स्मृति प्रक्रिया के पद (Steps of Memory Process)
वुडवर्थ ने स्मृति प्रक्रिया के चार पद बताये हैं -
1. सीखना/अधिगम (Learning) –
हम किसी विषय-वस्तु को तभी स्मरण कर पाते हैं जबकि हमने उसे पहले से सीखा हो। किसी विषय-वस्तु (Subject-Matter) को सीखे बिना उसका स्मरण करना संभव नहीं है। स्मृति सीखने पर निर्भर करती है । गिलफोर्ड ने कहा है– “किसी विषय-वस्तु को अच्छी तरह से स्मरण करने के लिए उसे अच्छी तरह से सीख लेना आधी से अधिक लड़ाई जीत लेना है।" स्मरण (Remembering) क्षमता को बढ़ाने के लिए व्यक्ति को पाठ्य-वस्तु, अधिगम के नियमों तथा सिद्धान्तों का उचित प्रयोग करके सीखना तथा याद करना चाहिये। उसे नवीन ज्ञान तथा पूर्व ज्ञान में सम्बन्ध स्थापित करना चाहिये।
2. धारण (Retention)-
स्मृति प्रक्रिया का दूसरा महत्त्वपूर्ण पद सीखी गयी विषय-वस्तु को धारण करना है। धारण से तात्पर्य है – विषय-वस्तु (Subject-Matter) को लम्बे समय तक मस्तिष्क में संचित रखना। जब हम किसी विषय-सामग्री का अधिगम (Learning) करते हैं तो मस्तिष्क क्रियाशील हो जाता है और उस पर कुछ चिन्ह (engrams) अंकित हो जाते हैं जिन्हें स्मृति चिन्ह (Memory trace) कहते हैं। कुछ समय तक ये चिन्ह चेतन मस्तिष्क (Conscious Mind) में रहते हैं तथा फिर अचेतन मस्तिष्क (Unconscious mind) में चले जाते हैं। जब कभी विषय-वस्तु को स्मरण करने की आवश्यकता होती है तो ये चिन्ह चेतन मस्तिष्क में उभर आते हैं तथा व्यक्ति सीखे गये ज्ञान को पुनः प्रस्तुत करने में सक्षम होता है। अतः पुनः स्मरण धारण पर तथा धारण सीखने पर निर्भर करता है
रायबर्न का कहना है कि — “ अधिकांश व्यक्तियों की धारण शक्ति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता है।” किसी विषय-वस्तु को धारण करना निम्न कारकों पर निर्भर करता है ।
सीखने वाले की आयु तथा परिपक्वता (Age & Maturity of Learner)), शारीरिक तथा मानसिक स्वस्थ (Physical & Mental Health) , मानसिक क्षमता (Mental Ability), संवेगात्मक स्थिति (Emotional State), अभिरुचि तथा अभिक्षमता (Interest & Aptitude), अभिवृति (Attitude), अवधान (Attention), विषय सामग्री की प्रकृति (Nature of subject matter), सामग्री की उपयोगिता (Utility of the Material) , सीखने की विधि (Methods of Learning) आदि ।
3. प्रत्यास्मरण/पुनः स्मरण (Recall)—
पूर्व अनुभवों को अचेतन मन से पुनः चेतन मन में लाना प्रत्यास्मरण (Recall) कहलाता है। यह क्रिया स्मृति चिह्न (Memory Trace) के सक्रिय होने से होती है। पुनः स्मरण वह मानसिक क्रिया है जिससे हम पूर्वानुभवों को मौलिक उद्दीपकों (Original Stimuli) की अनुपस्थिति में चेतन मन (Conscious Mind) पर लाया जाता है। यदि पूर्व अनुभवों को अच्छी प्रकार से धारण (Retention) नहीं किया गया हो तो उनका प्रत्यास्मरण (Recall) करना कठिन होता है। प्रत्यास्मरण (Recall) व्यक्ति की धारण शक्ति के अतिरिक्त उसकी संवेगात्मक अवस्था (Emotional Stage) पर भी निर्भर करता है, घबराहट (Nervousness) तथा भय (Fear) की अवस्था में अच्छी प्रकार से सीखी गई विषय-वस्तु को भी व्यक्ति स्मरण नहीं कर पाता।
Ex.- प्रायः देखने में आता है कि कुछ व्यक्ति बड़ी तैयारी के साथ Interview में आते हैं लेकिन बाहर आकर कहते हैं कि सब याद होते हुए भी मैं घबराहट में सब कुछ भूल गया।
पुनः स्मरण प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है - (i) स्वाभाविक पुनः स्मरण (Spontaneous) (ii) सप्रयास पुनः स्मरण (Deliberate)।
4. पहचान/प्रतिभिज्ञान (Recognition)–
वुडवर्थ के अनुसार - पूर्व अनुभवों को जानना ही पहचान है, या वर्तमान काल में उस वस्तु से परिचित होना जिससे अतीत काल में परिचित (Known) हो चुके हैं।
पहचान वह योग्यता (Ability) है जिसके द्वारा पूर्व अनुभवों (Prior Experiences) अथवा सीखे हुए तथ्यों (Facts) को अन्य तथ्यों के साथ जोड़कर या उनसे अलग करके उसे स्पष्ट रूप में समझा जाता है।
Ex.- जब हम किसी व्यक्ति से प्रथम बार मिलते हैं तो हमारे मस्तिष्क में स्मृति चिन्हों द्वारा उसका प्रतिबिम्ब बन जाता है, जब वह व्यक्ति हमें वर्षों बाद फिर मिलता है तो ये स्मृति चिन्ह पुनः उभर आते हैं तथा हम उसे दूसरे व्यक्तियों के बीच पहचानने में समर्थ होते हैं। यद्यपि प्रतिभिज्ञान एक सामान्य अनुभव है लेकिन यह एक जटिल तथा रहस्यमय प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया स्वतः (Automatically) घटित होती है।


