तुलनात्मक शिक्षा की विधियां (Strategies of Comparative Education)
तुलनात्मक शिक्षा के विकास तथा उसके अध्ययन की विधियों में घनिष्ठ संबंध है। तुलनात्मक अध्ययन की एक विधि है। इसका उपयोग अन्य विषयों तथा शोध अध्ययनों में किया जाता है। मानवीय व्यवहार सापेक्ष होता है , इसलिए तुलनात्मक विधि अधिक उपयोगी है। तुलनात्मक विधि को दो भागों में विभक्त किया जाता है ।
1. तुलनात्मक सामान्य विधि (Normal Comparative Method)
2. तुलनात्मक कार्य-कारण विधि (Casual Comparative Method) या घटनोत्तर अध्ययन विधि (Ex-post-facto Method)
1. तुलनात्मक सामान्य विधियां (Normal Comparative Methods)
इस तुलनात्मक विधि के अन्तर्गत सामान्य परिस्थितियों में किन्हीं दो या दो से अधिक शिक्षा प्रणालियों तथा शिक्षा के घटकों की तुलना की जाती है। इस तुलनात्मक अध्ययन द्वारा उनमें समानताओं तथा असमानताओं की पहचान की जाती है। शिक्षा प्रणालियों की विशेषताओं की सुविधा का आंकलन करके ही उन्हें अपनाया जाता है। इस विधि में सामान्य परिस्थितियों में जो अंतर पाया जाता है , उनका वर्णन किया जाता है। उनके अंतरों के कारण का कोई भी उल्लेख नही किया जाता है। ऐसे निष्कर्ष सर्वेक्षण विधि द्वारा भी प्राप्त किये जाते हैं। तुलनात्मक विधि में तुलना शब्द लक्ष्य की ओर संकेत करता है। दो या दो से अधिक शिक्षा प्रणालियों तथा घटकों की तुलना करना इसका लक्ष्य है परंतु इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाए , इसके लिए किसी सहायक विधि का प्रयोग किया जाता है। सहायक विधि चयन तुलना करने के विशिष्ट उद्देश्य पर निर्भर करता है।
दो शिक्षा प्रणालियों की तुलना में अगर उनके दार्शनिक पक्षों या सैद्धांतिक पक्षों की करनी हो तो हमे दार्शनिक तुलनात्मक विधि का प्रयोग करना होगा ।
इस प्रकार तुलनात्मक विधियों का वर्गीकरण उनके विशिष्ट उद्देश्यों के आधार पर किया जाता है । सामान्य तुलनात्मक विधियाँ इस प्रकार से हैं-
(१) दार्शनिक तुलनात्मक विधि (Philosophical Comparative Method)
(२) ऐतिहासिक तुलनात्मक विधि (Historical Comparative Method)
(३) सर्वेक्षण तुलनात्मक विधि (Survey Comparative Method)
(४) विश्लेषणात्मक तुलनात्मक विधि (Analytical Comparative Method)
(५) संश्लेषणात्मक तुलनात्मक विधि (Synthetical Comparative Method)
(६) सांख्यिकी तुलनात्मक विधि (Statistical Comparative Method)
(१) दार्शनिक तुलनात्मक विधि(Philosophical Comparative Method)
जब दो या दो से अधिक शिक्षा प्रणालियों तथा शिक्षा घटकों के दार्शनिक या सैद्धांतिक पक्षों की तुलना की जाती है तब इस विधि का उपयोग किया जाता है।
दार्शनिक विधि के क्षेत्र में दो विधियों का प्रयोग किया जाता है- परिमाणात्मक एवं गुणात्मक विधि। परिमाणात्मक विधि का प्रयोग वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में किया जाता है । गुणात्मक विधि भी शिक्षा के क्षेत्र में समान रूप से प्रयोग की जाती है।
दार्शनिक तुलनात्मक विधि के अंतर्गत निम्न दार्शनिक पक्षों को महत्व दिया जाता है-
● तर्कशास्त्र (Logic)- इस दार्शनिक विचारधारा का सम्बंध मूल रूप से भाषा के प्रयोग में होता है। इसका सम्बन्ध शुद्ध रूप से सोचने की विधि से होता है। इसके व्यापक रूप में अनेक प्रकार के सिद्धांत निहित होते हैं। इनका संबंध विचार की प्रकृति, निर्णायक शक्ति एवं तार्किक चिंतन से होता है। इसके अलावा भाषा के जो संकेत हैं उनको महत्व दिया जाता है।
● तत्व मीमांसा (Metaphysics)- इसके अन्तर्गत दार्शनिक यह ज्ञात करने की कोशिश करता है कि सत्य क्या है? प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास के अस्तित्व को ही समझता है परन्तु एक दार्शनिक उनके कारण एवं प्रभाव के सम्बंध को समझने की कोशिश करता है । गह तत्व के परिवर्तन तथा उसके गुणों को भी समझने का प्रयास करता है।
● ज्ञान मीमांसा (Epistemology)- इस अध्ययन में छात्र मानवीय ज्ञान की विश्वसनीयता तथा वैधता की खोज करता है एवं मानवीय ज्ञान के स्रोत को भी जानने का प्रयास करता है। ज्ञान एक मानसिक अवस्था है इसलिए यह एक व्यक्तिनिष्ठ प्रत्यय है।
● नीतिशास्त्र(Moral Philosophy)- नीतिशास्त्र को कभी-कभी व्यावहारिक दर्शन भी कहते हैं क्योंकि इसके अंदर प्रमुख रूप से आचरण के मूल मानकों को महत्व दिया जाता है। नैतिक दर्शन मानवीय आचरण से कई रूप में भिन्न होता है। इसके अंतर्गत अच्छा व्यवहार क्या है और उसका अंतिम मानदण्ड क्या है? इसका अध्ययन किया जाता है।
(२) ऐतिहासिक तुलनात्मक विधि (Historical Comparative Method)
जब दो या दो से अधिक शिक्षा प्रणालियों या शिक्षा घटकों के विकासक्रमों की तुलना करनी हो तो इसके लिए ऐतिहासिक तुलनात्मक विधि का उपयोग करते हैं। यदि वर्तमान स्थिति को समझने के लिए आतीत के अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है तो तब भी इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
गुड एवं स्केट्स के अनुसार - "इतिहास सम्पूर्ण सत्य के लिए की गई समालोचनीय खोज के संदर्भ में लिखी गई अतीत की घटनाओं एवं तथ्यों की कोई सम्पूर्ण कहानी है।"
इतिहास का एक लाभ जो बहुत बार देखा जाता है । अतीत की घटनाओं तथा तथ्यों सहित इसका छात्रों एवं अध्यापकों के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है । वैज्ञानिक तथ्य के लिये साक्ष्यों को प्रमाणित करते हैं, किन्तु इसका कोई प्रभाव नही होता है।
(३) सर्वेक्षण तुलनात्मक विधि (Survey Comparative Method)
इस विधि में शिक्षा प्रणालियों एवं शिक्षा घटकों की तुलना वर्तमान परिस्थितियों में ही की जाती है। वर्तमान स्थितियों का अध्ययन करने के लिये सर्वेक्षण किये जाते हैं और जो तथ्य प्राप्त होते हैं उनके आधार पर दो या दो से अधिक घटकों की तुलना करके समानता एवं असमानता के सम्बंध में निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। सामान्य सर्वेक्षण इस बात से है कि किसी वस्तु की वर्तमान स्थिति क्या है? शिक्षा में होने वाले सर्वेक्षण न केवल वर्तमान पाठ्यक्रम की अच्छाइयों एवं बुराइयों की सूचना देते हैं बल्कि उनमें परिवर्तन लाने का सुझाव भी देते हैं। इन सुझावों को ध्यान में रखकर ही पाठ्यक्रम का विकास भविष्य के लिये किया जाता है।
सर्वेक्षण विधि को वर्णनात्मक, नोर्मेटिव, ट्रेंड्स आदि नामों से भी जाना जाता है। यधपि अनुसंधान में सर्वेक्षण विधि का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि वर्तमान में इनका रूप क्या है? अथवा समस्या या घटना का विवरण देता है लेकिन बहुत से सर्वेक्षण केवल वर्तमान स्थितियों के विवरण की सीमा से भी बाहर होते है। विवरणात्मक सर्वेक्षण अध्ययन विभिन्न प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रमों की योजना बनाने में हमारे लिये सहायक है, विद्यालय जनगणना सम्भवतः विवरणात्मक विधि की शैक्षिक योजना में सबसे अधिक उपयोगिता है।
(४) विश्लेषणात्मक तुलनात्मक विधि (Analytical Comparative Method)
यह शिक्षण विधि वैज्ञानिक विधि है। इसमें वैज्ञानिक आयाम का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग रेखागणित शिक्षण में भी किया जाता है। यह विधि तर्क चिंतन पर आधारित है। इसे सर्जनात्मक शिक्षण विधि भी कहते हैं। जिसमे अज्ञात से ज्ञात की ओर के शिक्षण सूत्र का उपयोग किया जाता है।
यह विधि समाजशास्त्रीय विधि की कठिनाई के कारण उपयोग में लायी गयी । तुलनात्मक अध्ययन में हम बिना विश्लेषण के काम नही चला सकते क्योंकि विश्लेषण द्वारा विभिन्न तत्वों को अलग किया जाता है। ततपश्चात विविध तत्वों का तुलनात्मक अध्ययन सम्भव होता है। विश्लेषणात्मक विधि तभी उपयोगी हो सकती है जब सामाजिक एवं शैक्षिक संगठनों की सम्पूर्ण रूप से तुलना की जाय। इस प्रकार तुलना के लिए चार बातें आवश्यक हैं-
● शैक्षिक सामग्रियां एकत्रित करना।
● सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं ऐतिहासिक तत्वों की व्याख्या।
● तुलना के मापदण्ड का निर्धारण।
● व्याख्या एवं निष्कर्ष निकालना।
(५) संश्लेषणात्मक तुलनात्मक विधि (Synthetical Comparative Method)
इस विधि का उल्लेख एडमंड किंग ने World Perspective in Education नामक पुस्तक में दिया है। इसमें विश्व कल्याण तथा मानव कल्याण की भावना निहित है। इस विधि को सर्जनात्मक विधि भी कहते हैं। इसमे तत्वों के संश्लेषण नवीन प्रत्यय या अधिक नियम का प्रतिपादन होता है। इस विधि में शिक्षा की समस्याओं का अध्ययन विश्व स्तर पर किया जाता है। उनका समाधान मानव कल्याण के रूप में किया जाता है। विश्लेषण तथा संश्लेषण विधियाँ एक दूसरे के पूरक हैं यद्यपि संश्लेषण की प्रक्रिया विश्लेषण के बाद आती है। चढाव क्रम में विश्लेषण से ऊपर संश्लेषण की प्रक्रिया होती है। इसमें ज्ञात से अज्ञात की ओर सूत्र का उपयोग किया जाता है। संश्लेषण में तत्वों को विश्लेषण करके उन्हें एक नए स्वरूप में संगठित किया जाता है, जिस स्वरूप से पहले अज्ञात होते हैं। विश्लेषण विधि इसकी सहायक विधि है।
(६) सांख्यिकी तुलनात्मक विधि (Statistical Comparative Method)
तुलनात्मक शिक्षा के अंतर्गत विभिन्न देशों की शिक्षा प्रणालियों तथा शिक्षा के घटकों के अध्ययन से उनकी समानताओं एवं असमानताओं का पता चलता है। इसलिए विद्वानों का कहना है कि तुलनात्मक शिक्षा में सांख्यिकी विधि का उपयोग करना चाहिए। सर्वेक्षण विधि में परीक्षणों, प्रश्नावली, रेटिंग स्केल आदि विधि उपयोग करके प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाला जाता है। दो या दो से अधिक देशों के विभिन्न वर्षों के आंकड़ों से तुलना करना उनके अन्तर की सार्थकता का विश्लेषण सांख्यिकी विधि द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के विश्लेषण से शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षा के घटकों की प्रगति का बोध होता है। सांख्यिकी विश्लेषण से जो परिणाम प्राप्त होते हैं उनकी वैधता आंकड़ों की विश्वसनीयता पर निर्भर करता है।
परन्तु सांख्यिकी विधि की सबसे बड़ी कठिनाई विश्वसनीय आंकड़े प्राप्त करना है। बहुत समय आंकड़ों के एकत्रित करने में आवश्यक सावधानी नही बरती जाती है। विभिन्न देशों में शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर जो शब्दावली प्रयुक्त होती है उनमें समानता न होने के कारण एकत्रित आंकड़ों का सांख्यिकीय विवेचन करना अत्यंत कठिन हो जाता है। इस तरह सांख्यिकीय विधि की उपयोगिता संदिग्ध हो जाती है। यह प्रविधियां वस्तुनिष्ठ नही होती हैं। आंकड़े व्यक्तिगत पक्षों से प्रभावित होते हैं। इसलिए कभी सांख्यिकी विश्लेषण से अन्तर के कारणों का सही बोध नही हो पाता है।
2. तुलनात्मक कार्य-कारण विधि (Casual Comparative Method)
यह विधि तुलनात्मक शिक्षा की आधुनिक विधि है इसे अर्द्ध प्रयोगात्मक विधि भी कहा जाता है। इस विधि में दो प्रणालियों के अन्तर के कारणों का बोध होता है। इस विधि के अंदर दो या दो से अधिक परिस्थितियों में समानता हो और किसी एक मे अतिरिक्त घटक का उपयोग किया जाए व उनकी समानता असमानता में बदल जाये तो तब असमानता का कारण अतिरिक्त घटक होता है।
उदाहरण के लिए किसी महाविद्यालय में स्नातक स्तर के छात्रों को दो समूहों में विभक्त किया गया । एक समूह स्नातक पाठ्यक्रमों का अध्ययन कर रहे हैं तथा दूसरे समूह के छात्र इसी पाठ्यक्रम में अध्ययन कर रहे हैं लेकिन एन0सी0सी0 कार्यक्रम अतिरिक्त लिया है। इन दोनों समूहों का समावेशन एवं नेतृत्व के गुणों में सार्थक अंतर पाया गया।इसका अर्थ यह होता है कि एन0सी0सी0 कार्यक्रम में समायोजन तथा नेतृत्व के गुणों का विकास होता है। इन समूहों पर कोई नियंत्रण नही किया अपितु सामन्यतः स्थिति में ऐसा होता है।
इस विधि में केवल एक ही देश का आंतरिक विश्लेषण किया जा सकता है क्योंकि एक देश की शिक्षा प्रणाली समान होती है और अतिरिक्त घटकों का भी उपयोग किया जाता है, जिससे कार्य-कारण का विश्लेषण किया जाता है।
संदर्भ ग्रंथ सूची
- यादव, सुकेश एवं सक्सेना, सविता (2010), तुलनात्मक शिक्षा, आगरा, साहित्य प्रकाशन।
- शर्मा, आर0ए0 (2011), तुलनात्मक शिक्षा, मेरठ, आर0लाल बुक डिपो।
- चौबे, सरयू प्रसाद (2007), तुलनात्मक शिक्षा, आगरा, अग्रवाल पब्लिकेशन।


