Thursday, May 6, 2021

अधिगम का अर्थ, परिभाषा और प्रकृति (Meaning, Definition and Nature of Learning)

 अधिगम/सीखना (Learning)

अर्थ (Meaning)-  मनोविज्ञान में सीखना शब्द का अर्थ दो रूपों में होता है -

1. प्रक्रिया (Process) के रूप में ।
2. परिणाम (Result) के रूप में।
प्रक्रिया(Process) के रूप में सीखने का अर्थ उस प्रक्रिया से होता है जिसके द्वारा मनुष्य नए - नए तथ्यों को ग्रहण करता है और नई-नई क्रियाओं को सीखता है।
परिणाम (Result) के रूप में सीखने का अर्थ मनुष्य के व्यवहार परिवर्तन से होता है जो नए- नए तथ्यों की जानकारी और नई-नई क्रियाओं में प्रशिक्षण के फलस्वरूप होता है।
मनुष्य कुछ कार्य स्वाभाविक रूप से करते हैं जैसे - सांस लेना, पलक झपकाना, देखना, सुनना, हाथ पैर हिलाना आदि । इसके अतिरिक्त कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें वह अपनी शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ स्वयं करने लगता है जैसे - भूख लगने पर भोजन की तलाश करना, प्राणों की रक्षा के लिए भागना आदि।  इन सब कार्यों को मनुष्य या प्राणी को सीखना नहीं पड़ता है।  इसलिए यह कार्य अनर्जित कार्य (Unlearned Action) कहे जाते हैं।
 कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें मनुष्य अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण के आधार पर ग्रहण करता है। जैसे- पेड़ पर चढ़ना, पानी में तैरना, भाषा विशेष में बोलना आदि।  इन कार्यों को मनोवैज्ञानिक अर्जित कार्य (Learned Action) कहते हैं, और इन कार्यों को ग्रहण करने की प्रक्रिया को सीखना या अधिगम कहते हैं। 

अधिगम का अर्थ-  व्यवहार में वांछित एवं स्थाई परिवर्तन।

परिभाषायें (Definitions)

  • वुडवर्थ  के अनुसार-  नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को ग्रहण करने की प्रक्रिया को सीखने की प्रक्रिया कहते हैं । (The process of of acquiring new knowledge and new responses is the process of learning.)
  • स्किनर के अनुसार-  सीखना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य प्रगतिशील व्यवहार को स्वीकार करता है। (Learning is is a process of of progressive behaviour adaptation.)
  • क्रो एंड क्रो के अनुसार-  सीखना आदतों, ज्ञान और अभिवृतियों का अर्जन है (Learning is the acquisition of habits knowledge and attitudes.)
  • गेट और अन्य के अनुसार-  सीखना अनुभव और प्रशिक्षण के परिणाम स्वरूप व्यवहार में परिवर्तन है 
  • हिलगार्ड के अनुसार-  सीखना वह प्रक्रिया है जिसमें अभ्यास अथवा प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार का उद्भव होता है या व्यवहार में परिवर्तन होता है । (Learning is the process by by which behaviour is originated or changed through practice for training.)
अधिगम वह प्रक्रिया है जिसमें अनुभव, अभ्यास, प्रशिक्षण तथा अध्ययन आदि से व्यक्ति का कोई व्यवहार उद्भव होता है या व्यवहार में परिवर्तन होता है यह परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थाई होता है सीखने के अंतर्गत वे परिवर्तन सम्मिलित नहीं किए जाते हैं जो व्यक्ति ने परिपक्वता, थकान, नशीले पदार्थों का सेवन अथवा चोट आदि अनाधिगम  के कारणों से होता है



Tuesday, May 4, 2021

अभिप्रेरणा के स्रोत/तत्व (Source/Elements of Motivation)

 अभिप्रेरणा के स्रोत/तत्व (Source/Elements of Motivation)

अभिप्रेरणा के चार स्रोत या तत्व होते हैं-

1. आवश्यकता (Need)- प्रत्येक प्राणी के जीवन को बनाये रखने के लिए  कुछ मौलिक आवश्यकताएं (Basic Needs) होती हैं जिनकी पूर्ति होना आवश्यक है । मनुष्य की आवश्यकताओं को दो भागों में विभाजित किया जाता है -
  • शारीरिक/ जैविक/प्राथमिक आवश्यकतायें (Physical/ Biological /Primary Needs)- वे आवश्यकतायें जिनके अभाव में किसी भी प्राणी का  अस्तित्व असंभव है । जैसे- भोजन, पानी, हवा, मल -मूत्र  त्याग करना,  नींद ।
  • मनो-सामाजिक/द्वितीयक आवश्यकतायें (Psycho-social/Secondary Needs)-.  वे आवश्यकतायें जिनके अभाव में प्राणी जीवित रह सकता है परन्तु जीवन जीने के लिए इनकी आवश्यकता भी महत्वपूर्ण है। जैसे- प्रेम, संबंध (Relation), उपलब्धि (Achievement) , आत्मसम्मान (Self respect), सामाजिक स्तर (Social Level) आदि।

2. चालक/प्रणोद/ अन्तर्नोद (Drive)- वह कारक जो आंतरिक रुप से व्यक्ति को कार्य/ व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है, चालक  (Drive) कहलाता है। 

दूसरे शब्दों में - प्राणी के शरीर में जब किसी मौलिक आवश्यकता की पूर्ति में कमी आ जाती है तो उसके अंदर तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती  है।  यह तनाव की स्थिति जिस रूप में अनुभव की जाती है, उसे चालक  (Drive) कहते हैं ।
जैसे - भूख , प्यास , निंद्रा  आदि ।
डैशिल के अनुसार - चालक शक्ति का वह मौलिक स्रोत है जो व्यक्ति को क्रियाशील कर देता है । (Drive is an original source of energy that activates the human organism.)
माथुर के अनुसार - चालक आवश्यकता से उत्पन्न होती है और प्राणी को कार्य करने के लिए अग्रसर करती है। 

3. उद्दीपन /प्रोत्साहन (Incentive) - प्रोत्साहन बाह्य वातावरण  से प्राप्त होने वाली वह वास्तु है जो प्राणी की आवश्यकता की पूर्ति करके चालक को शांत करती है ।
जैसे - शरीर में पानी की कमी होने से प्यास (चालक) प्राणी को क्रियाशील कर देती है तथा पानी मिलने पर प्यास शांत हो जाती है । इस प्रक्रिया में पानी प्रोत्साहन का कार्य करता है । इसी तरह भूख के लिए भोजन , साँस लेने के ऑक्सीजन प्रोत्साहन है ।
हिलगार्ड के अनुसार - उचित प्रोत्साहन वह है जिसके प्राप्त होने से चालक (Drive) की तीव्रता घटती है और व्यक्ति का मानसिक तनाव दूर होता है । ( An appropriate incentive is one that can reduce the intensity of a drive.)

प्रोत्साहन दो तरह के होते हैं - 
1. धनात्मक प्रोत्साहन (Positive Incentive)-  प्रशंसा, पुरस्कार, धन , स्वीकृति आदि ।
2.  नकारात्मक प्रोत्साहन (Negative  Incentive)-  पीड़ा , दंड , निंदा आदि। 

4. अभिप्रेरक/प्रेरक  (Motive)-  अभिप्रेरक अति व्यापक (Comprehensive) शब्द है इसके अंतर्गत प्रोत्साहन के अतिरिक्त चालक , तनाव , आवश्यकता सभी आ जाते हैं। 

गेट्स एवं अन्य के अनुसार - अभिप्रेरकों के विभिन्न स्वरुप हैं और इनको विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे - आवश्यकताएं (Needs),  इच्छाएं (Desires), तनाव (Tension), अभिवृत्तियाँ  (Attitudes), रूचि (Interest) , स्थायी प्रोत्साहन (Persisting Incentive) आदि ।
कुछ लोग अभिप्रेरणा (Motivation) तथा अभिप्रेरक (Motive) दोनों का  एक ही अर्थ मानते हैं परन्तु इसमें कुछ अंतर है । अभिप्रेरणा व्यक्ति को किसी व्यवहार करने की मानसिक स्थिति (Mental Set) है जबकि अभिप्रेरक (Motive) इस मानसिक स्थिति के कारक (Factor)  हैं ।  
ब्लेयर, जोन्स व सिम्पसन के अनुसार (According to Blair, Jones & Simpson) - अभिप्रेरक हमारी आधारभूत आवश्यकताओं से उत्पन्न होने वाली वे शक्तियां हैं जो व्यवहार  को दिशा और उद्देश्य प्रदान करती है ।
(Arising form our needs, motives are the energies which give direction and purpose to behaviour.)


आवश्यकता, अन्तर्नोद और प्रोत्साहन में सम्बन्ध (Relation in Need, Drive and Incentive)


हिलगार्ड के अनुसार  -  आवश्यकता (Need) चालक (Drive) को जन्म देती है। चालक  बढ़े हुए तनाव (Tension) की स्थिति है जो क्रिया और प्रारम्भिक व्यवहार की ओर ले जाती है। प्रोत्साहन (Incentive) वाह्य पर्यावरण (External Environment) की कोई वस्तु होती है जो आवश्यकता की सन्तुष्टि करती है और इस प्रकार सन्तुष्टि  क्रिया द्वारा चालक (Drive)  को कम करती है । 


अभिप्रेरणा चक्र (Motivation Cycle)


अभिप्रेरकों का वर्गीकरण (Classification of Motives)

 अभिप्रेरकों (Motives)  का वर्गीकरण अनेक विद्वानों द्वारा किया गया  है -.

गैरेट (Garrett) ने के अनुसार -  अभिप्रेरक  के  तीन प्रकार हैं 

  1.  जैविक अभिप्रेरक (Biological Motives) - भूख, प्यास, काम, काम, निंद्रा, विश्राम आदि।
  2.  मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरक (Psychological Motives)- ये प्रबल मनोवैज्ञानिक दशाओं के कारण उत्पन्न होते हैं । गैरेट ने इनके अंतर्गत संवेगों (Emotions) को स्थान दिया है। जैसे - क्रोध, भय, प्रेम, दुःख, आनंद आदि।
  3. सामाजिक अभिप्रेरक (Social Motives)-  ये प्रेरक सामाजिक आदर्शों, स्थितियों, संबंधों आदि के कारण उत्पन्न होते हैं और व्यक्ति के व्यवहार पर बहुत प्रभाव डालते हैं । जैसे - आत्म-सम्मान, आत्म- सुरक्षा, आत्म-प्रदर्शन, जिज्ञासा, रचनात्मकता आदि

थॉमसन (Thomson) के अनुसार- 

थॉमसन  ने दो प्रकार के  अभिप्रेरक बताये हैं- 

1.  स्वाभाविक अभिप्रेरणा (Natural Motives) - ये प्रेरक व्यक्ति के स्वभाव से ही पाए जाते है । जैसे-   खेल, अनुकरण,  सुझाव, प्रतिष्ठा, सुख- प्राप्ति आदि।

2. कृत्रिम अभिप्रेरक (Artificial Motives) – इस प्रकार के अभिप्रेरक वातावरण जनित होते हैं और व्यक्ति केे कार्य या व्यवहार को नियंत्रित और प्रोत्साहित करते हैं । जैसे- दंड, प्रशंसा, पुरस्कार, सहयोग, व्यक्तिगत और सामुहिक कार्य की प्रेरणा  आदि।

3. मैसलो (Maslow) के अनुसार–  शिक्षा के क्षेत्र में मैसलो द्वारा किया गया वर्गीकरण अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उसने अभिप्रेरकों का वर्गीकरण करते समय आवश्यकताओं की तीव्रता को आधार माना है। उसके अनुसार कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ ऐसी हैं जिनकी पूर्ति के लिए व्यक्ति को शीघ्र प्रयास करना पड़ता है, जैसे भूख, प्यास आदि।

दूसरे स्तर की वे आवश्यकताएँ हैं जिनके लिए व्यक्ति तब प्रयास करता है जब मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। सामाजिक तथा वातावरण जनित आवश्यकताएँ कम तीव्रता वाली आवश्यकताओं की श्रेणी में आती हैं। मैसलो ने दो प्रकार के अभिप्रेरक (Motive) बताये  हैं-

1जन्मजात अभिप्रेरक (Innate motives)- इन अभिप्रेरकों को शारीरिक (Physiological) या जैविक (Biological) अभिप्रेरक भी कहते हैं । जैसे -भूख, प्यास, काम, निंद्रा आदि।
2. अर्जित अभिप्रेरक (Acquired Motives)- 

(A) व्यक्ति अभिप्रेरक (Person Motives)-  आदत (Habit), रूचि (Interest), अभिवृत्ति (Attitude), जीवन मूल्य (Life Value), जीवन लक्ष्य (Life goal), अचेतन इच्छायें (Unconscious Desires) आदि।

(B) सामाजिक अभिप्रेरक (Social Motives)-  सामाजिकता (Sociality) , आत्म-स्थापना (Self-assertion), संग्रहता (Acquisition), सामाजिक मूल्य (Social Value) आदि।












शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है शिक्षा और मनोविज्ञान। पहले शिक्षा के बारे में जानना आवश्यक है। 

शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education)-     शिक्षा शब्द अंग्रेजी शब्द के Education का हिंदी रूपांतरण है जो लेटिन भाषा की Educatum शब्द से निकला है। Educatum  लैटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। E तथा Duco । यहाँ पर E का अर्थ  है  "अंदर से" तथा  Duco का अर्थ "आगे बढ़ाना" अर्थात "भीतर से बाहर निकलना"। 
शिक्षा का अर्थ है-  बालक की अंतर्निहित शक्तियों एवं गुणों को आगे बढ़ाना और विकसित करना। 
परंतु शिक्षा के वास्तविक स्वरूप के अवलोकन से ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि शिक्षा द्वारा बालक के अंतर्निहित शक्तियों एवं गुणों का विकास ही नहीं होता बल्कि बाहर से भी उसमें शक्तियों एवं  गुणों का विकास किया जाता है यह लैटिन भाषा की दूसरे शब्द Educare के अर्थ के विश्लेषण से प्रतीत होता है। Educare का अर्थ है - पोषित करना, विकसित करना एवं अंतर्निहित शक्तियों को आगे बढ़ाना।

गांधीजी के अनुसार - शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक और मनुष्य की शरीर मन और आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्तम विकास से है। (By Education I mean an allround drawing out of the best, in the child and man- body, mind and spirit.)

बीएन झा के अनुसार-   शिक्षा एक प्रक्रिया है और एक सामाजिक कार्य हैं जिसे कोई समाज अपने हित के लिए करता है। (Education is the process, a social function carried on the by the society for its own sake.)

प्लेटो के अनुसार- "शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास की प्रक्रिया ही शिक्षा है।" (Education is a process of physical, mental and intellectual development." -Plato) 
रेमन्ट के अनुसार- “शिक्षा विकास की वह प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य बचपन से प्रौढ़ता की ओर प्रगति करता है।" ("Education is a process of development in which man progresses from childhood to manhood." - Raymont)

ट्रो के अनुसार- “शिक्षा नियंत्रित वातावरण में मानव विकास क्रिया है।" ("Education is a human development in a controlled environment."- G.W. Trow)
हरबर्ट के अनुसार- शिक्षा का अर्थ अन्तःशक्तियों का बाह्य जीवन से समन्वय स्थापित करना है। (Education means establishment of co-ordination between the inherent powers and the outer life. - Herbert Spencer
पेस्टलोजी के अनुसार-  मनुष्य की शक्तियों का स्वाभाविक, समरस और प्रगतिशील विकास है।(Education is natural, harmonious and progressive development of mans innate powers.)

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, “मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।”

शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)

शिक्षा के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का आरंभ पेस्टलोजीहरबर्ट और फ्रोबेल के प्रयत्नों से हुआ। शिक्षा शास्त्रियों ने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक बनाने का प्रयास किया किंतु शिक्षा में मनोवैज्ञानिक आंदोलन का सूत्रपात करने वाला प्रकृतिवादी शिक्षा शास्त्री रूसो था। उसने शिक्षा शास्त्रियों का ध्यान शिक्षा तथा पाठ्य विषय से हटाकर बालक की ओर केंद्रित किया और इस बात पर बल दिया कि शिक्षा बालक की प्रवृतियो (Trends) रूचियों (Interests) योग्यताओं (Abilities) तथा उनके विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार दी जाए।

शिक्षा मनोविज्ञान के जनक एडवर्ड ली थार्नडाइक माने जाते हैं।

अर्थ (Meaning)- शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मानव व्यवहार में परिवर्तन लाना है और मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जिसका संबंध व्यवहारिक परिवर्तनों से है यह सामान्य मनोविज्ञान का व्यवहारिक रूप है दोनों का संबंध व्यवहार से है शिक्षा, मनोविज्ञान का आधार है। 

सामान्यतः शिक्षा की समस्याओं को समझने एवं उनका समाधान करने में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों एवं  नियमों के प्रयोग के ज्ञान या विद्या को शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)  कहते हैं।


परिभाषायें (Definitions)

कोल्सनिक के अनुसार-  शिक्षा मनोविज्ञान,  शिक्षा के क्षेत्र में खोजो एवं सिद्धांतों का प्रयोग हैं ।(Educational Psychology is the the application of the findings and the theories of psychology in the field of education.)

 बीएफ स्किनर के अनुसार - 1. शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका संबंध अध्ययन तथा सीखने से है।

2. शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों की तैयारी की आधारशिला है।

3. शिक्षा से जुड़े सभी व्यवहार तथा व्यक्तित्व शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत आते हैं । 

4. शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में उन सभी ज्ञान और विधियों को शामिल किया जाता है जो सीखने की प्रक्रिया को अधिक अच्छी प्रकार से समझने और अधिक कुशलता से निर्देशित करने के लिए है।

5.  मानव व्यवहार का शैक्षिक परिस्थितियों में अध्ययन करना ही शिक्षा मनोविज्ञान है।

" शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक  परिस्थितियों में मनोविज्ञान की उन खोजों का प्रयोग करता है जो मुख्य रूप से मनुष्य के अनुभवों और व्यवहार से संबंधित है।"

क्रो एंड क्रो के अनुसार- शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक अधिगम के अनुभवों का वर्णन तथा व्याख्या करना है ।(Educational psychology describes and explains the learning experiences of an individual from birth to old age.)

थॉर्नडाइक के अनुसार- शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत शिक्षा से संबंधित संपूर्ण व्यवहार और व्यक्तित्व आता है।

"शिक्षा मनोविज्ञान वह विज्ञान है जिसमें मनोविज्ञान में की गई खोजों, बनाए गए सिद्धांतों एवं नियमों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करके शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया जाता है । इसमें छात्र की अभिवृद्धि व विकास एवं मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक तथा सृजनात्मक क्षमताओं आदि का अध्ययन तथा मापन किया जाता है।"

शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता एवं महत्व (Need and Importance of Educational Psychology)


  1. बालक की स्वभाव का ज्ञान प्रदान करने हेतु।
  2.  बालक को अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने हेतु।
  3.  शिक्षा के स्वरूप उद्देश्यों और प्रयोजनों से परिचित कराना।
  4.  सीखने और सिखाने के सिद्धांतों और विधियों से अवगत कराना। 
  5. शिक्षक प्रबंधकों एवं प्रशासकों का मुख्य कार्य शिक्षा प्रबंध करना तथा उसकी व्यवस्था करने और उसे सुचारू रूप से चलाने के लिए इसकी आवश्यकता है।
  6.  अभिभावकों को बच्चों की बुद्धि, अभिक्षमता एवं रुचियों को स्पष्ट करने के लिए इसकी आवश्यकता है।
  7.  प्रधानाचार्यों को अपनी क्रियाओ में सुधार करने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता है।    
शिक्षकों के लिए आवश्यकता एवं महत्व-
  1. शिक्षा के संप्रत्यय को समझने में सहायक।
  2. शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति एवं लक्ष्य निर्धारित करने में सहायक।
  3. पाठ्यचर्या के चयन एवं निर्माण में सहायक।
  4.  शिक्षण विधियों के चयन एवं निर्माण में सहायक। 
  5. शैक्षिक मापन एवं मूल्यांकन में सहायक।
  6.  शिक्षकों को अपने आप को समझने में सहायक। 
  7. विद्यार्थियों को समझने में सहायक।
  8. शैक्षिक एवं व्यवसायिक निर्देशन में सहायक।


शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा मनोविज्ञान का योगदान/ शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र (Contribution of Educational Psychology in field of Education/ Scope of Educational Psychology)




Monday, May 3, 2021

अभिप्रेरणा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Motivation)

अभिप्रेरणा  (Motivation)

अर्थ (Meaning)-

 अभिप्रेरणा या प्रेरणा (Motivation) का  शाब्दिक अर्थ उत्तेजना/उद्दीपक (Stimulus) से लिया जाता है । उत्तेजना (Stimulus) किसी व्यक्ति को कार्य करने अथवा प्रतिक्रिया (Response) करने के लिए प्रेरित (Inspire) करती है। यह उत्तेजना आन्तरिक(Internal) अथवा बाह्य (External) किसी भी प्रकार की हो सकती है ।
Motivation शब्द लैटिन भाषा के Motum या Movere शब्द से बना हैं जिसका अर्थ है Motion, Motor, To move  अर्थात् गति करना। अतः हम कह सकते हैं कि अभिप्रेरणा किसी कार्य को करने के  लिए गति प्रदान करती है।

मनोवैज्ञानिक अर्थ  में अभिप्रेरणा (Motivation) से हमारा अभिप्राय केवल आंतरिक उत्तेजनाओं (Internal Stimuli) से है जिन पर हमारा व्यवहार आधारित होता है । इसमें बाह्य  उत्तेजनाओं (External Stimuli) को महत्व नहीं दिया जाता है 

अभिप्रेरणा (Motivation) एक ऐसा प्रेरक (Drive) है या आंतरिक बल (Internal Force) है जो व्यक्ति को लक्ष्य की ओर  या निश्चित व्यवहार करने के लिए अग्रसर करता है 

परिभाषायें  (Definitions)

1. गुड के अनुसार  (According to Good) -अभिप्रेरणा किसी कार्य को प्रारम्भ करने, जारी रखने तथा सही दिशा में लगाने की प्रक्रिया है। (Motivation is the process of arousing, sustaining and regulating an activity.)

2. वुडवर्थ  के अनुसार (According to Woodworth) - "प्रेरक व्यक्ति की वह स्थिति है जो उसे निर्धारित व्यवहार करने हेतु तथा निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु उत्तेजित करती है।" ("A motive is a state of the individual which disposes him for main behaviour and for seeking certain goals.")
उपलब्धि (Achievement) =  योग्यता (Ability) + अभिप्रेरणा (Motivation) अर्थात योग्यता एवं अभिप्रेरणा से उपलब्धि प्राप्त होती है 

3. बर्नार्ड के अनुसार  (According to Bernard)–“जिस लक्ष्य के प्रति पहले कोई आकर्षण नहीं था, उस लक्ष्य के प्रति कार्य की उत्तेजना ही अभिप्रेरणा है।” ("Motivation is the stimulation of action toward a particular objective where previously there was little or no attraction toward that goal.")

4जॉनसन के अनुसार  (According to Johnson)–“अभिप्रेरणा सामान्य क्रियाओं का प्रभाव है, जो प्राणी व्यवहार की ओर इंगित करता है तथा उसका पथ-प्रदर्शन करता है। " ("Motivation is the influence of general pattern of activities in indicating and directing the behaviour of the organism.")

5.  लावेल के अनुसार  (According to Lawell) - “ अभिप्रेरणा एक मनोवैज्ञानिक या आन्तरिक प्रेरणा है जो किसी आवश्यकता की  उपस्थिति में उत्पन्न होती है। यह ऐसी क्रिया की ओर गतिशील होती है जो उस आवश्यकता को संतुष्ट करेगी।" ("Motivation may be defined more formally as a psychological or internal process initiated for some need which leads to any activity which will satisfy that need.")

6.  ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन के अनुसार (According to Blair, Jones and Simpson)-  “प्रेरणा एक प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाले की आन्तरिक शक्तियाँ या आवश्यकतायें उसके वातावरण में विभिन्न लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती हैं।" ("Motivation is a process in which the learner energies or needs are directed towards various good objects in his environment.") 

7.  बी० एफ  स्किनर  के अनुसार  (According to B.F. Skinner) - अभिप्रेरणा  अधिगम का सर्वोत्तम राजमार्ग है । (Motivation is the best highway of learning.)

अभिप्रेरणा की प्रकृति
(Nature of Motivation) 


  1. अभिप्रेरणा प्रक्रिया (Process) एवं परिणाम (Product) दोनों हैं। 
  2. अभिप्रेरणा का जन्म किसी-न-किसी आवश्यकता (Need) से होता है।
  3. अभिप्रेरणा एक प्रबल भावात्मक (Strongly Emotional)  उत्तेजना की स्थिति होती है जिसके कारण व्यक्ति में मनोवैज्ञानिक तनाव (Psychological Tension) उत्पन्न होता है जिसे कम करने के लिए वह क्रियाशील होता है।
  4. अभिप्रेरणा व्यक्ति को तब तक क्रियाशील रखती है जब तक कि उद्देश्य की प्राप्ति नहीं हो जाती है। 
  5. अभिप्रेरणा व्यक्ति को रुचि के अभाव में भी क्रियाशील रखती है। जैसे -  यदि कोई छात्र इंजीनियर बनने के लिए अभिप्रेरित हो और उसकी गणित में रुचि न हो तो वह उस स्थिति में भी गणित की समस्याओं को हल करने में क्रियाशील रहेगा ।
  6. अभिप्रेरणा को उत्पन्न करने वाले कारकों को मनोवैज्ञानिक भाषा में अभिप्रेरक (Motives) कहते हैं ।
  7. अभिप्रेरणा के माध्यम से ही व्यक्ति का व्यवहार संचालित होता है ।

अभिप्रेरणा के प्रकार(Types of Motivation)


अभिप्रेरणा मुख्यतः दो प्रकार की होती है-

1. सकारात्मक अभिप्रेरणा (Positive Motivation)- इस अभिप्रेरणा को आन्तरिक अभिप्रेरणा (Internal Motivation) भी कहते हैं। इसमें बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से करता है। इस कार्य को करने में उसे सुख और संतोष प्राप्त होता है शिक्षक विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन और स्थितियों का निर्माण करक बालक को सकारात्मक अभिप्रेरणा प्रदान करता है।

2. नकारात्मक अभिप्रेरणा (Negative Motivation)-  अभिप्रेरणा को बाह्य  अभिप्रेरणा (External Motivation) भी कहते हैं। इसमें बालक किसी कार्य को  अपनी स्वयं की इच्छा से  न करके किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रभाव (External Effect) के कारण करता है इस कार्य को करने से उसे किसी वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। शिक्षक द्वारा  प्रशंसा,  निंदा, पुरस्कार आदि का प्रयोग करके बालक को नकारात्मक आभिप्रेरणा प्रदान करतेे हैं ।

Sunday, May 2, 2021

सीखने के स्थानांतरण के सिद्धांत और शैक्षिक महत्व (Theories and Educational Importance of Transfer of learning)

 सीखने के स्थानांतरण के सिद्धांत 

(Theories of Transfer of learning) 

मनोवैज्ञानिकों ने सीखने के स्थानांतरण के सम्बन्ध में कुछ तथ्यों की खोज की है , इन्ही के सामान्यीकरण (Generalization) से प्राप्त निष्कर्षों (Findings) को स्थानांतरण के सिद्धांत कहते हैं ।


1. मानसिक अनुशासन अथवा मानसिक शक्तियों का सिद्धान्त (Theory of Mental Discipline or Mental Faculties)-


अधिगम के स्थानान्तरण (Transfer of Learning) का यह सबसे पुराना सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार हमारा मस्तिष्क  अनेक मानसिक शक्तियों के संयोग से बना है।  जैसे - तर्क (Logic) , ध्यान (Attention) , स्मृति (Memory) , कल्पना(Imagination) आदि।  इन शक्तियों को अभ्यास (exercise) के द्वारा मांसपेशियों की भाँति सशक्त बनाया जा सकता है। विभिन्न मानसिक शक्तियों (faculties) को प्रबल (Strong), नियमित (Regular) एवं सुगठित(Compact) बनाने को मनोवैज्ञानिकों ने “Doctrine of the Formal Discipline” का नाम दिया। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की मानसिक योग्यताओं/ शक्तियों को औपचारिक (Formal) ढंग से प्रशिक्षित (Trained) तथा अनुशासित (Disciplined) कर दिया जाये तो वह उनको किसी भी क्षेत्र में प्रयोग कर सकता है। 

वर्तमान में इस सिद्धान्त को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता है क्योंकि विलियम जेम्स (William James), थॉर्नडाइक (Thorndike) तथा बिजमैन (Wesman) आदि मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि एक क्षेत्र में मानसिक शक्तियों के विकास किये जाने का प्रभाव दूसरे क्षेत्र में किये गये निष्पादन (Performance) में बहुत कम पाया गया अथवा बिल्कुल भी नहीं पाया गया।

2. समान तत्त्वों का सिद्धान्त (Theory of Identical Elements)-


इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक (Thorndike) ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार जब दो विषयों (Subjects) अथवा कौशलों (Skills) में कुछ समान तत्व (Element) होते हैं तो उनमें स्थानान्तरण की सम्भावना होती है; जिन विषयों अथवा कौशलों में ये समान तत्व  जितने अधिक होते हैं उनमें स्थानान्तरण की सम्भावना भी उतनी ही अधिक होती है। 
उदाहरण- संस्कृत और हिन्दी भाषा में समान तत्व  हैं इसलिए इनमें सीखने का स्थानान्तरण होता है लेकिन लैटिन और हिन्दी भाषा में समान तत्व नहीं हैं इसलिए इनमें सीखने का स्थानान्तरण नहीं होता । 
यदि इस सिद्धान्त की बारीकी से परख की जाए तो स्पष्ट होगा कि इसमें समान तत्वों का सम्प्रत्यय (Concept) ही अधूरा है, इसलिए यह सिद्धान्त भी अपने में सही होते हुए भी पूर्ण नहीं है।

3. सामान्यीकरण का सिद्धान्त (Theory of Generalization)-

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक सी० एच ० जुड (C.H. Judd) ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी एक परिस्थिति में जो कुछ भी ज्ञान अथवा कौशल सीखा जाता है, उसका सामान्यीकृत अंश ही किसी अन्य परिस्थिति में सीखे जाने वाले ज्ञान एवं कौशल के सीखने में सहायक होता है। 
उदाहरण- गणित की समस्याओं को हल करने का समस्त ज्ञान एवं कौशल ज्योतिषशास्त्र (Astrology) के क्षेत्र की गणना सीखने में सहायक नहीं होता, केवल जोड़, घटाना , गुणा, भाग और एकिक नियम का सामान्यीकृत रूप अर्थात् सूत्र ही सहायक होते हैं।

इस सिद्धान्त को “Transfer by Mastering Principles” के नाम से भी जाना जाता है जिसके अनुसार उस ज्ञान का ही व्यक्ति एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरण कर सकता है जिस पर उसने पूर्ण स्वामित्व (Mastery) प्राप्त कर लिया है। 

4. मूल्यों तथा आदर्शों का सिद्धान्त (Theory of Values and Ideals) 

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक डब्ल्यू सी० वागले (W. C. Bagley) हैं। इनके अनुसार सामान्यीकरण के द्वारा स्थानान्तरण को प्रक्रिया मूल्यों तथा आदर्शों पर आधारित है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन के किसी क्षेत्र में ईमानदारी अथवा कर्त्तव्यनिष्ठा  (Sincerity) जैसे मूल्यों को अपनाता है तो वह अपने जीवन में अन्य क्षेत्रों में भी इन मूल्यों का पालन करता है। इसी प्रकार लापरवाह व्यक्ति हर क्षेत्र में लापरवाही दिखाता है। जो व्यक्ति समय का पाबन्द/नियमित (regular) होता है वह हर जगह निर्धारित समय से पहले ही पहुँचने का प्रयास करता है भले ही अन्य लोग वहाँ देर (late) पहुँचें। अतः बालकों में बचपन से ही ऐसे मूल्यों आदर्शों को विकसित करना चाहिये जो उसके तथा समाज के लिए उपयोगी हों। आज देश में राष्ट्रभक्त, ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ तथा परिश्रमी नागरिकों की आवश्यकता है जो इस भ्रष्ट तन्त्र का सफाया करने में सक्षम हो ।

5. सामान्य व विशिष्ट तत्वों का सिद्धान्त (Theory of ‘General’ & ‘Specific’ Factors) -                                   

इस सिद्धान्त का प्रतिपादक स्पीयरमैन (Spearman) है। उसके अनुसार, मनुष्य में दो प्रकार की बुद्धि होती है- सामान्य (General) और विशिष्ट (Specific)। जिनका सम्बन्ध सामान्य योग्यता और विशिष्ट योग्यता से होता है। स्थानान्तरण केवल सामान्य योग्यता का होता है, 
उदाहरण- यदि बालक - भूगोल, गणित, विज्ञान आदि किसी विषय का अध्ययन करता है, तो वह केवल अपनी सामान्य योग्यता का ही स्थानान्तरण करता है। 
भाटिया के अनुसार-“विशिष्ट योग्यताओं का स्थानान्तरण नहीं होता है, पर सामान्य योग्यता का कुछ होता है। "
("There is no transfer in special abilities but there is some in general ability.")

6. पूर्णकारवाद सिद्धांत (Gestalt Theory)-

स्थानांतरण के विषय में गेस्टाल्ट  मनोवैज्ञानिकों ने ज्ञान अथवा क्रिया को महत्व दिया है। बालक का अनुभव एक इकाई होता है। वह किसी क्षेत्र से सम्बंधित वस्तुओ का निरीक्षण (Inspection), परीक्षण (Testing) एवं प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करके सीखता है। ये मनोवैज्ञानिक सूझ को बहुत अधिक महत्व देते  हैं । इनके अनुसार सूझ (Sense) द्वारा अनुभव एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में स्थान्तरण हो जाते हैं । कोहलर ने इस सम्बन्ध में मुर्गियों, चिम्पैजी तथा बालको पर अनेक प्रयोग करके अपने इस विचार की पुष्टि की ।

       सीखने के स्थानांतरण का  शैक्षिक महत्व और शिक्षकों की भूमिका              (Educational Importance of Transfer of Learning and Role of the Teachers)


आज शिक्षा में शिक्षण के स्थानान्तरण का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षक को  इस बात का प्रयत्न करना चाहिये कि बालकों को शिक्षा इस प्रकार से प्रदान की जाये कि एक क्रिया द्वारा प्राप्त ज्ञान का उपयोग दूसरी कियाओं में भी भली-भांति कर सकें। इसके लिये शिक्षक को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये 
  1. शिक्षक को किसी भी विषय को पढ़ाते समय उस विषय के उन अर्थों (Meanings)  पर विशेष बल देना चाहिये जिनका उपयोग दूसरे क्षेत्रों में किया जा सकता है। 
  2. शिक्षक को न केवल विषय के किसी अंश पर अधिक बल देना चाहिये बल्कि उस अंश का किस प्रकार दूसरे क्षेत्रों में व्यवहार किया जायेगा, इसका अभ्यास भी बालकों को कराना चाहिये।
  3. जब बालक किसी विषय को अच्छी तरह से सीख जाता है तभी  उसका स्थानान्तरण (Transfer) अच्छे  प्रकार से कर पाता है। इसीलिये शिक्षक को चाहिये कि विषय को सिखाते समय उसका पूरा अभ्यास भी कराये और उसको ठीक प्रकार से समझने की क्षमता (Ability) बालकों में विकसित करे।
  4. कोई शिक्षण जितना अर्थपूर्ण और जीवन के नजदीक होता है, उसका स्थानान्तरण उतने  ही आसानी से होता है। इसलिये शिक्षक को चाहिये कि वह विषय को अधिक से अधिक सार्थक बनाने का प्रयास करें।
  5.  शिक्षण के समय शिक्षक को बालकों के बौद्धिक स्तर का पूरा ध्यान रखना चाहिये। यदि बालक कम बुद्धि वाले हैं तो उसे उसी के अनुकूल समय और सुविधायें देते हुये विषय को पढ़ाना चाहिये। तीव्र बुद्धि के बालकों पर स्थानान्तरण की दृष्टि से विशेष ध्यान देना चाहिये क्योंकि ऐसे बालक अपने अनुभव और योग्यता का उपयोग सरलतापूर्वक किसी भी परिस्थिति में करने में समर्थ होते  हैं। इस प्रकार तीव्र बुद्धि, मन्द बुद्धि और सामान्य बुद्धि के बालकों को उनके स्तर के  अनुसार शिक्षण दिया जाना चाहिये। 
  6. पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि पाठ्यक्रम  निरर्थक (Meaningless) अरुचिपूर्ण और अनुपयोगी (Unusable) न हो। पाठ्यक्रम पूर्ण  सार्थक और लचीला होना चाहिये।
  7. शिक्षण विधि (Teaching Method) पर स्थानान्तरण बहुत कुछ निर्भर करता है। अतः शिक्षक को  चाहिये वह बालकों की रुचि (Interest), समझ  और आवश्यकताओं को ध्यान रखते हुए मनोवैज्ञानिक और रोचक (Attractive) शिक्षण विधियों का प्रयोग करके शिक्षण प्रदान करें ।
  8.  शिक्षक को शिक्षण में सामान्यीकरण के सिद्धान्त का प्रयोग करना चाहिये। ऐसा करने से स्थानान्तरण की सम्भावना अधिक रहती है।
  9. शिक्षक को स्वयं उस विषय का पूर्ण और स्पष्ट ज्ञान होना चाहिये, जिस विषय को वह बालकों को पढ़ा रहा है। उसे इस बात का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये कि किन विषयों में उसे स्थानान्तरण का ज्ञान देना है।
  10. शिक्षक को चाहिये कि वह बालकों को विषय की महत्ता (Importance of the subject) और उपयोगिता बताते हुये प्राप्त ज्ञान का उपयोग सामान्य जीवन में करने के लिये उत्साहित करे। ऐसा करने से वे अपनी अन्तर्निहित योग्यता का विकास कर सकेंगे और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकेंगे। बालक प्राप्त ज्ञान का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करें तभी शिक्षण का वास्तविक स्थानान्तरण होगा, इसके लिये शिक्षक को क्रिया द्वारा सीखने (Learning by doing), योजना विधि (Project Method) आदि उपयोगी विधियों को अपनाना चाहिये। 
  11. पढ़ाते समय शिक्षक को दृश्य-श्रव्य साधनों (Audio-Visual Aids) का प्रयोग करना चाहिये जिससे पाठ्यवस्तु रोचक व प्रभावपूर्ण बन सके ।
  12. शिक्षक को यथासम्भव नकारात्मक स्थानान्तरण (Negative Transfer of Training) का अवसर नहीं देना चाहिये।
  13. शिक्षक द्वारा बालकों को अपने पूर्व में सीखे ज्ञान एवं कौशलों के प्रयोग के स्वतंत्र अवसर (free opportunity) प्रदान करना चाहिए ।

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