Sunday, May 23, 2021

सृजनात्मक -प्रक्रिया (Creative- Process)

 सृजनात्मक -प्रक्रिया (Creative- Process)  

सृजनात्मक प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाविदों ने गहन अध्ययन किया। सृजनात्मकता की प्रक्रिया के सोपान निम्न हैं- 

1. तैयारी (Preparation) 

2. उद्भवन काल (Incubation Period) 

3. प्रकाश  या प्रेरणा (Illumination or Motivation) 

4. किसी एक विचार से बँध जाना (Stay on an idea) 

5. परिणाम का अनुमान (Result estimate):- 

6. सत्यापन  (Verification) 


1. तैयारी (Preparation) :-

सृजनात्मकता की प्रक्रिया में तैयारी (Preparation) प्रथम सोपान होता है जिसमें समस्या पर गंभीरता (seriousness) के साथ कार्य किया जाता है। सर्वप्रथम समस्या का विश्लेषण (Analysis) किया जाता है और उसके समाधान के लिए एक रूपरेखा का निर्माण किया जाता है। 


(A) समस्या का प्रत्यक्षीकरण (Clarification of  the problem) :- सृजनात्मक प्रक्रिया किसी ऐसी अनूठी (Unique) समस्या के अवलोकन स्वरूप (Format) होती है जिसका प्रत्यक्षीकरण (Clarification) करना आम आदमी की पहुँच से परे है। 

जैसे-  न्यूटन ने पेड़ से नीचे गिरते हुए सेब  को देखकर इसके नीचे गिरने के कारण का पता लगाने से सम्बन्धित समस्या पर ध्यान केन्द्रित किया था।


(B) समस्या में परिवर्तन ( Modification of problem ) :- समस्या का प्रत्यक्षीकरण करने के बाद समस्या के प्रत्येक पहलू का विभिन्न दृष्टिकोणों (Perspective) से अध्ययन किया जाता है तथा उसमें संभावित परिवर्तन किये जाते हैं।


(C) परम्परागत निर्णयों को स्थगित करना (Suspending Conventional judgments):- इस चरण में व्यक्ति समस्या से सम्बन्धित परम्परागत (Traditional) निर्णयों की पूर्ण रूप से उपेक्षा (Neglect) करता है तथा उनकी जगह कुछ अलग तरह के  लगने वाले विचित्र  हास्याप्रद  विचारों का प्रतिवादन करता है।


2. उद्भवन काल (Incubation Period) :-


जब व्यक्ति कई प्रकार से समस्या समाधान के प्रयास करने पर सफल नहीं हो पाता है तो उद्भवन की स्थिति आ जाती है। उद्भवन काल में व्यक्ति समस्या के बारे में चिन्तन छोड़कर चेतन/सचेत (Conscious) रूप से तो विश्राम की अवस्था में चला जाता है लेकिन अचेतन (Unconscious) रूप से वह समस्या के बारे में विचार करता रहता है। इस अवस्था में व्यक्ति दो कार्य करता है -

(i) नये ज्ञान को सीखता है, 

(ii) नये ज्ञान को पुराने ज्ञान के साथ आत्मसात् (Assimilation) करता है। 

इस अवस्था में व्यक्ति कोई प्रकाश की किरण तलाशता है जो समस्या का समाधान करने का रास्ता दिखाये।


3. प्रकाश अथवा प्रेरणा (Illumination or Motivation) :-


उद्भवन के बाद प्रकाश की किरण अथवा प्रेरणा अचेतन मन (Unconscious Mind) की गहराइयों से उत्पन्न होती है। निष्क्रिय (Inactive) रहने की अवस्था में कवि के मन  से कविता  का निर्माण होता है।  आर्कमिडीज को अपने उत्प्लावन बल (Buoyancy Force) के सिद्धान्त का ज्ञान पानी के हौज में नहाते समय अचानक हुआ था। इसी प्रकार के उदाहरणों के आधार पर ही मनोवैज्ञानिकों ने माना है कि प्रकाश अथवा प्रेरणा मानसिक निष्क्रियता (Mental Inactivity) की अवस्था में प्राप्त होती है।


4. किसी एक विचार से बँध जाना (Stay on an idea):- 


जब व्यक्ति को किसी विचार की गहन जानकारी हो जाती है तो वह अपने इस विचार को समस्या के समाधान हेतु चुन लेता है और लोग यदि उसकी आलोचना (Criticism) भी करते हैं तो भी वह अपने निर्णय पर अडिग रहता है।


5. परिणाम का अनुमान (Result estimate):- 


इस सोपान में व्यक्ति अपनी समस्या के संभावित परिणाम (Result) का अनुमान लगाने लगता है। व्यक्ति द्वारा इस व्यवस्था पर संभावित परिणाम का जो अनुमान लगाया जाता है वह सही हो भी सकते हैं और नहीं भी। परंतु उसमें व्यक्ति के उत्साह की अवस्था देखने को मिलती है।


6. सत्यापन/पुष्टिकरण (Verification):- 


यह सृजनात्मक प्रक्रिया की अन्तिम अवस्था है। इस स्थिति में वह प्रकाशित विचारों (Illuminated thoughts) की वैधता की जाँच करता है। इस स्थिति में वह यह निश्चित करता है कि उसकी सोच से प्राप्त विचार अथवा समस्या के हल ठीक हैं  या  नहीं। यदि परिणाम त्रुटिपूर्ण आते हैं तो समस्या समाधान हेतु नये सिरे से प्रयास किये जाते हैं और परिणामों को परिवर्तित अथवा संशोधित करके वांछित निष्कर्ष तक पहुंचा जाता है। प्रायः देखा जाता है कि साहित्यकार(Writer) अपनी रचनाओं को आवश्यकतानुसार संशोधन करके उन्हें पुनः लिखते हैं।








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