विस्मृति के कारण (Causes of Forgetting)
विस्मृति के कारणों को निम्नांकित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
(I) सैद्धान्तिक कारण (Theoretical Causes)
(II) सामान्य कारण (General Causes)
(I) विस्मृति के सैद्धान्तिक कारण(Theoretical Causes of Forgetting)
1. अनुपयोग या अनाभ्यास का सिद्धान्त (Theory of Disuse ) -
इस सिद्धान्त के समर्थक एबिंगहॉस महोदय हैं। इनके अनुसार जब कोई व्यक्ति कुछ सीखता है तो उसके मस्तिष्क में कुछ स्मृति चिन्ह (Memory Traces) बन जाते हैं तथा इन स्मृति चिन्हों की सहायता से ही व्यक्ति सीखी हुई सामग्री अथवा क्रियाओं को स्मरण करता है पर यदि सीखी हुई विषय सामग्री (Subject-matter) को बहुत दिनों तक प्रयोग में नहीं लाया जाता या उसका अभ्यास नहीं किया जाता तो वह भूलने लगती है। स्पष्ट है कि विस्मरण के लिए अनाभ्यास के उत्पन्न काल-व्यवधान (Lapse of Time) ही उत्तरदायी है। एबिंगहॉस ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि जैसे-जैसे समय बीतता जाता है विस्मरण की मात्रा बढ़ती जाती है। इस सिद्धांत को विस्मरण का हास सिद्धांत (Decay Theory of Forgetting) भी कहा जाता है ।
2. दमन का सिद्धान्त (Repression Theory) -
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोविश्लेषणवादी फ्रायड तथा उनके अनुयायियों ने किया है। इनके अनुसार व्यक्ति को अपने जीवन काल में जो दुःखद और अप्रिय अनुभव (Sad & Unpleasant Experience) होते हैं, उन्हें वह स्वेच्छापूर्वक पुनः स्मरण नहीं करना चाहता है। इस प्रकार के पीड़ादायक अनुभव चेतन मन (Conscious Mind) से अचेतन मन (Unconscious Mind) चली जाती हैं यह अप्रिय अनुभव दमित (Repressed) होकर विस्मृत हो जाते हैं। इस सिद्धांत को विस्मृति का मनोविश्लेषण सिद्धांत (Psychoanalytic theory of Forgetting) एवं विस्मृति का अभिप्रेरणा सिद्धांत (Motivation Theory of Forgetting) के नाम से भी जाना जाता है
3. हस्तक्षेप या बाधा का सिद्धान्त (Theory of Interference ) -
इस सिद्धान्त पर गुलर, वुडवर्थ एवं पिल्जेकर आदि मनोवैज्ञानिकों ने प्रकाश डाला है। इनके अनुसार किसी भी विषय सामग्री के सीखने में उसके ठीक पहले अथवा बाद में की जाने वाली मानसिक क्रियाएं बाधाएं डालती है।ये बाधाएं दो प्रकार की होती है -
(A) प्रतिगामी या पूर्व प्रभावी अवरोध (Retrospective Inhibition)- जब नयी सीखी गयी सामग्री पहले सीखी गयी सामग्री (Material) को प्रभावित करती है तो इस क्रिया को प्रतिगामी या पूर्व प्रभावी अवरोध (Retrospective Inhibition) कहते हैं। इसका अर्थ है पीछे की ओर रुकावट।
(B) अनुप्रभावी अवरोध (Proactive Inhibition) - जब पूर्व में याद की गयी विषय सामग्री नयी सामग्री को याद करने में बाधा उत्पन्न करती है तो इसे अनुप्रभावी अवरोध कहते हैं ।
4. विस्मरण का संज्ञानात्मक सिद्धान्त (Cognitive Theory of Forgetting)
इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करने का श्रेय कोहलर कोफ्का, लेविन तथा आसुबेल एवं अन्य संज्ञानात्मक सिद्धान्तवादियों को जाता है। इनके अनुसार विस्मरण (Forgetting) स्मृति चिन्हों (Memory Traces) के मिटने अथवा उनमें ह्रास होने के कारण नहीं होता है बल्कि जब कोई व्यक्ति नई सामग्री को याद कर लेता है तो समय बीतने के साथ इस सामग्री द्वारा बने स्मृति चिन्हों में विकृति (distortion) आ जाती है। यह विकृति हमारी संज्ञानात्मक संरचना (Cognitive Structure) में पहले से सीखी गयी सामग्री को इस तरह से पुनर्व्यवस्थित कर देती है कि दोनों सामग्रियों में समानता दिखाई देने लगती है। विकृति जनित यह समानता व्यक्ति को इस सीमा तक भ्रमित (confused) कर देती है कि वह पूर्व में सीखी गयी सामग्री तथा नई सीखी गयी सामग्री में अन्तर करने में असमर्थ हो जाता है जिस कारण वह नई सीखी गयी सामग्री का पुनः स्मरण (Recall) नहीं कर पाता है। विस्मरण स्मृति चिन्हों की विकृति की मात्रा पर निर्भर करता है जितनी अधिक विकृति होगी उतनी ही अधिक मात्रा में विस्मरण होगा।
5. संग्रहण में असफलता का सिद्धान्त (Theory of Storage Failure)
इस सिद्धान्त के अनुसार व्यक्ति किसी चीज को इसलिए भूल जाता है कि या तो वह उसे अपनी स्मृति में ठीक से संग्रहीत (Store) नहीं कर पाता है या फिर संग्रह करते समय उसने उसे अपनी स्मृति में ठीक से व्यवस्थित (organized) करके धारण नहीं किया है। यदि किसी सामग्री का स्मृति में संग्रह किया ही नहीं तो फिर उसका प्रत्यास्मरण (Recall) कैसे हो पायेगा और यदि वह चीज स्मृति में है भी तो उसको स्मृति के भण्डार में इस तरह से व्यवस्थित नहीं किया गया कि जरूरत पड़ने पर हम ढूंढ़ने में उलझन में न पड़े और उसका प्रत्यास्मरण कर सके। यह स्थिति स्मृति के तीनों स्तर अर्थात संवेदी स्मृति, अल्पकालिक स्मृति तथा दीर्घकालिक स्मृति पर एक समान लागू होती है।
6. अनुबद्धता का सिद्धान्त (Theory of Consolidation)-
इस सिद्धांत के प्रतिपादन में मुलर तथा पिलजेकर (Muller & Pilzeckar) का विशेष योगदान है। यह सिद्धान्त स्मृति के परिपक्व (Mature) और सुसंगठित (Organised) हो जाने की अवस्था में कमी रह जाने या उसमें छेड़छाड़ करने से सम्बन्धित है। ऐसी स्थिति में प्रत्यास्मरण (Recall) करने में सफलता नहीं मिल पाती। एक स्मृति चिन्ह (Memory Trace) में दूसरी स्मृति चिन्ह द्वारा बाधा पहुॅचाना अथवा एक धारणा (Retention) का दूसरी धारणा पर हावी हो जाना विस्मरण का कारण बन जाता है। जिस प्रकार से सीमेन्ट के दृढ़ अथवा परिपक्व होने की एक अवधि सीमा होती है, यदि इसी समय सीमा के अन्दर उससे छेड़छाड़ किया जाए तो वह ठीक से अनुबद्धित (Consolidated) नहीं हो पाता। अतः इसके लिए कुछ समय देना होता है। इसी प्रकार एक विषय की धारणा की एक धारण-अवधि होती है जिसमें स्मृति दृढ़ होती है। इस अवधि में दूसरी धारणाओं के निर्माण प्रयासों से बाधा या विघटन का प्रभाव पड़ने लगता है जिससे धारण का प्रत्यास्मरण (recall) नहीं हो पाता। यही विस्मरण है। विस्मरण का यह सिद्धान्त अपूर्ण तथा असन्तोषजनक माना जाता है क्योंकि यह विस्मरण का आंशिक तथ्य ही प्रस्तुत करता है ।
(II) विस्मृति के सामान्य कारण(General Causes of Forgetting)
1.विषय सामग्री का स्वरूप (Nature of the Learning Material)-
यदि सीखने या याद करने वाली सामग्री (Content) अधिक सार्थक (Meaningful), आनन्दवर्धक एवं सरल होती है तो विस्मरण की क्रिया कम होती है। इसके विपरीत यदि विषय-सामग्री निरर्थक (Meaningless) और जटिल होती है तो विस्मरण उतनी अधिक मात्रा में होता है।
2. विषय-वस्तु का परिमाण (Amount of Learning Material)-
यदि कोई विषय अधिक लम्बा होता है तो उसे सीखने के लिए अधिक समय और अभ्यास की आवश्यकता होती है। अधिक अभ्यास के कारण यह अधिक दिनों तक याद रहता है। इसके विपरीत छोटे विषय शीघ्र याद हो जाते हैं, उनके लिए अधिक अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती। फलतः इस प्रकार के याद किये विषयों में स्मृति चिन्ह गहरे नहीं होते और उसे शीघ्र भूल जाते हैं। इस प्रकार भूलने का कारण विषय का कम लम्बा या छोटा होना भी है।
3. सीखने की मात्रा (Degree of Learning)-
किसी विषय को यदि पर्याप्त या अधिक मात्रा में अभ्यास किया जाता है तो वह अधिक समय तक याद रहता है। इसके विपरीत कम याद किया गया या कम सीखा विषय शीघ्र भूल जाता है।
4. सीखने की दोषपूर्ण विधि (Defective Method of Learning)-
यदि सीखने या याद करने की विधि उपयुक्त नहीं है तो विषय सामग्री (Subject matter) शीघ्र भूल जाती है।
5. रुचि और ध्यान का अभाव (Lack of Interest and Attention)-
जिस विषय को सीखने में व्यक्ति की रुचि और ध्यान नहीं लगता है तो वह किसी बात के सीखने पर भी शीघ्र भूल जाता है।
6. समय का अंतराल (Time Factor ) -
जब किसी सामग्री को सीखे हुए लम्बा समय व्यतीत हो जाता है और इस अंतराल में उस सामग्री का उपयोग कम होता है तो वह सामग्री भी स्वतः विस्मृत हो जाती है।
7. अपूर्ण सीखना (Incomplete Learning)-
यदि कोई विषय सामग्री अपूर्ण रूप से सीखी गई हो तो वह भी जल्दी विस्मृत हो जाती है।
8. दोहराने में कमी (Lack of Repetition)-
यदि सीखी जाने वाली सामग्री को पर्याप्त बार दोहराया नहीं जाता है तो अधिगमकर्त्ता उसका ठीक से प्रत्यास्मरण नहीं कर पाता है।
9. सन्देह (Doubt)-
यदि व्यक्ति को किसी सीखी गयी सामग्री का प्रत्यास्मरण करते समय यह संदेह उत्पन्न हो जाता है कि जो उत्तर वह देने जा रहा है गलत तो नहीं है। ऐसा सोचने से आत्मविश्वास कम हो जाता है और विस्मरण की स्थिति आ जाती है।
10. संवेगात्मक उत्तेजना (Emotional Excitement)-
प्रायः भय, क्रोध, चिन्ता, घबराहट आदि के कारण विगात्मक असन्तुलन उत्पन्न होने से शारीरिक और मानसिक दशा में परिवर्तन हो जाता है। ऐसी दशा में याद की हुई या पिछली बातों का स्मरण करना कठिन हो जाता है। प्रायः परीक्षार्थी परीक्षा भवन में भय या घबराहट में अच्छी तरह याद किया हुआ पाठ भी भूल जाते हैं।
11. थकान (Fatigue) -
जब प्राणी थक जाते हैं तो कई प्रकार के विष-जीव पदार्थ (Toxins) बनते हैं जो मस्तिष्क पर कुप्रभाव डालते हैं जो विस्मरण का कारण बनते हैं
12 . मानसिक आघात (Brain Injury)-
कभी-कभी मानसिक आघात के कारण स्मृति आंशिक अथवा पूर्ण रूप से समाप्त हो जाती है जिससे पूर्व अर्जित सभी अनुभव विस्मृत हो जाते हैं।
13 . मानसिक द्वन्द्व (Mental Conflict)–
जब व्यक्ति मानसिक द्वन्द्व के कारण परेशान रहता है तो उसकी विस्मृति में वृद्धि हो जाती है।
14. क्रमहीनता (Lack of Sequence) -
जब हम किसी नई सामग्री को याद करते हैं तो वह एक व्यवस्थित क्रम में मस्तिष्क में संगठित करके धारण की जाती है। यदि उसी क्रम में प्रत्यास्मरण के अवसर प्राप्त नहीं होते हैं तो विस्मरण में वृद्धि हो जाती है।
15. सीखने वाले की आयु एवं बुद्धि (Age and Intelligence of Learner)-
विस्मृति की मात्रा सीखने वाले की आयु एवं बुद्धि पर भी निर्भर करती है। प्रौढ़ एवं प्रखर बुद्धि के व्यक्ति में विस्मृति की क्रिया मंद होती है
16. भूलने की इच्छा (Desire to forget)-
जब हम किसी बात को याद नहीं रखना चाहते तब भूल जाते हैं। प्रायः व्यक्ति अपने जीवन में घटित दुःखद घटना को याद नहीं रखना चाहता इसलिए भूल जाता है। इस प्रकार विस्मृति इच्छा- प्रेरित होती है। बालक जब अनिच्छापूर्वक सीखते हैं तो शीघ्र भूल जाते हैं।
17. मादक वस्तुओं का सेवन (Use of Intoxicants) -
नशीली वस्तुओं का प्रयोग करने वाले लोगों की स्मरण शक्ति मन्द पड़ जाती है। सीखने के बाद यदि किसी ऐसी वस्तु का प्रयोग किया जाता है तो विषय-वस्तु अधिक समय तक याद नहीं रहती है।
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