Thursday, November 27, 2025

सूझ अधिगम सिद्धान्त (Insight Learning Theory)

 सूझ अधिगम सिद्धान्त (Insight Learning Theory)

 प्रतिपादक-   वोल्फगैंग कोहलर (Wolfgang Kohler)

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिक (Gestalt Psychologist) बर्दीमर, कोहलर और कोफ्का है। गेस्टाल्ट जर्मन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- आकार (Form), संरचना (Configuration) अथवा प्रतिरूप (Pattern)। गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों का मत है कि सम्पूर्ण उससे कुछ भिन्न होता है जो उसके अंशों से मिलकर बनता है।  इसी को समग्राकृति सिद्धान्त (Holistic Theory) अथवा गेस्टाल्ट सिद्धान्त (Gestalt Theory) कहते हैं। इस सिद्धान्त का प्रयोग सर्वप्रथम प्रत्यक्षीकरण (Perception) में किया गया था।

दूसरे शब्दों में कहा सकता है कि गेस्टाल्ट एक ऐसी समग्र अथवा पूर्ण संरचना है जिसकी विशेषता का पता उसके सम्पूर्ण गुणों से चलता है न कि उसके अवयवों (Constituents) के अवलोकन से उसका पता लगता है।  इनके  अनुसार प्राणी सम्पूर्ण परिस्थिति को एक समग्र रूप से देखता है। जब कोई समस्या आती है तब प्राणी उद्दीपक को  अनुक्रिया से सम्बन्धित करके नहीं सीखता है बल्कि वह सम्पूर्ण परिस्थिति को देखकर समस्या समाधान ढूंढ़ता है। प्राणी समस्या का समाधान अपनी अन्तर्दृष्टि अथवा सूझ (Insight) से खोजता है। अर्थात सीखने का केन्द्रीय बिन्दू सूझ होती है। सुझ से तात्पर्य किसी परिस्थिति में विभित्र पक्षों  बीच सम्बन्धों को देखने अथवा परिस्थिति के केन्द्रीय भाव को समझ लेने से है। सूझ प्राप्त होने से यह समझ जाता है कि किस प्रकार से कार्य करके वह अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है। सुझ प्रायः अचानक तथा स्वःस्फूर्त (Spontaneous) ढंग से  आती है। 


प्रयोग - 1 

कोहलर ने भूखे चिंपैंज़ी ‘सुल्तान’ को एक कमरे में रखा, कमरे की छत से केले लटकाए गए और कमरे में कुछ खाली बक्से रख दिए गए। शुरुआत में सुल्तान कूद‑कूद कर केले पाने की कोशिश करता रहा, पर सफल नहीं हुआ। कुछ समय बाद वह अचानक समझ गया कि बक्सों को एक‑दूसरे के ऊपर रखकर ऊँचाई बढ़ाई जा सकती है; उसने बक्सों को एक के ऊपर एक रखा, उन पर चढ़ा और आसानी से केले तोड़ लिए – यही सूझ का क्षण था।



प्रयोग - 2

कोहलर ने  सुल्तान को कुछ समय तक भूखा रखा और फिर उसे एक बड़े पिंजरे में बंद कर दिया। उसने छत से केले लटका दिए और पिंजरे के फ़र्श पर एक डिब्बा नीचे रख दिया। सुल्तान केले तक नहीं पहुँच सका। पिंजरे के एक कोने में एक और डिब्बा रख दिया गया। लेकिन सुल्तान को एक डिब्बे को दूसरे के ऊपर रखकर केले तक पहुँचने का आइडिया समझ नहीं आया। आखिर में कोहलर ने एक डिब्बे को दूसरे के ऊपर रखकर दिखाने का काम किया। सुल्तान अब पूरी बात समझ गया था। उसने अपनी समझ और समझदारी का इस्तेमाल करके दोनों डिब्बों को एक के ऊपर एक रखा, उन पर खड़ा हुआ और फिर केलों तक पहुँचा।



प्रयोग - 3


दूसरे प्रयोग में सुल्तान को पिंजरे में रखा गया, पिंजरे के बाहर थोड़ी दूरी पर केले रखे गए और पिंजरे के अंदर दो छोटी‑छोटी छड़ियाँ रखी गईं जो आपस में जोड़कर एक लंबी छड़ी बन सकती थीं। पहले सुल्तान अलग‑अलग छड़ियों से केले खींचने की कोशिश करता रहा, पर छड़ी छोटी होने के कारण केला नहीं खिंच पाया। अचानक एक क्षण आया जब उसे सूझा कि दोनों छड़ियों को जोड़कर लंबी छड़ी बनाई जा सकती है; उसने उन्हें जोड़कर केले अपनी ओर खींच लिए – फिर से अचानक प्राप्त हुई समझ यानी इंसाइट दिखी।




सिद्धान्त  के निष्कर्ष (Conclusion of Theory)

  • कोहलर के कार्य से यह निष्कर्ष निकलता है कि अधिगम केवल प्रयास‑त्रुटि, अनुबंधन या बाह्य प्रोत्साहन‑दण्ड का परिणाम नहीं, बल्कि एक बुद्धिसम्पन्न, संज्ञानात्मक और “समग्र स्थिति को समझने” की प्रक्रिया है।​
  • व्यक्ति समस्या‑स्थिति के विभिन्न अंगों और उनके पारस्परिक सम्बन्धों को एक साथ देखकर अचानक समाधान तक पहुँचता है; यह समग्र प्रत्यक्षीकरण गेस्टाल्ट दृष्टिकोण की मूल देन है।
  • अन्तर्दृष्टि अधिगम की पहचान यही है कि समाधान एकदम, झटके से या “फ्लैश” के रूप में सूझता है, न कि धीरे‑धीरे हर सम्भावना को आज़माकर।
  • अन्तर्दृष्टि पूर्व अनुभव, बौद्धिक स्तर, कल्पनाशक्ति, तर्क‑शक्ति और आन्तरिक दृष्टि (prior experience, intellectual level, imagination, reasoning and insight) पर निर्भर करती है; अतः अधिगम में उच्च मानसिक प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण स्थान है।
  • इस प्रकार यह सिद्धान्त व्यहवारवादी (behaviorist) दृष्टिकोण से हटकर यह स्थापित करता है कि अधिगम को समझने के लिए मस्तिष्क की आन्तरिक प्रक्रियाओं और संज्ञानात्मक संरचनाओं को स्वीकार करना आवश्यक है।



विशेषताएं (Characteristics)

  • इस सिद्धांत में सीखने की प्रकृति संज्ञानात्मक (Cognitive) होती है। 
  • सीखना धीरे -धीरे न होकर अचानक होता है। 
  • सीखने की प्रकृति लगभग स्थायी होती है। 
  • सीखने की प्रक्रिया में सूझ अचानक व स्वस्फूर्त (Spontaneous) होती है। 
  • सूझ द्वारा किये अधिगम में प्राणी का प्राम्भिक व्यवहार अन्वेषणात्मक (Discovery) प्रकृति की होती है। 
  • यह सिद्धान्त मनुष्य के सीखने की प्रक्रिया की सही व्याख्या करता है। किसी भी आयु के मनुष्यों में वृद्धि होती है, सूझ होती है और वे प्रायः सूझ द्वारा ही सीखते हैं।
  • यह सिद्धान्त किसी भी वस्तु, स्थिति अथवा क्रिया के उसके पूर्ण रूप से प्रत्यक्षीकरण पर बल देता है। 
  • यह सिद्धान्त पूर्ण से अंश की ओर चलकर सीखने पर बल देता है; प्रत्यक्षीकरण पूर्ण का, ज्ञान उसके एक-एक अंश का। इस प्रकार सीखा हुआ ज्ञान स्पष्ट एवं स्थायी होता है।


कमियां (Limitations) 


  • सभी प्रकार के अधिगम ‘अचानक सूझ’ से नहीं होता; भाषा, लिखावट, टाइपिंग, ड्राइविंग जैसे अनेक कौशल क्रमिक अभ्यास, प्रयास‑त्रुटि और अनुशासन से सीख जाते हैं, जिनको यह सिद्धान्त पर्याप्त रूप से नहीं समझा पाता।​
  • यह सिद्धान्त मुख्यतः सरल‑सीमित समस्या‑स्थितियों पर आधारित है (जैसे कोहलर के वनमानुष प्रयोग), जबकि वास्तविक जीवन की जटिल समस्याएँ प्रायः केवल एक ही अचानक सूझ से हल नहीं होतीं, बल्कि चरणबद्ध विश्लेषण और दीर्घ अभ्यास की भी आवश्यकता होती है।
  • सूझ (Insight) बहुत हद तक बुद्धि, पूर्व‑अनुभव और परिपक्वता पर निर्भर करती है; छोटे बच्चों, कम बौद्धिक स्तर वाले या कम अनुभव वाले शिक्षार्थियों में केवल सूझ‑आधारित अधिगम पर भरोसा करना व्यवहारिक नहीं है।
  • सूझ कब और किस छात्र को आएगी, यह भविष्यवाणी करना कठिन है; इसलिए कक्षा‑शिक्षण की योजनाओं का पूरा ढाँचा केवल अन्तर्दृष्टि पर आधारित नहीं किया जा सकता, क्योंकि शिक्षक के लिए यह विधि कम नियंत्रित और कम सुनिश्चित है।


शिक्षा में उपयोगिता (Utility of Education)


  • यह सिद्धान्त पाठ्यक्रम को समग्र और एकीकृत रखने पर बल देता है, ताकि विभिन्न विषयों और इकाइयों के बीच सम्बन्ध समझ कर विद्यार्थी गहरी अन्तर्दृष्टि विकसित कर सकें।​
  • ‘पूर्ण से अंश’ (Whole to part) की शिक्षण‑सूत्र इसी सिद्धान्त की देन है; जैसे पहले पूरा मानचित्र, पूरी कहानी, पूरा फूल या पूरा गणितीय प्रश्न दिखाकर बाद में उसके भागों का विश्लेषण करना।
  • यह सिद्धान्त समस्या‑समाधान (problem solving) आधारित शिक्षण का समर्थन करता है; शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों के स्तर के अनुसार समस्याएँ दे, ताकि वे स्वयं सोचकर “आहा” (Aha) अनुभव के साथ समाधान तक पहुँचें।​
  • रटने और यांत्रिक drill की अपेक्षा समझ, तर्क, कल्पना और चिन्तन शक्ति के विकास पर बल देता है; इससे उच्च स्तरीय मानसिक प्रक्रियाएँ जैसे reasoning, creativity और critical thinking विकसित होती हैं।
  • गणित और विज्ञान में सिद्धान्तों, सम्बन्धों और सूत्रों को केवल याद कराने के बजाय उनके पीछे की सोच, pattern और सम्बन्ध छात्रों के सामने स्पष्ट करने से अन्तर्दृष्टि‑आधारित, स्थायी अधिगम होता है।​
  • साहित्य, संगीत और कला में भी यह सिद्धान्त उपयोगी है, क्योंकि यहाँ भी समग्र अनुभूति (holistic experience), संस्थागत और व्यक्तिगत सूझ (Institutional, and personal insight) के आधार पर ही वास्तविक समझ विकसित होती है।
  • यह सिद्धान्त बालक‑केन्द्रित शिक्षा को बढ़ावा देता है; शिक्षक को छात्रों की आयु, बुद्धि‑स्तर, पूर्व‑अनुभव और व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखकर कार्य और समस्याएँ देनी चाहिए।​
  • अन्तर्दृष्टि‑आधारित अधिगम से जो समाधान मिलता है वह अधिक स्थायी होता है और समान परिस्थितियों में आसानी से स्थानांतरण (transfer of learning) भी हो जाता है, जिससे विद्यार्थियों की स्वध्ययन क्षमता और जीवन‑समस्या समाधान‑कौशल (self-learning abilities and life-problem-solving skills) मजबूत होते हैं।



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