Friday, September 12, 2025

पाठ्यक्रम प्रतिमान (MODEL OF CURRICULUM)

पाठ्यक्रम प्रतिमान

(MODEL OF CURRICULUM) 


प्रतिमान का अर्थ (MEANING OF MODEL):

प्रतिमान किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा क्रिया का ऐसा परिकल्पनात्मक या कार्यात्मक रूप होता है जिससे उसके वास्तविक स्वरूप का बोध होता है। 'प्रतिमान' अंग्रेजी के 'Model' शब्द का पर्यायवाची है। सामान्य जीवन में हमें विभिन्न वस्तुओं के 'मॉडल' देखने को मिलते हैं। 

"किसी आदर्श के अनुरूप व्यवहार क्रिया को ढालने तथा क्रिया की ओर निर्देशित करने की प्रक्रिया मॉडल या प्रतिमान होती है।" ("To confirm in behaviour, action and to direct one's to action according to some particular design or ideals." )- Henery Cecil Wyld


पाठ्यक्रम प्रतिमान (MODEL OF CURRICULUM) 

पाठ्यक्रम प्रतिमान का अर्थ पाठ्यक्रम के स्वरूप से है।  पाठ्यक्रम प्रतिमान का स्वरूप शैक्षिक लक्ष्यों पर आधारित होता है। समय-परिवर्तन एवं सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ शिक्षा के लक्ष्यों में भी परिवर्तन होता रहता है। इसीलिए पाठ्यक्रम विकास के प्रतिमान भी बदलते रहते है। पाठ्यक्रम में तीन तथ्यों उद्देश्य, प्रक्रिया एवं परिस्थिति को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसलिए पाठ्यक्रम प्रतिमानों को प्रमुख रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. उद्देश्य या मूल्यांकन प्रतिमान (The Objectives Model)
  2. प्रक्रिया प्रतिमान (The Process Model)
  3. परिस्थिति प्रतिमान (The Situational Model)।


  • पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रतिमान (The Objectives Model of Curriculum)-

पाठ्यक्रम के उद्देश्य प्रतिमान का आधार व्यावहारिक मनोविज्ञान है। इसमें शैक्षिक उद्देश्यों पर बल देते हुए पाठ्यक्रम के प्रारूप को विकसित किया जाता है। उद्देश्यों की प्राप्ति छात्रों के अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के रूप में की जाती है। व्यवहार परिवर्तन का ज्ञान मूल्यांकन से होता है। अतः इसे मूल्याकन प्रतिमान भी कहा जाता है।

बी० एस० ब्लूम (1962) ने शिक्षा में सुधार हेतु शिक्षण एव परीक्षण की क्रियाओं को उद्देश्य केन्द्रित बनाने पर बल दिया तथा कहा कि शिक्षण में जिन उद्देश्यों को महत्त्व दिया जाये उन्हीं उद्देश्यों के लिए परीक्षण भी किया जाना चाहिए। मूल्यांकन प्रतिमान के अन्तर्गत निम्नांकित सोपानों का अनुसरण किया जाता है-

  • शिक्षण उद्देश्यों का प्रतिपादन।
  • उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सीखने के अनुभवों का सृजन।
  • बालकों में होने वाले व्यवहार परिवर्तनों का मूल्याकन।

  • पाठ्यक्रम का प्रक्रिया प्रतिमान (The Process Model of Curriculum)-

पाठ्यक्रम के प्रक्रिया प्रतिमान में प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जाती है। इसमें उद्देश्यों को परिभाषित नहीं किया जाता है बल्कि पाठ्यक्रम के प्रारूप को विकसित करने में पाठ्य-वस्तु के ज्ञान को ही ध्यान में रखा जाता है। इसके अन्तर्गत पाठ्य-वस्तु की सहायता से मानवीय गुणों को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। इसलिए इस प्रकार के पाठ्यक्रम को 'मानववादी पाठ्यक्रम' भी कहा जाता है। चूँकि इसमें प्रक्रिया को महत्त्व दिया जाता है तथा शिक्षा-प्रक्रिया शिक्षक द्वारा ही सम्पादित की जाती है। अतः इस प्रतिमान में शिक्षक की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। पाठ्यक्रम का उद्देश्य प्रतिमान व्यवहार मनोविज्ञान पर आधारित होता है जबकि प्रक्रिया प्रतिमान' का प्रारूप 'मानव व्यवस्था सिद्धान्त पर आधारित होता है। 'मानव व्यवस्था' में परिवर्तन के साथ-साथ शिक्षा का पाठ्यक्रम भी बदलता रहता है। मानव व्यवस्था का परम्परागत सिद्धान्त कार्य केन्द्रित है तथा सम्बन्ध सिद्धान्त सम्बन्ध केन्द्रित है। मानव व्यवस्था का आधुनिक सिद्धान्त कार्य एवं सम्बन्ध केन्द्रित है।

मानव व्यवस्था के परम्परागत सिद्धान्त (Classical Theory of Human Organisation) की धारणा यह है कि व्यवस्था के सदस्यों में केवल कार्य करने की क्षमता होती है तथा वे निर्देशों का अनुसरण कर सकते हैं परन्तु उनमें कार्य को प्रारम्भ करने अर्थात् स्वोपक्रम (Imitation) की क्षमता नहीं होती है तथा न वे किसी प्रकार का निर्णय  ले सकते हैं। इस व्यवस्था में शिक्षण कार्य केन्द्रित तथा शिक्षक-नियन्त्रित होता है।

पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण पर अधिक बल दिया जाता है। छात्रों की रुचियों, क्षमताओं एवं अभिवृत्तियों को कोई स्थान नहीं दिया जाता। छात्र केवल मशीन के समान कार्य करता है। शिक्षण स्मृति स्तर का होता है तथा केवल ज्ञानात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति हो पाती है।

  • पाठ्यक्रम का परिस्थिति प्रतिमान (The Situational Model of Curriculum)- 

पाठ्यक्रम के परिस्थिति प्रतिमान के अन्तर्गत शिक्षा एवं पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों को महत्त्व प्रदान किया जाता है। इसमें 'प्रणाली विश्लेषण' (System Analysis) उपागम का प्रयोग करके परिस्थितियों का विश्लेषण किया जाता है। विश्लेषण के द्वारा शैक्षिक परिस्थितियों के बाह्य एवं आन्तरिक घटकों की पहचान की जाती है।

शैक्षिक परिस्थितियों के आन्तरिक घटक कक्षा-शिक्षण तथा विद्यालय की व्यवस्था सम्बन्धी क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। छात्रों की रुचियाँ (Interests) एवं अभिवृत्तियाँ (attitudes), शिक्षक का कौशल (Skill of the teacher), नैतिकता (ethics)  उपलब्ध साधन एवं उपकरण (available resources and equipment) तथा विद्यालय का वातावरण आदि आन्तरिक घटक (Internal Components)  में सम्मिलित किये जा सकते हैं। बाह्य घटक भी शैक्षिक परिस्थितियों को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। सामाजिक परिवर्तन (Social change), राजनैतिक परिवर्तन (Political change), आर्थिक स्थिति में परिवर्तन (Change in economic condition), समाज एवं अभिभावकों की आकांक्षाओं एव अभिवृत्तियों में परिवर्तन, नये विषयों का आविर्भाव आदि बाह्य घटक (External Components)  के रूप में कार्य करते हैं। अतः इन घटकों को ध्यान में रखकर ही पाठ्यक्रम का निर्माण करना होता है। कुछ अन्य घटक जैसे- परीक्षा प्रणाली पाठ्य-पुस्तकें तथा व्यवस्था भी पाठ्यक्रम प्रतिमान को प्रभावित करते हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अन्तर्गत माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा, नवोदय विद्यालय, उच्च शिक्षा स्तर पर सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण, दूरवर्ती शिक्षा आदि अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं। इन सुझावों को लागू भी किया गया है जिससे नवीन परिस्थितियाँ भी उत्पन्न हुई है। अतः पाठ्यक्रम विकास में इन परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा।

पाठ्यक्रम के परिस्थिति प्रतिमान के आधार पर ही विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम (Subject-centered curriculum), बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Child-centered curriculum), शिल्प-कला-केन्द्रित पाठ्यक्रम (Craft-centered curriculum), सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम (Integrated curriculum), कोर पाठ्यक्रम (Core curriculum) आदि का विकास किया गया है।


  • पाठ्यक्रम के मॉडल के उद्देश्य (Objectives of models of Curriculum):

पाठ्यक्रम मॉडल शैक्षिक कार्यक्रमों की योजना बनाने, डिज़ाइन करने, लागू करने और मूल्यांकन के लिए रूपरेखा प्रदान करते हैं। इन मॉडलों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि शैक्षिक लक्ष्य व्यवस्थित रूप से प्राप्त हों, सीखने के अनुभव सार्थक रूप से व्यवस्थित हों और परिणामों का प्रभावी ढंग से मापन हो।

  • शैक्षिक लक्ष्य निर्धारित करना (Define Educational Goals): पाठ्यक्रम मॉडल व्यापक उद्देश्यों को स्पष्ट करते हैं और उन्हें विशिष्ट, मापनीय उद्देश्यों में विभाजित करते हैं जो यह मार्गदर्शन करते हैं कि छात्रों से शिक्षण अवधि के अंत तक क्या सीखने की अपेक्षा की जाती है।
  • विषयवस्तु चयन और संगठन का मार्गदर्शन (Guide Content Selection and Organization): मॉडल शिक्षण विषयवस्तु और अनुभवों के चयन, संगठन और अनुक्रमण के लिए मानदंड निर्दिष्ट करते हैं जो सरल से जटिल ज्ञान और कौशल की ओर प्रगति में सहायक होते हैं।
  • सहायक शिक्षण विधियाँ (Support Teaching Methods): ये उपयुक्त शिक्षण रणनीतियों और कार्यप्रणालियों को चुनने के लिए एक संरचना प्रदान करते हैं जो स्थापित उद्देश्यों के अनुरूप हों।
  • मूल्यांकन तंत्र स्थापित करना (Establish Evaluation Mechanisms): अधिकांश मॉडल मूल उद्देश्यों से जुड़े स्पष्ट रूप से परिभाषित मानदंडों का उपयोग करके, छात्र परिणामों और पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता, दोनों के मूल्यांकन के महत्व पर ज़ोर देते हैं।
  • पाठ्यक्रम सुधार को सक्षम करना (Enable Curriculum Improvement): मॉडल में अक्सर फीडबैक तंत्र शामिल होते हैं, इसलिए मूल्यांकन परिणाम निरंतर सुधार के लिए पाठ्यक्रम के चल रहे परिशोधन का मार्गदर्शन कर सकते हैं।

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