टॉलमैन का अधिगम सिद्धान्त (Tolman's Theory of Learning)
टॉलमैन का अधिगम सिद्धान्त “चिन्ह–पूर्णाकार (Sign–Gestalt / Sign Learning)” या “प्रयोजनवादी व्यवहारवाद (Purposive Behaviorism)” के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य विचार यह है कि अधिगम केवल यांत्रिक आदत बनाना नहीं, बल्कि उद्देश्यपूर्ण (purposeful), संज्ञानात्मक (cognitive) और अर्थपूर्ण (meaningful) प्रक्रिया है।
व्यवहार को उद्दीपक से उत्पन्न होने वाला स्वीकार करने, व्यवहार का मापन करने के लिए वस्तुनिष्ठ विधियों पर जोर देने तथा व्यवहार के परिमार्जन पर बल देने से स्पष्ट है कि टॉलमैन का सिद्धांत व्यवहारवादी दृष्टिकोण रखता है परन्तु टॉलमैन ने व्यवहारवादियों के सामान व्यवहार यंत्रवत मानने का विरोध किया।
टॉलमैन के सिद्धान्त का मूल विचार
- टॉलमैन के अनुसार प्राणी (मानव–पशु) का व्यवहार उद्देश्यपूर्ण होता है; वह किसी लक्ष्य (goal) की ओर निर्देशित होता है, केवल उद्दीपन–प्रतिक्रिया की जंजीर नहीं होता।
- अधिगम में व्यक्ति अपने वातावरण के बारे में “संज्ञानात्मक मानचित्र (Cognitive map)” बनाता है; अर्थात् विभिन्न रास्तों, संकेतों, स्थानों व परिणामों का मानसिक नक्शा तैयार करता है, केवल प्रतिक्रियाओं का क्रम याद नहीं करता।
- टॉलमैन के अनुसार अधिगम का तत्त्व “चिन्ह” है, अर्थात ऐसे संकेत या प्रतीक जिनके आधार पर व्यक्ति यह “अपेक्षा” करता है कि यदि वह ऐसा करेगा तो ऐसा परिणाम मिलेगा।
- अधिगम का अर्थ है विभिन्न उद्दीपनों व परिस्थितियों के बीच संबंधों को समझना और उनके आधार पर भविष्य के परिणामों की भविष्यवाणी करना; इसलिए यह “अपेक्षाओं का अधिगम” है, न कि केवल मांसपेशीय प्रतिक्रियाओं का।
प्रमुख अवधारणाएँ (Main Concept):
- प्रयोजन (Purpose): हर सीखी गई क्रिया के पीछे कोई न कोई उद्देश्य, जरूरत या लक्ष्य होता है; यदि लक्ष्य न हो तो व्यवहार स्थिर नहीं रहता।
- मध्यवर्ती चरों (Intervening Variables): उद्दीपन और प्रतिक्रिया के बीच प्रेरणा, लक्ष्य, पूर्व-अनुभव, जैविक दशा, व्यक्तित्व आदि ऐसे छिपे हुए तत्त्व हैं जो व्यवहार को प्रभावित करते हैं; इन्हीं को टॉलमैन ने मध्यवर्ती चर कहा।
- अव्यक्त अधिगम (Latent Learning): प्राणी बिना तात्कालिक पुरस्कार के भी वातावरण का नक्शा सीख लेता है; जब बाद में पुरस्कार मिलता है तभी वह सीखा हुआ ज्ञान व्यवहार में प्रकट होता है।
टालमैन द्वारा प्रस्तुत सैद्धान्तिक सम्प्रत्यय
(Tolman's Theoritical Concepts)
सीखने की प्रक्रिया को समझने के लिए विभिन्न प्रकार की भूल-भूलैयों में किये गये अपने प्रयोगों के आधार पर टालमैन ने सीखने के निम्न सैद्धान्तिक संप्रत्ययों को प्रस्तुत किया-
- चिन्ह (Sign) या संकेत: अधिगम में व्यक्ति अपने वातावरण के संकेतों (जैसे रास्ता, चिन्ह, संकेत-चिह्न, प्रतीक) के बीच संबंध को पहचानता है, न कि सिर्फ क्रमबद्ध प्रतिक्रियाओं को।
- संज्ञानात्मक मानचित्र (Cognitive Map): अधिगम के दौरान व्यक्ति दिमाग़ में खुद-ब-खुद एक मानसिक नक्शा या संरचना बनाता है, जिससे स्थान, रास्ते और संभावित परिणामों का ज्ञान होता है।
- उद्देश्यपूर्ण व्यवहार (Purposive Behaviour): हर व्यवहार और अधिगम के पीछे कोई-न-कोई लक्ष्य/उद्देश्य होता है — अनायास की गई प्रतिक्रियाएँ नहीं होतीं।
- अपेक्षा (Expectancy): व्यक्ति ‘अपेक्षा’ बना लेता है कि किसी विशेष संकेत के बाद कौन सा परिणाम आएगा; यानी वह अनुभव के आधार पर अपने व्यवहार की योजना बनाता है।
- मध्यवर्ती चर (Intervening Variables): उद्दीपन और प्रतिक्रिया के बीच कुछ छिपे कारक जैसे प्रेरणा, उद्देश्य, भूख आदि अभिनय करते हैं, जो अधिगम को प्रभावित करते हैं।
- अव्यक्त अधिगम (Latent Learning): बिना प्रत्यक्ष इनाम के भी अधिगम संभव है; अनुभव बाद में व्यवहार में दिख सकता है। टालमैन ने अधिगम के एक ऐसे प्रकार की चर्चा भी की है जो व्यवहार के रूप में परिलक्षित होने से पूर्व काफी समय तक सुप्तावस्था (Dormant) में रहता है। परन्तु प्राणी को उपयुक्त परिस्थिति अथवा अभिप्रेरणा मिलने पर वह इस प्रकार के लुप्त अधिगम प्रदर्शन करने में सक्षम रहता है। टालमैन के लुप्त अधिगम संप्रत्यय के अनुसार कभी-कभी अधिगम तो होता है परन्तु पुरस्कार अथवा पुनर्बलन में मिलने के कारण ऐसा अधिगम निष्पादन के रूप में अभिव्यक्त नहीं हो पाता है। वस्तुतः लुप्त अधिगम का संप्रत्यय इंगित करता है कि सीखने के लिए पुरस्कार / पुनर्बलन का होना अपरिहार्य (Indispensable) नहीं है।
1930 में टालमैन तथा उनके सहयोगी ने लुप्त अधिगम (Latent Learning) के सन्दर्भ में किये गए एक प्रयोग में देखा गया कि भोजन (पुरस्कार/पुनर्बलन) पाये बिना भी चूहों ने भुलभुलैया में सही मार्ग सीख लिया। 17 दिन तक चल रहे इस प्रयोग में चूहों को तीन समूहों में विभक्त करके तीन समरूप भूलभुलैया (Identical Maze) में दौड़ने का प्रशिक्षण दिया गया। एक समूह को लक्ष्य पर पहुंचने पर सदैव ही पुनर्बलन दिया गया, दुसरे समूह को लक्ष्य पर पहुंचने पर कभी-भी पुनर्बलन नहीं दिया गया एवं तीसरे समूह को दस दिन तक कोई पुनर्बलन नहीं दिया गया परन्तु ग्यारहवें दिन से लक्ष्य पर पहुँचने पर पुनर्बलन दिया गया। देखा गया कि-
- लगातार पुनर्बलन पाने वाले समूह के निष्पादन में धीरे-धीरे पर्याप्त उन्नति हुई ।
- पुनर्बलन न पाने वाले समूह में निष्पादन में बहुत थोड़ी उन्नति हुए।
- ग्यारहवें दिन से पुनर्बलन पाने वाले समूह के निष्पादन में बारहवें दिन से अप्रत्याशित वृद्धि हुई एवं इस समूह के निष्पादन का स्तर शीघ्र ही लगातार पुनर्बलन पाने वाले समूह के निष्पादन के बराबर हो गया।
