समावेशी शिक्षा में अवरोध ( Barriers in Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा प्रदान करने में कई प्रकार के अवरोधों का सामना करना पड़ता है] जैसे - व्यवहारात्मक] सामाजिक और शिक्षा से संबंधित हो सकते हैं।
व्यवहारात्मक अवरोध (Attitudinal Barriers) - व्यवहारात्मक अवरोधों से तात्पर्य है कि विशिष्ट बालक सदैव ही विचित्र प्रकार के व्यवहार दिखाते हैं। जैसे किसी बात पर चिल्लाना, अपने को किसी अन्य बालक से ऊँचा समझना है। वे यह सोचते हैं कि हम ही सब कुछ कर सकते हैं दूसरा इसे नही कर सकता है । इस प्रकार के व्यवहारों को व्यवहारात्मक अवरोध कहा जाता है।
यह अवरोध विशिष्ट बालक में अलग-अलग प्रकार के पाये जाते हैं, जैसे श्रवण बाधित बालकों में ऊँचा सुनने के कारण वह अपने को कही गयी बातें सही प्रकार से सुन नही पाते हैं तथा उनके अनुसार वह व्यवहार नही कर पाते हैं। इस कारण इन बच्चों में व्यवहारात्मक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसी प्रकार से दृष्टि बाधित, अस्थि विकृत एवं अन्य विशिष्ट बालक भी व्यवहारात्मक समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। अतः ये समस्याएं इन बालकों के जीवन मे अवरोध उत्पन्न करती है। इन बालकों को जीवन मे आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा प्रदान की जानी चाहिये।
यह अवरोध विशिष्ट बालक में अलग-अलग प्रकार के पाये जाते हैं, जैसे श्रवण बाधित बालकों में ऊँचा सुनने के कारण वह अपने को कही गयी बातें सही प्रकार से सुन नही पाते हैं तथा उनके अनुसार वह व्यवहार नही कर पाते हैं। इस कारण इन बच्चों में व्यवहारात्मक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसी प्रकार से दृष्टि बाधित, अस्थि विकृत एवं अन्य विशिष्ट बालक भी व्यवहारात्मक समस्याओं से ग्रस्त रहते हैं। अतः ये समस्याएं इन बालकों के जीवन मे अवरोध उत्पन्न करती है। इन बालकों को जीवन मे आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा प्रदान की जानी चाहिये।
सामाजिक अवरोध (Social Barriers) - सामाजिक अवरोधों से तात्पर्य है कि जब विशिष्ट बालकों को समाज मे हेय की दृष्टि से देखा जाता है तो जो बाधा उत्पन्न होती है, वह सामाजिक अवरोध कहलाते हैं। प्रायः यह देखा जाता है कि मानव समाज के संपर्क में जन्म से मृत्यु तक रहता है और मानव को सामाजिक प्राणी माना जाता है तो समाज ही उसे नकारात्मक दृष्टि से देखता है और उसके लिये अनेक अवरोध उत्पन्न करता है। इस कारण समावेशी शिक्षा प्रदान करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
· शैक्षिक अवरोध (Educational Barriers)- विशिष्ट बालकों को अनेक प्रकार के शैक्षिक व्यवधानों का सामना करना पड़ता है। यह शैक्षिक व्यवधान प्रत्येक बालक की विशिष्टता के आधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे प्रतिभाशाली बालकों को यदि सामान्य बालकों के साथ शिक्षा प्रदान की जाए तो यह बालक अवसादग्रस्त हो जाते हैं । ठीक इसी प्रकार यदि विशिष्ट बालकों को सामान्य बालकों की कक्षा में बिठा दिया जाय तो वे अपना व्यवहार सामान्य रूप से प्रदर्शित नही कर पाते हैं । इस प्रकार से इन बालकों में शैक्षिक अवरोध उत्पन्न हो जाते हैं।


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