित मार्गदर्शन और विषय चयन में मदद करता है।

  • निरंतर संशोधन प्रक्रिया (Continuous revision process): समाज और व्यक्तियों की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम का निरंतर पुनरावलोकन और संशोधन आवश्यक होता है।


पाठ्यक्रम विकास के उपागम 

(Approaches of Curriculum Development)


पाठ्यक्रम विकास के प्रमुख तरीकों में विषय-केंद्रित (Subject-centered), शिक्षार्थी-केंद्रित (Student Centered), समस्या-केंद्रित (Problem Centered) और कई सैद्धांतिक/प्रबंधन मॉडल (Theoretical/Managerial Models) शामिल हैं, जैसे व्यवहारवादी (Behavioral), प्रणालीगत (System), मानवतावादी (Humanistic), प्रबंधकीय और पुनर्व्याख्यात्मक दृष्टिकोण (Managerial and re-conceptualist approaches)। ये दृष्टिकोण शैक्षिक पाठ्यक्रमों की योजना, संगठन और मूल्यांकन के लिए आधारभूत ढाँचा प्रदान करते हैं।


विषय - केंद्रित दृष्टिकोण 
(Subject-Centered Approach)


विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम परम्परावादी पाठ्यक्रम है। ऐसे पाठ्यक्रम में विषयों को महत्त्व अधिक दिया जाता है। यह बात पूर्व निर्धारित होती है कि बालक को क्या पढ़ना है और शिक्षक को क्या पढ़ाना है। इसमें विषय के प्रत्येक प्रकरण की विस्तृत व्याख्या की जाती है। शिक्षक केवल उन्हीं विषयों और उन्हीं प्रकरणों को पढ़ाता है जो शिक्षण के लिए निश्चित किये जाते हैं । शेष विषय और प्रकरण चाहे कितने ही उपयोगी और महत्त्वपूर्ण क्यों न हों, शिक्षक के द्वारा नहीं पढ़ाये जाते। इस पाठ्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य पाठ्य-विषय को पूर्ण रूप से व्यवस्थित करके बालकों को तर्कयुक्त और क्रमपूर्वक ज्ञान प्रदान करना है।

विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में पाठ्यपुस्तकों के पूर्वनिश्चित ज्ञान, मानव जाति के संचित अनुभवों और विषयों के सहसम्बन्ध पर बल दिया जाता है। अलबर्टी (Alberty) ने कहा है कि, "विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम में छात्रों की क्रियाओं को विषय-केन्द्रित आधार पर निश्चित तथा संगठित किया जाता है।" 

प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics) 

  • विषयवस्तु पर बल (Content Emphasis) : इस दृष्टिकोण में शिक्षण की रूपरेखा विषय की संरचना और उसकी अवधारणाओं के अनुसार बनाई जाती है, न कि विद्यार्थियों की रुचियों के अनुसार।
  • शिक्षक केंद्रित(Teachers Centered): शिक्षक का इस प्रक्रिया में प्रमुख स्थान होता है तथा शिक्षण विधियाँ सामान्यतः व्याख्यान, पाठ्यपुस्तक अध्ययन और मूल्यांकन आधारित होती हैं।
  • क्रमिक अध्ययन (Sequential Study): ज्ञान को आधारभूत से जटिल रूप में क्रमिक रूप से व्यवस्थित किया जाता है, जिससे विषय में दक्षता प्राप्त की जा सके।
  • मूल्यांकन (Assessment): विद्यार्थियों के ज्ञान का आकलन परीक्षाओं और लिखित कार्यों द्वारा विषयवस्तु की समझ के आधार पर किया जाता है।


विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण (Merits of Subject-Centred Curriculum)


  • विषयों पर आधारित पाठ्यक्रम समझने में सदैव सरल होता है। इसमें छात्रों और शिक्षकों दोनों को यह पता रहता है कि उन्हें क्या पढ़ना है और क्या पढ़ाना है।
  • इस पाठ्यक्रम में विषय का ज्ञान क्रमबद्ध सुव्यवस्थित, संगठित और तर्कसंगत ढंग से प्राप्त हो जाता है।
  • इस पाठ्यक्रम में पूर्व योजना एवं लक्ष्य निहित होते हैं जिससे शिक्षण प्रक्रिया को अच्छी तरह से संचालित करने में सुविधा रहती है।
  • परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार इस प्रकार के पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना सरल होता है।
  • इस पाठ्यक्रम में बालकों का मूल्यांकन करने में सरलता रहती है क्योंकि जिस विषय की परीक्षा ली जानी है उससे सम्बन्धित पाठ्यवस्तु निश्चित रूप से बालकों को मालूम रहती है।
  • इस पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों तथा उपविषयों को बड़ी सरलता से एक दूसरे से सहसम्बन्धित किया जा सकता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक के बौद्धिक विकास में बहुत सहायक है। ज्ञान के संगठन एवं रचना के बल पर इस पाठ्यक्रम की सहायता से बौद्धिक विकास की ओर ध्यान दे सकता है।
  • इस पाठ्यक्रम में ज्ञान, चिन्तन-मनन और सूझ-बूझ पर आधारित विषय-सामग्री बालक के व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन लाने में सहायता कर सकती है।

विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष (Demerits of Subject-Centred Curriculum)


  • विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम अमनोवैज्ञानिक है क्योंकि इस पाठ्यक्रम में विषयों का चयन करते समय बालकों की रुचियों, आवश्यकताओं और योग्यताओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
  • इस पाठ्यक्रम में पाठ्य-पुस्तकें शिक्षा का केन्द्र बिन्दु हो जाती हैं। बालक पाठ्य-पुस्तक की विषय-वस्तु को रट लेते हैं और परीक्षा उत्तीर्ण कर लेते हैं, चाहे उन्हें वास्तविक ज्ञान या अनुभव हो या न हो।
  • इस पाठ्यक्रम से बालक का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। इससे बालक का मानसिक और बौद्धिक विकास भले ही हो जाये लेकिन शारीरिक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता। 
  • इसमें उन क्रियात्मक गतिविधियों के लिए कोई स्थान नहीं होता जो शिक्षा को सतत जीवन क्रिया बनाती हैं।
  • इस पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत भेदों की अवहेलना की जाती है। प्रगतिशाली, सामान्य और पिछड़े बालक एक कक्षा में साथ-साथ ही पढ़ते हैं।
  • विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम में  शिक्षक न तो शिक्षण की नयी विधियों और नये-नये शिक्षण सूत्रों का प्रयोग करने में उत्साह दिखा पाता है और न ही वह अपनी शिक्षण शैली में बदलाव ला पाता है। 
  • विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम प्रजातांत्रिक देशों के बालकों की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ रहता है क्योंकि इसके द्वारा बालकों में प्रजातांत्रिक आदर्श और मूल्यों का विकास नहीं किया।
  • इस पाठ्यक्रम का कार्यान्वयन यांत्रिक ढंग से होता है, अतः अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं होती। अतः यह अप्रेरणादायी और कृत्रिम प्रतीत होता है। 

 क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Activity-Centred Curriculum)


 क्रिया-केंद्रित पाठ्यक्रम (Activity Centred Curriculum)  एक ऐसा शैक्षिक दृष्टिकोण है, जिसमें सीखने को केवल सैद्धांतिक सामग्री के बजाय, आकर्षक, व्यावहारिक और व्यावहारिक गतिविधियों के माध्यम से व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रकार का पाठ्यक्रम व्यक्तिगत छात्रों की ज़रूरतों, रुचियों और अनुभवों पर ज़ोर देता है, और उन्हें सक्रिय रूप से भाग लेने और करके सीखने के लिए प्रोत्साहित करता है। बालक स्वभावतः क्रियाशील होता है। यदि बालक की इस क्रियाशीलता को विकसित होने का पूर्ण अवसर मिले तो बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का पूर्ण विकास हो सकता है। क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम क्रिया को आधार मानता है। क्रियाओं के माध्यम से बालक सभी प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है। क्रियाओं की सहायता से प्राप्त शिक्षा मौखिक शिक्षण की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती है। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री जॉन ड्यूवी (John Dewey) इस पाठ्यक्रम के प्रबल समर्थक हैं। इस पाठ्यक्रम में क्रियाओं का आयोजन बालक की आवश्यकताओं और रुचियों को ध्यान में रखकर किया जाता है। क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम के विषय में विभिन्न शिक्षाविदों ने जो विचार व्यक्त किये हैं, वे इस प्रकार हैं-


रूसो (Rousseau) - "बालकों को पुस्तकीय ज्ञान देने की अपेक्षा यह अच्छा है कि उसे कार्यशाला में मग्न रखा जाये ताकि वह हाथों से कार्य करके अपने मस्तिष्क का भी विकास कर सकें।"

कमेनियस (Comenius)- "जो कुछ भी सीखना है करके सीखा जाना चाहिए।"

जॉन ड्यूवी (John Dewey)- "क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम बालक की क्रियाओं की निरन्तर बहने वाली धारा होती है जिसमें क्रमबद्ध विषयों द्वारा कोई व्यवधान नहीं आता और जिसका जन्म बालक की रुचियों तथा निजी रूप से अनुभूत आवश्यकताओं द्वारा होता है।"

प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics):

  • अधिगमकर्ता -केंद्रित (Learner-Centered): छात्रों को अपनी रुचि और क्षमता के आधार पर गतिविधियों को चुनने और उन्हें दिशा देने की आज़ादी होती है, जिससे उनका उत्साह और भागीदारी बढ़ती है।
  • गतिविधि केंद्रित (Activities Centred): इसमें शारीरिक (खेल-कूद), पर्यावरणीय (प्राकृतिक अध्ययन, भ्रमण), रचनात्मक (हस्तशिल्प, प्रयोग), कलात्मक (संगीत, कला) और सामुदायिक गतिविधियाँ (सामाजिक सेवा, परियोजनाएँ) शामिल हैं।
  • सामग्री उन्मुख (Process Oriented): सीखने की प्रक्रिया पर ज़ोर दिया जाता है, इसलिए केवल सामग्री को याद करने के बजाय अनुभव और भागीदारी को महत्व दिया जाता है।
  • समग्र विकास (Holistic Development): यह न केवल बौद्धिक बल्कि शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक कौशल का भी विकास करता है, जिससे हर छात्र का 'दिमाग, दिल और हाथ' सक्रिय होता है।
  • व्यावहारिक मूल्यांकन (Practical Assessment): मूल्यांकन पारंपरिक परीक्षाओं के बजाय प्रोजेक्ट, प्रेजेंटेशन, पोर्टफोलियो और अन्य प्रदर्शन-आधारित तरीकों से किया जाता है।

क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण (Merits of Activity-Centred Curriculum):-

  • क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम बालक की प्रकृति के अनुकूल है क्योंकि बालक स्वभाव से ही क्रियाशील होता है। वह सदैव कोई न कोई कार्य करना चाहता है। कार्य से उसको आनन्द मिलता है। यह पाठ्यक्रम बालक की स्वाभाविक इच्छा को पूरा करता है और उसे करके सीखने के अवसर प्रदान करता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक के बहुमुखी विकास में सहायक होता है क्योंकि इसके माध्यम से वह विभिन्न क्रियाओं में भाग लेकर अपनी कार्यक्षमता प्रदर्शित करता है, अपनी विभिन्न इन्द्रियों का प्रयोग करता है और खोज तथा नयी वस्तुओं के विषय में जिज्ञासा पैदा करता है।
  • यह रचनात्मकता, सहयोग, आलोचनात्मक सोच और समस्या समाधान को बढ़ावा देता है।
  • यह अवधारणाओं को छात्रों के वास्तविक जीवन के अनुभवों से जोड़कर सीखने को सार्थक और यादगार बनाता है।
  • यह स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और स्वयं से सीखने की क्षमता को बढ़ावा देता है।
  • यह पाठ्यक्रम पूर्णतः मनोवैज्ञानिक है। अपनी रचनात्मक प्रवृति के कारण बालक अपने चारों ओर पड़ी हुयी वस्तुओं को जानकर उनका प्रयोग करना सीखता है, इसलिए रचनात्मक और उपयोगी क्रियाओं के द्वारा शिक्षा देना उसके स्वभाव और रुचि के अनुकूल है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक की खोज प्रवृति और जिज्ञासा की प्रवृति की प्रोत्साहन देता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक के सामाजिक विकास में बहुत सहायता करता है। इसमें बालक परस्पर मिलकर कार्य करते हैं, कठिनाई में एक-दूसरे की सहायता करते हैं, जिससे उनमें सहयोग, प्रेम, सहानुभूति, सहनशीलता आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  • इस पाठ्यक्रम से बालकों को भावी जीवन में स्वयं क्रिया करके सीखने की प्रेरणा मिलती है। वे क्रियाओं की सहायता से ज्ञान प्राप्त करके उसे अपने भावी जीवन में प्रयोग करने में सफल हो जाते हैं।


क्रिया-केन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष (Demerits of Activity-Centred Curriculum)


  • इसके लिए पर्याप्त योजना, संसाधन और शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • मानक परीक्षण और पारंपरिक पाठ्यक्रम सामग्री के साथ इसे तालमेल बिठाना मुश्किल हो सकता है।
  • यह सभी छात्रों के लिए समान रूप से उपयुक्त नहीं हो सकता, खासकर उन छात्रों के लिए जिन्हें अधिक संरचना या समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • यह पाठ्यक्रम क्रिया पर अत्यधिक बल देता है। ज्ञान के प्रत्येक अंग को जानने के लिए क्रियाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। क्रिया ही क्रिया बस यही सब कुछ बालकों से कराया जाता है जिससे अतिक्रियाशीलता का भय पैदा हो जाता है और अत्यधिक क्रिया से सीखने के प्रति अरुचि भी उत्पन्न हो जाती है।
  • यह पाठ्यक्रम अतीत के अनुभवों की अवहेलना करता है जिससे यह पाठ्यक्रम संकुचित हो जाता है। सब कुछ क्रिया के द्वारा तो नहीं सीखा जा सकता। अतीत के अनुभवों की अपनी महत्ता है, उनकी अवहेलना नहीं की जा सकती।
  • यह पाठ्यक्रम छोटे बालकों के लिए अनुपयुक्त है क्योंकि इसमें उनके लिए उपयुक्त क्रियायें उपलब्ध नहीं हो पातीं।

शिक्षार्थी केन्द्रित पाठ्यक्रम (Learner-Centred Curriculum)

शिक्षार्थी केंद्रित पाठ्यक्रम एक शैक्षिक दृष्टिकोण है जो मुख्य रूप से छात्रों की ज़रूरतों, रुचियों, क्षमताओं और सीखने के तरीकों पर ध्यान देता है, न कि शिक्षक द्वारा सामग्री के प्रस्तुतीकरण पर। यह सक्रिय भागीदारी, व्यक्तिगत ध्यान और सहयोग को बढ़ावा देता है, और शिक्षक एक सुविधादाता के रूप में कार्य करता है जो छात्रों को उनकी सीखने की यात्रा में मार्गदर्शन करता है।
जेम्स स्ली (James Lee) के शब्दों में, "बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम वह है जो पूर्णता और समग्र रूप से सीखने जाते में निहित होता है।" इस पाठ्यक्रम में सीखने की समस्त सामग्री, पाठ्यवस्तु, क्रियायें, अनुभव आदि सभी बालकों की प्रकृति, आवश्यकताओं योग्यताओं और रुचियों के आधार पर निर्धारित किये जाते हैं। इसमें बालक को ही केन्द्र बिन्दु माना जाता है और इस सिद्धान्त में विश्वास किया जाता है कि "पाठ्यक्रम बालक के लिए है न कि बालक पाठ्यक्रम के लिए।" इस पाठ्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य बालक को पूर्ण सुविधायें प्रदान करके उसका बहुमुखी विकास करना है, इसलिए इसका बालक की विभिन्न अवस्थाओं की रुचियों, रूझानों, योग्यताओं, क्षमताओं, दक्षताओं, कौशलों आदि के अनुसार किया जाता है।


प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics):

  • स्टूडेंट  फोकस (Student Focus): यह पाठ्यक्रम हर स्टूडेंट की खास खूबियों, रुचियों और लक्ष्यों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिससे स्टूडेंट्स अपनी पढ़ाई के लिए खुद ज़िम्मेदार बन सकें।
  • एक्टिव लर्निंग (Active Learning): इसमें प्रैक्टिकल और अनुभव पर आधारित लर्निंग पर ज़ोर दिया जाता है, जहाँ स्टूडेंट्स समस्या समाधान, पूछताछ और मिलकर काम करने जैसी गतिविधियों में शामिल होते हैं।
  • शिक्षक एक सुविधादाता के रूप में (Teacher as Facilitator): टीचर सिर्फ़ जानकारी देना नहीं बल्कि सीखने में मदद करते हैं, ऐसा माहौल बनाते हैं जहाँ स्टूडेंट्स को खोज और नई चीज़ें सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • पर्सनैलाइज़ेशन (Personalization): पाठ और गतिविधियाँ हर स्टूडेंट की सीखने की शैली और ज़रूरतों के अनुसार होती हैं, और आसानी से उपलब्ध कराने के लिए अक्सर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है।
  • सहयोगी लर्निंग (Collaborative Learning): ग्रुप प्रोजेक्ट और साथियों से सीखने के ज़रिए स्टूडेंट्स के बीच टीमवर्क और कम्युनिकेशन को बढ़ावा मिलता है।
  • फॉर्मेटिव असेसमेंट (Formative Assessment): पारंपरिक परीक्षाओं के बजाय, लगातार मूल्यांकन से स्टूडेंट्स की प्रगति में मदद के लिए उपयोगी फीडबैक मिलता है।
  • प्रासंगिकता और असल दुनिया से जुड़ाव (Relevance and Real-World Connections): पाठ्यक्रम का कंटेंट असल ज़िंदगी की स्थितियों से जुड़ा होता है, जिससे सीखना सार्थक और उपयोगी बनता है।

शिक्षार्थी केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण (Merits of Learner-Centred Curriculum)


  • छात्र अपनी पढ़ाई में सक्रिय भागीदार बनते हैं, जिससे उनकी समझ और प्रेरणा दोनों बेहतर होती है।
  • यह समस्या समाधान, रचनात्मकता और स्व-अध्ययन जैसे महत्वपूर्ण कौशल विकसित करने में मदद करता है।
  • यह विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और सीखने की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखने की सुविधा देता है।बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम मनोवैज्ञानिक है क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित है। बालकों की रुचियों, योग्यताओं और आवश्यकताओं पर आधारित होने के कारण यह बालकों को सीखने के लिए प्रेरित करता है।
  •  इस पाठ्यक्रम में सैद्धान्तिक पक्ष की अपेक्षा व्यावहारिक पक्ष की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है अर्थात बालक को करके सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालक के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास में योग देता है।
  • यह पाठ्यक्रम बालकों की जन्मजात शक्तियों का विकास करके उसे भावी जीवन के उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए तैयार करता है।
  • यह पाठ्यक्रम सीखने की क्रिया में समन्वय स्थापित करता है। इसके द्वारा कक्षा में तथा कक्षा के बाहर की क्रियाओं में समन्वय स्थापित करने की सुविधा प्राप्त होती है।

शिक्षार्थी -केन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष  (Demerits of Learner-Centred Curriculum) :


  • बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम ज्ञान के क्षेत्र, खोज की गहराई और विषय सामग्री की ग्राह्यता (acceptability) को सीमित करता है
  • इस पाठ्यक्रम में बालक की रुचियों, आवश्यकताओं और समस्याओं को ही केन्द्र में रखा गया है लेकिन व्यावहारिक रूप से यह निर्धारित करना बहुत कठिन काम है कि बालकों की रुचियाँ, आवश्यकतायें और समस्यायें क्या हैं?
  •  इस पाठ्यक्रम में बालक को ही अधिक महत्त्व दिया गया है, समाज को नहीं। इस प्रकार यह
  • पाठ्यक्रम समाज के प्रति विद्यालय के उत्तरदायित्वों को विशेष महत्त्व नहीं देता।  
  • इस पाठ्यक्रम में भी क्रियाशीलता के सिद्धान्त को अपनाया गया है, जिसके कारण अत्यधिक क्रियाशीलता का भय इसमें भी बना रहता है।  
  • यदि विद्यालयों में इस पाठ्यक्रम की सभी विशेषताओं को मानकर इसे लागू किया जाये तो विद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रम में अव्यवस्था उत्पन्न हो जायेगी।
  • प्रत्येक विद्यार्थी की रुचि और आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम बनाना काफी समय-साध्य होता है, जिससे सभी आवश्यक विषयों को कवर करना कठिन हो जाता है।
  • विद्यार्थियों की विविध कार्यप्रणालियों और परिणामों के कारण मूल्यांकन हमेशा ठोस और वस्तुनिष्ठ नहीं रह पाता।


समुदाय-केंद्रित पाठ्यक्रम (Community-centered Curriculum)

एक ऐसा तरीका है जो स्थानीय समुदाय की ज़रूरतों, मूल्यों, संस्कृति और वास्तविक जीवन की समस्याओं को शैक्षिक योजना और कक्षा गतिविधियों के केंद्र में रखता है। यह पाठ्यक्रम स्कूल की शिक्षा को सामुदायिक अनुभवों से जोड़ता है, और छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों और अन्य हितधारकों को एक सहयोगी प्रक्रिया में शामिल करता है। 

यह पाठ्यक्रम डिज़ाइन सामुदायिक सेवा, नागरिकता परियोजनाओं, पर्यावरण शिक्षा और स्थानीय संगठनों के साथ साझेदारी के माध्यम से सीखने पर ज़ोर देता है, जो कक्षा के कंटेंट को वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोग से जोड़ता है। 

यह छात्रों को स्थानीय चुनौतियों की जांच करने और उनका समाधान करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे सक्रिय भागीदारी और सामाजिक जिम्मेदारी बढ़ती है। 


प्रमुख विशेषताएँ (Main Characteristics):

  • प्रासंगिकता और व्यवहारिकता (Relevance and Practicality):  सामग्री सीधे समुदाय और छात्रों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों और ज्ञान से जुड़ा होता है। 
  • सहयोगी दृष्टिकोण (Collaborative Approach): पाठ्यक्रम के डिज़ाइन और क्रियान्वयन में छात्र, शिक्षक, अभिभावक और समुदाय के सदस्य शामिल होते हैं, जिससे साझा स्वामित्व की भावना बढ़ती है। 
  • सांस्कृतिक संवेदनशीलता (Cultural Sensitivity): यह स्थानीय क्षेत्र के अद्वितीय मूल्यों, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है।
  • समस्या समाधान पर ध्यान (Problem-Solving Focus): छात्र अपने समुदाय की वास्तविक समस्याओं पर काम करते हैं, जिससे टीमवर्क, नेतृत्व और आलोचनात्मक सोच कौशल का विकास होता है। 
  • समग्र विकास (Holistic Development): यह नागरिक जिम्मेदारी, सामाजिक कौशल और जुड़ाव की मजबूत भावना को बढ़ावा देता है। 

समुदाय केन्द्रित पाठ्यक्रम के गुण (Merits of Community-Centred Curriculum)

  • शिक्षा को उनके जीवन से संबंधित बनाकर यह छात्रों की भागीदारी, प्रेरणा और वास्तविक दुनिया में सीखने के परिणामों को बढ़ाता है।
  • यह सांस्कृतिक समझ, सहयोग को बढ़ावा देता है और छात्रों को स्थानीय स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाने के लिए सशक्त बनाता है।
  • यह कक्षा में सिखाई गई जानकारी को वास्तविक जीवन की स्थितियों से जोड़ता है, जिससे छात्रों को अपनी शिक्षा की उपयोगिता समझ में आती है।
  • यह महत्वपूर्ण कौशल जैसे कि आलोचनात्मक सोच, टीमवर्क, संचार, नेतृत्व और समस्या समाधान को बढ़ावा देता है – ये ऐसे कौशल हैं जो कार्यक्षेत्र में बहुत मूल्यवान माने जाते हैं।
  • छात्रों को ऐसे सहयोगी प्रोजेक्ट्स में शामिल करके उनमें सहानुभूति, आत्मविश्वास और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना विकसित की जाती है, जो उनके समुदाय में सकारात्मक बदलाव लाते हैं।
  • यह स्कूलों और समुदायों के बीच संबंध मजबूत करता है, जिससे शिक्षा एक साझा परियोजना बन जाती है, जिससे छात्रों और स्थानीय हितधारकों दोनों को लाभ होता है।
  • इसमें स्थानीय मूल्यों, ज्ञान और परंपराओं को शामिल किया जाता है, जिससे सीखने की प्रक्रिया समृद्ध होती है और समुदाय की विविधता को बढ़ावा मिलता है।

समुदाय-केन्द्रित पाठ्यक्रम के दोष  (Demerits of Community-Centred Curriculum) :


  • यह स्थानीय चिंताओं पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे व्यापक शैक्षिक उद्देश्य या वैश्विक दृष्टिकोण की अनदेखी हो सकती है। 
  • इसमें संसाधनों की कमी हो सकती है और यह सामुदायिक भागीदारी पर बहुत अधिक निर्भर हो सकता है, जो हमेशा उपलब्ध नहीं हो सकती। 
  • यदि पाठ्यक्रम डिज़ाइन शैक्षिक मानकों के बजाय स्थानीय समुदाय के मूल्यों से बहुत अधिक प्रभावित होता है, तो पूर्वाग्रह या सीमित विशेषज्ञता का जोखिम हो सकता है। 
  • समुदाय के साथ भागीदारी स्थापित करना और स्थानीय स्तर पर उपयोगी सामग्री तैयार करना अक्सर काफी समय, मेहनत और संसाधनों की आवश्यकता होती है – कई स्कूलों के पास ये संसाधन नहीं होते।
  • स्थानीय मूल्य, दृष्टिकोण या रुचियाँ पाठ्यक्रम की सामग्री पर अनावश्यक प्रभाव डाल सकती हैं, जिससे पूर्वाग्रह पैदा हो सकता है और विविध या असहमति रखने वाले विचारों को नजरअंदाज किया जा सकता है।
  • स्थानीय चिंताओं पर ज़्यादा ज़ोर देने का मतलब यह हो सकता है कि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय कौशल, ज्ञान और क्षमताएं विकसित नहीं हो पातीं।
  • शिक्षकों के पास समुदाय आधारित गतिविधियों को पारंपरिक पाठ्यक्रम की ज़रूरतों के साथ प्रभावी ढंग से समन्वयित, योजनाबद्ध और एकीकृत करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण या आत्मविश्वास की कमी हो सकती है।




सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 

  1. https://www.teachingworld.in/characteristics-of-curriculum/
  2. https://www.youtube.com/watch?v=0PA9FNQ-V0M
  3. http://www.bhabhaeducation.org/wp-content/uploads/2021/06/C-5-3.pdf
  4. https://uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAED-612.pdf
  5. https://uou.ac.in/lecturenotes/education/MAED-17/unit-1-converted.pdf
  6. https://learnstudies.com/learn/b-ed-pathyakram-vikas-evam-vidyalaya/
  7. https://www.egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/45963/1/Unit-3.pdf

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