विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित का महत्व (Importance of Mathematics in School Curriculum)
प्राचीन काल से ही गणित को हमारे देश में एक विषय के रूप में महत्व दिया जाता रहा है। प्राचीन काल से ही विद्यालयों में गणित शिक्षण की प्रभावशाली व्यवस्था की जाती रही है। वर्तमान में भी गणित का हमारे दैनिक जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। वर्तमान काल में गणित को विद्यालय पाठ्यक्रम में विशेष महत्व देने के लिए गणित विषय को सामान्यतः निम्न दृष्टिकोणों से देखा जाता है-
1. दैनिक जीवन में उपयोगी (Useful in Daily Life)-
वर्तमान समय विज्ञान का युग है और प्रत्येक स्थान या जगह पर हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गणित का उपयोग करना पड़ता है। दैनिक जीवन में घर में, बाहर बाजार, दुकान, आय-व्यय में, बैंक ब्याज आदि क्रय-विक्रय में गणित को ही आधार बनाया जाता है। लौकिक, वैदिक तथा सामाजिक जो आधार हैं, उन सबमें गणित का उपयोग है इसलिये विद्यालय में बालकों को प्रारम्भ से ही, प्रारम्भिक गणित का ज्ञान कराया जाये तो वे अपने दैनिक जीवन और अनुभवों को समझने और समझाने में सक्षम रहेंगे।
2. आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति में उपयोगी (Useful in Progress of Economical & Social)-
हमारी वर्तमान आर्थिक व सामाजिक सभ्यता विज्ञान की ही देन है और विज्ञान का आधार गणित है। जब तक बालक को गणित का ज्ञान नहीं होगा तब तक वह विज्ञान के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल नहीं कर सकेगा। गणित के बिना विज्ञान में भी प्रगति होना असम्भव है। इस कारण से यह कह सकते हैं कि गणित हमारी इस आधुनिक प्रगति, विकास और सभ्यता के भवन का स्तम्भ रूप है जिसको हटा लेने से वर्तमान सभ्यता, वैज्ञानिक प्रगति और समृद्धि का भवन निश्चित रूप से गिर जायेगा।
3. बालकों के मानसिक अनुशासन बनाने में उपयोगी (Useful in making of mental discipline in Children)-
गणित का ज्ञान विद्यार्थियों के मस्तिष्क को अनुशासित करने में सहायक होता है। जब विद्यार्थी गणित के प्रश्न को हल करने का प्रयास करता है, तो उसे अपने मन को एकाग्र करना होता है। मन की एकाग्रता मानसिक अनुशासन उत्पन्न करने में सहायक होती है। इससे बालक में उत्पन्न जिज्ञासायें सन्तुष्ट होकर शान्त हो जाती हैं। गणित का अध्ययन बालक को विवेकी, आत्म-विश्वासी, तर्क-वितर्क शक्ति युक्त बनाता है।
4. स्पष्ट भाव प्रकाशन में उपयोगी (Useful thoughts helpful in Publication)–
हम अपने विचारों, भावों को भाषा के माध्यम से ही किसी दूसरे के सामने रखते हैं। गणित विषय की भी एक भाषा होती है, जिसका निर्माण प्रतीकों के द्वारा होता है। गणित भाषा को शुद्ध व स्पष्ट बनाता है। जब हम यह कहते हैं कि 'अमुक स्थान बहुत दूर है' तो इसका अर्थ उसकी दूरी से होता है और दूरी ज्ञात करने के लिये हमें गणित का सहारा लेना पड़ता है। उसके द्वारा ही हम यह ज्ञात कर पाते हैं कि वह स्थान कितनी दूर है। .एच० सी० वैश्य ने इसको स्पष्ट करते हुए कहा है कि, “गणित भाषा का दूसरा रूप है, क्योंकि साधारण भाषा की अपेक्षा उसमें प्रयुक्त व्यंजना अधिक शुद्ध और सूक्ष्म होती है।
5. बालकों के चरित्र निर्माण में उपयोगी (Useful in Character building of Children) -
कुछ विद्वानों ने कहा है कि गणित विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में सहायक होता है। गणित एक ऐसा विषय है, जिसमें अशुद्धता का कोई स्थान नहीं होता है अर्थात् गणित किसी झूठ, फरेब, आडम्बर आदि को कोई स्थान नहीं देता है। गणित के द्वारा ही विद्यार्थियों को सत्य का ज्ञान होता है व सत्य की ओर आकर्षित होकर उनमें नैतिकता का विकास होता है, जो बालक के चरित्र निर्माण में उपयोगी सिद्ध होता है।
6. सांस्कृतिक समृद्धि के विकास में उपयोगी (Useful in the development of Cultural Growth)-
गणित को सांस्कृतिक समृद्धि के विकास की आधारशिला माना जाता है। हागवेन (Hagven) ने गणित को सभ्यता का दर्पण कहा है। (Mathematics is the mirror of culture.) यदि हम अपनी सभ्यता के बारे में मनन करते हैं तो उसके द्वारा हमें यह पता चलता है कि मानव संस्कृति एवं गणित का विकास लगभग साथ-साथ ही हुआ है। इनकी समुचित जानकारी के लिये हमारे लिये गणित का ज्ञान करना अति आवश्यक हो जाता है।
7. तर्क संगत, क्रमबद्ध एवं व्यवहारिक गुणों का समावेश एवं उनके विकास में उपयोगी (Useful the development of absorption and Logical Systematical and Behavioural Virtues)—
अध्यापक, विद्यार्थी को गणित शिक्षण को सोचने, समझने, विचारने, तार्किक ढंग से सोचने तथा तथ्यात्मक ढंग से हल खोजने के लिये प्रेरित करता है। जब विद्यार्थी का मस्तिष्क क्रियाशील होता है, तो उसमें अनेक विचार, तर्क, विश्लेषण और उस समस्या पर विवेचना करने की क्रियाएँ स्वतः ही उसके मस्तिष्क में संचालित हो जाती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं से विद्यार्थी का बौद्धिक विकास होता है। उसमें तर्क-वितर्क करने, तुलना करना एवं स्वयं निर्णय करने की क्षमता उत्पन्न होती है जिससे उसके मस्तिष्क को शक्ति प्राप्त होती है। और जब उसका मस्तिष्क परिपक्व हो जाता है तथा वह स्वयं ही क्रियाएँ करने लगता है।
Very helpful session 🙏
ReplyDelete