पाइथागोरस का गणित में योगदान (Contribution of Pythagorus in Mathematics)
जन्म - 570 ई0पू0
स्थान - सामोस नामक टापू (एशियन सागर के मध्य , ग्रीक में)
मृत्यु - लगभग 75 वर्ष में।
अध्ययन का रुचि- गणित, नीतिशास्त्र, राजनीति, धर्मशास्त्र व संगीत।
प्रभावित - प्लेटो, अरस्तु
इनके गुरु का नाम थेल्स था जो यूनान के सात विद्वानों में से एक थे। अपने गुरु के आदेश से पाइथागोरस ने मिस्र में अपने जीवन का प्रारम्भिक काल बिताया और यहाँ लगभग 22 वर्ष रहकर उसने विभिन्न विज्ञानों का गहन अध्ययन किया। 22 वर्ष तक वहाँ रहने के बाद पाइथागोरस 12 वर्ष तक इराक, ईरान और भारत आदि देशों में भ्रमण करते रहे। 50 वर्ष की अवस्था में वह स्वदेश लौटे परन्तु सामोस में भी वह अधिक समय तक न रह सके और इटली के क्रोटोना (Crotona) नामक नगर में बस गये। वहाँ वे एक मिलो नामक व्यक्ति के अतिथि बने और 60 वर्ष की अवस्था में मिलो की तरुण एवं सुन्दर कन्या थियोना से विवाह कर लिया। कहा जाता है कि उनकी पत्नी थियोना ने उनके जीवन पर एक पुस्तक की रचना की थी, परन्तु यह पुस्तक अप्राप्य है।
सोलह वर्ष की किशोरावस्था में पाइथागोरस की प्रतिभा इतनी विकसित हो गयी थी कि विद्यालय में शिक्षक इनके प्रश्नों के उत्तर देने में स्वयं को असमर्थ समझते थे। इन्हें संतुष्ट करना उनके सामर्थ्य के बाहर की बात थी। पिता ने विवश होकर पुत्र को थेल्स ऑफ मिलेट्स की देखरेख में अध्ययन के लिये भेज दिया। पाइथागोरस में कुछ करने की लगन थी। यहाँ पर इन्हें अवसर मिला। इन्होंने यहाँ अपनी विश्वविख्यात प्रमेय का सूत्रपात किया तथा उसका प्रयोगात्मक प्रदर्शन भी किया। इनकी इस प्रमेय के अनुसार किसी समकोण त्रिभुज में दो भुजाओं पर बने वर्गों का योग तीसरी भुजा पर बने वर्ग के समान होता है। यदि किसी समकोण त्रिभुज में एक भुजा की लम्बाई 6 cm. हो और दूसरी भुजा की लम्बाई 8 cm. हो तो तीसरी भुजा अर्थात् कर्ण की लम्बाई 10 cm. होगी।
- पाइथागोरस ही पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने ज्यामिति की प्रमेयों के लिये उत्पत्ति प्रणाली की नींव रखी। इन्होंने यह भी सिद्ध किया कि किसी भी त्रिभुज तीनों अन्तःकोणों का योग दो समकोणों के बराबर होता है। उन दिनों मुद्रण कला क अभाव था। लेखन सामग्री उपलब्ध नहीं थी। अतः ग्रंथों की उपलब्धि का प्रश्न ही नहीं उठता।
- इन्होंने क्रोटोना में 529 ईसा पूर्व में एक विद्यालय स्थापित किया। यहाँ पर इनका सपना साकार किया। कुछ ही समय में तीन सौ शिक्षार्थियों ने इनके विद्यालय में प्रवेश ले लिया। यहाँ पर मुख्यतः अंकगणित, ज्यामिति, संगीत तथा ज्योतिष विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। इसके साथ ही यूनानी दर्शन का भी ज्ञान कराया जाता था।
- क्रोटोना में रहते हुये पाइथागोरस ने गणित और दर्शन-शास्त्र पर अनेक व्याख्यान दिये । पाइथागोरस के भाषणों से प्रभावित होकर उनके समर्थकों ने अपना एक स्वतन्त्र संगठन कायम किया जो बाद में 'पाइथागोरस स्कूल' के नाम से विख्यात हुआ। उनके स्कूल के सभी सदस्यों को यह शपथ लेनी होती थी कि वे अपने द्वारा प्राप्त की गयी जानकारी को किसी बाहरी व्यक्ति के सम्मुख व्यक्त नहीं करेंगे। परिणाम यह हुआ कि इस स्कूल की जितनी खोजें या आविष्कार हुये वे सब के सब पाइथागोरस के नाम से जोड़ दिये गये और यह पता लगाना असम्भव हो गया कि कौन-सी खोज पाइथागोरस ने की तथा कौन सी उनके शिष्यों ने।
- पाइथागोरस ने प्रमेय तथा साध्यों को तार्किक ढंग से प्रमाणित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि प्रमाण देने में हमें कुछ स्वयं सिद्ध तथा अभिगृहीतों (Axioms and Postulates) को आधार बनाना चाहिये।
- इनके स्कूल ने अंकगणित और रेखागणित के व्यावहारिक सम्बन्ध पर काफी बल दिया। अंकगणित की संख्याओं को रेखागणित का जामा पहनाया गया। इसी के परिणामस्वरूप पाइथागोरस ने दो से दो का गुणा करने के लिये 2 इकाई भुजा वाले वग की रचना करने का सुझाव दिया।
- इस स्कूल ने एक विचित्र संख्याशास्त्र को जन्म दिया। उन्होंने समस्त संख्याओं को सम (लौकिक) तथा विषम (दैविक) दो भागों में विभाजित किया। इसी से विषम संख्याओं को शुभ तथा सम संख्याओं को अशुभ मानने की प्रथा चल पड़ी संख्याओं के सम्बन्ध में इस स्कूल की कुछ विचित्र मान्यतायें भी थीं। उनके अनुसार 1 समस्त संख्याओं का जनक था जो विचार (Reason) का द्योतक था। 2 पुरुष तथा 3 स्त्री का द्योतक था तथा इन दोनों का मिलन 5 विवाह का द्योतक था। 4 को न्याय का सूचक माना गया क्योंकि यह दो समान संख्याओं का गुणा है। इसी प्रकार ज्यामिति में 1 का अंक बिन्दु का, 2 रेखा का, 3 समतल का तथा 4 ठोस का प्रतीक माना गया।
- वर्ग संख्या के बारे में भी इस स्कूल की खोज काफी महत्वपूर्ण है। पाइथागोरस ने दिखाया कि पहली वर्ग संख्या 4 पहली दो विषम संख्याओं 1 और 3 के योग तुल्य है, दूसरी वर्ग संख्या 9 प्रथम तीन विषम संख्याओं 1, 3 और 5 के योग तुल्य है, और तीसरी वर्ग संख्या 16 प्रथम चार विषम संख्याओं, 1, 3, 5 और 7 के योग तुल्य है।
- पाइथागोरस ने कुछ संख्याओं जैसे 3, 6, 10 आदि को त्रिभुज संख्या का नाम दिया। पहली दो संख्याओं का योग 1 + 2 = 3 प्रथम त्रिभुज संख्या कहलाती थी। पहली तीन संख्याओं का योग 1+2+3 6 द्वितीय त्रिभुज संख्या कहलाती थी तथा प्रथम चार संख्याओं का योग 1+2+3+4 10 तीसरी त्रिभुज संख्या कहलाती थी।
- प्रारम्भ में पाइथागोरस और उसके शिष्यों का विश्वास था कि किसी भी लम्बाई को छोटी इकाई से ठीक-ठीक मापा जा सकता है लेकिन समस्या √2 जैसी अपरिमेय संख्याओं को नापने में आयी। वस्तुतः इनके द्वारा अपरिमेय संख्याओं का आविष्कार हो चुका था लेकिन अपनी मान्यताओं के ढह जाने के डर से इस स्कूल के सदस्य इतने विचलित हुये कि इन्होंने इस आविष्कार को हर कीमत पर गुप्त रखने की कोशिश की।
- इस स्कूल ने खगोल विद्या के क्षेत्र में भी काफी प्रगति की। इनका विश्वास था कि ब्रह्माण्ड का केन्द्र सूर्य है तथा ग्रह नक्षत्रों की परिक्रमा का पथ वृत्ताकार ही होता है। इसी स्कूल ने सर्वप्रथम यह प्रमाणित किया कि पृथ्वी स्थिर नहीं है बल्कि यह अपनी धुरी पर परिक्रमा करती है।
- इस स्कूल ने गणित के क्षेत्र में अनेक पारिभाषिक शब्दों को जन्म दिया है, जैसे-गणित के लिये मैथमैटिक्स (Mathematics), पेराबोला (Parabola), इलिप्स (Ellipse) और हाइपरबोला (Hyperbola) आदि ।
- मिस्रवासियों को केवल तीन प्रकार के ठोसों का ज्ञान था - घन (Cube), समचतुष्फलक (Tetrahedron) और समअष्टफलक (Octahedron)। पाइथागोरस ने इन ठोसों के अतिरिक्त अन्य दो ठोसों समद्वादशफलक (Dedecahedron) और समविशफलक (Icosahedron) की खोज की।
- पाइथागोरस ने अपने गणित सम्बन्धी ज्ञान को संगीत जैसे कलात्मक विषयों में भी उतारने का प्रयास किया। वाद्य यंत्रों (Musical Instruments) में कुछ तार-स्वर ऐसे होते हैं जो एक साथ बजने पर मधुर लगते हैं जबकि ये ही स्वर किन्हीं अन्य स्वरों के साथ बनने पर कटु लगते हैं। पाइथागोरस ने इसका कारण ढूँढ निकाला। उन्होंने बताया कि सितार आदि वाद्य यंत्रों के तारों की लम्बाई जब एक-दूसरे के साथ सरल अनुपात में होती है तब उन्हें एक साथ छेड़ने से उठने वाली आवाज में एक प्रकार की मधुर एक रसता (Sweet harmony) होती है। इसके अतिरिक्त, पाइथागोरस ने यह नियम भी सामने रखा कि "एक कसे हुये वाद्य यंत्र की ध्वनि का चढ़ाव (Pitch) तार की लम्बाई पर निर्भर करता है।"
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