तुलनात्मक शिक्षा का प्रारंभ (Beginning of Comparative Education)
फ्रांस के मार्क अन्तोइन जुलियन ने तुलनात्मक शिक्षा का अध्ययन 1817 ई0 में आरम्भ किया। अन्तोइन जुलियन ने तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में विभिन्न देशों की शिक्षा प्रणालियों में पाए जाने वाले समान-आसमान तत्वों के विश्लेषण को महत्वपूर्ण बताया। अन्तोइन जुलियन शिक्षा को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करना चाहते थे। इसके लिए वह यह चाहते थे कि शिक्षा के समस्त तथ्यों को एक सूत्र में पिरोकर उनका विश्लेषण करना चाहिए, जिससे शिक्षा को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया जा सकता है। जुलियन को यह विश्वास था कि किसी भी देश की शिक्षा से सम्बंधित तथ्यों का विश्लेषण के आधार पर कुछ सिद्धान्तों और नियमों का उल्लेख किया जा सकता है। इस प्रकार अन्तोइन जुलियन ने तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में विश्लेषण पर बल दिया। लेकिन 20वीं शताब्दी से पहले तक शिक्षा जगत में उनके विचारों से कोई भी अवगत नही था।
20वीं शताब्दी के प्रारंभ से विदेशों में जाने वाले यात्रियों ने अपने यात्रा विवरणों से संबंधित देशों की शिक्षा व्यवस्था की ओर अपना ध्यान खींचा। इन यात्रियों ने यात्रा कर रहे देशों की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति की ओर विशेष ध्यान दिया और उनके लिए शिक्षा से संबंधित कुछ तत्वों को महत्वपूर्ण बताया। इस बात पर जोर दिया कि किसी भी देश की शिक्षा के कुछ तत्त्व उसकी सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
तुलनात्मक शिक्षा की परिभाषायें (Definitions of Comparative Education)-
आई0एल0 कंडेल के अनुसार- "विभिन्न देशों की शिक्षा प्रणालियों की तुलना करके उनके अभिक्रमों, विधियों तथा उद्देश्य में अंतर को ज्ञात करना है। इसके अंतर्गत शिक्षा पर राष्ट्रीय लागत, आकार, चरित्र निर्माण, प्रति व्यक्ति आय तथा शिक्षा के विभिन्न मदों पर शैक्षिक व्यय, पंजीकरण, नामांकन, औसत छात्रों की उपस्थिति, छात्रों की धारण शक्ति की तुलना शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर करना है। तुलनात्मक आयाम का महत्व शिक्षा की समस्याओं का विश्लेषण करना एवं विभिन्न शिक्षा प्रणालियों में अंतर की तुलना करना है। समस्याओं के कारणों का पता करके समाधान ज्ञात करने का प्रयास है।"
सी0 आर्नोल्ड एंडरसन के अनुसार- "तुलनात्मक शिक्षा को व्यापक अर्थों में परिभाषित कर सकते है कि शिक्षा के स्वरूप की अन्तः सांस्कृतिक तुलना करता है । विभिन्न देशों की शिक्षा प्रणालियों के दृष्टिकोण, लक्ष्य, विधियों एवं उपलब्धियों तथा सामाजिक तत्वों का सहसम्बन्ध ज्ञात करने का प्रयास किया जाता है।"
मेरी अन्तोइन जुलियन के अनुसार- "शिक्षा एक सकारात्मक विज्ञान है। यह प्रशासकों के संकुचित निर्णयों, दृष्टिकोण तथा सीमित विचारों से नियंत्रित नही होना चाहिये। संकुचित नियमों का भी अनुपालन नही होता है। अन्धविश्वासों पर शिक्षा प्रारूप आधारित नही होना चाहिए।"
तुलनात्मक शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Comparative Education)-
तुलनात्मक शिक्षा की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित है-
1. शिक्षा एक विकास की प्रणाली है और तुलनात्मक शिक्षा प्रणालियों के सुधार एवं विकास की एक विधि है।
2. शिक्षा प्रणाली पर अनुसंधान अध्ययनों के निष्कर्ष प्राप्त होते हैं। उनके अधार पर समान्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है।
3. शिक्षा का विकास समाज करता है तथा शिक्षा एक भावी समाज का निर्माण करती है , जिसकी समाज अपेक्षा करता है। वर्तमान समय में ऐसे नागरिकों की आवश्यकता है जो विश्व के विकसित तथा विकासशील देशों के साथ चल सकें।
4. वैज्ञानिक, तकनीकी एवं माध्यमों के विकास ने राष्ट्रों की भौतिक दूरी कम कर दी है और विश्व को छोटा कर दिया है। विश्व के राष्ट्र लगातार अधिक पास आ गए हैं। एक राष्ट्र की गतिविधियां अन्य राष्ट्रों को प्रभावित करती हैं।
5. तुलनात्मक शिक्षा में अन्य देशों की शिक्षा प्रणालियों की विशेषताओं का अनुकूलन करते समय उस देश की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाता है।
तुलनात्मक शिक्षा की आवश्यकता (Need of Comparative Education)-
1. आजकल अप्रवासी छात्रों का अधिक प्रचलन है । इसलिये शिक्षा का स्तर अन्य देशों के स्तर के समतुल्य होना चाहिए।
2. समस्त देशों के अनुसंधान से लाभ अर्जित करने में इसकी आवश्यकता होती है ।
3. भारतीय छात्र तकनीकी, व्यावसायिक तथा मेडिकल शिक्षा प्राप्त करके विदेशों में नौकरी के अवसर प्राप्त करते हैं।
4. आज तुलनात्मक शिक्षा की आवश्यकता केवल शिक्षा प्रणाली के विकास तक ही सीमित नही है अपितु अधिकांश समस्यायें विश्व की समस्याएं हैं। इन समस्याओं का समाधान करने में तुलनात्मक शिक्षा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
तुलनात्मक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Comparative Education)-
1. शिक्षा प्रणाली के घटकों के स्वरूप का विश्लेषण करना।
2. शिक्षा के दार्शनिक पक्ष का अध्ययन करना।
3. शिक्षा प्रणालियों के मनोवैज्ञानिक आधार का विश्लेषण करना।
4. शिक्षा प्रणालियों के सामाजिक आधार का विश्लेषण करना।
5. शिक्षा प्रणालियों की आर्थिक तथा वित्तीय व्यवस्था का विश्लेषण करना।
6. विभिन्न देशों की शैक्षिक समस्याओं का तुलनात्मक विश्लेषण करना।
7. विश्व की प्रगति का अवलोकन करना।
8. विकसित तथा विकासशील देशों के शिक्षा स्तरों का अध्ययन करना।
9. यूनेस्को का शिक्षा में योगदान का अध्ययन करना।
10. शिक्षा का अंतराष्ट्रीय स्तर विकसित करना।
11. अपने देश की शिक्षा प्रणाली का आंकलन विकसित एवं विकासशील देशों की शिक्षा प्रणाली के संदर्भ में करना।
संदर्भ ग्रंथ सूची
- शर्मा, आर0ए0 (2011), तुलनात्मक शिक्षा, मेरठ, आर0लाल बुक डिपो।
- यादव, सुकेश एवं सक्सेना, सविता (2010), तुलनात्मक शिक्षा, आगरा, साहित्य प्रकाशन।
- चौबे, सरयू प्रसाद (2007), तुलनात्मक शिक्षा, आगरा, अग्रवाल पब्लिकेशन।
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