अधिगम के प्रकार (Types of Learning)
सामान्यतः अधिगम तीन प्रकार के होते हैं-
- संज्ञानात्मक/ज्ञानात्मक अधिगम (Cognitive/Knowledgeable Learning)
- क्रियात्मक अधिगम (Conative /Functional Learning)
- भावात्मक अधिगम (Affective/Emotional Learning)
- संज्ञानात्मक/ज्ञानात्मक अधिगम (Cognitive/ Knowledgeable Learning)- इस प्रकार के अधिगम का संबंध ज्ञान से होता है अर्थात अधिगमकर्ता अपने ज्ञान में वृद्धि करता है इस प्रकार के अधिगम में ज्ञान अर्जित करने निम्न विधियां होती हैं-
(A) प्रत्यक्षात्मक अधिगम (Perceptual Learning)- मूर्त वस्तुओं को देखकर, सुनकर, छूकर सीखना। यह शैशवावस्था में पाया जाता है।
(B) प्रत्यात्मक अधिगम ( Conceptual Learning)- किसी विषय वस्तु के बारे में अमूर्त चिंतन, कल्पना या तर्क के आधार पर सीखना प्रत्यात्मक अधिगम कहलाता है। यह विशेषता किशोरावस्था वाले बालकों में पाई जाती है।
(C) साहचर्यात्मक अधिगम (Associated Learning)- जब पहले से सीखे अनुभवों को नए ज्ञान के साथ जोड़ा जाता है या समान अधिगम परिस्थितियों में एक अधिगम प्रक्रिया को दूसरे अधिगम प्रक्रिया से जोड़ा जा सकता है।
- क्रियात्मक अधिगम (Conative /Functional Learning)- यह क्रिया से सम्बंधित अधिगम है । इसे मनोदैहिक अधिगम भी कहा जाता है। विभिन्न प्रकार की क्रियाओं जैसे - तैरना, सिलाई सीखना, खाना बनाना , संगीत, नृत्य आदि के माध्यम से होने वाला अधिगम क्रियात्मक अधिगम कहलाता है।
- भावात्मक अधिगम (Affective/Emotional Learning)- यह जीव की भावनाओं से संबंधित अधिगम है । यदि किसी बालक को चित्र, रंग , आकृति सवेंग शब्द को आधार मानकर सिखाया जाता है तो उसे भावात्मक अधिगम कहते हैं।
रोबेर्ट मिल्स गैने (Robert Mills Gagne) केे अनुसार-
रोबेर्ट मिल्स गैने (Robert Mills Gagne) ने अधिगम के आठ प्रकार बताये हैं। इन्होंने अपनी किताब "अधिगम की शर्तें (Conditions of Learning) (1965) में इन 8 प्रकार के अधिगम की व्याख्या की है। इसे अधिगम का सोपानिकी सिद्धान्त भी कहते हैं ।
- संकेत अधिगम (Signal Learning)- संकेत अधिगम परिस्थिति पॉवलोव द्वारा प्रस्तुत शास्त्रीय अनुबन्धन के सिद्धांत (Classical Conditioning Theory) पर आधारित है। छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान संकेत अधिगम की उपस्थिति में उत्पन्न किया जाता है। जैसे क अक्षर की पहचान करने के लिए कबूतर का चित्र, ख अक्षर के लिए खरगोश आदि। इसको गैने द्वारा निम्न स्तर में रखा गया है।
- उद्दीपन- अनुक्रिया अधिगम (Stimulus-Response Learning)- थार्नडाइक के प्रयास-त्रुटि सिद्धान्त, स्किनर के क्रियाप्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त (Trial-error theory, Skinner's operant conditioning theory) के समान है। थार्नडाइक के प्रयोग में बिल्ली सही और गलत उद्दीपकों को पहचान कर और अपनी अनुक्रिया में संसोधन करके सही अनुक्रिया सीख लेती है।
- श्रृंखला अधिगम (Chain Learning)- श्रृंखला अधिगम में दो या दो से अधिक उद्दीपक अनुक्रिया संबंधों को साथ-साथ जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार की अधिगम में व्यक्तिगत संबंधों को क्रमानुसार संबंधित किया जाता है।
- शाब्दिक साहचर्य अधिगम (Verbal Associative Learning)- इस प्रकार के अधिगम में शाब्दिक अनुक्रिया क्रम की व्यवस्था की जाती है। अधिक जटिल शाब्दिक श्रृंखला के लिए व्यवस्था क्रम एक संकेत का कार्य करती है। शाब्दिक इकाई को सीखने के लिए उससे पूर्व की इकाई सहायता प्रदान करती है ।
- विभेदन अधिगम (Discrimination Learning)- विभेदन अधिगम के अंतर्गत बालक भिन्न-भिन्न उद्दीपनों के प्रति अनुकूलन से भिन्न भिन्न स्पष्ट अनुक्रिया करना सीख जाता है एक जैसे दिखने वाले उद्दीपनों में विभेद करने की क्षमता आ जाती है और विभेदी उद्दीपन के अनुरूप अनुक्रिया करने में बालक समर्थ हो जाता है।
- संप्रत्यय अधिगम (Concept Learning)- जब किसी वस्तु की पहचान गुणों के आधार पर किया जाता है तो उसे संप्रत्यय अधिगम कहते हैं।
- सिद्धान्त/नियम अधिगम (Rule/Principle Learning)- नियम अधिगम को महासंप्रत्यय अधिगम (Super Concept) भी कहा जाता है क्योंकि नियम की शाब्दिक रूप में भी अभिव्यक्ति की जा सकती हैं नियम अधिगम में बालकों द्वारा विचारों का संयोजन किया जाता है इस प्रकार के अधिगम में दो या अधिक संप्रत्ययों को श्रृंखलाबद्ध किया जाता है जिससे एक नियम की संकल्पना बनती है। जैसे- पृथ्वी में गरुत्वाकर्षण शक्ति है।
- समस्या समाधान अधिगम (Problem solving learning)- समस्या समाधान अधिगम में बालक द्वारा पूर्व में सीखे गए नियमों का उपयोग वर्तमान समस्या का हल करने में किया जाता है । इस प्रकार समस्या समाधान अधिगम नियम-अधिगम का एक प्राकृतिक विस्तार है । इस अधिगम में चिंतन की सामग्री निहित होती है। इसको गैने सर्वश्रेष्ठ् प्रकार बताया है ।

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