Sunday, May 9, 2021

अभिप्रेरणा के सिद्धान्त (Theories of Motivation)

 अभिप्रेरणा के सिद्धान्त (Theories of Motivation)

अभिप्रेरणा के मुख्य सिद्धान्त निम्न हैं-
1. अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत (Instinct theory of Motivation)-   

मानव व्यव्हार को मूल प्रवृतियों द्वारा अभिप्रेरित होने का प्रत्यय  सर्वप्रथम विलियम जेम्स ने दिया था।  मूल प्रवृतियों पर आधारित अभिप्रेरणा सिद्धांत का प्रतिपादन मैक्डूगल ने 1980 में किया था। इन्होने माना कि मानव का प्रत्येक व्यवहार उसकी मूल प्रवृतियों द्वारा संचालित होता है ।                                                              

2. उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत (Theory of Achievement Motivation)-
                    
 प्रतिपादक -          D.C. Maclelland & J.W. Atkinson                                                                      
उपलब्धि की  आवश्यकता को मुख्य अभिप्रेरक (Drive) माना  है जिसको व्यक्ति की किसी कार्य में सफलता की प्रत्याशाओं (Expectations) के द्वारा पहचाना जा सकता है ।                                                                            

3. सत्ता अभिप्रेरणा का सिद्धांत (Theory of power Motivation)-   
                               
प्रतिपादक -  Alfred Adler                                                                                                
पुस्तक -   The practice and Theory of Individual psychology                                        
व्यक्ति को अभिप्रेरित करने में क्रोध (Agression) की प्रवृति को अधिक महत्व  दिया जिसको आगे चलकर सत्ता की इच्छा (Will for Power) के रूप में प्रस्तुत किया  सत्ता की इच्छा (Will for Power) का व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले अनेक कार्यों में बड़ा योगदान रहता है ।                                                                                                                                       
4. अहम अन्तरग्रसता का अभिप्रेरणा सिद्धान्त (Ego-Involvement theory of Motivation) -

प्रतिपादक - शैरीफ और कैन्टिल (1974)                                                                                          
पुस्तक -   The Psychology of Ego-Involvement                                                          
अहम् को व्यक्ति की की अभिवृतियों का समूह माना है।  
                                                                              
5. अभिप्रेरणा का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त (Psycho-analytic theory of Motivation)

प्रतिपादक - सिगमन फ्रॉयड 
इस सिद्धान्त में सिगमण्ड फ्रायड ने व्यवहार को प्रभावित करने वाले दो कारक बताये- एक मूल प्रवृत्तियां तथा दूसरा अचेतन मन। फ्रायड के अनुसार मनुष्य में मूल रूप से दो ही मूल प्रवृत्तियां होती हैं- एक जीवन मूल प्रवृत्ति (Life instinct or Eros) और दूसरी मृत्यु मूल प्रवृत्ति (Death instinct or Thanaros) । मनुष्य के व्यवहार के संचालन में ये दोनों मूल प्रवृत्तियाँ महत्वूपर्ण मानी गयी हैं। जीवन-मूल प्रवृत्ति व्यक्ति को सकारात्मक कार्यों, जैसे- आत्म सुरक्षा, दूसरों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना तथा अपनी क्षमताओं का विकास करने आदि की ओर उन्मुख करती है। जब जीवन-प्रवृत्ति शिथिल हो जाती है तो मृत्यु- प्रवृत्ति सक्रिय होकर व्यक्ति को विध्वंसकारी कार्यों, जैसे दूसरों की बुराई, निन्दा, आलोचना करना, छल कपट से दूसरों को हानि पहुंचाना, हत्या अथवा आत्महत्या करने आदि के लिए अभिप्रेरित करती है। 

6. अभिप्रेरणा का प्रोत्साहन सिद्धांत (Incentive theory of Motivation)-

प्रतिपादक-  वोल्स और कॉफमैन  
इस सिद्धांत के अनुसार,” मनुष्य जिस वातावरण में रहता है उस वातावरण में निश्चित वस्तुएं उसे किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती हैं।

7. अभिप्रेरणा का आवश्यकता सिद्धांत (Need theory of Motivation)-

प्रतिपादक- हेनरी मरे तथा अब्राहम मैस्लो   (1930)
आवश्यकता के दो  प्रकार बताये - 
1. दैहिक आवश्यकता (Biological/Primary Need) - भोजन, पानी सहित 12 आवश्यकताएं बताई हैं 
2. मनोवैज्ञानिक आवश्यकता (Psychological/Secondary Need) - सम्बन्ध, प्रेम सहित 28 आवश्यकताएं बताई हैं 

8. अभिप्रेरणा का शारीरिक सिद्धांत (Physiological Theory of Motivation)-

प्रतिपादक-      मॉर्गन 
इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य में अभिप्रेरणा किसी बाह्य उद्दीपक द्वारा उत्पन्न नहीं होती है बल्कि उसके शरीर के अन्दर के तन्त्रों में होने वाले परिवर्तनों के कारण होती है। इन परिवर्तनों के कारण शरीर के अन्दर अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएं (Reactions) होती रहती हैं। यह सिद्धान्त केन्द्रीय अभिप्रेरक अवस्था  [Central Motive State (CMS)] के नाम से भी जाना जाता है । इस सिद्धान्त में प्रत्येक मानवीय व्यवहार की व्याख्या केंद्रीय अभिप्रेरक अवस्था (CMS) के आधार की जाती है। 

9. उद्दीपन -अनुक्रिया अभिप्रेरणा सिद्धांत (S-R Theory of Motivation)-

प्रतिपादक-      थॉर्नडाइक  (व्यवहारवादी) 
मनुष्य का व्यवहार शरीर के द्वारा उद्दीपन के फलस्वरूप होने वाली प्रतिक्रिया है 

10. अभिप्रेरणा का चालक सिद्धान्त  (Drive Theory of Motivation)

प्रतिपादक-      सी० एल० हल 
व्यक्ति का व्यवहार आवश्यकताओं की संतुष्टि पर निर्भर करता है 


अभिप्रेरणा का  आवश्यकता सिद्धान्त (Need Theory of Motivation)


इस सिद्धान्त के प्रतिपादन का श्रेय हेनरी मरे तथा अब्राहम मैसलो (Abraham Maslow)  को जाता है मरेे ने आवश्यकताओं को दो भागों में में विभक्त किया है-
प्रथम जैविक या प्राथमिक (Biological or Primary) आवश्यकताएं तथा दूसरी मनोजन्य अथवा गौण (Psychogenic or Secondary) आवश्यकताएं। मरे के अनुसार व्यक्ति की अभिप्रेरणाओं का मुख्य स्रोत उसकी अतृप्त इच्छाएं (Unquenchable desires) हैं। व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हेतु उन कार्यों के करने केे लिये तैयार  होता है जो उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करे । मरे का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति की कुछ आवश्यकताएं उसके लिए अधिक महत्वपूर्ण होती हैं जबकि कुछ महत्वहीन । मरे की दृष्टि में अधिकांश अभिप्रेरणाएं पर्यावरणीय कारकों का प्रतिफल होती हैं जबकि कुछ अभिप्रेरणाएं व्यक्ति की निजी आवश्यकताओं के कारण प्रभावित होती हैं। मरे ने चौबीस मुख्य आवश्यकताओं का चयन किया जो कथानक बोध परीक्षण (Thematic Apperception Test) द्वारा मापी जा सकती है। 


मैसलो का आवश्यकता का पदानुक्रम सिद्धान्त (Maslow's Need Hierarchy Theory)


इस सिद्धान्त के अनुसार जब व्यक्ति को किसी चीज की कमी का अहसास होता है तो उसकी आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए वह क्रियाशील हो जाता है अर्थात् आवश्यकता व्यक्ति को किसी कार्य करने के लिए अभिप्रेरित करती है। मैसलो के अनुसार व्यक्ति निम्न स्तर की माँगों की पूर्ति करते हुए उत्तरोत्तर (step by step) क्रम की माँगों की पूर्ति करने का प्रयास करता है। अतः व्यक्ति का अभिप्रेरणात्मक व्यवहार (Motivational Behaviour) उसकी तृप्त माँगों (Satisfaction needs) से संचालित न होकर अतृप्त माँगों (Extinction needs) से संचालित होता है। अभिप्रेरणात्मक व्यवहार की प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि व्यक्ति आत्मसिद्धि (self realization) के स्तर की आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर लेता है ।

 

1. शारीरिक आवश्यकता (Physiological Needs) Maslow Theory के अनुसार मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता (Primary Need) उसकी शारीरिक संतुष्टि होती है जिसके अभाव में वह जीवन व्यतित करने की कल्पना तक नही कर सकता। शारीरिक आवश्यकताओं में भोजन, पानी, वस्त्र, मन की एकाग्रता, यौन संबंधी आवश्यकताएं एवं शरीर के आराम हेतु निद्रा आदि। इस  सिद्धांत के अनुसार यह सभी आवश्यकताएं मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताएं (Primary Needs) होती है जिसकी पूर्ति हेतु वह सबसे पहले प्रयास  करता हैं। इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने के पश्चात इन  आवश्यकताओं को स्थायी रूप प्रदान करने हेतु एवं संरक्षित करने हेतु उसे सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होती है।


2. सुरक्षा की आवश्यकता (Safety Needs) – जब व्यक्ति को उसकी प्रथम चरण की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है तो तब उसको अपने अस्तित्व की चिंता होने लगती है वह अपने अस्तित्व की महत्ता को जानने लगता है जिस कारण वह अपने जीवन-मृत्यु के संबंध में सोचने लगता हैं। अपने जीवन को स्थिरता प्रदान करने के लिए उसे सुरक्षा की आवश्यकता महसूस होती हैं।

3. प्यार और संबंधों की आवश्यकता (Love and Belonging) – व्यक्तियों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अन्य व्यक्तियों की आवश्यकता होती है वह इन समस्त आवश्यकताओं की प्राप्ति अकेले रहकर नही कर सकता। जिस कारण वह अपने परिवार का निर्माण करता है एवं समाज के साथ विभिन्न प्रकार के संबंधों की स्थापना करता है जैसे- पत्नी, भाई, बहन, प्यार, दोस्त आदि। सुरक्षा की आवश्यकता के चरणों की पूर्ति हो जाने के पश्चात ही वह इस चरण की आवश्यकता की पूर्ति हेतु क्रियाशील हो जाता हैं।

4. आत्मसम्मान की आवश्यकता (Need of Self-respect/Esteem Needs) – प्यार और संबंधों की आवश्यकता की पूर्ति हो जाने के पश्चात उसे समाज मे गौरवपूर्ण तरीके से जीवनयापन करने हेतु आत्मसम्मान की आवश्यकता महसूस होती है जिस कारण वह एक गौरवपूर्ण  पद प्राप्त करने और दूसरे से अपनी एक अलग पहचान बनाने अर्थात खुद को विशिष्ट दिखाने की आवश्यकता की पूर्ति करने का प्रयास करता हैं। जिस कारण समाज के सभी लोग उससे प्रेमपूर्वक व्यवहार करें एवं उसका आदर करें। मैस्लो के अनुसार- मनुष्य जीवनपर्यंत इन चार चरणों की प्राप्ति हेतु सदैव क्रियाशील रहता है एवं वह सदैव यह प्रयास करता है कि इन आवश्यकताओं की पूर्ति वह जल्द से जल्द कर सके और कम ही ऐसे लोग होते है जो इन चार चरणों की पूर्ति कर पाते है और इस सिद्धांत के अंतिम चरण आत्मबोध/आत्म सिद्धि (Self-actualization) में पहुँच पाते हैं।

5. आत्मबोध/आत्म सिद्धि की आवश्यकताएं  (Needs of Self-actualization) मैस्लो ऐसे मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने सर्वप्रथम आत्मबोध को मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण माना। इस  सिद्धांत के अनुसार आत्मबोध मनुष्य की आवश्यकताओं का अंतिम चरण है। इनके अनुसार मनुष्य को आत्मबोध तब होता है जब वह अपने चारों चरणों की पूर्ति कर लेता हैं। इसमे व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्तियों (Internal Powers) को जान लेता है एवं उसे आंतरिक संतुष्टि की प्राप्ति हो जाती है। आत्मबोध अर्थात आत्मा को जानना, सांसारिक कटुता एवं सत्यता को पहचान लेना ही आत्मबोध (Self-actualization) हैं।


इस सिद्धान्त की आलोचना करने वालों का मत है कि साधारणतया तो व्यक्ति निम्न स्तर की आवश्यकताओं की पूर्ति करके ही उच्च स्तर की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए आगे बढ़ता है लेकिन अनेक बार व्यक्ति उच्च आदर्शों अथवा विशेष उद्देश्यों जैसे- आत्म सम्मान, सामाजिक प्रतिष्ठा, राष्ट्र-हित आदि की रक्षा के लिए भूखा प्यासा रहकर अपनी जिन्दगी को दाँव पर लगाने तक के लिए तत्पर हो जाता है । क्रान्तिकारियों द्वारा भूखा रहकर आमरण अनशन करके देश की स्वतन्त्रता के लिए प्राणों को न्योछावर करना, इसका ज्वलन्त उदाहरण है। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार के अभिप्रेरणा-व्यवहारों की व्याख्या माँग की सन्तुष्टि के आधार पर नहीं की जा सकती है ।


अभिप्रेरणा का प्रोत्साहन सिद्धांत (Incentive theory of Motivation)

प्रोत्साहन के सिद्धांत का प्रतिपादन वोल्स और कॉफमैन ने किया। इस सिद्धांत के अनुसार,” मनुष्य जिस वातावरण में रहता है उस वातावरण में निश्चित वस्तुएं उसे किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती हैं।
इस सिद्धान्त के अनुसार अभिप्रेरणा की उत्पत्ति वातावरण में स्थित प्रोत्साहन तथा व्यक्ति की शारीरिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं के बीच अन्तःक्रिया के द्वारा होती हैं। इस प्रक्रिया में व्यक्ति को अपने द्वारा किए जाने वाले व्यवहार के परिणाम की जानकारी पहले से ही होती है।
इनके अनुसार प्रोत्साहन दो प्रकार का होता है-

(A) धनात्मक प्रोत्साहन (Positive Incentive)- यह किसी लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। जैसे- भोजन पानी, मनपसंद वस्तु आदि।
(B) ऋणात्मक प्रोत्साहन (Negative Incentive)- यह किसी लक्ष्य की ओर बढ़ने से रोकता है। जैसे- दंड , घृणा करना, आदि

दैनिक जीवन में वातावरण में स्थित विभिन्न प्रकार की वस्तुएं तथा सामाजिक प्रतिष्ठा देने वाले पद प्राप्त करने के लिए व्यक्ति हमेशा लालायित तथा अभिप्रेरित होते हैं लेकिन इस सिद्धांत में मात्र  बाह्य कारकों को ही महत्व दिया गया है अतः यह सिद्धांत पूर्ण नही  है।






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