Wednesday, November 26, 2025

आसुबेल का अधिगम सिद्धांत (Ausubel's Theory of Learning)

आसुबेल का अधिगम सिद्धांत (Ausubel's Theory of Learning)

  आसुबेल ने यह सिद्धांत 1978 में दिया था। इस अधिगम सिद्धांत इसे आधुनिक संज्ञानात्मक सिद्धांत (Modern Cognitive Theory) भी कहा जाता है।  संज्ञानात्मक सिद्धांत इसलिए कहा जाता है कि सीखते समय व्यक्ति के मस्तिष्क में होने वाली प्रक्रिया का वर्णन किया जाता है। आसुबेल के अनुसार व्यक्ति जब किसी विषय वस्तु/पूर्व ज्ञान/ अनुभव को अपनी संज्ञानात्मक संरचना (Cognitive Structure) से सार्थक रूप से जोड़ लेता है तो उसे आत्मसात (Assimilation) करना कहते हैं 

इनके द्वारा लक्ष्य तथा शिक्षण सामग्री (Aims & Teaching Content) के प्रस्तुतीकरण की विधि के सुधार पर अधिक बल दिया गया  इनका मत है कि व्यक्ति अधिग्रहण (Acquisition) के द्वारा सीखता है ना की अन्वेषण के द्वारा  इनका कहना था कि सिद्धांत तथा विचार प्रस्तुत किए जाते हैं ना की खोज जाते हैं  

व्याख्यात्मक शिक्षण प्रतिमान (Explanatory Teaching Model) अर्थपूर्ण शाब्दिक अधिगम (Meaningful Verbal learning) पर अधिक बल देता है इसमें मौखिक सूचनाओं, विचार तथा विचारों में संबंध साथ-साथ चलते हैंआसुबेल का मानना है की ब्रूनर द्वारा बताई गई आगमन विधि (Inductive Method) न होकर निगमन चिंतन (Deductive Thinking) अधिगम की प्रगति में होनी चाहिए इन्होंने निगमनात्मक चिंतन पर जोर  दिया है 


आसुबेल  ने अधिगम के चार प्रकार बताएं  हैं -

  • रटन्त अधिगम (Rote Learning): विषय सामग्री को बिना समझे सीखना और ज्यों का त्यों प्रस्तुत करना। 
  • अर्थपूर्ण अधिगम (Meaningful Learning):  सीखने वाली सामग्री के सार तत्व को समझना व उसे  पूर्व ज्ञान से जोड़ना।  आसुबेल  के अनुसार अर्थपूर्ण अधिगम (Meaningful learning) तीन बातों पर निर्भर करता है -
  1. अधिगम सामग्री को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है की अगला  प्रथम अध्याय दूसरे अध्याय को समझने में सहायक हो। 
  2. नए ज्ञान को अर्जित करते समय व्यक्ति का मस्तिष्क किस प्रकार कार्य कर रहा है वह उसके प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति (Positive Attitude) रखता है या नहीं। 
  3. अध्यापक नए विषय को सीखाने के लिए अधिगम संबंधी विचारों को किस प्रकार प्रस्तुत करता है। 

अतः शिक्षकों को पढ़ाए जाने वाली सामग्री का चयन, संगठन व प्रस्तुतीकरण (Selection, Organization and Presentation) इस प्रकार किया जाए कि वह छात्रों के लिए अधिक अर्थपूर्ण बन जाए। 

  • अधिग्रहण अधिगम (Acquisition Learning): छात्रों के समक्ष सीखने वाली सामग्री बोलकर या लिखकर प्रस्तुत की जाती है, छात्र उन सामग्रियों का आत्मसात (Assimilation) करने का प्रयास करता है।परंतु यह रटंत  न होकर समझकर होता है।  यह दो प्रकार का होता है -

  1. रटंत अधिग्रहण अधिगम (Rote Acquisition Learning)-   मंद, संकुचित तथा नीरस (dull, compact and boring) ।  
  2. अर्थपूर्ण अधिग्रहण अधिगम (Meaningful Acquisition Learning)-  व्यापक, तीव्र व अर्थपूर्ण (comprehensive, intense and meaningful) । 

  • अन्वेषण अधिगम (Discovery Learning): खोज करके सीखना (Learning by Discovering)।  अन्वेषण अधिगम भी दो प्रकार का होता है-  

  1. रटंत अन्वेषण अधिगम (Rote Discovery Learning)-   विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु अनुक्रिया करना। 
  2. अर्थपूर्ण अन्वेषण अधिगम (Meaningful Discovery Learning)- सीखे गए तथ्यों के आधार पर किसी नए नियम का उपयोग करके नए नियम का प्रतिपादन करना और तथ्यों को आत्मसात  (Assimilation)  करके अपने अनुसार नवीन प्रकार से उनका उपयोग करना। 

अर्थपूर्ण अधिगम में आत्मसात को महत्वपूर्ण स्थान दिया है ।  उसने अधिगम में आत्मसात के चार प्रकार बताए हैं -

  1. योगात्मक अधिगम (Combinational Learning):  छात्र सामान्य समरूपता के आधार पर सीखे गए विचारों को सार्थक ढंग से अपनी वर्तमान संज्ञानात्मक संरचना के महत्वपूर्ण तत्वों के साथ आत्मसात करके  जोड़ता है ।  जैसे- आवश्यकता तथा पूर्ति, ताप तथा आयतन आदि । 
  2. अधीनस्थ अधिगम (Subordinate learning):  अधिक प्रचलित शब्द की कम प्रचलित समानार्थी शब्दों को सीखना। जैसे - पानी के लिए कम प्रचलित शब्द वारि,  सलिल व नीर आदि। 
  3. सहसंबंध अधिगम (Corelation Learning):  छात्र पहले सीखे हुए ज्ञान को नवीन ज्ञान से संबंधित करके उसमें परिमार्जन (Modification) या संवर्धन (Elaboration) करता है जैसे- कोई व्यक्ति अपने राष्ट्रीय ध्वज, चिन्ह व पर्वों का बहुत सम्मान करता है । उसके लिए राष्ट्रभक्ति शब्द प्रयोग किया जाता है। 
  4. उच्च कोटि अधिगम (Superordinate Learning): कई संप्रत्ययों (Concepts)  को मिलाकर किसी नई संप्रत्यय का निर्माण करना।  जैसे- गौरैया, तोता, कबूतर, मैना आदि की जानकारी के आधार पर पक्षी संप्रत्यय का विकास होता है। 

Saturday, November 22, 2025

सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory)

 सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory)


प्रतिपादक - अल्बर्ट बंडूरा  (Albert Bandura), सहयोगी - वाल्टर (Walters)

सिद्धांत के अन्य नाम - प्रत्यक्ष अधिगम सिद्धांत (Direct Learning Theory), प्रतिरूप अधिगम सिद्धांत (Vicarious Learning Theory), अवलोकन अधिगम सिद्धांत (Observational Learning Theory), अनुकरण सिद्धांत (Imitation Theory), सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धांत (Social Cognitive Theory), निर्देशन का सिद्धांत (Theory of Guidance)। 

पुस्तक - Principles of Behaviour Modification (1969)

आधार वाक्य - व्यक्ति दूसरे के व्यवहार को देखकर सीखते हैं। 

प्रयोग - अल्बर्ट नाम का बालक, बोबो  डॉल एवं जोकर। 

  • यह सिद्धांत इस बात पर विचार करता है कि कैसे पर्यावरण और संज्ञानात्मक कारक मानव अधिगम व व्यवहार को प्रभावित करने के लिए परस्पर क्रिया करते हैं। 
  • व्यक्ति का व्यवहार संज्ञान व प्रत्याशा (Expectation) द्वारा प्रमाणित होते हैं प्रत्याशा दो प्रकार की होती है परिणाम प्रत्याशा (Outcome Expectation)  और प्रभावोत्पादकता प्रत्याशा (Efficacy Expectation) । 
  • इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित अधिगम के स्थान पर अप्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित अधिगम /अवलोकनात्मक अधिगम का सीखने की प्रक्रिया में अधिक सार्थक स्थान है । 
  • जन्म से बालक अपने वातावरण में उपस्थित व्यक्तियों, परिवार के सदस्यों के व्यवहार का अवलोकन करता है एवं कुछ की व्यवहारों का अनुकरण कर अपनी व्यवहार में लाता है ।  जिन व्यक्तियों के व्यवहारों का वह अनुकरण करते हैं उन्हें निदर्श (Model) कहा जाता है किसी निदर्श (Model) के  व्यवहार का अनुकरण करके किया गया अवलोकनात्मक अधिगम को निदर्शन (Modeling)  कहा जाता है

सामाजिक अधिगम के सोपान (Steps of Social Learning Theory)




  • अवधान (Attention):-  देखना ध्यान देने योग्य प्रक्रिया महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी मॉडल के संपर्क में आने से यह सुनिश्चित नहीं होता है कि पर्यवेक्षक (Observer) ध्यान देंगे।  मॉडल को पर्यवेक्षक की रुचि जाना चाहिए और पर्यवेक्षक को मॉडल के व्यवहार को अनुकरण के लायक समझना चाहिए। यह तय करता है कि व्यवहार को मॉडल किया जाएगा या नहीं । व्यक्ति को व्यवहार और परिणामो पर ध्यान देने और व्यवहार का मानसिक प्रतिनिधित्व बनाने की आवश्यकता है । किसी व्यवहार का अनुकरण करने के लिए उसे हमारा ध्यान खींचना होगा । हम दैनिक आधार पर कई व्यवहार देखते हैं और उनमें से कई उल्लेखनीय नहीं है, इसलिए इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि क्या कोई व्यवहार दूसरों को उसका अनुकरण करने के लिए प्रभावित करता है
  • धारण करना (Retention):-  व्यवहार को धारण करना सफल अनुकरण के लिए पर्यवेक्षकों (Observer) को इन व्यवहारों को प्रतीकात्मक रूप से सहेजना होगा सक्रिय रूप से उन्हें आसानी से याद किये जाने वाले पैटर्न की व्यवस्थित करना होगा। आचरण कितना याद रहते हैं व्यवहार पर  ध्यान दिया जा सकता है लेकिन इसे हमेशा याद नहीं रखा जा सकता । जो स्पष्ट रूप से नक़ल रोकता है,  इसलिए महत्वपूर्ण है कि व्यवहार की एक स्मृति पर्यवेक्षक द्वारा बाद में निष्पादित किया जाए अधिकांश सामाजिक अधिगम तुरंत नहीं होता इसलिए यह प्रक्रिया उन मामलों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।  इसको संदर्भित करने के लिए एक स्मृति की आवश्यकता होती है
  • पुनः प्रस्तुतीकरण (Re-production) :-  उत्पादन दूसरों के सामने प्रस्तुत करना। यह उस व्यवहार को निष्पादित करने की क्षमता है जिसे मॉडल द्वारा अभी प्रदर्शित किया गया है। हम प्रतिदिन बहुत सारे व्यवहार देखते हैं जिनका हम अनुकरण करने में सक्षम होना चाहते हैं लेकिन हमेशा यह संभव नहीं हो पता क्योंकि हमारी शारीरिक क्षमता हमें सीमित करती है। यह हमारे निर्णय को प्रभावित करता है कि हमें इसका अनुकरण करने का प्रयास करना चाहिए या नहीं।
  • पुनर्बलन/ अभिप्रेरणा (Reinforcement/Motivation):  प्रेरणा और पुनर्बलन की प्रक्रिया मॉडल के कार्यों की नकल करने के अनुकूल या प्रतिकूल परिणाम को संदर्भित करती हैं जो नकल की संभावना को बढ़ाने या घटाने की रखते हैं । यदि अनुमानित पुरस्कार अनुमानित लागत से अधिक है तो पर्यवेक्षक की नकल करने की संभावना अधिक रहेगी परंतु यदि पुनर्बलन पर्यवेक्षक के लिए महत्वहीन है तो वह व्यवहार की नकल नहीं करेंगे।



Thursday, November 20, 2025

व्यक्तित्व का मापन (Measurement of Personality)

 व्यक्तित्व का मापन (Measurement of Personality)

व्यक्तित्व मापन की विधियां (Methods of Personality Measurement)

  1. अप्रक्षेपी विधियां (Non-Projectives Methods)
  2. प्रक्षेपी विधियां (Projective Method)

अप्रक्षेपी विधियां (Non-Projective Methods):

मुख्य रूप से व्यक्तित्व मापन की उन विधियों को कहते हैं जिनमें व्यक्ति के बाहरी व्यवहार या स्वयं द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। इनमें दो प्रमुख प्रकार की विधियां होती हैं: वस्तुनिष्ठ विधि और आत्मनिष्ठ विधि
  • व्यक्तिनिष्ठ विधियाँ (Subjective Methods):- व्यक्तिनिष्ठ विधियों से तात्पर्य उन विधियों से है जिनमे परिणाम मापनकर्ता की अपनी पसंद- नापसंद और व्यक्तिगत मानदंडों से प्रभावित होते हैं।  अवलोकन विधि (Observation Method), साक्षात्कार विधि (Interview Method), प्रश्नावली विधि (Questionnaire Method),  व्यक्ति इतिहास विधि (Case History Method), आत्मकथा विधि (Autobiography Method) आदि इसके अंतर्गत आते हैं । 
  • वस्तुनिष्ठ विधियां (Objectives Methods): - वास्तुनिष्ठ विधियों से तात्पर्य उन विधियों से है जिनमे परिणाम मापनकर्ता की अपनी पसंद- नापसंद और व्यक्तिगत मानदंडों से प्रभावित नहीं होते हैं। नियन्त्रित निरीक्षण विधि (Controlled Observation Method), श्रेणी मापनी (Rating Scale), शारीरिक परीक्षण (Physiological Tests), परिस्थिति परीक्षण (Situation Tests) - समाजमिति (Sociometry), मनोनाटक (Psycho Drama) आदि। 

प्रक्षेपी विधियां (Projective Methods):-

व्यक्तित्व मापन की ऐसी विधियां हैं जिनमें व्यक्ति के अचेतन मन में छिपे पहलुओं, भावनाओं, विचारों और मानसिक स्थितियों  (unconscious mind, feelings, thoughts, and mental states) को प्रकट करने का प्रयास किया जाता है। इन विधियों में व्यक्ति को अस्पष्ट, अनिर्दिष्ट और संवेदी उत्तेजनाएं (vague, unspecific, and sensory stimuli) दी जाती हैं, जिनके प्रति उसके प्रतिक्रिया से उसके अंतर्निहित व्यक्तित्व (Internal Personality) पहलुओं का मूल्यांकन होता है।
प्रक्षेपी  विधि मनुष्य की दमित इच्छाओं पर बाह्य जगत पर आरोपित करने की विधि है। - वारेन (Warren)

साहचर्य प्रविधि (Association Technique), रचना प्रविधि (Construction Technique), पूर्ति प्रविधि (Completion Technique), चयन प्रविधि (Ordering Technique), अभिव्यक्ति परीक्षण (Expression Tests)- रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण (Rorsacharch Ink Blot Test), प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण (Thematic Apperception Test), बाल अन्तर्बोध परीक्षण (Children Apperception Test)

नियन्त्रित निरीक्षण विधि (Controlled Observation Method)

यह एक ऐसी अनुसंधान विधि है जिसमें अवलोकनकर्ता विशेष नियमों एवं नियंत्रणों के तहत किसी घटना या व्यवहार का अध्ययन करता है। इसमें अवलोकन की प्रक्रिया पूर्व नियोजित होती है और घटना या प्रतिभागियों पर नियंत्रण रखा जाता है ताकि अध्ययन अधिक विश्वसनीय और वैज्ञानिक हो। इस विधि में किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का मापन नियन्त्रित परिस्थितियों में उसके बौद्धिक कार्यों, संवेगात्मक विकास, रुचियों, अभिवृत्तियों एवं आदतों आदि का निरीक्षण करके किया जाता है। प्रयोज्य को विभिन्न नियन्त्रित परिस्थितियों में रखकर उसका निरन्तर निरीक्षण किया जाता है और वस्तुनिष्ठ ढंग से किया जाता है और उसके बाद निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

इस अवलोकन का उद्देश्य होता है घटना या व्यवहार को नियंत्रित परिस्थितियों में समझना और विश्लेषण करना, जिससे शोधकर्ता को कार्य के कारण और प्रभावों का पता चल सके। इस प्रकार का सही निरीक्षण योग्य एवं प्रशिक्षित व्यक्ति ही कर सकते हैं। यद्यपि यह विधि सामान्य अवलोकन की अपेक्षा तो वस्तुनिष्ठ होती है परन्तु पूर्णरूप से वस्तुनिष्ठ नहीं होती।

श्रेणी मापनी (Rating Scale)

व्यक्तित्व मापन में रेटिंग स्केल एक ऐसी वस्तुनिष्ठ विधि है जिसमें किसी व्यक्ति के विशिष्ट गुणों, व्यवहारों या लक्षणों को पूर्व निर्धारित मानकों (Norms) या बिंदुओं के आधार पर मापा और मूल्यांकन किया जाता है। इस स्केल पर किसी गुण की तीव्रता या मात्रा को अंकित किया जाता है जिससे व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं का मापन सरल और संगठित हो जाता है। इस विधि का प्रयोग सर्वप्रथम मनोभौतिकी में फैक्नर (Fecner) ने किया था परन्तु इस प्रकार की श्रेणी मापनी कर प्रकाशन सर्वप्रथम गाल्टन ने 1889 में किया था।
रेटिंग स्केल में प्रतिभागी या पर्यवेक्षक (Participant or observer) को व्यक्ति के व्यवहार या गुणों के बारे में एक मापदंड या अंक देना होता है, जैसे कि 1 से 5 या 1 से 10 तक की संख्या, जो उस गुण की उपस्थिति या तीव्रता को दर्शाती है। यह स्केल शिक्षकों, परिवार के सदस्यों या स्वयं प्रतिभागी द्वारा भरी जा सकती है। यह तरीका व्यक्तित्व के आँकड़ों को संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत करता है जिससे विश्लेषण करना आसान होता है। वर्तमान में कई प्रकार की श्रेणी मापनियों का प्रयोग किया जाता है। इनमें मुख्य हैं - लिकर्ट मापनी (Likert Scale), चैक लिस्ट (Check List), आँकिक मापनी (Numerical Scale), ग्राफिक मापनी (Graphic Scale), क्रमिक मापनी (Ordering Scale), बाध्य चयन मापनी (Forced Choice Scale) आदि। 

शारीरिक परीक्षण (Physiological Tests)


व्यक्तित्व मूल्यांकन की वह विधि है जिसमें व्यक्ति के शारीरिक और जैविक प्रतिक्रियाओं (physiological and biological responses) को मापा जाता है। इस प्रकार के परीक्षणों में मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि, हृदय की धड़कन, रक्तचाप , त्वचा की अंतःस्रावी प्रतिक्रिया और मांसपेशियों की गतिविधि (electrical activity, heart rate, blood pressure, skin endocrine response, and muscle activity) जैसे शारीरिक संकेतों का अध्ययन किया जाता है।

ये परीक्षण इस आधार पर काम करते हैं कि व्यक्तित्व की कुछ विशेषताएं, जैसे भावात्मक प्रतिक्रिया (emotional reactivity), तनाव स्तर (stress level) और मानसिक स्थिति (mental state), व्यक्ति के शारीरिक प्रतिक्रियाओं में परिलक्षित होती हैं। फिजियोलॉजिकल टेस्ट में EEG (electroencephalograph), ECG (electrocardiograph), प्लेथिस्मोग्राफ (plethysmograph), और मांसपेशियों की गतिविधि मापने वाले उपकरणों का उपयोग किया जाता है।

यह विधि अधिक वस्तुनिष्ठ और तकनीकी है, और व्यक्तित्व के जैविक आधारों को समझने में सहायक होती है। हालांकि, इसके लिए विशेष उपकरणों और तकनीकी माहिरता की आवश्यकता होती है, इसलिए यह आम तौर पर प्रयोगशाला और शोध केंद्रों में उपयोग की जाती है।

Wednesday, November 19, 2025

आइजेंक का व्यक्तित्व का मानवतावादी सिद्धांत (Eysenck's Humanistic theory of Personality)

आइजेंक का व्यक्तित्व का मानवतावादी सिद्धांत (Eysenck's Humanistic theory of Personality)

एच० जे० आइजेंक (H. J. Eysenck) के द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व सिद्धान्त को जैविक शीलगुण सिद्धान्त (Biological Trait Theory) के नाम से जाना जाता है। आइजेंक ने व्यक्तित्व के विकास में वंशानुक्रम एवं वातावरण दोनों के प्रभाव को महत्वपूर्ण स्वीकार किया तथा कहा कि व्यक्तित्व में एक प्रकार की स्थिरता पाई जाती है। उसने मानव व्यवहार प्रतिमानों के संज्ञानात्मक (Cognitive), क्रियात्मक (functional), भावात्मक एवं दैहिक क्षेत्रों (emotional and physical areas) को बौद्धिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं जैविक कारकों से जोड़कर प्रस्तुत किया।

आइजेंक की व्यक्तित्व संरचना  हिप्पोक्रेटस एवं जुंग के विचारों से प्रभावित प्रतीत होती है। हिप्पोक्रेटस ने शारीरिक द्रवों के आधार पर चार प्रकार के व्यक्तित्व- आशावादी (Sanguine), क्रोधी (Choleric), विषादी (Melancholic) तथा भावशून्य (Plegmatic) वाले व्यक्तियों का उल्लेख किया था जबकि जुंग ने अन्तर्मुखी (Introversion) तथा बहिर्मुखी (Extroversion) दो प्रकार के व्यक्तित्वों की चर्चा की थी। आइजेंक द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व संरचना का संप्रत्यय व्यक्तित्व को प्रकार- शीलगुण संप्रत्यय (Types-Traits Concept) के रूप में प्रस्तुत करता है। 
आइजेंक ने कारक विश्लेषण प्रविधि (Factor Analysis Method) के द्वारा व्यक्तित्व की कुछ विमाओं (Dimensions) को ज्ञात करके उनके आधार पर व्यक्तित्व की संरचना को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
हंस आइजेंक  का व्यक्तित्व सिद्धांत मुख्यतः एक जैविक और गुण-प्रकार (Trait-type) का सिद्धांत है जो व्यक्तित्व के तीन प्रमुख आयामों  पर ज़ोर देता है: बहिर्मुखता बनाम अंतर्मुखता (Extraversion vs Introversion), विक्षिप्तता बनाम भावनात्मक स्थिरता (Neuroticism vs Emotional stability) और मनोविकृति बनाम समाजीकरण (Psychoticism vs Socialization)। उनका मानना ​​था कि ये व्यक्तित्व लक्षण मुख्यतः आनुवंशिक और जैविक कारकों द्वारा नियंत्रित होते हैं, और स्वभाव जन्मजात होता है।

(1) अंतर्मुखता - बहिर्मुखता (Introversion - Extroversion):- 

अंतर्मुखता- आसानी से प्रभावित, निराशावादी, चिंताग्रस्त, कम उत्तेजित, कम महत्वाकांक्षी, आत्मनिष्ठ, कल्पनाशील, अनुशासनप्रिय एवं गंभीर।

बहिर्मुखता- आवेगशीलपरिवर्तनशील, क्रियाशील, सामाजिक आदि।

(2) स्नायुविकता स्थिरता बनाम अस्थिरता (Neuroticism Stability vs Unstability):- इसका आयाम लिम्बिक सिस्टम से जुड़ा है, जो भावनाओं और प्रेरणा को नियंत्रित करता है। उच्च न्यूरोटिसिज्म भावनात्मक अस्थिरता, चिंता और मनोदशा से संबंधित है। यह मनमौजी (Moody)अति संवेदनशील, बैचेन, उग्र स्वभाव, करुणामय एवं दुश्चिंता से ग्रस्त होते हैं ।

(3) मनोविकारिता बनाम सामाजिकता (Psychoticism vs Socialization):- एकांतप्रिय, कम क्रियाशील, अहंकारी, सामाजिक मर्यादाओं का विरोधी होता है जबकि सोशलाइज़ेशन में ज़्यादा लोग हमदर्द, कोऑपरेटिव और कन्फर्मिंग होते हैं। 

आइजेंक के अनुसार अंतर्मुखी, बहिर्मुखी तथा स्नायुविकता के कारण व्यक्तियों में जो विभिन्नताएं पाई जाती हैं उनमें से 75% वंशानुक्रम से निर्धारित होती हैं।

आइजेंक ने व्यवहार संगठन के चार स्तर बताये हैं - 
  • विशिष्ट अनुक्रिया स्तर (Specific Response Level):- ये किसी परिस्थिति में अलग-अलग, ठोस काम होते हैं—जैसे, लक झपकाना, आँखें झुकाना, किसी दोस्त से किसी एक मौके पर बात करना। ऐसे व्यवहार बदलते रहते हैं और परिस्थिति के हिसाब से होते हैं।
  • आदतजन्य अनुक्रिया स्तर (Habitual Response Level):- जब एक खास जवाब को एक जैसी स्थितियों में दोहराया जाता है, तो यह एक आदत बन जाती है—जैसे रेगुलर तौर पर ग्रुप में पढ़ाई करना। ये आदतें समय के साथ कुछ स्थिरता दिखाती हैं।
  • शीलगुण स्तर (Trait Level) : - शीलगुण हमेशा रहने वाले गुण होते हैं जो आदतन प्रतिक्रिया के समूह से मिलते हैं। उदाहरण के लिए, जो कोई अक्सर समूह में पढ़ता है, अक्सर मिलता-जुलता है, और समूह क्रियाएं करना  पसंद करता है, उसमें समाजशीलता   शीलगुण  हो सकता है।
  • प्रकार स्तर (Type Level) :- ये पर्सनैलिटी के बड़े पहलू हैं जो एक-दूसरे से जुड़े गुणों से बने होते हैं। आइसेनक ने तीन मुख्य प्रकार बताए: एक्स्ट्रावर्जन, न्यूरोटिसिज़्म और साइकोटिसिज़्म। हर प्रकार एक हायर-ऑर्डर फैक्टर दिखाता है जिसमें कई गुण शामिल होते हैं।


मरे का व्यक्तित्व आवश्यकता सिद्धांत (Murray's Need Theory of Personality)

 मरे का व्यक्तित्व आवश्यकता सिद्धांत
(Murray's Need Theory of Personality)

हेनरी मरे का व्यक्तित्व आवश्यकता सिद्धांत, जिसे मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के सिद्धांत (Theory of Psychogenic Needs) के रूप में भी जाना जाता है, व्यक्तित्व को मूलभूत मानवीय उद्देश्यों और आवश्यकताओं के इर्द-गिर्द संगठित बताता है, जो सचेतन और अचेतन (Consciously and Unconsciously) दोनों रूपों में कार्य करता है।

मरे ने इस तथ्य पर बल दिया कि मानव एक प्रेरित जीव (Inspired creatures) है, जो अपनी अन्तर्निहित आवश्यकताओं (Internal Needs) और बाहरी दबावों (External pressures) के कारण उत्पन्न तनावों को कम करने का प्रयत्न करता है। उन्होंने व्यक्ति के व्यक्तित्व की व्याख्या उसकी आन्तरिक आवश्यकताओं (Internal Needs) के आधार पर की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मनुष्य जिस वातावरण में रहता है उस वातावरण के दबावों का समग्र रूप उस मनुष्य के अन्दर कुछ आवश्यकताओं को उत्पन्न कर देता है। उनके अनुसार ये आवश्यकतायें ही उसके व्यवहार को निश्चित करती हैं। मरे ने इस प्रकार की 24 आवश्यकताओं का पता भी लगाया और उन्हें व्यक्तित्व आवश्यकता (Personality Needs) कहा। उनके द्वारा खोजी गई कुछ आवश्यकतायें हैं- निष्पति (Achievement) की आवश्यकता , स्वायत्तता (Autonomy) की आवश्यकता, प्रभुत्व (Dominance) की आवश्यकता, सानिध्य (Affiliation) की आवश्यकता, प्रदर्शन (Exhibition) की आवश्यकता, परोपकार (Nurturance) की आवश्यकता और आक्रामकता (Aggression) की आवश्यकता

मरे ने प्रस्तावित किया कि -

  • व्यक्तियों की सार्वभौमिक आवश्यकताओं (Universal Needs) का एक समूह होता है, लेकिन इन आवश्यकताओं की तीव्रता और प्राथमिकता प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है, जिससे अद्वितीय व्यक्तित्व (Unique Personality) का निर्माण होता है।
  • आवश्यकताओं को आंतरिक शक्तियों (Internal Powers) या "विशिष्ट परिस्थितियों में एक निश्चित तरीके से प्रतिक्रिया करने की तत्परता" के रूप में देखा जाता है।
  • व्यवहार इन आवश्यकताओं से प्रेरित होता है, और अपूर्ण आवश्यकताओं के कारण उत्पन्न तनाव को कम करने से मानव क्रियाएँ बहुत प्रभावित होती हैं।

मरे ने आवश्यकताओं को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया:-

  • प्राथमिक आवश्यकताएँ (Primary needs): ये जैविक या शारीरिक होती हैं, जैसे भोजन, पानी या ऑक्सीजन की आवश्यकता।
  • द्वितीयक (मनोवैज्ञानिक) आवश्यकताएँ (Secondary Needs): ये मनोवैज्ञानिक होती हैं और कल्याण के लिए आवश्यक होती हैं, जैसे उपलब्धि, संबद्धता, शक्ति और सूचना प्राप्ति। उन्होंने लगभग 24 मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की एक सूची तैयार की, जिनमें उपलब्धि, संबद्धता, प्रभुत्व, स्वायत्तता, पोषण, आदि शामिल हैं।

मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology)

मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology) मनोविज्ञान के सम्प्रदाय से अभिप्राय उन विचारधाराओं से है जिनके अनुसार मनोवैज्ञानिक मन, व्यवह...