मरे का व्यक्तित्व आवश्यकता सिद्धांत
(Murray's Need Theory of Personality)
हेनरी मरे का व्यक्तित्व आवश्यकता सिद्धांत, जिसे मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के सिद्धांत (Theory of Psychogenic Needs) के रूप में भी जाना जाता है, व्यक्तित्व को मूलभूत मानवीय उद्देश्यों और आवश्यकताओं के इर्द-गिर्द संगठित बताता है, जो सचेतन और अचेतन (Consciously and Unconsciously) दोनों रूपों में कार्य करता है।
मरे ने इस तथ्य पर बल दिया कि मानव एक प्रेरित जीव (Inspired creatures) है, जो अपनी अन्तर्निहित आवश्यकताओं (Internal Needs) और बाहरी दबावों (External pressures) के कारण उत्पन्न तनावों को कम करने का प्रयत्न करता है। उन्होंने व्यक्ति के व्यक्तित्व की व्याख्या उसकी आन्तरिक आवश्यकताओं (Internal Needs) के आधार पर की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मनुष्य जिस वातावरण में रहता है उस वातावरण के दबावों का समग्र रूप उस मनुष्य के अन्दर कुछ आवश्यकताओं को उत्पन्न कर देता है। उनके अनुसार ये आवश्यकतायें ही उसके व्यवहार को निश्चित करती हैं। मरे ने इस प्रकार की 24 आवश्यकताओं का पता भी लगाया और उन्हें व्यक्तित्व आवश्यकता (Personality Needs) कहा। उनके द्वारा खोजी गई कुछ आवश्यकतायें हैं- निष्पति (Achievement) की आवश्यकता , स्वायत्तता (Autonomy) की आवश्यकता, प्रभुत्व (Dominance) की आवश्यकता, सानिध्य (Affiliation) की आवश्यकता, प्रदर्शन (Exhibition) की आवश्यकता, परोपकार (Nurturance) की आवश्यकता और आक्रामकता (Aggression) की आवश्यकता।
मरे ने प्रस्तावित किया कि -
- व्यक्तियों की सार्वभौमिक आवश्यकताओं (Universal Needs) का एक समूह होता है, लेकिन इन आवश्यकताओं की तीव्रता और प्राथमिकता प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है, जिससे अद्वितीय व्यक्तित्व (Unique Personality) का निर्माण होता है।
- आवश्यकताओं को आंतरिक शक्तियों (Internal Powers) या "विशिष्ट परिस्थितियों में एक निश्चित तरीके से प्रतिक्रिया करने की तत्परता" के रूप में देखा जाता है।
- व्यवहार इन आवश्यकताओं से प्रेरित होता है, और अपूर्ण आवश्यकताओं के कारण उत्पन्न तनाव को कम करने से मानव क्रियाएँ बहुत प्रभावित होती हैं।
मरे ने आवश्यकताओं को दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया:-
- प्राथमिक आवश्यकताएँ (Primary needs): ये जैविक या शारीरिक होती हैं, जैसे भोजन, पानी या ऑक्सीजन की आवश्यकता।
- द्वितीयक (मनोवैज्ञानिक) आवश्यकताएँ (Secondary Needs): ये मनोवैज्ञानिक होती हैं और कल्याण के लिए आवश्यक होती हैं, जैसे उपलब्धि, संबद्धता, शक्ति और सूचना प्राप्ति। उन्होंने लगभग 24 मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की एक सूची तैयार की, जिनमें उपलब्धि, संबद्धता, प्रभुत्व, स्वायत्तता, पोषण, आदि शामिल हैं।
मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics)
- आवश्यकताएं अचेतन स्तर पर कार्य करती हैं, लेकिन व्यक्तित्व को दृढ़तापूर्वक आकार देती हैं।
- व्यक्तियों के बीच इन आवश्यकताओं की प्रमुखता में अंतर व्यक्तित्व के अंतर का कारण बनता है।
- आवश्यकताएं आपस में संबंधित होती हैं और कभी-कभी परस्पर विरोधी भी होती हैं (उदाहरण के लिए, प्रभुत्व की आवश्यकता बनाम संबद्धता की आवश्यकता) और पर्यावरणीय कारक (जिन्हें "दबाव" कहा जाता है) व्यवहार को प्रभावित करने के लिए इन ज़रूरतों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं।
- प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्टता उसकी आवश्यकताओं के विशिष्ट पैटर्न और प्रबलता से उत्पन्न होती है।
मनोवैज्ञानिक एडवर्ड्स (Edwards) ने व्यक्तित्व आवश्यकताओं के आधार पर व्यक्तित्व मापन का एक उपकरण (Tool) भी तैयार किया है जिसे एडवर्ड्स पर्सनल प्रीफ्रेन्स शैड्यूल (Edwards Personal Preference Schedule-EPPS) कहते हैं। इसमें 15 व्यक्तित्व सम्बन्धी आवश्यकताओं को सम्मिलित किया गया है। ये 15 आवश्यकतायें हैं सम्प्राप्ति की आवश्यकता (Need of Achievement), स्वीकृति की आवश्यकता (Need of Inference), व्यवस्था की आवश्यकता (Need of Order), प्रदर्शन की आवश्यकता (Need of Exhibition), स्वायत्तता की आवश्यकता (Need of Autonomy), सानिध्य की आवश्यकता (Need of Affiliation)), परिहार की आवश्यकता (Need of Inavoidance), पराश्रय की आवश्यकता (Need of Succorance), प्रभुत्व की आवश्यकता (Need of Dominance), आत्महीनता की आवश्यकता (Need of Abasement), परोपकार की आवश्यकता (Need of Nurturance), प्रतिक्रिया की आवश्यकता (Need of Counteraction), सहनशीलता की आवश्यकता (Need of Endurance), विभिन्नता की आवश्यकता (Need of Heterogenity) और आक्रामकता की आवश्यकता (Need of Aggression) |
आवश्यकताओं के आधार पर व्यक्तित्व की व्याख्या भी सभी मनोवैज्ञानिकों को मान्य नहीं है। यह बात तो सही है कि मनुष्य की जन्मजात आवश्यकताएं उसे उनकी पूर्ति के लिए प्रेरित करती हैं, परन्तु ये तो सब मनुष्यों में समान होती है, उनके आधार पर उनके व्यक्तित्व में भेद कैसे किया जा सकता है और पर्यावरणीय आवश्यकताओं का विस्तार इतना अधिक होता है कि उनकी पूर्ति के लिए किए गए प्रयत्न एवं तरीकों के आधार पर व्यक्तित्व की पहचान करना एक दम असम्भव होता है। फिर मनोवैज्ञानिकों ने आवश्यकताओं की जो सूचियाँ तैयार की हैं, वे भी अपने में स्पष्ट नहीं हैं, सभी आवश्यकताएं एक-दूसरे से गुंथी-बँधी हैं। अतः यह सिद्धान्त भी भ्रामक है।
No comments:
Post a Comment
Please follow, share and subscribe