Monday, October 25, 2021

केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Central Board of Secondary Education, CBSE)

 केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड  (Central Board of Secondary Education, CBSE)

स्थापना - 1952
 कुल सम्बद्ध विद्यालय - 24000 (भारत) एवं 240 विद्यालय अन्य देशों में.


केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड केन्द्रीय सरकार के मानव संसाधन विकास मन्त्रालय/शिक्षा मंत्रालय की एक स्वायत्तशासी संस्था है। प्रारम्भ में हमारे देश में हाई स्कूल और इण्टर की परीक्षाएँ विश्वविद्यालयों द्वारा सम्पादित होती थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग, 1917-19 ने विश्वविद्यालयों का कार्यभार कम करने और माध्यमिक शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने के लिए प्रत्येक प्रान्त में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Board of Secondary Education) की स्थापना करने और उन्हें माध्यमिक स्कूलों को मान्यता देने, उनका निरीक्षण करने, उन पर नियन्त्रण रखने और उनके छात्रों की अन्तिम परीक्षा का सम्पादन करने का कार्यभार सौंपने का सुझाव दिया। इस सुझाव के आधार पर सर्वप्रथम 1921 में उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश हाई स्कूल एण्ड इण्टरमीडिएट शिक्षा बोर्ड (Uttar Pradesh Board of High School and Intermediate Education) की स्थापना हुई। उस समय इसके अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में तत्कालीन राजपुताना, मध्य भारत और ग्वालियर आते थे। इसके बाद 1929 में तत्कालीन केन्द्रीय सरकार ने 'राजपुताना हाई स्कूल एवं इण्टरमीडिएट शिक्षा बोर्ड (Rajputana Board of High School and Intermediate Education) की स्थापना की और इसका कार्यालय अजमेर में स्थापित किया। उस समय इसके अधिकार क्षेत्र में तत्कालीन अजमेर, मेवाड़, मध्य भारत और ग्वालियर आते थे। स्वतन्त्र होने के बाद 1952 में इस बोर्ड में संगठनात्मक संशोधन किए गए और इसका नाम 'केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Central Board of Secondary Education) रखा गया। 1962 में इस बोर्ड का पुनः पुनर्गठन किया गया और इसका कार्यालय दिल्ली में स्थानान्तरित कर दिया गया।

1962 में किए गए पुनर्गठन में सर्वप्रथम तत्कालीन 'दिल्ली माध्यमिक शिक्षा बोर्ड' का इसमें विलय किया गया।  1965 में केन्द्रीय सरकार ने इन्हें 'सेन्ट्रल स्कूल' (Central Schools) में परिवर्तित कर शिक्षा विभाग के अन्तर्गत ले लिया और इन्हें भी केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध कर दिया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अन्तर्गत देश के प्रत्येक जिले में जो नवोदय विद्यालय स्थापित किए जा रहे है, वे भी इस से संबद्ध हैं।



संगठनात्मक संरचना (Organizational Structure)-

बोर्ड की समितियां

  • वित्त समिति (Finance Committee)







  • पाठ्यचर्या समिति (Curriculum Committee)

































  • परीक्षा समिति (Examination Committee)
























  • परिणाम समिति (Results Committee)














  • संबद्धता समिति (Affiliation Committee)












  • पाठ्यक्रमों की समितियां (Committees of Courses)


  • प्रशिक्षण सलाहकार समिति (Training Advisory Committee)






















  • कौशल शिक्षा समिति (Skill Education Committee)








































  • आईटी समिति(IT Committee)


  • वित्त समिति (Finance Committee)

  • वित्त समिति बोर्ड के वित्त से संबंधित सभी मामलों में एक सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करेगी। बोर्ड का वित्तीय विवरण और वार्षिक बजट अनुमान पहले वित्त समिति के समक्ष रखा जाएगा और फिर बोर्ड को इसकी सिफारिशों के साथ प्रस्तुत किया जाएगा।
  • समिति की संरचना-
  • 1. अध्यक्ष
  • 2. नियंत्रण प्राधिकारी का एक नॉमिनी 
  • 3. बोर्ड द्वारा चुने गए बोर्ड के दो सदस्य।
  • 4. बोर्ड के सचिव समिति के सचिव के रूप में कार्य करेंगे


  • पाठ्यचर्या समिति (Curriculum Committee)

  • 1. बोर्ड की प्रत्येक परीक्षा के लिए अनिवार्य और वैकल्पिक विषयों की कुल संख्या पर विचार करना।
  • 2. नए विषयों की शुरूआत और मौजूदा विषयों के बहिष्कार के प्रस्तावों पर विचार करना।
  • 3. विषयों के समूह के गठन और एक समूह के दूसरे के साथ परिवर्तन के प्रश्नों पर विचार करना।
  • 4. पाठ्यक्रम के अनुरूप पाठ्य-पुस्तकों को, जब आवश्यक समझा जाए, लिखने की सिफारिश करना।

  • समिति की संरचना-

  • The Chairperson
    Director (Academics), CBSE
    Additional Director (Sch.), Directorate of Education, NCT, Delhi
    Joint Commissioner, Kendriya Vidyalaya Sangathan, Delhi
    Deputy Commissioner, Navodaya Vidyalaya Samiti, Noida
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  • परीक्षा समिति (Examination Committee)

  • 1.  विनियमों के अनुरूप परीक्षाओं का आदेश देना और उन्हें आयोजित करने की तारीखें तय करना।
  • 2. परीक्षकों, पेपर-सेटर्स और मॉडरेटर के संबंध में पाठ्यक्रम समिति की सिफारिशों पर विचार करने के लिए और बोर्ड के अनुमोदन के लिए परीक्षकों, पेपर-सेटर्स और मॉडरेटर की सूची तैयार करना।
  • 3. परीक्षा में बैठने की अनुमति के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों द्वारा भरे जाने वाले आवेदनों के प्रपत्रों और सफल अभ्यर्थियों को दिए जाने वाले प्रमाण-पत्रों के प्रपत्रों की अनुशंसा करना।
  • 4. परीक्षा केंद्रों को खोलने और बंद करने का प्रस्ताव।

  • समिति की संरचना-
  • Chairman
    Joint Commissioner, Kendriya Vidyalaya Sangathan
    Director Education, Govt. of NCT of Delhi
    Principal, Sri Guru Tegh Bahadur Khalsa College
    Retired Professor, Tarang Apartments, I.P.Extension, 
    Add. Director of Education, Directorate of Education
    Principal, DPS Sahibabad
    Controller of Examinations, CBSE- Member Secretary



  • परिणाम समिति (Results Committee)

  • अंक प्रदान करने के लिए नियम तैयार करना,  परिणामों के प्रकाशन को निर्देशित करना,  परीक्षाओं में अनुचित साधनों के मामलों को निपटाना, परिणामों की समीक्षा करना और यदि आवश्यक हो तो उन्हें मॉडरेट करना।

  • समिति की संरचना-
  • Secretary, 
  • Controller of Examinations, 
  • Head of the Kendriya Vidyalaya Sangathan, 
  • Head of the Navodaya Vidyalaya Samiti, 
  • Director Education, Govt. of NCT of Delhi , 
  • Controller of Examinations as Convener.


  • संबद्धता समिति(Affiliation Committee)

  • संबद्धता के लिए आवेदनों की जांच करना, शिक्षकों और संस्थानों के प्रमुखों के लिए न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने और बोर्ड से संबद्ध संस्थानों में शिक्षण की न्यूनतम अवधि का निर्धारण करना, संस्थानों के निरीक्षण के लिए निरीक्षकों का एक पैनल बनाना, अन्य मामलों में बोर्ड को सलाह देना   

  • समिति की संरचना-
  • Chairman, 
  • Four Educational Elected by the Board from amongst its members., 
  • One member nominated by the Controlling authority, 
  • The Secretary of the Board is Secretary of the Committee. 


  • पाठ्यक्रमों की समितियां (Committees of Courses)

  • अध्ययन के ऐसे अन्य विषयों के लिए पाठ्यक्रम समितियां गठित की जाती हैं जो समय-समय पर बोर्ड द्वारा निर्धारित की जा सकती हैं।
  • पाठ्यक्रम की प्रत्येक समिति उस विषय (विषयों) में एक पाठ्यक्रम निर्धारित करेगी जिससे वह संबंधित है और जब आवश्यक हो उपयुक्त पाठ्यपुस्तकों की सिफारिश करेगा।




  • प्रशिक्षण सलाहकार समिति (Training Advisory Committee)

  • प्रशिक्षण इकाई की सर्वोच्च नीति बनाना,  संसाधन सामग्री तैयार करने के साथ-साथ प्रधानाचार्यों के साथ सीबीएसई के संबद्ध स्कूलों के शिक्षकों के लिए प्रभावी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना 

  • समिति की संरचना-
  • Chairperson, 
  • CBSE, Director, Skill Education & Training, CBSE Convener, 
  • Additional Secretary, UGC (Representative from UGC), 
  • Head, ESD, NCERT (Representative from NCERT), 
  • Research Officer, Academic Section, NCTE (Representative from NCTE), 
  • Associate Professor, NIEPA, Delhi (Representative from NIEPA), 
  • Additional Commissioner (Acad.), KVS (Representative from KVS), 
  • Assistant Commissioner (Training), NVS (Representative from NVS), 
  • Deputy Director, RCI (Representative from RCI). 



  • कौशल शिक्षा समिति (Skill Education Committee)

  • कौशल विषयों के पाठ्यक्रम और नए विषयों की शुरूआत तय करना, छात्रों और शिक्षकों के लिए संसाधन सामग्री के विकास को बढ़ावा देना, शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का अनुमोदन करना, कौशल संवर्धन, उद्योग जुड़ाव, कौशल पाठ्यक्रमों के मूल्यांकन और प्रमाणन से संबंधित नीति का अनुमोदन और मार्गदर्शन करना।

  • समिति की संरचना-
  • Chairperson, CBSE
    Director, Skill Education & Training, CBSE Convener
    Commissioner, KVS, Delhi.
    Commissioner, NVS, Delhi.
    Director of Education, Govt. Of NCT of Delhi.


क्षेत्रीय कार्यालय  (Regional Office)

1.       AJMER -         Gujarat and Rajasthan

2.       ALLAHABAD (PRAYAGRAJ) - Districts of Uttar Pradesh - Ambedkar Nagar, Amethi, Auraiya, Ayodhya, Azamgarh, Bahraich, Ballia, Balrampur, Banda, Barabanki, Basti, Bhadohi, Chandauli, Chitrakoot, Deoria, Etawah, Farukkhabad, Fatehpur, Ghazipur, Gonda, Gorakhpur, Hamirpur, Hardoi, Jalaun, Jaunpur, Jhansi, Kannauj, Kanpur Dehat, Kanpur Nagar, Kaushambi, Kushi Nagar, Lakhimpur Kheri, Lalitpur, Lucknow, Maharajganj, Mahoba, Mau, Mirzapur, Pratapgarh, Prayagraj, Raebareli, Sant Kabir Nagar, Shravasti, Siddharth Nagar, Sitapur, Sonbhadra, Sultanpur, Unnao, Varanasi

3.       BHUBANESWAR- Chhattisgarh, Odisha and West Bengal

4.       CHENNAI  -   Andhra Pradesh, Tamil Nadu, Telangana, Puducherry and Andaman & Nicobar Islands

5.       DEHRADUN -    Uttarakhand and Districts of Uttar Pradesh - Badaun, Bijnor, JP Nagar / Amroha, Moradabad, Muzaffarnagar, Rampur, Saharanpur and Sambhal

6.       DELHI EAST -  East Delhi, South East Delhi, South Delhi, New Delhi, Central Delhi, North East Delhi and Foreign schools

7.       GUWAHATI  -  Assam, Arunachal Pradesh, Manipur, Meghalaya, Mizoram, Nagaland, Sikkim and Tripura

8.       PANCHKULA - Haryana and Himachal Pradesh

9.       PATNA -  Bihar and Jharkhand

10.   THIRUVANANTHAPURAM - Kerala and Lakshadweep

11.   BANGALORE – Karnataka

12.   BHOPAL - Madhya Pradesh

13.   CHANDIGARH - Jammu & Kashmir, Punjab, and U.T. of Chandigarh

14.   DELHI WEST - West Delhi (A & B), South West Delhi (A & B), North West Delhi (A & B), North Delhi

15.   NOIDA  - Districts of Uttar Pradesh - Agra, Aligarh, Baghpat, Bareilly, Bulandshahar, Etah, Firojabad, Gautam Budh Nagar, Ghaziabad, Hapur, Hathras, Kasganj / Kashi Ram Nagar, Mainpuri, Mathura, Meerut, Pilibhit, Shahjahanpur and Shamli

PUNE - Maharashtra, Goa, Daman & Diu, Dadra & Nagar Haveli




Friday, October 22, 2021

पाइथागोरस का गणित में योगदान (Contribution of Pythagorus in Mathematics)

 पाइथागोरस का गणित में योगदान (Contribution of Pythagorus in Mathematics)

जन्म - 570 ई0पू0

स्थान - सामोस नामक टापू (एशियन सागर के मध्य , ग्रीक में)

मृत्यु - लगभग 75 वर्ष में।

अध्ययन का रुचि-  गणित, नीतिशास्त्र, राजनीति, धर्मशास्त्र व संगीत।

प्रभावित - प्लेटो, अरस्तु 

इनके गुरु का नाम थेल्स था जो यूनान के सात विद्वानों में से एक थे। अपने गुरु के आदेश से पाइथागोरस ने मिस्र में अपने जीवन का प्रारम्भिक काल बिताया और यहाँ लगभग 22 वर्ष रहकर उसने विभिन्न विज्ञानों का गहन अध्ययन किया। 22 वर्ष तक वहाँ रहने के बाद पाइथागोरस 12 वर्ष तक इराक, ईरान और भारत आदि देशों में भ्रमण करते रहे। 50 वर्ष की अवस्था में वह स्वदेश लौटे परन्तु सामोस में भी वह अधिक समय तक न रह सके और इटली के क्रोटोना (Crotona) नामक नगर में बस गये। वहाँ वे एक मिलो नामक व्यक्ति के अतिथि बने और 60 वर्ष की अवस्था में मिलो की तरुण एवं सुन्दर कन्या थियोना से विवाह कर लिया। कहा जाता है कि उनकी पत्नी थियोना ने उनके जीवन पर एक पुस्तक की रचना की थी, परन्तु यह पुस्तक अप्राप्य है।

सोलह वर्ष की किशोरावस्था में पाइथागोरस की प्रतिभा इतनी विकसित हो गयी थी कि विद्यालय में शिक्षक इनके प्रश्नों के उत्तर देने में स्वयं को असमर्थ समझते थे। इन्हें संतुष्ट करना उनके सामर्थ्य के बाहर की बात थी। पिता ने विवश होकर पुत्र को थेल्स ऑफ मिलेट्स की देखरेख में अध्ययन के लिये भेज दिया। पाइथागोरस में कुछ करने की लगन थी। यहाँ पर इन्हें अवसर मिला। इन्होंने यहाँ अपनी विश्वविख्यात प्रमेय का सूत्रपात किया तथा उसका प्रयोगात्मक प्रदर्शन भी किया। इनकी इस प्रमेय के अनुसार किसी समकोण त्रिभुज में दो भुजाओं पर बने वर्गों का योग तीसरी भुजा पर बने वर्ग के समान होता है। यदि किसी समकोण त्रिभुज में एक भुजा की लम्बाई 6 cm. हो और दूसरी भुजा की लम्बाई 8 cm. हो तो तीसरी भुजा अर्थात् कर्ण की लम्बाई 10 cm. होगी। 


  • पाइथागोरस ही पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने ज्यामिति की प्रमेयों के लिये उत्पत्ति प्रणाली की नींव रखी। इन्होंने यह भी सिद्ध किया कि किसी भी त्रिभुज तीनों अन्तःकोणों का योग दो समकोणों के बराबर होता है। उन दिनों मुद्रण कला क अभाव था। लेखन सामग्री उपलब्ध नहीं थी। अतः ग्रंथों की उपलब्धि का प्रश्न ही नहीं उठता। 
  •  इन्होंने क्रोटोना में 529  ईसा पूर्व  में एक विद्यालय स्थापित किया। यहाँ पर इनका सपना साकार किया। कुछ ही समय में तीन सौ शिक्षार्थियों ने इनके विद्यालय में प्रवेश ले लिया। यहाँ पर मुख्यतः अंकगणित, ज्यामिति, संगीत तथा ज्योतिष विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। इसके साथ ही यूनानी दर्शन का भी ज्ञान कराया जाता था।
  • क्रोटोना में रहते हुये पाइथागोरस ने गणित और दर्शन-शास्त्र पर अनेक व्याख्यान दिये । पाइथागोरस के भाषणों से प्रभावित होकर उनके समर्थकों ने अपना एक स्वतन्त्र संगठन कायम किया जो बाद  में 'पाइथागोरस स्कूल' के नाम से विख्यात हुआ। उनके स्कूल के सभी सदस्यों को यह शपथ लेनी होती थी कि वे अपने द्वारा प्राप्त की गयी जानकारी को किसी बाहरी व्यक्ति के सम्मुख व्यक्त नहीं करेंगे। परिणाम यह हुआ कि इस स्कूल की जितनी खोजें या आविष्कार हुये वे सब के सब पाइथागोरस के नाम से जोड़ दिये गये और यह पता लगाना असम्भव हो गया कि कौन-सी खोज पाइथागोरस ने की तथा कौन सी उनके शिष्यों ने। 
 योगदान (Contribution)- 


  • पाइथागोरस ने प्रमेय तथा साध्यों को तार्किक ढंग से प्रमाणित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रमाण देने में हमें कुछ स्वयं सिद्ध तथा अभिगृहीतों (Axioms and Postulates) को आधार बनाना चाहिये।  
  • इनके स्कूल ने अंकगणित और रेखागणित के व्यावहारिक सम्बन्ध पर काफी बल दिया। अंकगणित की संख्याओं को रेखागणित का जामा पहनाया गया। इसी के परिणामस्वरूप पाइथागोरस ने दो से दो का गुणा करने के लिये 2 इकाई भुजा वाले वग की रचना करने का सुझाव दिया।
  • इस स्कूल ने एक विचित्र संख्याशास्त्र को जन्म दिया। उन्होंने समस्त संख्याओं को सम (लौकिक) तथा विषम (दैविक) दो भागों में विभाजित किया। इसी से विषम संख्याओं को शुभ तथा सम संख्याओं को अशुभ मानने की प्रथा चल पड़ी संख्याओं के सम्बन्ध में इस स्कूल की कुछ विचित्र मान्यतायें भी थीं। उनके अनुसार 1 समस्त संख्याओं का जनक था जो विचार (Reason) का द्योतक था। 2 पुरुष तथा 3 स्त्री का द्योतक था तथा इन दोनों का मिलन 5 विवाह का द्योतक था। 4 को न्याय का सूचक माना गया क्योंकि यह दो समान संख्याओं का गुणा है। इसी प्रकार ज्यामिति में 1 का अंक बिन्दु का, 2 रेखा का, 3 समतल का तथा 4 ठोस का प्रतीक माना गया।
  • वर्ग संख्या के बारे में भी इस स्कूल की खोज काफी महत्वपूर्ण है। पाइथागोरस ने दिखाया कि पहली वर्ग संख्या 4 पहली दो विषम संख्याओं 1 और 3 के योग तुल्य है, दूसरी वर्ग संख्या 9 प्रथम तीन विषम संख्याओं 1, 3 और 5 के योग तुल्य है, और तीसरी वर्ग संख्या 16 प्रथम चार विषम संख्याओं, 1, 3, 5 और 7 के योग तुल्य है।
  • पाइथागोरस ने कुछ संख्याओं जैसे 3, 6, 10 आदि को त्रिभुज संख्या का नाम दिया। पहली दो संख्याओं का योग 1 + 2 = 3 प्रथम त्रिभुज संख्या कहलाती थी। पहली तीन संख्याओं का योग 1+2+3 6 द्वितीय त्रिभुज संख्या कहलाती थी तथा प्रथम चार संख्याओं का योग 1+2+3+4 10 तीसरी त्रिभुज संख्या कहलाती थी।
  • प्रारम्भ में पाइथागोरस और उसके शिष्यों का विश्वास था कि किसी भी लम्बाई को छोटी इकाई से ठीक-ठीक मापा जा सकता है लेकिन समस्या √2 जैसी अपरिमेय संख्याओं को नापने में आयी। वस्तुतः इनके द्वारा अपरिमेय संख्याओं का आविष्कार हो चुका था लेकिन अपनी मान्यताओं के ढह जाने के डर से इस स्कूल के सदस्य इतने विचलित हुये कि इन्होंने इस आविष्कार को हर कीमत पर गुप्त रखने की कोशिश की। 
  • इस स्कूल ने खगोल विद्या के क्षेत्र में भी काफी प्रगति की। इनका विश्वास था कि ब्रह्माण्ड का केन्द्र सूर्य है तथा ग्रह नक्षत्रों की परिक्रमा का पथ वृत्ताकार ही होता है। इसी स्कूल ने सर्वप्रथम यह प्रमाणित किया कि पृथ्वी स्थिर नहीं है बल्कि यह अपनी धुरी पर परिक्रमा करती है।
  • इस स्कूल ने गणित के क्षेत्र में अनेक पारिभाषिक शब्दों को जन्म दिया है, जैसे-गणित के लिये मैथमैटिक्स (Mathematics), पेराबोला (Parabola), इलिप्स (Ellipse) और हाइपरबोला (Hyperbola) आदि ।
  • मिस्रवासियों को केवल तीन प्रकार के ठोसों का ज्ञान था - घन (Cube), समचतुष्फलक (Tetrahedron) और समअष्टफलक (Octahedron)। पाइथागोरस ने इन ठोसों के अतिरिक्त अन्य दो ठोसों समद्वादशफलक (Dedecahedron) और समविशफलक (Icosahedron) की खोज की।
  • पाइथागोरस ने अपने गणित सम्बन्धी ज्ञान को संगीत जैसे कलात्मक विषयों में भी उतारने का प्रयास किया। वाद्य यंत्रों (Musical Instruments) में कुछ तार-स्वर ऐसे होते हैं जो एक साथ बजने पर मधुर लगते हैं जबकि ये ही स्वर किन्हीं अन्य स्वरों के साथ बनने पर कटु लगते हैं। पाइथागोरस ने इसका कारण ढूँढ निकाला। उन्होंने बताया कि सितार आदि वाद्य यंत्रों के तारों की लम्बाई जब एक-दूसरे के साथ सरल अनुपात में होती है तब उन्हें एक साथ छेड़ने से उठने वाली आवाज में एक प्रकार की मधुर एक रसता (Sweet harmony) होती है। इसके अतिरिक्त, पाइथागोरस ने यह नियम भी सामने रखा कि "एक कसे हुये वाद्य यंत्र की ध्वनि का चढ़ाव (Pitch) तार की लम्बाई पर निर्भर करता है।"












Tuesday, October 5, 2021

राज्य संसाधन केन्द्र (State Resource Centre (SRC))

 राज्य संसाधन केन्द्र  (State Resource Center (SRC))


परिचय (Introduction)- 

जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकास कार्यक्रम सरकार की एकमात्र जिम्मेदारी नहीं हो सकती है। यह वास्तविकता सामाजिक विकास परियोजनाओं में गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है। प्रौढ़ शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जहां गैर सरकारी संगठनों का कुछ बहुत ही सकारात्मक और महत्वपूर्ण योगदान है। प्रथम पंचवर्षीय योजना में प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में स्वैच्छिक संस्थाओं को सहायता की योजना तैयार कर प्रारम्भ की गई। यह खुशी की बात है कि बाद की योजनाओं में भी काफी जोर दिया गया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE), 1986 ने निर्धारित किया है कि सामाजिक कार्यकर्ता समूहों सहित गैर सरकारी संगठनों को प्रोत्साहित किया जाएगा और उचित प्रबंधन के अधीन उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। NPE, 1986 को लागू करने के लिए संशोधित नीति (Program Of Action) ने सरकार और गैर सरकारी संगठनों के बीच वास्तविक साझेदारी के संबंध की परिकल्पना की। यह भी निर्णय लिया गया कि सरकार विभिन्न विकास कार्यक्रमों में गैर सरकारी संगठनों की व्यापक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान करे। साथ ही, यह महसूस किया गया कि गैर सरकारी संगठनों का उचित चयन भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

इस संदर्भ में, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन (NLM) ने बताया कि सबसे सक्रिय गैर सरकारी संगठनों की पहचान और चयन के लिए विविध तरीके अपनाए जाएंगे। निरक्षर वयस्कों और बच्चों के बीच शिक्षा कार्यक्रम के प्रसार के लिए इन गैर सरकारी संगठनों को बड़े पैमाने पर शामिल किया जा सकता है, क्योंकि निरक्षरता का उन्मूलन हमारे देश के लिए दिन की बुनियादी जरूरत है। इन परियोजनाओं की सफलता के लिए, 1978 और 1982 में तैयार की गई सहायता अनुदान योजना को NLM के उद्देश्यों और रणनीतियों के करीब लाने की दृष्टि से संशोधित किया गया था। इस संशोधित योजना को साक्षरता कार्रवाई में गैर-सरकारी संगठनों के भागीदारों के लिए केंद्रीय सहायता योजना का नाम दिया गया था। इस योजना को NLM के तहत 1988 में लागू किया गया था। साथ ही योजना को परिणामोन्मुखी, समयबद्ध एवं लागत प्रभावी बनाने के लिए शिक्षा विभाग द्वारा उपाय किए गए। अब गैर सरकारी संगठनों को बुनियादी साक्षरता, साक्षरता के बाद और वयस्क शिक्षा कार्यक्रम की निगरानी और मूल्यांकन सहित विभिन्न अन्य वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों की परियोजनाओं को शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। योजना का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय साक्षरता मिशन में गैर सरकारी संगठनों की गहन भागीदारी को सुरक्षित करना है। राज्य संसाधन केंद्रों (SRC) ने भारत में वयस्क शिक्षा के पेशेवर संगठनों के बीच अपने लिए एक अलग जगह बनाई है। 1980 में 14 एसआरसी से शुरू होकर, 1997 तक उनकी संख्या बढ़कर 24 हो गई। राज्य में कार्यक्रमों के कार्यभार और आकार के आधार पर, SRC को A और B में वर्गीकृत किया गया है। जबकि कुछ SRC सीधे राज्य सरकारों के अधीन कार्य करते हैं, अन्य गैर सरकारी संगठनों या विश्वविद्यालयों द्वारा प्रबंधित हैं, सभी SRC से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने-अपने राज्यों में मुख्य रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रमों, सामग्री विकास और उत्पादन, प्रकाशन, विस्तार गतिविधियों, नवीन परियोजनाओं, शोध अध्ययन और मूल्यांकन के माध्यम से वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों को शैक्षणिक और तकनीकी संसाधन सहायता प्रदान करें।

राज्य संसाधन केन्द्र एक स्वतन्त्र और ऑटोनॉमस (Autonomous)  रूप में कार्य करने वाला केन्द्र है।  यह अकादमिक  के साथ-साथ तकनीकी संसाधन भी है। क्योंकि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन सामग्री तैयार करना, सामग्री का प्रकाशन करना, विस्तार क्रियाएँ, नवाचार प्रोजेक्टस, शोध अध्ययन और मूल्यांकन आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। योजनाओं का निर्माण करके  SRC की भूमिका को शक्तिशाली बनाया जाता है और उसका विस्तार किया जाता है। योजनाओं के निर्माण द्वारा केवल संख्या वृद्धि ही नहीं की जाती है बल्कि ढांचागत और संसाधन सुविधाओं से भी सजाने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार सुविधाओं से युक्त करके इन केन्द्रों को इस योग्य बनाया जाता है कि ये विशेष एजेन्ट की भूमिका का निर्वाह कर सकें। सरकार  का प्रयास यह है कि एस० आर० सी० (SRC) एक स्वतन्त्र एजेन्सी या संस्था के रूप में उच्च अधिगम (Higher Learning) का कार्य करे।

SRC को पूर्ण रूप से केंद्र सरकार  द्वारा फण्ड प्रदान किया जाता है और ये वित्त सम्बन्धी निश्चित  मानकों का पालन करते हैं तथा वित्तीय अनुशासन को बनाए रखते हैं। प्रक्रिया को सरल बनाने, अधिकांश जनता को लाभ मिलने की दृष्टि से वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण किया गया है। यह विकेन्द्रीकरण राज्य साक्षरता मिशन ऑथोरिटी के अन्तर्गत किया गया है ताकि प्रत्येक राज्य में साक्षरता मिशन को स्थापना हो सके और सतत शिक्षा अभियान चलाया जा सके।

लक्ष्य समूह (Target Group)-

संसाधन केंद्रों के अधिकार क्षेत्र के  दिए गए क्षेत्र में सभी गैर-साक्षर (आयु वर्ग 15-35 वर्ष), नव-साक्षर, स्कूल छोड़ने वाले छात्र।


संसाधन केन्द्र का संगठनात्मक स्तर (Organisational Status of Resource Centre)

संसाधन केन्द्र दो प्रकार से कार्य करेगा-  

1.  गैर सरकारी संगठन के अन्तर्गत 

2.  विश्वविद्यालय के अन्तर्गत।

विश्वविद्यालय को तभी संसाधन केन्द्र दिया जाएगा जबकि वहाँ कोई उपयुक्त स्वैच्छिक एजेन्सी नहीं  होगी। प्रत्येक संसाधन केन्द्र के कार्यों का प्रबन्धन बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट द्वारा किया जाएगा, जिसे गवर्निंग बॉडी (Governing Body) के नाम से जाना जाएगा। गवर्निंग बॉडी की सहायता के लिए एक्जीक्युटिव कमेटी (Executive Committee, EC), स्टाफ सलेक्शन कमेटी (Staff Selection Committee, SSC) अन्य उप समितियाँ (Sub Committees) होंगी।

प्रत्येक संसाधन केन्द्र पर योजना निर्माण के लिए प्रोग्राम समन्वय एवं संचालन के लिए व्यावसायिक स्टाफ होगा और स्थानीय अनुभवी और योग्य व्यक्तियों की सेवाएँ ली जाएँगी। ये सेवाएँ अंशकालीन होंगी। इन केन्द्रों पर साक्षरता सामग्री तैयार करना, प्रशिक्षण प्रोग्राम कराना, सेमिनार, वर्कशॉप, कान्फ्रेंस का आयोजन कराना, रिसर्च, प्रकाशन, राज्य सरकार के साथ समन्वय, नवाचार और अन्य प्रोजेक्ट सम्बन्धी क्रियाएँ सम्पन्न की जाएँगी।

कार्य (Functions)-

  • साक्षरता कार्यक्रमों के लिए शिक्षण-अधिगम और प्रशिक्षण सामग्री का विकास करना ।
  • प्रौढ़ शिक्षा के लिए साहित्य का उत्पादन और प्रसार करना ।
  • साक्षरता कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देना।
  • प्रौढ़ शिक्षा के लिए प्रेरक और पर्यावरण निर्माण गतिविधियाँ करना।
  • क्षेत्रीय कार्यक्रमों का संचालन करना ।
  • साक्षरता परियोजनाओं का कार्य अनुसंधान, मूल्यांकन और निगरानी करना ।
  • साक्षरता कार्यक्रमों की भावी आवश्यकता की पहचान करने के लिए नवीन परियोजनाओं को शुरू करना।

एस. आर. सी. के उद्देश्य (Aims of SRC)

  • एकेडेमिक और तकनीकी संसाधन सहायता प्रदान करना। 
  •  साक्षरता कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में सहायता करना।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम, सामग्री विकास एवं उत्पादन, प्रकाशन और सैद्धान्तिक संगठन को सफल बनाना। 
  • विस्तार क्रियाएँ, नवाचार प्रोजेक्टस, शोध अध्ययन और मूल्यांकन को बढ़ावा देना।



मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology)

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