समावेशी शिक्षा में परिवार की भूमिका(Role of Family in Inclusive Education)-
बालक के व्यवहार, अभिवृत्तियों एवं रुचियों के निर्माण के महत्व को पहले से स्वीकार किया जाता है। किसी भी बालक के विकास में उसके परिवार की मुख्य भूमिका होती है। बालक के विकास पर पारिवारिक अनुभवों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। जन्म के बाद से बालक को जो प्रथम संरक्षण या वातावरण मिलता है वो परिवार का होता है। यही वातावरण बालकों में सर्वप्रथम उनकी अभिवृत्तियों का निर्माण करता है। अतः इससे स्पष्ट होता है कि बालकों के विकास में पारिवारिक सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
हम यह जानते हैं कि बालक का प्रथम शिक्षक उसके माता -पिता को माना जाता है जो उनका शिक्षण हर तरह से करते हैं। इसलिए आज समावेशी शिक्षा में परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
बालक के पूर्ण विकास में माता - पिता की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसको इस प्रकार समझा जा सकता है -
1. माता -पिता विकलांग बालक की क्षतिग्रस्त व अक्षमता से जुड़ी समस्या पहचान व निदान करने में सहायता कर सकते हैं तथा यदि इसकी पहचान हो जाती है तो इसका सुधार एवं उपचारात्मक कार्य विद्यालय व पेशेवर व्यक्ति मिलकर कर सकते हैं।
2. विकलांग बालक को उसकी आवश्यकता के अनुसार उसे उपकरण दिलवाना, उसका सही संचालन करना, देखभाल एवं रख -रखाव का कार्य परिवार ही करता है। इसके अतिरिक्त माता-पिता विद्यालय की भी सहायता कर सकते हैं।
3. माता-पिता समाज के व्यक्तियों की सोच विकलांग बालकों के लिए सकारात्मक करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
4. माता- पिता तथा विशेषकर माताएं बच्चों की पाठ्य सहगामी क्रियाओं में सक्रिय भागीदारी निभा कर बच्चों को प्रोत्साहन एवं समर्थन दे सकते हैं।
5. माता-पिता समावेशी विद्यालय के संचालन में भी सहयोग दे सकते हैं। वे बालक की शिक्षा एवं समायोजन में विद्यालय एवं पेशेवर शिक्षकों की सहायता कर सकते हैं।
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