Monday, June 21, 2021

बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)

 बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)

1. एक कारक या एक सत्तात्मक सिद्धान्त (Unitary or Monarchic Theory)

2. द्विकारक सिद्धान्त (Two factor or Bi-factor Theory)

3. त्रिकारक सिद्धान्त (Three Factor Theory)

4. बहुकारक सिद्धान्त (Multi-factor Theory)

5. समुह कारक सिद्धान्त (Group factor Theory)

6. त्रि-आयाम सिद्धान्त या बुद्धि  सरंचना प्रतिमान (Three Dimensional Theory or S.I. Model)

7. बहु बुद्धि सिद्धान्त (Multiple Intelligence Theory)

8. प्रतिदर्श सिद्धान्त (Sampling or Oligarchic Theory)


एक कारक या एक सत्तात्मक सिद्धान्त (Unitary or Monarchic Theory)

बुद्धि एक इकाई कारक (Unit Factor), शक्ति या ऊर्जा (Energy) है, जो सम्पूर्ण मानसिक कार्यों (Mental Works) को प्रभावित करती है। ऐसे विचार फ्रान्स के निवासी अल्फ्रेड बिने ने सर्वप्रथम 1905 में दिए । बिने के इन विचारों का अमेरिका निवासी टरमैन (Terman), स्टर्न (Stern) तथा जर्मन के एबिंघास (Ebbinghaus) ने समर्थन किया। इन विद्वानों के अनुसार बुद्धि एक ऐसी शक्ति (Power) है, जो सभी मानसिक कार्यों को संचालित, संगठित तथा प्रभावित (Managed, Organized and Influenced) करती है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी व्यक्ति में उच्च स्तरीय बौद्धिक योग्यताएँ (higher Intellectual Abilities) होती हैं तो वह सभी क्षेत्रों में कुशलता (Efficiency) तथा निपुणता (Proficiency) प्राप्त कर सकता है। बुद्धि रूपी इस सर्वशक्तिशाली मानसिक प्रक्रिया (Mental Process)  को इन विद्वानों ने अलग-अलग नामों से पुकारा है। बिने ने बुद्धि के लिए ‘निर्णय लेने  की योग्यता (Decision making ability)', स्टर्न ने 'नवीन स्थितियों के साथ समायोजन स्थापित करने की योग्यता’ (Ability to make adjustments to new situations) तथा टरमैन ने 'विचारने की योग्यता (Ability to think)' शब्दों का प्रयोग किया है।


द्विकारक सिद्धान्त( Two Factor or Bi-Factor Theory)

ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक स्पीयरमैन (Spearman) ने 1904 में  अपने प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकाला कि बुद्धि दो कारकों (शक्तियों अथवा योग्यताओं) का से मिलकर हुई है। प्रथम कारक को उन्होंने सामान्य मानसिक योग्यता (General Mental Ability, G) तथा दूसरे कारक को विशिष्ट मानसिक योग्यता (Specific Mental Ability, S) कहा। 

स्पीयरमैन के अनुसार- बुद्धि एक सर्वशक्तिमान सामान्य मानसिक शक्ति है, जो समस्या-समाधान में हमारी सहायता करती है एवं परिस्थितियों से समायोजन करने में सहायक होती है। (Intelligence is an all-powerful general mental power that helps us solve problems and adapt to situations.)

   स्पीयरमैन  ने स्पष्ट किया कि सामान्य योग्यता (G) व्यक्ति को सभी प्रकार के कार्यों में सहायता करती है और विशिष्ट योग्यता (S) उसे उसी कार्य में सहायता करती है जिसके लिए वह होती है। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि सामान्य योग्यता (G) एक ही होती है परन्तु विशिष्ट योग्यता (S) अनेक होती हैं। उन्होंने इन्हें क्रमशः सामान्य बुद्धि (General Intelligence) और विशिष्ट बुद्धि (Specific Intelligence) की संज्ञा दी और विभिन्न प्रकार की विशिष्ट योग्यताओं को S1, S2, S3, S4 आदि से व्यक्त किया है। 


'G' कारक की विशेषताएँ (Characteristics of ‘G’ Factor)

  1. यह एक सामान्य मानसिक योग्यता (General Mental Ability) है जो सभी प्रकार के कार्यों के सम्पादन में सहायक होती है। 
  2. सामान्य बुद्धि सभी व्यक्तियों में कम और अधिक मात्रा में पाई जाती है। अतः यह एक सर्वव्यापी योग्यता (Universal ability) है। 
  3. 'G' कारक (Factor) पर प्रशिक्षण (Training) अथवा अनुभव (Experience) का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अतः यह अपरिवर्तनीय (Irreversible) है तथा जन्मजात (In born) है। 
  4. ‘G’ कारक मनुष्य की सफलताओं को निर्धारित करता है अर्थात् जिसमें 'G' की मात्रा जितनी अधिक होगी, वह जीवन में उतना ही अधिक सफल रहेगा।
  5. 'G' को व्यक्ति की सामान्य मानसिक ऊर्जा (General Mental Energy) के रूप में माना जा सकता है।
'S' कारक की विशेषताएँ (Characteristics of Specific Factor)

  1.  'S' कारक अर्थात् विशिष्ट योग्यता (Specific Ability) अनेक होती हैं।
  2. एक व्यक्ति में कई विशिष्ट योग्यताएँ  (Specific Abilities) हो सकती हैं।
  3. अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग प्रकार की विशिष्ट मानसिक योग्यताएँ  (Specific Mental Abilities) पाई जाती हैं। 
  4. अलग-अलग तरह की विशिष्ट मानसिक क्रियाओं (Specific Mental Activities) के सम्पादन  में अलग-अलग तरह की विशिष्ट बुद्धि की आवश्यकता होती है।
  5.  यह बुद्धि न स्थिर (Stable) होती है और न ही जन्मजात (In born) होती है।
  6.  'S' कारक पर प्रशिक्षण (Training) तथा अनुभव (Experience) का किसी विशेष सीमा तक प्रभाव पड़ता है अर्थात् यह परिवर्तनीय (Convertible) है। 
  7. किसी क्षेत्र विशेष के लिए व्यक्ति में उससे सम्बन्धित जितनी अधिक विशिष्ट बुद्धि (S) होगी वह उस क्षेत्र में उतना हीअधिक सफल होगा।
स्पीयरमैन  के अनुसार 'G' कारक या सामान्य योग्यता में दो बातें हैं - 
(i) सम्बन्ध शिक्षण (Education of Relation)
(ii) सहसम्बन्ध शिक्षण (Education of Correlates)

सम्बन्ध शिक्षण (Education of Relation) का अर्थ है - दो वस्तुओं (Objects) या वस्तु के भागों में सम्बन्ध का बोध (Sense) । (Understanding the relationship between two objects or parts of an object.)

सहसम्बन्ध शिक्षण (Education of Correlates) का अर्थ है - एक व्यक्ति के मन (Mind) में एक वस्तु (Object) होने पर उस वस्तु (Object) का दूसरी वस्तु से सम्बन्ध (Relation) ज्ञात होने पर दूसरी सम्बंधित वस्तु के बारे में सोचना ।

विद्वानों ने स्पीयरमैन की यह बात तो स्वीकार की कि मनुष्य के कार्यों में उसकी सामान्य बुद्धि (G) और विशिष्ट बुद्धि (S) कार्य करती हैं परन्तु इस सिद्धान्त से यह स्पष्ट नहीं होता कि किसी कार्य के सम्पादन में उसकी किस बुद्धि अथवा कारक का कितना योगदान होता है? इसलिए उन्होंने इस सिद्धान्त को भी स्वीकार नहीं किया।

Tuesday, June 15, 2021

बुद्धि की विशेषतायें एवं प्रकार (Characteristics and types of Intelligence)

 बुद्धि की प्रकृति एवं विशेषतायें (Nature and Characteristics of Intelligence)

  1. बुद्धि जन्मजात शक्ति है। (Intelligence is an innate power.)
  2. बुद्धि के उचित विकास के लिए पर्यावरण का महत्व है। (Environment is important for the proper development of intelligence.)
  3. योग की क्रियाओं द्वारा जन्मजात बुद्धि में वृद्धि सम्भव है। (Innate intelligence can be enhanced through yoga practices.)
  4. बुद्धि सीखने की योग्यता है। (Intelligence is the ability to learn.)
  5. बुद्धि पर्यावरण के साथ समायोजन करने की योग्यता है। (Intelligence is the ability to adapt to the environment.)
  6. बुद्धि अमूर्त्त चिंतन की योग्यता है। (Intelligence is the ability to think abstractly.)
  7. बुद्धि पूर्व अनुभवों एवं अर्जित ज्ञान से लाभ उठाने की योग्यता है। (Intelligence is the ability to benefit from past experiences and acquired knowledge.)
  8. बुद्धि समस्या समाधान की योग्यता है। (Intelligence is the ability to solve problems.)
  9. बुद्धि अनेक योग्यताओं का समुच्चय है। (Intelligence is a combination of many abilities.)
  10. बुद्धि संबंधों को समझने की शक्ति है। (Intelligence is the power to understand relationships.)
  11. बुद्धि चिंतन करने, तर्क करने और निर्णय करने की शक्ति है। (Intelligence is the power to think, reason, and make decisions.)
  12. बुद्धि का विकास जन्म से लेकर किशोरावस्था तक होता है। (Intelligence develops from birth to adolescence.)
  13. बुद्धि में आत्म निरीक्षण की शक्ति होती है । व्यक्ति द्वारा किये गए कर्मों और विचारों की आलोचना बुद्धि स्वयं करती है। (Intelligence has the power of self-observation. Intelligence itself criticizes the actions and thoughts of a person.)


बुद्धि  के प्रकार (Types of Intelligence)

मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक (Thorndike) ने बुद्धि के तीन प्रकार बताए थे- गामक या यान्त्रिक बुद्धि  (Motor or Mechanical Intelligence), अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) और सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence)। गैरेट (Garette) ने थॉर्नडाइक की गामक अथवा यान्त्रिक बुद्धि को मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) की संज्ञा दी। वर्तमान में बुद्धि के ये ही तीन प्रकार माने जाते हैं-


(1) मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence)—

वह बुद्धि जो मनुष्यों को वस्तुओं के स्वरूप को समझने एवं तदनुकूल क्रिया करने में सहयोग करती है (It helps humans to understand the nature of things and act accordingly.), उसे गैरेट ने मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) की संज्ञा दी। मूर्त बुद्धि इसलिए कि वह मूर्त वस्तुओं को समझने एवं मूर्त क्रियाओं को करने में सहायता करती है। इस प्रकार की बुद्धि को थॉर्नडाइक (Thorndike) ने गत्यात्मक बुद्धि (Motor Intelligence) या यान्त्रिक बुद्धि (Mechanical Intelligence) कहा था। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है, वे वस्तुओं को तोड़ने-जोड़ने में विशेष रुचि लेते हैं। अन्य शारीरिक कार्य; जैसे-खेल-कूद एवं नृत्य आदि में भी उनकी रुचि होती है। ऐसे बच्चे आगे चलकर कुशल कर्मकार और इंजीनियर बनते हैं।

(2) अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence)- 

वह बुद्धि जो मनुष्यों को पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने में, विभिन्न तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने में, सोचने-समझने में और समस्याओं के समाधान खोजने में सहायता करती है (It helps humans to acquire bookish knowledge, to gain information about various facts, to think and understand and to find solutions to problems.) , उसे थॉर्नडाइक ने अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) की संज्ञा दी। अमूर्त बुद्धि इसलिए क्योंकि वह अमूर्त चिन्तन-मनन और समस्या समाधान (abstract thinking and problem solving) में सहायक होती है। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है, वे पुस्तक अध्ययन और चिन्तन-मनन में अधिक रुचि लेते हैं। ऐसे बच्चे आगे चलकर अच्छे वकील (Lawyer), डॉक्टर, अध्यापक, साहित्यकार (writer)  चित्रकार (painter) और दार्शनिक (Philosopher) बनते हैं।

(3) सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence)- 

वह बुद्धि जो मनुष्यों को अपने समाज में समायोजन करने एवं सामाजिक कार्यों में भाग लेने में सहायता करती है (Helps humans adjust to their society and participate in social activities), उसे थॉर्नडाइक ने सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) की संज्ञा दी है। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है वे परिवार के सदस्यों, समाज के लोगों और विद्यालय के सहपाठियों के साथ समायोजन करते हैं और सामाजिक कार्यों (Social works) में रुचि लेते हैं। ऐसे बच्चे आगे चलकर अच्छे व्यवसायी (Businessman), समाज सेवक  एवं राजनेता (Social worker and politician) बनते हैं।


बहुआयामी या बहुल बुद्धि (Multi-Dimensional or Multiple Intelligence)

बहुआयामी बुद्धि का शाब्दिक अर्थ होता है, एक ही व्यक्ति के अन्दर विभिन्न प्रकार के कौशलों (Skills) का विकास होना। अर्थात् उसमें सामाजिक समझ (Social Understanding), राजनैतिक समझ (Political Understanding), समस्या समाधान (Problem Solving) से सम्बन्धित समझ तथा नेतृत्व (Leadership) का गुण इत्यादि का होना। मनोवैज्ञानिकों ने बहुल बुद्धि के बारे में निम्न परिभाषाएँ दी हैं -
केली एवं थर्स्टन  ने बताया कि बुद्धि का निर्माण प्राथमिक मानसिक योग्यताओं के द्वारा होता है।

केली (Kelly) के अनुसार, - “बुद्धि का निर्माण इन योग्यताओं से होता है वाचिक योग्यता (Verbal Ability), गामक योग्यता (Motor Ability), सांख्यिक योग्यता (Statistical Ability), यान्त्रिक योग्यता (Mechanical Ability), सामाजिक योग्यता (Social Ability), संगीतात्मक योग्यता (Musical Ability), स्थानिक सम्बन्धों (spatial relations) के साथ उचित ढंग से व्यवहार करने की योग्यता, रुचि और शारीरिक योग्यता।”

थर्स्टन (Thurston) के अनुसार-  “बुद्धि इन प्राथमिक मानसिक योग्यताओं (primary mental abilities) का समूह होता है प्रत्यक्षीकरण सम्बन्धी योग्यता (Perception related ability), तार्किक योग्यता (Reasoning ability) , सांख्यिकी योग्यता (Statistical Ability) समस्या समाधान की योग्यता (Problem Solving Ability), स्मृति सम्बन्धी योग्यता (Memory related ability)।” 

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने केली एवं थर्स्टन के बुद्धि सिद्धान्तों की आलोचना की, किन्तु अधिकतर मनोवैज्ञानिकों ने यह भी माना कि बुद्धि का बहुआयामी होना निश्चित रूप से सम्भव है। बहुआयामी बुद्धि होने के कारण ही कुछ लोग अनेक प्रकार के कौशलों में निपुण होते हैं।


संवेगात्मक बुद्धि (Emotional Intelligence)

 सांवेगिक बुद्धि जैसे पद का प्रतिपादन  सेलोवी तथा मेयर (Salovey & Mayer, 1970) ने किया, किन्तु इसकी वैज्ञानिक एवं सैद्धान्तिक व्याख्या (scientific & theoretical explanation)  गोलमैन (Goleman, 1998) द्वारा दी गई है।

गोलमैन ने इस सम्प्रत्यय (Concept) की व्याख्या अपनी बहुचर्चित पुस्तक 'Emotional Intelligence: Why It Can Matter More than IQ) में की है जिसमें उन्होंने स्पष्टत: यह दावा किया कि व्यक्ति को जिन्दगी में जो सफलताएँ मिलती हैं, उनका 20% ही बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient) के कारण होता है और शेष 80% सफलता का कारण (Reason for success) सांवेगिक बुद्धि (Emotional Intelligence or EQ) होता है।

गोलमैन (Goleman, 1994) ने सांवेगिक बुद्धि को परिभाषित करते हुए यह कहा है कि यह दूसरों एवं स्वयं के भावों (Emotions) को पहचानने की क्षमता तथा अपने आपको अभिप्रेरित (Motivate) करने एवं  अपने सम्बन्धों में संवेग को प्रबन्धित करने की क्षमता है। 
गोलमैन ने अपने सिद्धान्त में यह भी स्पष्ट किया है कि ये सांवेगिक क्षमताएँ व्यक्ति को अपनी जिन्दगी के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सफलता प्रदान करने में काफी सहायता करती हैं, इसलिए गोलमैन ने अपने सांवेगिक बुद्धि के इस मॉडल को 'निष्पादन का सिद्धान्त'(principle of performance) कहकर पुकारना पसन्द किया है।






Monday, June 14, 2021

बुद्धि का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Intelligence)

 बुद्धि का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Intelligence)



बुद्धि शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसिस गाल्टन  ने 1885 में किया था।

बुद्धि को सामान्यतः सोचने-समझने और सीखने एवं निर्णय करने की शक्ति के रूप में देखा-समझा जाता है, परन्तु वास्तव में बुद्धि इससे कुछ अधिक होती है। बुद्धि के विषय में सर्वप्रथम भारतीय दार्शनिकों ने चिन्तन किया था। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों के अनुसार मनुष्य के अन्तःकरण (Conscience) के तीन अंग हैं- मन (Mind), बुद्धि (Intelligence) और अहंकार (Ego)। 

इनमें मन बाह्य इन्द्रियों (External Senses)  और बुद्धि के बीच संयोजक (Coordinator) का कार्य करता है। मन के संयोग से ही बाह्य इन्द्रियाँ (External Senses) क्रियाशील  होती हैं और मन के संयोग (Combination) से ही बुद्धि क्रियाशील होती है। इनके अनुसार इन्द्रियों (Senses) से प्राप्त ज्ञान (Knowledge) मन (Mind) के द्वारा बुद्धि (intelligence)  पर पहुँचता है। बुद्धि इनमें काट-छाँट (trimming) करती है और उसे अहम् (Ego) से जोड़ती है और अन्त में उसे सूक्ष्म शरीर पर पहुँचा देती है जहाँ वह संचित हो जाता है। और जब कभी प्राणी विशेष को इस ज्ञान की आवश्यकता होती है तो उसकी बुद्धि उसे सूक्ष्म शरीर से मन तक पहुँचा देती है और मन प्राणी को तदनुकूल क्रियाशील कर देता है। 

आधुनिक युग में बुद्धि के स्वरूप एवं कार्यों को समझने का प्रयास पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने शुरू किया। परन्तु  मनोविज्ञान की उत्पत्ति से लेकर आज तक बुद्धि का स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया है। समय-समय पर जो परिभाषाएँ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की जाती रहीं, वह इसके एक पक्ष या विशेषता या क्षमता से सम्बन्धित थीं। अत: आज तक उपलब्ध सामग्री के आधार पर बुद्धि का स्वरूप तथा इसकी प्रकृति क्या है?  इस पर अलग -अलग विद्वानों के अलग - अलग मत है।

परिभाषायें (Definitions)

पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक फ्रीमैन (Freeman) ने बुद्धि सम्बन्धी इन विभिन्न मतों को  चार वर्गों में विभाजित किया है-


1. सीखने की योग्यता (Ability of learning)-

भारतीय मनीषियों एवं ऋषियों ने 'ज्ञान' को जीवन का प्रमुख साधन एवं साध्य माना है। अतः जो व्यक्ति अधिक से अधिक ज्ञान ग्रहण कर लेता है; उसे समाज उच्च स्थान देता है। मनोवैज्ञानिकों ने अधिक से अधिक ज्ञान को ग्रहण करने वाली योग्यता को ही बुद्धि' माना है। (Indian sages and saints have considered knowledge the primary means and goal of life. Therefore, society places a high standard on those who acquire as much knowledge as possible. Psychologists have considered the ability to acquire as much knowledge as possible to be considered intelligence.)

डियरबोर्न (Dearborn)  के अनुसार- "बुद्धि सीखने या अनुभव से लाभ "उठाने की क्षमता है।" (Intelligence is the capacity to learn or to profit by experience.)

फ्रांसिस गाल्टन (Fransisi Galton) के अनुसार- बुद्धि पहचानने तथा सीखने की शक्ति है। (Intelligence is power of recognition and learning.)

किंघम (Bukingham) के अनुसार-- “बुद्धि सीखने की योग्यता है । (Intelligence is the ability to learn.)

बुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार “बुद्धि ज्ञान प्राप्त करने की योग्यता है । "(Intelligence is the ability to acquire knowledge.)


2. समस्या समाधान की योग्यता (Ability to solve the problem)-

प्रत्येक व्यक्ति को विकास के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना होता है। जो व्यक्ति इन समस्याओं पर जितनी शीघ्र विजय प्राप्त कर लेता है या उनसे छुटकारा प्राप्त कर लेता है, वही सबसे अधिक बुद्धिमान माना जाता है। अतः समस्या समाधान में प्रयोग की गयी योग्यता ही 'बुद्धि' है ।

रायबर्न (Rayburn) के अनुसार- "बुद्धि वह शक्ति है, जो हमको समस्याओं का समाधान करने और अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता देती है।"(Intelligence is the power which unable us to solve problems and to achieve our purposes.)

गैरेट (Garret) के अनुसार-  बुद्धि ऐसी समस्याओं को हल करने की योग्यता है जिनमें ज्ञान और प्रतीकों के समझने और प्रयोग करने की आवश्यकता होती है। जैसे- शब्द, अर्थ, रेखाचित्र, समीकरण एवं सूत्र। (Intelligence is the ability to solve problems that require the understanding and application of knowledge and symbols.  For example, words, meanings, diagrams, equations and formulas.)


3. अमूर्त चिन्तन की योग्यता (Ability of think abstractly)-

प्रत्येक व्यक्ति दो प्रकार से चिन्तन प्रक्रिया (Thinking process) को अपनाता है। प्रथम मूर्त रूप से चिन्तन करके ज्ञान प्राप्त करना और द्वितीय-अमूर्त रूप से चिन्तन करके (Firstly, acquiring knowledge by thinking concretely and secondly, by thinking abstractly.)। अमूर्त रूप से तात्पर्य, जो चीजें हमारे समक्ष नहीं हैं उनका कल्पना तथा स्मृति के आधार पर ज्ञान प्राप्त करना। (Abstractly means gaining knowledge of things that are not in front of us on the basis of imagination and memory.) अत: अमूर्त चिन्तन में जो व्यक्ति अधिक सफल होता है, उसे बुद्धिमान (Intelligent) कहा जाता है।

टरमन (Terman) के अनुसार- "बुद्धि अमूर्त विचारों के बारे में सोचने की योग्यता है”। (Intelligence is the ability to think in terms of abstract ideas.)

अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet)के अनुसार- “बुद्धि उचित प्रकार से सोचने, सही निर्णय लेने और आत्मसमालोचना करने की क्षमता है। "("Intelligence is the capacity to think well, to judge well and to be self critical.")


4. पर्यावरण से सामंजस्य की योग्यता (Ability of adjustment with Environment)-

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में विकास करता है। विकास के समय सफलताएँ और असफलताएँ दोनों ही आती हैं। जो व्यक्ति दोनों में समाजीकरण एवं सामंजस्य करते हुए विकास करता है, या जो जितनी शीघ्र  पर्यावरण के साथ समायोजन कर लेता है। उसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता है । 

(Every person grows throughout their lives. Growth brings both successes and failures. The person who develops through socialization and adjustment, or who adapts quickly to their environment, is considered intelligent.)

क्रूज (Cruz) के अनुसार-   बुद्धि नवीन और विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में उचित प्रकार से समायोजन करने की योग्यता है ।(Intelligence is the ability to adjust adequately to new and different situations.)

स्टर्न (Stern) के अनुसार – “बुद्धि किसी व्यक्ति की नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता है”। (Intelligence is the ability to adjust oneself to a new situation.)

पिन्टनर (Pintner) के अनुसार‘जीवन की अपेक्षाकृत नवीन परिस्थितियों से समायोजन करने की योग्यता ही व्यक्ति की बुद्धि है।(Intelligence is the ability of the individual to adopt himself adequately relatively new situations in life.)

थॉर्नडाइक (Thorndike) के अनुसार-  उत्तम अनुक्रिया करने एवं नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता ही बुद्धि है। (Intelligence is the ability to make  good response and is demonstrated by the capacity to deal effectively with new situations.)

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को अनेक योग्यताओं का समुच्चय माना है (Intelligence is considered a combination of many abilities.)-

वैशलर (Wechsler) के अनुसार– “बुद्धि व्यक्ति की उद्देश्यपूर्ण ढंग से कार्य करने, विवेकपूर्ण ढंग से चिन्तन करने और अपने पर्यावरण के साथ प्रभावशाली ढंग से सामंजस्य करने की सम्पूर्ण अथवा व्यापक योग्यता है” (Intelligence is the aggregate or global capacity of the individual to act purposefully, to think rationally and to deal effectively with his environment.)

स्टोडार्ड (Stoddard)  के अनुसार-  बुद्धि उन कार्यों को करने की योग्यता है जिनमें कठिनाई, जटिलता, सूक्ष्मता, मितव्यता, उद्देश्य प्राप्ति की क्षमता, सामाजिक मूल्य एवं मौलिकता की अपेक्षा है तथा विशिष्ट परिस्थितियों में ऐसे कार्य करने की क्षमता जिनमें ऊर्जा के केन्द्रीकरण एवं संवेगात्मक शक्तियों पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता होती है । (Intelligence is the ability to undertake activities that are characterized by difficulty, complexity, abstractness, economy, adaptiveness to a goal, social value and the emergence of originals, and to maintain such activities under conditions that demand a concentration of energy and resistance to emotional forces.)

कोलेस्निक (Kolesnik) के अनुसार-  बुद्धि कोई एक प्रकार की शक्ति, क्षमता  एवं योग्यता नहीं है जो सब परिस्थितियों में समान रूप से कार्य करती है अपितु यह विभिन्न योग्यताओं का योग है। (Intelligence is not a single power or capacity or ability which operates equally well in all situations. It is rather a composite of several different abilities.)








Sunday, June 13, 2021

विस्मृति के कारण (Causes of Forgetting)

 विस्मृति के कारण (Causes of Forgetting) 

विस्मृति के कारणों को निम्नांकित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(I) सैद्धान्तिक कारण (Theoretical Causes) 

(II) सामान्य कारण (General Causes)


(I) विस्मृति के सैद्धान्तिक कारण(Theoretical Causes of Forgetting)

1. अनुपयोग या अनाभ्यास का सिद्धान्त (Theory of Disuse ) - 

इस सिद्धान्त के समर्थक एबिंगहॉस महोदय हैं। इनके अनुसार जब कोई व्यक्ति कुछ सीखता है तो उसके मस्तिष्क में कुछ स्मृति चिन्ह (Memory Traces) बन जाते हैं  तथा इन स्मृति चिन्हों की सहायता से ही व्यक्ति सीखी हुई सामग्री अथवा क्रियाओं को स्मरण करता है पर यदि सीखी हुई विषय सामग्री (Subject-matter) को बहुत दिनों तक प्रयोग में नहीं लाया जाता या उसका अभ्यास नहीं किया जाता तो वह भूलने लगती है। स्पष्ट है कि विस्मरण के लिए अनाभ्यास के उत्पन्न काल-व्यवधान (Lapse of Time) ही उत्तरदायी है। एबिंगहॉस ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध किया  है कि जैसे-जैसे समय बीतता जाता है विस्मरण की मात्रा बढ़ती जाती है। इस सिद्धांत को विस्मरण का हास सिद्धांत (Decay Theory of Forgetting) भी कहा जाता है ।   

2. दमन का सिद्धान्त (Repression Theory) - 

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोविश्लेषणवादी फ्रायड तथा उनके अनुयायियों ने किया है। इनके अनुसार व्यक्ति को अपने जीवन काल में जो दुःखद और अप्रिय अनुभव (Sad & Unpleasant Experience)  होते हैं, उन्हें वह स्वेच्छापूर्वक पुनः स्मरण नहीं करना चाहता है। इस प्रकार के पीड़ादायक अनुभव चेतन मन (Conscious Mind) से  अचेतन मन (Unconscious Mind) चली जाती हैं यह अप्रिय अनुभव  दमित (Repressed) होकर विस्मृत हो जाते हैं। इस सिद्धांत को विस्मृति का मनोविश्लेषण सिद्धांत  (Psychoanalytic theory of Forgetting) एवं विस्मृति का अभिप्रेरणा सिद्धांत (Motivation Theory of Forgetting) के नाम से भी जाना जाता है 

3. हस्तक्षेप या बाधा का सिद्धान्त (Theory of Interference ) - 

इस सिद्धान्त पर गुलर, वुडवर्थ एवं पिल्जेकर आदि मनोवैज्ञानिकों ने प्रकाश डाला है। इनके अनुसार किसी भी विषय सामग्री के सीखने में उसके ठीक पहले अथवा बाद में की जाने वाली मानसिक क्रियाएं बाधाएं डालती है।ये बाधाएं दो प्रकार की होती है -
(A)  प्रतिगामी या पूर्व प्रभावी  अवरोध (Retrospective Inhibition)- जब  नयी सीखी गयी सामग्री  पहले सीखी गयी सामग्री (Material) को प्रभावित करती है तो इस क्रिया को प्रतिगामी या पूर्व प्रभावी अवरोध (Retrospective Inhibition) कहते हैं। इसका अर्थ है पीछे की ओर रुकावट। 
(B) अनुप्रभावी अवरोध (Proactive  Inhibition) - जब  पूर्व में याद की गयी विषय सामग्री नयी सामग्री को याद करने में बाधा उत्पन्न करती है तो इसे अनुप्रभावी अवरोध कहते हैं । 

4. विस्मरण का संज्ञानात्मक सिद्धान्त (Cognitive Theory of Forgetting)
 
इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करने का श्रेय कोहलर कोफ्का, लेविन तथा आसुबेल एवं अन्य संज्ञानात्मक सिद्धान्तवादियों को जाता है। इनके अनुसार विस्मरण (Forgetting) स्मृति चिन्हों (Memory Traces) के मिटने अथवा उनमें ह्रास होने के कारण नहीं होता है बल्कि जब कोई व्यक्ति नई सामग्री को याद कर लेता है तो समय बीतने के साथ इस सामग्री द्वारा बने स्मृति चिन्हों में विकृति (distortion) आ जाती है। यह विकृति हमारी संज्ञानात्मक संरचना (Cognitive Structure) में पहले से सीखी गयी सामग्री को इस तरह से पुनर्व्यवस्थित कर देती है कि दोनों सामग्रियों में समानता दिखाई देने लगती है। विकृति जनित यह समानता व्यक्ति को इस सीमा तक भ्रमित (confused) कर देती है कि वह पूर्व में सीखी गयी सामग्री तथा नई सीखी गयी सामग्री में अन्तर करने में असमर्थ हो जाता है जिस कारण वह नई सीखी गयी सामग्री का पुनः स्मरण (Recall) नहीं कर पाता है। विस्मरण स्मृति चिन्हों की विकृति की मात्रा पर निर्भर करता है जितनी अधिक विकृति होगी उतनी ही अधिक मात्रा में विस्मरण होगा। 

5. संग्रहण में असफलता का सिद्धान्त (Theory of Storage Failure) 

इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति किसी चीज को इसलिए भूल जाता है कि या तो वह उसे अपनी स्मृति में ठीक से संग्रहीत (Store) नहीं कर पाता है या फिर संग्रह करते समय उसने उसे अपनी स्मृति में ठीक से व्यवस्थित (organized) करके धारण नहीं किया है। यदि किसी सामग्री का स्मृति में संग्रह किया ही नहीं तो फिर उसका प्रत्यास्मरण (Recall) कैसे हो पायेगा और यदि वह चीज स्मृति में है भी तो उसको स्मृति के भण्डार में इस तरह से व्यवस्थित नहीं किया गया कि जरूरत पड़ने पर हम ढूंढ़ने में उलझन में न पड़े और उसका प्रत्यास्मरण कर सके। यह स्थिति स्मृति के तीनों स्तर अर्थात संवेदी स्मृति, अल्पकालिक स्मृति तथा दीर्घकालिक स्मृति पर एक समान लागू होती है। 

6. अनुबद्धता का सिद्धान्त (Theory of Consolidation)- 

इस सिद्धांत के प्रतिपादन में मुलर तथा पिलजेकर (Muller & Pilzeckar) का विशेष योगदान है।   यह सिद्धान्त स्मृति के परिपक्व (Mature)  और सुसंगठित (Organised) हो जाने की अवस्था में कमी रह जाने या उसमें छेड़छाड़ करने से सम्बन्धित है। ऐसी स्थिति में प्रत्यास्मरण (Recall) करने में सफलता नहीं मिल पाती। एक स्मृति चिन्ह (Memory Trace) में दूसरी स्मृति चिन्ह द्वारा बाधा पहुॅचाना अथवा एक धारणा (Retention) का दूसरी धारणा पर हावी हो जाना विस्मरण का कारण बन जाता है। जिस प्रकार से सीमेन्ट के दृढ़ अथवा परिपक्व होने की एक अवधि सीमा होती है, यदि इसी समय सीमा के अन्दर उससे छेड़छाड़ किया जाए तो वह ठीक से अनुबद्धित (Consolidated) नहीं हो पाता। अतः इसके लिए कुछ समय देना होता है। इसी प्रकार एक विषय की धारणा की एक धारण-अवधि  होती है जिसमें स्मृति दृढ़ होती है। इस अवधि में दूसरी धारणाओं के निर्माण प्रयासों से बाधा या विघटन का प्रभाव पड़ने लगता है जिससे धारण का प्रत्यास्मरण (recall) नहीं हो पाता। यही विस्मरण है। विस्मरण का यह सिद्धान्त अपूर्ण तथा असन्तोषजनक माना जाता है क्योंकि यह विस्मरण का आंशिक तथ्य ही प्रस्तुत करता है । 

  

(II)  विस्मृति के सामान्य  कारण(General  Causes of Forgetting)


1.विषय सामग्री का स्वरूप (Nature of the Learning Material)- 

यदि सीखने या याद करने  वाली सामग्री (Content) अधिक सार्थक (Meaningful), आनन्दवर्धक एवं सरल होती है तो विस्मरण की क्रिया कम होती है। इसके विपरीत यदि विषय-सामग्री निरर्थक (Meaningless) और जटिल होती है तो विस्मरण उतनी अधिक मात्रा में होता है।

2. विषय-वस्तु का परिमाण (Amount of Learning Material)- 

यदि कोई विषय अधिक लम्बा होता है तो उसे सीखने के लिए अधिक समय और अभ्यास की आवश्यकता होती है। अधिक अभ्यास के कारण यह अधिक दिनों तक याद रहता है। इसके विपरीत छोटे विषय शीघ्र याद हो जाते हैं, उनके लिए अधिक अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती। फलतः इस प्रकार के याद किये विषयों में स्मृति चिन्ह गहरे नहीं होते और उसे शीघ्र भूल जाते हैं। इस प्रकार भूलने का कारण विषय का कम लम्बा या छोटा होना भी है।

3. सीखने की मात्रा (Degree of Learning)- 

किसी विषय को यदि पर्याप्त या अधिक मात्रा में  अभ्यास किया जाता है तो वह अधिक समय तक याद रहता है। इसके विपरीत कम याद किया गया  या कम सीखा विषय शीघ्र भूल जाता है। 

4. सीखने की दोषपूर्ण विधि (Defective Method of Learning)- 
 
यदि सीखने या याद करने की विधि उपयुक्त नहीं है तो विषय सामग्री (Subject matter) शीघ्र भूल जाती है।

5. रुचि और ध्यान का अभाव (Lack of Interest and Attention)-  

जिस विषय को सीखने में व्यक्ति की रुचि और  ध्यान नहीं लगता  है तो  वह किसी बात के  सीखने पर भी शीघ्र भूल जाता है।

6. समय का अंतराल (Time  Factor ) - 

जब किसी सामग्री को सीखे हुए लम्बा समय व्यतीत हो जाता है और इस अंतराल में उस सामग्री का उपयोग कम होता है तो वह सामग्री भी स्वतः विस्मृत हो जाती है। 

7.  अपूर्ण सीखना (Incomplete Learning)-
  
यदि कोई विषय सामग्री अपूर्ण रूप से सीखी गई हो तो वह भी जल्दी विस्मृत हो जाती है।

8. दोहराने में कमी (Lack of Repetition)-  

यदि सीखी जाने वाली सामग्री को पर्याप्त बार दोहराया नहीं जाता है तो अधिगमकर्त्ता उसका ठीक से प्रत्यास्मरण नहीं कर पाता है। 

9. सन्देह (Doubt)-   

यदि व्यक्ति को किसी सीखी गयी सामग्री का प्रत्यास्मरण करते समय यह संदेह उत्पन्न हो जाता है कि जो उत्तर वह देने जा रहा है गलत तो नहीं है। ऐसा सोचने से आत्मविश्वास कम हो जाता है और विस्मरण की स्थिति आ जाती है।

10. संवेगात्मक उत्तेजना (Emotional Excitement)-  

प्रायः भय, क्रोध, चिन्ता, घबराहट आदि के कारण विगात्मक असन्तुलन उत्पन्न होने से शारीरिक और मानसिक दशा में परिवर्तन हो जाता है। ऐसी दशा में याद की हुई या पिछली बातों का स्मरण करना कठिन हो जाता है। प्रायः परीक्षार्थी परीक्षा भवन में भय या घबराहट में अच्छी तरह याद किया हुआ पाठ भी भूल जाते हैं।

11. थकान (Fatigue) - 

जब प्राणी थक जाते हैं तो कई प्रकार के विष-जीव पदार्थ (Toxins) बनते हैं जो मस्तिष्क पर कुप्रभाव डालते हैं जो विस्मरण का कारण बनते हैं

12 . मानसिक आघात (Brain Injury)-  

कभी-कभी मानसिक आघात के कारण स्मृति आंशिक अथवा पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है जिससे पूर्व अर्जित सभी अनुभव विस्मृत हो जाते हैं। 

13 . मानसिक द्वन्द्व (Mental Conflict)  

जब व्यक्ति मानसिक द्वन्द्व के कारण परेशान रहता है तो उसकी विस्मृति में वृद्धि हो जाती है। 

14. क्रमहीनता (Lack of Sequence) -  

जब हम किसी नई सामग्री को याद करते हैं तो वह एक व्यवस्थित क्रम में मस्तिष्क में संगठित करके धारण की जाती है। यदि उसी क्रम में प्रत्यास्मरण के अवसर प्राप्त नहीं होते हैं तो विस्मरण में वृद्धि हो जाती है।

15. सीखने वाले की आयु एवं बुद्धि (Age and Intelligence of Learner)- 

विस्मृति की मात्रा सीखने  वाले की आयु एवं बुद्धि पर भी निर्भर करती है। प्रौढ़ एवं प्रखर बुद्धि के व्यक्ति में विस्मृति की क्रिया  मंद होती है 

16. भूलने की इच्छा (Desire to forget)- 

जब हम किसी बात को याद नहीं रखना चाहते तब भूल जाते हैं। प्रायः व्यक्ति अपने जीवन में घटित दुःखद घटना को याद नहीं रखना चाहता इसलिए भूल जाता है। इस प्रकार विस्मृति इच्छा- प्रेरित होती है। बालक जब अनिच्छापूर्वक सीखते हैं तो शीघ्र भूल जाते हैं।


17.  मादक वस्तुओं का सेवन (Use of Intoxicants) - 

नशीली वस्तुओं का प्रयोग करने वाले लोगों की स्मरण शक्ति मन्द पड़ जाती है। सीखने के बाद यदि किसी ऐसी वस्तु का प्रयोग किया जाता है तो विषय-वस्तु अधिक समय तक याद नहीं रहती है।

Tuesday, June 8, 2021

विस्मृति का अर्थ, परिभाषा तथा प्रकार (Meaning, Definition and Types of Forgetting)

 

विस्मरण या विस्मृति (Forgetting)

अर्थ (Meaning)-

किसी सीखी हुई वस्तु को स्मरण न कर सकना विस्मृति या विस्मरण कहलाती है। हमारे जीवन में अनेक ऐसी बातें जिन्हें हम भूल जाते हैं। मनुष्य के सफल जीवन के लिए स्मृति जितनी आवश्यक है विस्मृति भी उतनी ही आवश्यक है।

जैसे – अप्रिय बातों को या दुख की बातों को भूल जाना ही हमारे लिए अच्छा होता है। इससे मानसिक तनाव दूर हो जाता है। इस प्रकार हमारे जीवन में विस्मृति का भी उतना ही महत्व है जितना कि स्मृति का है।   

इसी प्रकार यदि हम अनावश्यक (Unnecessary) तथा  अनुपयोगी (Useless) चीजों अथवा बातों का विस्मरण न करें तो नई आवश्यक, उपयोगी तथा सार्थक (Meaningful) विषय सामग्री (Subject-matter)  को अपनी स्मृति में धारण करने में विफल रहेंगे । इसे मनोवैज्ञानिकों ने ऋणात्मक स्मृति (Negative memory) भी कहा है ।

परिभाषाएं (Definitions)-

मन (Munn) के अनुसार -    सीखे हुए तथ्यों को धारण करने या धारण करने के पश्चात् उन्हें पुनःस्मरण करने की असफलता को विस्मृति कहते हैं। (Forgetting is failing to retain or to be unable to recall what has been acquired.)

ड्रेवर (Draver) के अनुसार -  किसी समय प्रयास करने पर भी किसी पूर्व अनुभव का स्मरण करने या पहले सीखी हुई क्रिया को करने में असफल होना ही विस्मरण है।(Forgetting means failure at any time to recall an experience, when attempting to do so or to perform an action previously learned.)

सिगमण्ड फ्रायड (Sigman Freud) के अनुसार - “विस्मृति वह प्रवृत्ति है जो व्यक्ति के जीवन की दुःखद् तथा पीड़ादायक अनुभूतियों को चेतन से अलग करती है।” (Forgetting is a tendency toward off from the consciousness those experiences of life which are unpleasant and painful.) 

उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से-

विस्मरण वह मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति पूर्व में सीखे अनुभवों अथवा विषय-सामग्री (Content) का प्रत्यास्मरण (Recall) अथवा प्रतिभिज्ञान करने में असफल रहता है। विस्मृति व्यक्ति को कष्ट पहुँचाने वाले अनुभवों को चेतन में आने से रोकने का प्रयास करती है ।

विस्मृति के प्रकार (Types of Forgetting)

विस्मृति को मनोवैज्ञानिकों ने उसकी प्रकृति के आधार पर दो प्रकार की मानसिक प्रक्रिया में विभक्त किया है -

(1) सक्रिय विस्मृति (Active Forgetting)
(2) निष्क्रिय विस्मृति (Passive Forgetting)

(1) सक्रिय विस्मृति (Active Forgetting)-
जब व्यक्ति किसी बात को  जान-बूझकर भूलना चाहता है तो वह सक्रिय विस्मृति कहलाती है। इसमें व्यक्ति को भूलने के लिये प्रयास करना पड़ता है। दुःखद अनुभूतियों को सभी व्यक्ति भूलना चाहते हैं।
(2) निष्क्रिय विस्मृति (Passive Forgetting) - 
जब व्यक्ति  किसी बात को अपने-आप ही भूल जाता है तो वह निष्क्रिय विस्मृति कहलाती है। इसमें भूलने के लिये कोई प्रयास नहीं करना पड़ता ।


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