Wednesday, November 26, 2025

आसुबेल का अधिगम सिद्धांत (Ausubel's Theory of Learning)

आसुबेल का अधिगम सिद्धांत (Ausubel's Theory of Learning)

  आसुबेल ने यह सिद्धांत 1978 में दिया था। इस अधिगम सिद्धांत इसे आधुनिक संज्ञानात्मक सिद्धांत (Modern Cognitive Theory) भी कहा जाता है।  संज्ञानात्मक सिद्धांत इसलिए कहा जाता है कि सीखते समय व्यक्ति के मस्तिष्क में होने वाली प्रक्रिया का वर्णन किया जाता है। आसुबेल के अनुसार व्यक्ति जब किसी विषय वस्तु/पूर्व ज्ञान/ अनुभव को अपनी संज्ञानात्मक संरचना (Cognitive Structure) से सार्थक रूप से जोड़ लेता है तो उसे आत्मसात (Assimilation) करना कहते हैं 

इनके द्वारा लक्ष्य तथा शिक्षण सामग्री (Aims & Teaching Content) के प्रस्तुतीकरण की विधि के सुधार पर अधिक बल दिया गया  इनका मत है कि व्यक्ति अधिग्रहण (Acquisition) के द्वारा सीखता है ना की अन्वेषण के द्वारा  इनका कहना था कि सिद्धांत तथा विचार प्रस्तुत किए जाते हैं ना की खोज जाते हैं  

व्याख्यात्मक शिक्षण प्रतिमान (Explanatory Teaching Model) अर्थपूर्ण शाब्दिक अधिगम (Meaningful Verbal learning) पर अधिक बल देता है इसमें मौखिक सूचनाओं, विचार तथा विचारों में संबंध साथ-साथ चलते हैंआसुबेल का मानना है की ब्रूनर द्वारा बताई गई आगमन विधि (Inductive Method) न होकर निगमन चिंतन (Deductive Thinking) अधिगम की प्रगति में होनी चाहिए इन्होंने निगमनात्मक चिंतन पर जोर  दिया है 


आसुबेल  ने अधिगम के चार प्रकार बताएं  हैं -

  • रटन्त अधिगम (Rote Learning): विषय सामग्री को बिना समझे सीखना और ज्यों का त्यों प्रस्तुत करना। 
  • अर्थपूर्ण अधिगम (Meaningful Learning):  सीखने वाली सामग्री के सार तत्व को समझना व उसे  पूर्व ज्ञान से जोड़ना।  आसुबेल  के अनुसार अर्थपूर्ण अधिगम (Meaningful learning) तीन बातों पर निर्भर करता है -
  1. अधिगम सामग्री को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है की अगला  प्रथम अध्याय दूसरे अध्याय को समझने में सहायक हो। 
  2. नए ज्ञान को अर्जित करते समय व्यक्ति का मस्तिष्क किस प्रकार कार्य कर रहा है वह उसके प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति (Positive Attitude) रखता है या नहीं। 
  3. अध्यापक नए विषय को सीखाने के लिए अधिगम संबंधी विचारों को किस प्रकार प्रस्तुत करता है। 

अतः शिक्षकों को पढ़ाए जाने वाली सामग्री का चयन, संगठन व प्रस्तुतीकरण (Selection, Organization and Presentation) इस प्रकार किया जाए कि वह छात्रों के लिए अधिक अर्थपूर्ण बन जाए। 

  • अधिग्रहण अधिगम (Acquisition Learning): छात्रों के समक्ष सीखने वाली सामग्री बोलकर या लिखकर प्रस्तुत की जाती है, छात्र उन सामग्रियों का आत्मसात (Assimilation) करने का प्रयास करता है।परंतु यह रटंत  न होकर समझकर होता है।  यह दो प्रकार का होता है -

  1. रटंत अधिग्रहण अधिगम (Rote Acquisition Learning)-   मंद, संकुचित तथा नीरस (dull, compact and boring) ।  
  2. अर्थपूर्ण अधिग्रहण अधिगम (Meaningful Acquisition Learning)-  व्यापक, तीव्र व अर्थपूर्ण (comprehensive, intense and meaningful) । 

  • अन्वेषण अधिगम (Discovery Learning): खोज करके सीखना (Learning by Discovering)।  अन्वेषण अधिगम भी दो प्रकार का होता है-  

  1. रटंत अन्वेषण अधिगम (Rote Discovery Learning)-   विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु अनुक्रिया करना। 
  2. अर्थपूर्ण अन्वेषण अधिगम (Meaningful Discovery Learning)- सीखे गए तथ्यों के आधार पर किसी नए नियम का उपयोग करके नए नियम का प्रतिपादन करना और तथ्यों को आत्मसात  (Assimilation)  करके अपने अनुसार नवीन प्रकार से उनका उपयोग करना। 

अर्थपूर्ण अधिगम में आत्मसात को महत्वपूर्ण स्थान दिया है ।  उसने अधिगम में आत्मसात के चार प्रकार बताए हैं -

  1. योगात्मक अधिगम (Combinational Learning):  छात्र सामान्य समरूपता के आधार पर सीखे गए विचारों को सार्थक ढंग से अपनी वर्तमान संज्ञानात्मक संरचना के महत्वपूर्ण तत्वों के साथ आत्मसात करके  जोड़ता है ।  जैसे- आवश्यकता तथा पूर्ति, ताप तथा आयतन आदि । 
  2. अधीनस्थ अधिगम (Subordinate learning):  अधिक प्रचलित शब्द की कम प्रचलित समानार्थी शब्दों को सीखना। जैसे - पानी के लिए कम प्रचलित शब्द वारि,  सलिल व नीर आदि। 
  3. सहसंबंध अधिगम (Corelation Learning):  छात्र पहले सीखे हुए ज्ञान को नवीन ज्ञान से संबंधित करके उसमें परिमार्जन (Modification) या संवर्धन (Elaboration) करता है जैसे- कोई व्यक्ति अपने राष्ट्रीय ध्वज, चिन्ह व पर्वों का बहुत सम्मान करता है । उसके लिए राष्ट्रभक्ति शब्द प्रयोग किया जाता है। 
  4. उच्च कोटि अधिगम (Superordinate Learning): कई संप्रत्ययों (Concepts)  को मिलाकर किसी नई संप्रत्यय का निर्माण करना।  जैसे- गौरैया, तोता, कबूतर, मैना आदि की जानकारी के आधार पर पक्षी संप्रत्यय का विकास होता है। 

व्याख्यात्मक शिक्षण प्रतिमान (Explanatory Teaching Model)

व्याख्यात्मक शिक्षण प्रतिमान वह शिक्षण मॉडल है जिसमें शिक्षक मुख्य रूप से व्यवस्थित व्याख्या (Systematic Explanation) के माध्यम से विषय-वस्तु को स्पष्ट करता है और विद्यार्थियों की मानसिक (ज्ञानात्मक) क्रियाओं का विकास किया जाता है। इसे Explanatory Teaching Model या Explanation Model भी कहा जाता है।  यह एक पारंपरिक निर्देशात्मक दृष्टिकोण है। 

  • इसमें शिक्षक तथ्य (facts), सिद्धान्त (principles), नियम  और अवधारणाएँ (Rules and concepts) क्रमबद्ध रूप से समझाकर विद्यार्थियों में समझ, विश्लेषण, निष्कर्ष निकालने की क्षमता और वैचारिक स्पष्टता (conceptual clarity) विकसित करता है।​

  • इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों की मानसिक क्रियाओं (mental functions) का विकास, सिद्धान्तों का बोध (understanding principles) और तार्किक सोच (logical thinking) को प्रोत्साहित करना है

प्रक्रिया के मुख्य चरण-

  • पूर्वज्ञान का निदान और उद्देश्य की घोषणा। (Assess prior knowledge and state the objective.)

  • विषय-वस्तु की व्याख्या – उदाहरण, सादृश्य, चित्र, मॉडल के साथ। (Explain the subject matter – with examples, analogies, diagrams and models.)

  • प्रश्नोत्तर, पुनर्व्याख्या और सम्बन्ध स्थापित कराना। (Questioning, reinterpretation and connection)
  • निष्कर्ष व सामान्यीकरण (generalization) कराना।
  • अभ्यास प्रश्नों, लिखित कार्य या मौखिक उत्तरों के माध्यम से जाँच और सुदृढीकरण। (Checking and reinforcement through practice questions, written work, or oral responses.)

मुख्य विशेषताएं (Main Characteristics):

  • पूर्व ज्ञान के साथ अभिसंबन्ध (Connection with Prior Knowledge): नया ज्ञान तभी सार्थक होता है जब वह पहले से मौजूद ज्ञान के साथ जुड़ता है। बिना पूर्व ज्ञान से जुड़े हुए अधिगम में समझ या स्थिरता कम होती है।
  • स्थायी अधिगम (Retention and Long-term Learning): सार्थक अधिगम लंबे समय तक याद रहता है क्योंकि नया ज्ञान मौजूदा मानसिक संरचना (cognitive structure) में अच्छे से समाहित हो जाता है।
  • सार्थक सामग्री (Meaningful Material): जो सामग्री शिक्षार्थी के लिए तार्किक, स्पष्ट और प्रासंगिक हो, उसे आसानी से समझा और याद रखा जा सकता है, जिससे अधिगम सार्थक बनता है।
  • संरचित ज्ञान का विकास (Hierarchical Organization): ज्ञान की संरचना एक क्रमबद्ध तरीके से होती है, जहाँ आधारभूत अवधारणाएँ (basic concepts) पहले आती हैं और नई जानकारी उन पर आधारित होती है।
  • उन्नत आयोजक (Advance Organizer): यह शिक्षण की पहले चरण में दिया जाने वाला ऐसा उपकरण है जो नई जानकारी से पहले learner के पूर्व ज्ञान को सक्रिय करता है और समझ में मदद करता है।

  • सक्रिय संज्ञानात्मक प्रक्रिया (Active Cognitive Process): सीखना केवल जानकारी ग्रहण करना नहीं बल्कि उसे अपने अनुभव, सोच, और पूर्व ज्ञान से जोड़ने की प्रक्रिया है जिसमें learner की सक्रिय भागीदारी होती है।
  • रट या मेमोरी से भिन्न (Different from Rote Learning): सार्थक अधिगम में ज्ञान को समझ और जोड़-तोड़ से सीखा जाता है, न कि केवल याद किया जाता है।
  • सार्थक अधिगम की दक्षता (Effective Learning): यह अधिक प्रभावी और व्यवहारिक होता है क्योंकि learner नई जानकारी को वास्तविक जीवन के संदर्भ में समझता है।
  • यह आधुनिक संज्ञानात्मक सिद्धांत है इसमें बाहय वातावरण को कम महत्व दिया गया है। 
  • यह शिक्षक सामग्री को अर्थपूर्ण बनाने पर अधिक बल देता है ताकि छात्र उसकी भविष्य में उपयोग में ला सके। 
  • शिक्षण सामग्री को ज्ञानात्मक संरचना में संगठित करके अधिगम पर  बल दिया गया। 
  • रिटर्न सामग्री की अपेक्षा विशेष सामग्री को आत्मसात तथा उपयोग पर अधिक बल दिया गया है। 
  • इस सिद्धांत में अधिगम के लिए मानसिक तत्परता को पर बल दिया गया या आवश्यक माना गया।


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