Wednesday, September 17, 2025

पाठ्यक्रम का आवश्यकता मूल्यांकन मॉडल (Need assessment Model of Curriculum)

पाठ्यक्रम का आवश्यकता मूल्यांकन मॉडल

(Need assessment Model of Curriculum)


पाठ्यक्रम विकास में आवश्यकता मूल्यांकन मॉडल मौजूदा शैक्षिक प्रावधानों और वांछित परिणामों के बीच अंतराल की पहचान करने के लिए एक व्यवस्थित, डेटा-संचालित प्रक्रिया है, जो फिर पाठ्यक्रम के डिजाइन या संशोधन का मार्गदर्शन करती है।


आवश्यकता मूल्यांकन मॉडल के चरण (Phases of Needs Assessment Model):

  • आवश्यकताओं की पहचान (Needs Identification): वर्तमान और वांछित शैक्षिक स्थितियों के बीच विसंगति का पता लगाने के लिए डेटा एकत्र करना, अक्सर सर्वेक्षण (Survey), साक्षात्कार (Interview), फ़ोकस समूह (Focus Group) और प्रासंगिक प्रदर्शन (Relevant performance) डेटा के विश्लेषण जैसी विधियों का उपयोग करके किया जाता है ।
  • आवश्यकताओं का विश्लेषण  (Needs Analysis): एकत्रित आवश्यकताओं की जाँच करना और उन्हें प्राथमिकता देना, उनके महत्व, तात्कालिकता (urgency) और व्यवहार्यता (workability) को ध्यान में रखते हुए, मूल कारणों का विश्लेषण करना और विभिन्न स्तरों (शिक्षार्थी, शिक्षक, समुदाय, समाज) पर हितधारकों के इनपुट पर विचार करना ।
  • पाठ्यचर्या विकास (Curriculum Development): शिक्षण उद्देश्य बनाना, उपयुक्त विषय-वस्तु और विधियों का चयन करना और पहचानी गई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षण और मूल्यांकन रणनीतियों को संरेखित (aligned) करना।
  • पाठ्यचर्या मूल्यांकन (Curriculum Evaluation): पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता का आकलन करना और उद्देश्यों, विषय-वस्तु और वितरण विधियों को परिष्कृत करने के लिए फीडबैक का उपयोग करना। यह सुनिश्चित करते हुए कि पाठ्यक्रम निरंतर विकसित होती आवश्यकताओं को पूरा करता रहे।

पाठ्यक्रम के लिए आवश्यकता मूल्यांकन के चरण (Steps in Needs Assessment for Curriculum)


  • उद्देश्यों और हितधारकों की पहचान करना (Identify Objectives and Stakeholders):
आवश्यकताओं के मूल्यांकन के उद्देश्य और लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है।  शिक्षार्थियों और अन्य हितधारकों जैसे संकाय, प्रशासकों और जहाँ प्रासंगिक हो, समुदाय या उद्योग भागीदारों के लिए वांछित परिणामों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।  सहभागिता बढ़ाने और विविध दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिए हितधारकों की शीघ्र भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। 

  • डेटा संग्रह (Data Collection):
सर्वेक्षणों, साक्षात्कारों, फ़ोकस समूहों, अवलोकनों और मौजूदा प्रदर्शन डेटा का उपयोग करके वर्तमान पाठ्यक्रम प्रभावशीलता, शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं, कौशल अंतराल और हितधारक अपेक्षाओं पर डेटा एकत्र किया जाता है  और यह सुनिश्चित किया जाता है  कि डेटा संग्रह विधियाँ उपयुक्त हैं और गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों पहलुओं को कवर करती हैं।

  • डेटा विश्लेषण (Data Analysis):
वर्तमान और वांछित स्थितियों के बीच पैटर्न, रुझान और महत्वपूर्ण अंतराल की पहचान करने के लिए एकत्रित डेटा का विश्लेषण किया जाता है और आवश्यकता, व्यवहार्यता और प्रभाव के आधार पर आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाती है। 

  • आवश्यक संसाधनों का निर्धारण (Determine Necessary Resources):
पहचाने गए पाठ्यक्रम अंतरालों को दूर करने के लिए उपलब्ध और आवश्यक संसाधनों- समय, कार्मिक, प्रौद्योगिकी, वित्त पोषण  का आकलन करना। 

  • कार्य योजनाएँ विकसित करना (Develop Action Plans):
प्राथमिकता प्राप्त आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशिष्ट, मापनीय, कार्यान्वयन योग्य योजनाएँ बनाना, जिनमें पाठ्यक्रम संशोधन, निर्देशात्मक रणनीतियाँ या नए कार्यक्रम विकास शामिल हैं। संसाधन आवंटन, समय-सीमा और कार्यान्वयन के लिए भूमिकाएँ शामिल की जाती है।

  • कार्यान्वयन (Implementation):
कार्य योजनाओं को व्यवहार में लाना, पाठ्यक्रम या उसके क्रियान्वयन को पिछले चरणों में निर्धारित अनुसार अद्यतन करना। 

  • समीक्षा और प्रतिक्रिया (Review and Feedback):
कार्यान्वयन की निरंतर निगरानी करना, हितधारकों की प्रतिक्रिया एकत्र करना और नए आँकड़ों व बदलती ज़रूरतों के आधार पर पुनरावृत्तीय सुधार करना।


उद्देश्य (Objectives):

  • शैक्षणिक अंतरालों की पहचान (Identify Educational Gaps): मौजूदा शिक्षार्थियों की दक्षताओं (competencies) और शैक्षिक कार्यक्रम के लक्ष्यों के बीच विसंगतियों (discrepancies) का निर्धारण।
  • पाठ्यचर्या डिज़ाइन का मार्गदर्शन (Guide Curriculum Design): शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं, सामाजिक माँगों और संगठनात्मक उद्देश्यों के साथ संरेखण सुनिश्चित करने के लिए पाठ्यक्रम के विकास या संशोधन की जानकारी प्रदान करना।
  • संसाधन आवंटन में वृद्धि (Enhance Resource Allocation): सबसे महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम आवश्यकताओं के लिए संसाधन (समय, धन, कर्मचारी) आवंटित करने के मुद्दों को प्राथमिकता देना ।
  • हितधारक भागीदारी को बढ़ावा देना (Foster Stakeholder Involvement): व्यापक इनपुट और साझा स्वामित्व के लिए शिक्षार्थियों, शिक्षकों, प्रशासकों और समुदाय के सदस्यों को शामिल करना ।
  • साक्ष्य-आधारित निर्णयों का समर्थन करना (Support Evidence-Based Decisions): गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों डेटा स्रोतों का उपयोग करके पाठ्यक्रम निर्णयों के लिए एक डेटा-आधारित आधार प्रदान करना ।
  • निरंतर सुधार सुनिश्चित करना (Ensure Continuous Improvement): पाठ्यक्रम को प्रासंगिक और प्रभावी बनाए रखने के लिए निरंतर प्रतिक्रिया और परिशोधन को सुगम बनाना ।


विशेषताएँ (Characteristics):

  • बहु-स्तरीय दृष्टिकोण (Multi-Level Approach): मूल्यांकन वृहद (सामाजिक, नीतिगत), मध्यम (संस्थागत, कार्यक्रम) और सूक्ष्म (कक्षा, शिक्षार्थी) स्तरों पर होता है, और प्रत्येक स्तर पर अलग-अलग डेटा स्रोतों पर ज़ोर दिया जाता है।
  • गतिशील और सतत (Dynamic and Continuous): यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है, एक बार की घटना नहीं, बल्कि पाठ्यक्रम और आवश्यकताओं के विकसित होने के साथ-साथ नियमित फीडबैक लूप और मूल्यांकन होता रहता है।
  • समावेशी और सहभागी (Inclusive and Participatory): इसमें विविध हितधारकों को शामिल किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि निर्णय विविध दृष्टिकोणों और हितों को प्रतिबिंबित करें।
  • डेटा-संचालित (Data-Driven): व्यापक मूल्यांकन के लिए मात्रात्मक (परीक्षा स्कोर, सर्वेक्षण) और गुणात्मक (साक्षात्कार, फ़ोकस समूह) दोनों डेटा का उपयोग करता है।
  • केंद्रीकृत फिर भी लचीला (Centralized Yet Flexible): यद्यपि यह अक्सर केंद्रीकृत पाठ्यक्रम संरचनाओं (विशेषकर विकासशील संदर्भों में) के लिए उपयुक्त होता है, यह मॉडल स्थानीय और कक्षा स्तरों पर अनुकूलन की अनुमति देता है।
  • पारदर्शिता (Transparency): यह सुनिश्चित करता है कि पाठ्यक्रम परिवर्तनों का औचित्य स्पष्ट हो और व्यवस्थित साक्ष्य तथा हितधारकों के इनपुट पर आधारित हो।





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