गणित में भास्कराचार्य प्रथम का योगदान (Contribution of Bhaskaracharya -I in Mathematics )
जन्म- लगभग 600 ईस्वी के आसपास
भास्कर प्रथम भारत के सातवीं शताब्दी के गणितज्ञ थे। संभवतः उन्होने ही सबसे पहले संख्याओं को हिन्दू दाशमिक पद्धति में लिखना आरम्भ किया। उन्होंने आर्यभट्ट की कृतियों पर टीका लिखी और उसी सन्दर्भ में ज्या य (sin x) का परिमेय मान बताया जो अनन्य एवं अत्यन्त उल्लेखनीय है। आर्यभटीय पर उन्होने सन् 629 में आर्यभटीयभाष्य नामक टीका लिखी जो संस्कृत गद्य में लिखी गणित एवं खगोलशास्त्र की प्रथम पुस्तक है। आर्यभट्ट की परिपाटी में ही उन्होने महाभास्करीय एवं लघुभास्करीय नामक दो खगोलशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखे।
योगदान (Contribution) -
- भास्कर ने पहले ही इस दावे पर विचार किया है कि यदि p एक अभाज्य संख्या है, तो 1 + ( p -1)! p से विभाज्य है ।
- महाभास्करीय में आठ अध्याय हैं। सातवें अध्याय के श्लोक 17, 18 और 19 में उन्होने sin x का सन्निकट मान (approximate value) निकालने का निम्नलिखित सूत्र दिया है-
इस सूत्र को उन्होने आर्यभट्ट द्वारा दिया हुआ बताया है। इस सूत्र से प्राप्त ज्या के मानों का आपेक्षिक त्रुटि 1.9% से कम है। (अधिकतम विचलन जो
पर होता है।)
- भास्कर ने आज के प्रचलित पेल समीकरणों (Pell's Equations) के समाधान के बारे में प्रमेयों को बताया ।
गणित में भास्कराचार्य द्वितीय का योगदान (Contribution of Bhaskaracharya -II in Mathematics )
जन्म - 1114 ई० में सहस्त्रादि पर्वत के पास बिजदा बिदा (Bijjada bida) नामक गांव में पैदा हुये थे। यह गांव किस प्रान्त में स्थित है इसके बारे में विद्वानों में काफी मतभेद है परन्तु अधिक विद्वान् बिजदा बिदा को वर्तमान बीजापुर (मैसूर प्रान्त) ही मानने के पक्ष में हैं।
पुस्तक - सिद्धांत शिरोमणि , करणकौतूहल, समय सिद्धांत शिरोमणि, गोलाध्यायरसगुण और सूर्यसिद्धांत।
इनका प्रमुख ग्रंथ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसकी रचना 1150 ई0 में की गयी। ‘सिद्धान्त शिरोमणि' ग्रंथ को चार खण्डों या अध्यायों में बांटा गया है। ये खण्ड हैं:
- लीलावती
- बीजगणित
- गोलाध्याय
- ग्रहगणित
योगदान (Contribution) -
a/0 = ∞
∞ + a = ∞
∞ - a = ∞
2. क्षेत्रमिति ( Mensuration) के क्षेत्र में भी भास्कर का काफी योगदान है। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों के क्षेत्रफल और घनफल के सम्बन्ध में बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र दिये हैं।
उदा0-गोले का क्षेत्रफल = 4 x वृत्त का क्षेत्रफल
गोले का घनफल = गोले का क्षेत्रफल * 1/ 6 * व्यास
3. जिस विषय को आज Permutation and Combination के नाम से जानते हैं उस पर भी भास्कर ने अपनी लेखनी उठायी थी। उन्होंने अपने ग्रंथों में इसका नाम अंक पाश' दिया है। इस विषय पर उनके द्वारा खोजे गये एक सिद्धान्त को तो हम आज तक भी काम में ला रहे हैं। इसका प्रचलित रूप इस प्रकार का है।
r वस्तुओं की क्रमचय संख्या = r!/ k! l!
4. करणी (Surds) के बारे में भी भास्कराचार्य को अच्छा ज्ञान था जैसा कि उनके ग्रंथों में पाये जाने वाली निम्न प्रकार की समस्याओं से स्पष्ट होता है।
Ex. - एक त्रिभुज की भुजायें √13 और √5 हैं अगर उसका क्षेत्रफल 4 है तो आधार की लम्बाई बताओ।
5. घन समीकरण (Cubic Equations) और द्वि-वर्गात्मक समीकरणों (Biquadratic Equations) का भी विवरण भास्कर के ग्रंथों में पाया जाता है।
x2 + 12x = 6x2 + 35
x4 - x2 - 400x = 100
जैसी द्वि-वर्गात्मक समीकरणों का पूर्ण हल सहित 'सिद्धान्त शिरोमणि' के द्वितीय अध्याय बीजगणित में पाया जाता है।
6. डिफ़रेंशियल केलकुलस (Differential Calculus) के क्षेत्र में भी भास्कराचार्य ही विश्व के प्रथम गणितज्ञ थे जिन्होंने Differential Coefficient से सम्बन्धित उदाहरण प्रस्तुत किये।
7. रौल्स प्रमेय (Rolle's Theorem) के आधारभूत तत्वों को भी भास्कराचार्य ने ही जीवन दिया है।
8. त्रिकोणमिति (Trigonometry ) के क्षेत्र में भी इनका काफी योगदान है।
Ex. -
- sin (A + B)=sin A cos B± cos A sin B
- sin (A- B /2) = 1/2 [(sin A + sin B) 2+ (cos A cos B)²]1/2
9. पृथ्वी के गोल होने का प्रमाण देते हुये वे 'गोलाध्याय' में लिखते हैं- “गोले की परिधि का सौवां भाग एक सीधी रेखा प्रतीत होती है। हमारी पृथ्वी भी एक विशाल गोला है, मनुष्य को उसकी परिधि का एक बहुत ही छोटा भाग दिखाई देता है, इसलिए यह चपटी दिखाई देती है।"
10. इसी प्रकार न्यूटन के बहुत पहले भास्कराचार्य को गुरुत्वाकर्षण शक्ति का ज्ञान हो चुका था। इसे उन्होंने धारणिकात्मक शक्ति कहा है। वे लिखते हैं- “पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति के जोर से सब वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है इसलिये सभी पदार्थ इस पर गिरते हुये दृष्टिगोचर होते हैं।"
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