आसुबेल का अधिगम सिद्धांत (Ausubel's Theory of Learning)
आसुबेल ने यह सिद्धांत 1978 में दिया था। इस अधिगम सिद्धांत इसे आधुनिक संज्ञानात्मक सिद्धांत (Modern Cognitive Theory) भी कहा जाता है। संज्ञानात्मक सिद्धांत इसलिए कहा जाता है कि सीखते समय व्यक्ति के मस्तिष्क में होने वाली प्रक्रिया का वर्णन किया जाता है। आसुबेल के अनुसार व्यक्ति जब किसी विषय वस्तु/पूर्व ज्ञान/ अनुभव को अपनी संज्ञानात्मक संरचना (Cognitive Structure) से सार्थक रूप से जोड़ लेता है तो उसे आत्मसात (Assimilation) करना कहते हैं।
इनके द्वारा लक्ष्य तथा शिक्षण सामग्री (Aims & Teaching Content) के प्रस्तुतीकरण की विधि के सुधार पर अधिक बल दिया गया। इनका मत है कि व्यक्ति अधिग्रहण (Acquisition) के द्वारा सीखता है ना की अन्वेषण के द्वारा। इनका कहना था कि सिद्धांत तथा विचार प्रस्तुत किए जाते हैं ना की खोज जाते हैं।
व्याख्यात्मक शिक्षण प्रतिमान (Explanatory Teaching Model) अर्थपूर्ण शाब्दिक अधिगम (Meaningful Verbal learning) पर अधिक बल देता है। इसमें मौखिक सूचनाओं, विचार तथा विचारों में संबंध साथ-साथ चलते हैं।आसुबेल का मानना है की ब्रूनर द्वारा बताई गई आगमन विधि (Inductive Method) न होकर निगमन चिंतन (Deductive Thinking) अधिगम की प्रगति में होनी चाहिए। इन्होंने निगमनात्मक चिंतन पर जोर दिया है ।
आसुबेल ने अधिगम के चार प्रकार बताएं हैं -
- रटन्त अधिगम (Rote Learning): विषय सामग्री को बिना समझे सीखना और ज्यों का त्यों प्रस्तुत करना।
- अर्थपूर्ण अधिगम (Meaningful Learning): सीखने वाली सामग्री के सार तत्व को समझना व उसे पूर्व ज्ञान से जोड़ना। आसुबेल के अनुसार अर्थपूर्ण अधिगम (Meaningful learning) तीन बातों पर निर्भर करता है -
- अधिगम सामग्री को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है की अगला प्रथम अध्याय दूसरे अध्याय को समझने में सहायक हो।
- नए ज्ञान को अर्जित करते समय व्यक्ति का मस्तिष्क किस प्रकार कार्य कर रहा है वह उसके प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति (Positive Attitude) रखता है या नहीं।
- अध्यापक नए विषय को सीखाने के लिए अधिगम संबंधी विचारों को किस प्रकार प्रस्तुत करता है।
अतः शिक्षकों को पढ़ाए जाने वाली सामग्री का चयन, संगठन व प्रस्तुतीकरण (Selection, Organization and Presentation) इस प्रकार किया जाए कि वह छात्रों के लिए अधिक अर्थपूर्ण बन जाए।
- अधिग्रहण अधिगम (Acquisition Learning): छात्रों के समक्ष सीखने वाली सामग्री बोलकर या लिखकर प्रस्तुत की जाती है, छात्र उन सामग्रियों का आत्मसात (Assimilation) करने का प्रयास करता है।परंतु यह रटंत न होकर समझकर होता है। यह दो प्रकार का होता है -
- रटंत अधिग्रहण अधिगम (Rote Acquisition Learning)- मंद, संकुचित तथा नीरस (dull, compact and boring) ।
- अर्थपूर्ण अधिग्रहण अधिगम (Meaningful Acquisition Learning)- व्यापक, तीव्र व अर्थपूर्ण (comprehensive, intense and meaningful) ।
- अन्वेषण अधिगम (Discovery Learning): खोज करके सीखना (Learning by Discovering)। अन्वेषण अधिगम भी दो प्रकार का होता है-
- रटंत अन्वेषण अधिगम (Rote Discovery Learning)- विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु अनुक्रिया करना।
- अर्थपूर्ण अन्वेषण अधिगम (Meaningful Discovery Learning)- सीखे गए तथ्यों के आधार पर किसी नए नियम का उपयोग करके नए नियम का प्रतिपादन करना और तथ्यों को आत्मसात (Assimilation) करके अपने अनुसार नवीन प्रकार से उनका उपयोग करना।
अर्थपूर्ण अधिगम में आत्मसात को महत्वपूर्ण स्थान दिया है । उसने अधिगम में आत्मसात के चार प्रकार बताए हैं -
- योगात्मक अधिगम (Combinational Learning): छात्र सामान्य समरूपता के आधार पर सीखे गए विचारों को सार्थक ढंग से अपनी वर्तमान संज्ञानात्मक संरचना के महत्वपूर्ण तत्वों के साथ आत्मसात करके जोड़ता है । जैसे- आवश्यकता तथा पूर्ति, ताप तथा आयतन आदि ।
- अधीनस्थ अधिगम (Subordinate learning): अधिक प्रचलित शब्द की कम प्रचलित समानार्थी शब्दों को सीखना। जैसे - पानी के लिए कम प्रचलित शब्द वारि, सलिल व नीर आदि।
- सहसंबंध अधिगम (Corelation Learning): छात्र पहले सीखे हुए ज्ञान को नवीन ज्ञान से संबंधित करके उसमें परिमार्जन (Modification) या संवर्धन (Elaboration) करता है। जैसे- कोई व्यक्ति अपने राष्ट्रीय ध्वज, चिन्ह व पर्वों का बहुत सम्मान करता है । उसके लिए राष्ट्रभक्ति शब्द प्रयोग किया जाता है।
- उच्च कोटि अधिगम (Superordinate Learning): कई संप्रत्ययों (Concepts) को मिलाकर किसी नई संप्रत्यय का निर्माण करना। जैसे- गौरैया, तोता, कबूतर, मैना आदि की जानकारी के आधार पर पक्षी संप्रत्यय का विकास होता है।
