Thursday, September 9, 2021

गणित में आर्यभट्ट का योगदान (Aryabhatta's Contribution in Mathematics)

 गणित में आर्यभट्ट का योगदान  (Aryabhatta's Contribution in Mathematics)


जन्म-                476 ई0 कुसुमपुरा पाटलिपुत्र  (वर्तमान में पटना) 

प्रसिद्ध  पुस्तक - आर्यभट्टीय, आर्यस्तायता, कालकिया और गोला

इनको आर्यभट्ट प्रथम के नाम से जाना जाता है। इसी नाम के एक और गणितज्ञ इनके बाद हो चुके हैं जिन्होंने 950 ई० के लगभग महाआर्य सिद्धांत नामक पुस्तक लिखी है ।  अतः इन्हें 'आर्यभट्ट द्वितीय' के नाम से जाना जाता है। आर्यभट्ट प्रथम (499 ई०) के समय से भारतीय गणित विज्ञान का स्वर्णिम युग आरम्भ हुआ। इस बात में कोई संदेह नहीं है । आर्यभट्ट का जन्म कहाँ हुआ इस विषय पर भी कुछ मतभेद हैं। 

 इन्होंने अपनी गणितीय गणना में अंकगणित, बीजगणित एवं रेखागणित का प्रयोग किया। इनकी  पुस्तकों में से 'आर्यभट्टीय' नामक पुस्तक प्रसिद्ध पुस्तक है। यह पुस्तक पूर्णतः श्लोकों में लिखी गयी है। इस पुस्तक में कुल पाँच अध्याय हैं जिनमें केवल एक अध्याय ही गणित पर है, व शेष चार ज्योतिष पर हैं। इसमें आर्यभट्ट ने केवल एक अध्याय में अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति के 33 सूत्र दिये हैं।

आर्यभट्ट पहले गणितज्ञ थे, जिन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी गोलाकार है और अपनी धुरी पर घूमती है। जिसके आधार पर ही रात-दिन होते हैं। गणित में आर्यभट्ट का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। \

योगदान  (Contribution) -

  • इन्होंने (पाई) का मान 3.1416 दिया। ये ही पहले ऐसे गणितज्ञ थे, जिन्होंने ज्या तालिका (sins table) विकसित की। 
  • अंकगणित के क्षेत्र में वर्गमूल व घनमूल ज्ञात करने की विधियों तथा त्रैराशिक  नियम का भी उल्लेख किया है।
  • अक्षर संकेत (Alphabet Numbers)  पद्धति का अविष्कार आर्यभट्ट प्रथम ने किया। इस पद्धति में अंकों को वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रकट किया जाता है। स्वरों (Vowels) को छोड़कर देवनागरी वर्णमाला में 25 वर्गीय व्यंजन (Consonants) होते. हैं तथा 9 अवर्गीय होते हैं। 25 वर्गीय व्यंजनों द्वारा से लेकर 25 तक के अंकों को प्रकट किया जा सकता है। जैसे 'ख' द्वारा 2 को, च द्वारा 6 को इत्यादि। 9 अ वर्गीय व्यंजनों य र, ल, व, श, ष, स, ह इत्यादि के द्वारा क्रमश: 30, 40, 50, 60 इत्यादि को प्रकट किया जा सकता है तथा 'अ, आ, इ, ई, उ इत्यादि क्रमश: 100, 101 102 प्रकट करते हैं। 

ख्य = ख+ य  = 2 + 30  =  32

ख्यू = (ख + य )* उ  =  32 × 10 power 4 = 3,20,000

  • आर्यभट्ट प्रथम से पहले जैन गणितज्ञों ने वर्गमूल निकालने की विधि का अविष्कार कर लिया था, परन्तु उसका स्पष्टीकरण आर्यभट्ट द्वारा ही सम्भव हो सका।

  • दशमलव पद्धति (Decimal System) को प्रयोग में लाने के लिए आर्यभट्ट ने प्रशंसनीय कार्य किया। इसके अतिरिक्त क्षेत्रफल व घनफल निकालने के सभी साधारण नियम आर्यभट्टीय में मिलते हैं। वर्ग का क्षेत्रफल, त्रिभुज का क्षेत्रफल, विषम चतुर्भुज का क्षेत्रफल, वृत्त का क्षेत्रफल, गोले (Sphere) तथा शंकु (Cone) का घनफल, तथा सभी प्रकार के क्षेत्रों की औसत (Average) लम्बाई और चौड़ाई जानकर क्षेत्रफल निकालने से सम्बन्धित सभी नियम इसमें मिलते हैं। इससे आर्यभट्ट की रेखागणित में प्रयोगात्मक रूप से कितनी रुचि थी,  इसका पूर्ण आभास हो सकता है।

  • पाई (π) का मान = 3.1416 (लगभग), आज हम सभी इस सम्बन्ध से अच्छी तरह परिचित हैं। विश्व में सबसे पहले आर्यभट्टीय में ही के मान की गणना की ।
  • केवल अंकगणित ही नहीं बीजगणित भी आर्यभट्ट का बहुत ऋणी है। बीजगणित की राशियों के जोड़, बाकी, गुणा और भाग के अतिरिक्त भिन्नों (Fractions) के हरों (Denominators) को सामान्य (सर्वनिष्ठ) हरों में बदलने की रीति, भिन्नों में गुणा और भाग देने की रीति, बीजगणित के कुछ साधारण सूत्र जैसे  a2 + b2 = (a+b)2 तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के समीकरणों को हल करने की विधि आर्यभट्टीय में दी गयी है ।
  • यही नहीं आर्यभट्ट ने समान्तर श्रेणी (Arithmetic Progression) के ऊपर भी अपनी लेखनी बहुत ही सुनियोजित ढंग से उठायी है। निम्न प्रकार की बीजीय सर्वसमिकाओं (Identities) के दर्शन हमें प्रथम बार आर्यभट्टीय में ही मिलते हैं।
1² +2²+ .......+ n² =  1/ 6 * n (n + 1) (2n + 1) 

  • आर्यभट्ट  गणितज्ञ ही नहीं खगोल विज्ञान के भी प्रकांड पंडित थे। उन्होंने संसार के सम्मुख यह कहने का साहस किया कि “ब्रह्माण्ड की दिन प्रतिदिन की गतिशीलता का कारण पृथ्वी का एक धुरी के सहारे घूमते रहना ही है। " (Diurnal motion of the heavens is due to the rotation of the earth about an axis).


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