Sunday, May 2, 2021

सीखने के स्थानांतरण के सिद्धांत और शैक्षिक महत्व (Theories and Educational Importance of Transfer of learning)

 सीखने के स्थानांतरण के सिद्धांत 

(Theories of Transfer of learning) 

मनोवैज्ञानिकों ने सीखने के स्थानांतरण के सम्बन्ध में कुछ तथ्यों की खोज की है , इन्ही के सामान्यीकरण (Generalization) से प्राप्त निष्कर्षों (Findings) को स्थानांतरण के सिद्धांत कहते हैं ।


1. मानसिक अनुशासन अथवा मानसिक शक्तियों का सिद्धान्त (Theory of Mental Discipline or Mental Faculties)-


अधिगम के स्थानान्तरण (Transfer of Learning) का यह सबसे पुराना सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार हमारा मस्तिष्क  अनेक मानसिक शक्तियों के संयोग से बना है।  जैसे - तर्क (Logic) , ध्यान (Attention) , स्मृति (Memory) , कल्पना(Imagination) आदि।  इन शक्तियों को अभ्यास (exercise) के द्वारा मांसपेशियों की भाँति सशक्त बनाया जा सकता है। विभिन्न मानसिक शक्तियों (faculties) को प्रबल (Strong), नियमित (Regular) एवं सुगठित(Compact) बनाने को मनोवैज्ञानिकों ने “Doctrine of the Formal Discipline” का नाम दिया। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की मानसिक योग्यताओं/ शक्तियों को औपचारिक (Formal) ढंग से प्रशिक्षित (Trained) तथा अनुशासित (Disciplined) कर दिया जाये तो वह उनको किसी भी क्षेत्र में प्रयोग कर सकता है। 

वर्तमान में इस सिद्धान्त को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता है क्योंकि विलियम जेम्स (William James), थॉर्नडाइक (Thorndike) तथा बिजमैन (Wesman) आदि मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि एक क्षेत्र में मानसिक शक्तियों के विकास किये जाने का प्रभाव दूसरे क्षेत्र में किये गये निष्पादन (Performance) में बहुत कम पाया गया अथवा बिल्कुल भी नहीं पाया गया।

2. समान तत्त्वों का सिद्धान्त (Theory of Identical Elements)-


इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक (Thorndike) ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार जब दो विषयों (Subjects) अथवा कौशलों (Skills) में कुछ समान तत्व (Element) होते हैं तो उनमें स्थानान्तरण की सम्भावना होती है; जिन विषयों अथवा कौशलों में ये समान तत्व  जितने अधिक होते हैं उनमें स्थानान्तरण की सम्भावना भी उतनी ही अधिक होती है। 
उदाहरण- संस्कृत और हिन्दी भाषा में समान तत्व  हैं इसलिए इनमें सीखने का स्थानान्तरण होता है लेकिन लैटिन और हिन्दी भाषा में समान तत्व नहीं हैं इसलिए इनमें सीखने का स्थानान्तरण नहीं होता । 
यदि इस सिद्धान्त की बारीकी से परख की जाए तो स्पष्ट होगा कि इसमें समान तत्वों का सम्प्रत्यय (Concept) ही अधूरा है, इसलिए यह सिद्धान्त भी अपने में सही होते हुए भी पूर्ण नहीं है।

3. सामान्यीकरण का सिद्धान्त (Theory of Generalization)-

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक सी० एच ० जुड (C.H. Judd) ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी एक परिस्थिति में जो कुछ भी ज्ञान अथवा कौशल सीखा जाता है, उसका सामान्यीकृत अंश ही किसी अन्य परिस्थिति में सीखे जाने वाले ज्ञान एवं कौशल के सीखने में सहायक होता है। 
उदाहरण- गणित की समस्याओं को हल करने का समस्त ज्ञान एवं कौशल ज्योतिषशास्त्र (Astrology) के क्षेत्र की गणना सीखने में सहायक नहीं होता, केवल जोड़, घटाना , गुणा, भाग और एकिक नियम का सामान्यीकृत रूप अर्थात् सूत्र ही सहायक होते हैं।

इस सिद्धान्त को “Transfer by Mastering Principles” के नाम से भी जाना जाता है जिसके अनुसार उस ज्ञान का ही व्यक्ति एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरण कर सकता है जिस पर उसने पूर्ण स्वामित्व (Mastery) प्राप्त कर लिया है। 

4. मूल्यों तथा आदर्शों का सिद्धान्त (Theory of Values and Ideals) 

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक डब्ल्यू सी० वागले (W. C. Bagley) हैं। इनके अनुसार सामान्यीकरण के द्वारा स्थानान्तरण को प्रक्रिया मूल्यों तथा आदर्शों पर आधारित है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन के किसी क्षेत्र में ईमानदारी अथवा कर्त्तव्यनिष्ठा  (Sincerity) जैसे मूल्यों को अपनाता है तो वह अपने जीवन में अन्य क्षेत्रों में भी इन मूल्यों का पालन करता है। इसी प्रकार लापरवाह व्यक्ति हर क्षेत्र में लापरवाही दिखाता है। जो व्यक्ति समय का पाबन्द/नियमित (regular) होता है वह हर जगह निर्धारित समय से पहले ही पहुँचने का प्रयास करता है भले ही अन्य लोग वहाँ देर (late) पहुँचें। अतः बालकों में बचपन से ही ऐसे मूल्यों आदर्शों को विकसित करना चाहिये जो उसके तथा समाज के लिए उपयोगी हों। आज देश में राष्ट्रभक्त, ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ तथा परिश्रमी नागरिकों की आवश्यकता है जो इस भ्रष्ट तन्त्र का सफाया करने में सक्षम हो ।

5. सामान्य व विशिष्ट तत्वों का सिद्धान्त (Theory of ‘General’ & ‘Specific’ Factors) -                                   

इस सिद्धान्त का प्रतिपादक स्पीयरमैन (Spearman) है। उसके अनुसार, मनुष्य में दो प्रकार की बुद्धि होती है- सामान्य (General) और विशिष्ट (Specific)। जिनका सम्बन्ध सामान्य योग्यता और विशिष्ट योग्यता से होता है। स्थानान्तरण केवल सामान्य योग्यता का होता है, 
उदाहरण- यदि बालक - भूगोल, गणित, विज्ञान आदि किसी विषय का अध्ययन करता है, तो वह केवल अपनी सामान्य योग्यता का ही स्थानान्तरण करता है। 
भाटिया के अनुसार-“विशिष्ट योग्यताओं का स्थानान्तरण नहीं होता है, पर सामान्य योग्यता का कुछ होता है। "
("There is no transfer in special abilities but there is some in general ability.")

6. पूर्णकारवाद सिद्धांत (Gestalt Theory)-

स्थानांतरण के विषय में गेस्टाल्ट  मनोवैज्ञानिकों ने ज्ञान अथवा क्रिया को महत्व दिया है। बालक का अनुभव एक इकाई होता है। वह किसी क्षेत्र से सम्बंधित वस्तुओ का निरीक्षण (Inspection), परीक्षण (Testing) एवं प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करके सीखता है। ये मनोवैज्ञानिक सूझ को बहुत अधिक महत्व देते  हैं । इनके अनुसार सूझ (Sense) द्वारा अनुभव एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में स्थान्तरण हो जाते हैं । कोहलर ने इस सम्बन्ध में मुर्गियों, चिम्पैजी तथा बालको पर अनेक प्रयोग करके अपने इस विचार की पुष्टि की ।

       सीखने के स्थानांतरण का  शैक्षिक महत्व और शिक्षकों की भूमिका              (Educational Importance of Transfer of Learning and Role of the Teachers)


आज शिक्षा में शिक्षण के स्थानान्तरण का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षक को  इस बात का प्रयत्न करना चाहिये कि बालकों को शिक्षा इस प्रकार से प्रदान की जाये कि एक क्रिया द्वारा प्राप्त ज्ञान का उपयोग दूसरी कियाओं में भी भली-भांति कर सकें। इसके लिये शिक्षक को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये 
  1. शिक्षक को किसी भी विषय को पढ़ाते समय उस विषय के उन अर्थों (Meanings)  पर विशेष बल देना चाहिये जिनका उपयोग दूसरे क्षेत्रों में किया जा सकता है। 
  2. शिक्षक को न केवल विषय के किसी अंश पर अधिक बल देना चाहिये बल्कि उस अंश का किस प्रकार दूसरे क्षेत्रों में व्यवहार किया जायेगा, इसका अभ्यास भी बालकों को कराना चाहिये।
  3. जब बालक किसी विषय को अच्छी तरह से सीख जाता है तभी  उसका स्थानान्तरण (Transfer) अच्छे  प्रकार से कर पाता है। इसीलिये शिक्षक को चाहिये कि विषय को सिखाते समय उसका पूरा अभ्यास भी कराये और उसको ठीक प्रकार से समझने की क्षमता (Ability) बालकों में विकसित करे।
  4. कोई शिक्षण जितना अर्थपूर्ण और जीवन के नजदीक होता है, उसका स्थानान्तरण उतने  ही आसानी से होता है। इसलिये शिक्षक को चाहिये कि वह विषय को अधिक से अधिक सार्थक बनाने का प्रयास करें।
  5.  शिक्षण के समय शिक्षक को बालकों के बौद्धिक स्तर का पूरा ध्यान रखना चाहिये। यदि बालक कम बुद्धि वाले हैं तो उसे उसी के अनुकूल समय और सुविधायें देते हुये विषय को पढ़ाना चाहिये। तीव्र बुद्धि के बालकों पर स्थानान्तरण की दृष्टि से विशेष ध्यान देना चाहिये क्योंकि ऐसे बालक अपने अनुभव और योग्यता का उपयोग सरलतापूर्वक किसी भी परिस्थिति में करने में समर्थ होते  हैं। इस प्रकार तीव्र बुद्धि, मन्द बुद्धि और सामान्य बुद्धि के बालकों को उनके स्तर के  अनुसार शिक्षण दिया जाना चाहिये। 
  6. पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि पाठ्यक्रम  निरर्थक (Meaningless) अरुचिपूर्ण और अनुपयोगी (Unusable) न हो। पाठ्यक्रम पूर्ण  सार्थक और लचीला होना चाहिये।
  7. शिक्षण विधि (Teaching Method) पर स्थानान्तरण बहुत कुछ निर्भर करता है। अतः शिक्षक को  चाहिये वह बालकों की रुचि (Interest), समझ  और आवश्यकताओं को ध्यान रखते हुए मनोवैज्ञानिक और रोचक (Attractive) शिक्षण विधियों का प्रयोग करके शिक्षण प्रदान करें ।
  8.  शिक्षक को शिक्षण में सामान्यीकरण के सिद्धान्त का प्रयोग करना चाहिये। ऐसा करने से स्थानान्तरण की सम्भावना अधिक रहती है।
  9. शिक्षक को स्वयं उस विषय का पूर्ण और स्पष्ट ज्ञान होना चाहिये, जिस विषय को वह बालकों को पढ़ा रहा है। उसे इस बात का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये कि किन विषयों में उसे स्थानान्तरण का ज्ञान देना है।
  10. शिक्षक को चाहिये कि वह बालकों को विषय की महत्ता (Importance of the subject) और उपयोगिता बताते हुये प्राप्त ज्ञान का उपयोग सामान्य जीवन में करने के लिये उत्साहित करे। ऐसा करने से वे अपनी अन्तर्निहित योग्यता का विकास कर सकेंगे और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकेंगे। बालक प्राप्त ज्ञान का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करें तभी शिक्षण का वास्तविक स्थानान्तरण होगा, इसके लिये शिक्षक को क्रिया द्वारा सीखने (Learning by doing), योजना विधि (Project Method) आदि उपयोगी विधियों को अपनाना चाहिये। 
  11. पढ़ाते समय शिक्षक को दृश्य-श्रव्य साधनों (Audio-Visual Aids) का प्रयोग करना चाहिये जिससे पाठ्यवस्तु रोचक व प्रभावपूर्ण बन सके ।
  12. शिक्षक को यथासम्भव नकारात्मक स्थानान्तरण (Negative Transfer of Training) का अवसर नहीं देना चाहिये।
  13. शिक्षक द्वारा बालकों को अपने पूर्व में सीखे ज्ञान एवं कौशलों के प्रयोग के स्वतंत्र अवसर (free opportunity) प्रदान करना चाहिए ।

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