Tuesday, May 11, 2021

अभिप्रेरणा का शैक्षिक महत्व (Educational Importance of Motivation)

 

अभिप्रेरणा का शैक्षिक महत्व (Educational Importance of Motivation)


बालक की शिक्षा में अभिप्रेरणा (Motivation) का अत्यधिक महत्व है। अभिप्रेरणा के द्वारा अध्यापक कक्षा में बालकों को नियंत्रित (Controlled) तथा सक्षम बनाने के लिए ध्यानमग्न (Attention) कर सकता है। शिक्षा में अभिप्रेरणा के महत्व को निम्नांकित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है-

1. अधिगम के लिए प्रोत्साहन हेतु (For encouragement to learning)- शिक्षा में अपेक्षित अधिगम (Expected learning) के लिए अभिप्रेरणा एक प्रभावशाली आधार है। अभिप्रेरणा का अधिगम स्वरूप, मात्रा एवं गति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। कक्षा में प्रभावशाली अभिप्रेरणा के अभाव में अभीष्ट शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति में कठिनाई होती है। ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के अभिप्रेरक (Motives) प्रदान किये जाने चाहिए, तभी विद्यार्थी अधिगम से सफलतापूर्वक  निर्धारित लक्ष्य की दिशा में क्रियाशील रहकर प्रगति कर सकते हैं।

2. अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्ति करने हेतु (To gain maximum knowledge)- 
क्रो तथा क्रो के अनुसार, “अध्यापक विद्यार्थियों में प्रतियोगिता (Competition)  की भावना को विकसित करके उन्हें अधिकाधिक ज्ञानार्जन हेतु अभिप्रेरणा प्रदान कर सकते हैं।” कक्षा में प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के अतिरिक्त शेष विद्यार्थियों को भी प्रतिस्पर्धा, प्रशंसा आदि के द्वारा अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने   हेतु अभिप्रेरित किया जा सकता है।

3. अनुशासन विकसित करने हेतु (To develop discipline) - विद्यार्थियों में स्वअनुशासन (Self-discipline) की भावना का विकास करने में भी अभिप्रेरणा का अत्यधिक महत्व है। मनोविज्ञान के ज्ञान के प्रभाव के फलस्वरूप स्वअनुशासन की भावना विकसित करने पर आज सर्वाधिक बल दिया जा रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि उपयुक्त अभिप्रेरकों के माध्यम से विद्यार्थियों को वांछित व्यवहारों का अभ्यास कराने से उसमें स्व-अनुशासन (Self-discipline) की भावना का विकास किया जा सकता है।

4. उचित मार्ग- दर्शन हेतु (For proper guidance) - समय-समय पर बालकों का उचित मार्ग- दर्शन करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। शैक्षिक क्षेत्र में समायोजन (Adjustment), समस्या समाधान (Problem Solving), अध्ययन तथा अनुशासन आदि के लिए बालकों को मार्ग- दर्शन की अपेक्षा रहती है। इस हेतु विभिन्न अभिप्रेरकों का प्रयोग करके बालकों में रुचि एवं उत्साह (Excitement) का संचार किया जा सकता है तथा उन्हें लक्ष्य प्राप्ति के लिए दिशा प्रदान किया जा सकता है।

5. सामाजिक तथा चारित्रिक गुणों के विकास हेतु (For the development of social and character qualities) - विद्यार्थियों में चारित्रिक एवं सामाजिक विकास (Character and Social Development) करना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है। बालक की प्रशंसा तभी की जा सकती है जब वह उच्च चारित्रिक गुणों वाला हो, उसकी आदतें अच्छी हों तथा उसका व्यवहार समाज के अनुकूल हो। बालकों में अपेक्षित चारित्रिक तथा सामाजिक गुणों का पर्याप्त विकास हो, इसके लिए आवश्यक है कि ऐसा वातावरण बनाया जाए जिसमें वह वांछनीय व्यवहारों को सीखने का अभ्यास कर सके। 

6. व्यवहार में वांछित परिवर्तन हेतु (For desired change in behavior) - बालकों के व्यवहार में शिक्षा द्वारा वांछित परिवर्तन कर उसके व्यक्तित्व (Personality) का विकास किया जाता है। व्यक्तित्व के विकास का आधार व्यवहार में परिवर्तन एवं संशोधन है  । शिक्षा की किसी भी व्यवस्था में, विशेष रूप से औपचारिक व्यवस्था (Formal arrangement) में, बालकों में वांछित व्यावहारिक परिवर्तन के लिए ही समस्त  प्रयास किए जाते हैं। इन व्यवहार परिवर्तनों का मुख्य माध्यम शैक्षणिक  क्रियाएँ होती हैं। इन क्रियाओं द्वारा बालक के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन तभी हो सकते हैं जब उनसे सम्बन्धित क्रियाकलापों में बालक रुचि, ध्यान और उत्साह से भाग ले। इसके लिए बालकों को अभिप्रेरित किया जाना अति आवश्यक है जिससे वे स्वयं ही सक्रिय होकर वांछित व्यवहार परिवर्तनों की दिशा में अग्रसर हो सकें।

7. उच्च आकांक्षा स्तर हेतु (For high aspirations Level) - बालकों द्वारा शिक्षा में उच्च सफलता प्राप्त करने के लिए उच्च आकांक्षा स्तर की आवश्यकता होती है। बिना उच्च आकांक्षा स्तर के बालक उच्च स्तर का शैक्षिक अथवा अधिगम सम्बन्धी प्रयास नहीं करता, इसके लिए स्वस्थ मनोवृत्ति (Healthy attitude)  की भी अपेक्षा रहती है। अतः बालकों में स्वस्थ मनोवृत्ति का विकास करने तथा उच्च आकांक्षाओं की दिशा में उत्साहित करने हेतु शिक्षक को पर्याप्त एवं उचित अभिप्रेरकों का प्रयोग करना चाहिए जिससे बालकों में उच्च सामाजिकता, सहयोग, सद्भाव, निष्ठा तथा मानसिक व्यापकता आदि का विकास हो सके तथा वह उच्च शैक्षिक उपलब्धि के साथ-साथ समाज में अपने को श्रेष्ठ प्रदर्शित कर सके।

मैस्लो के सिद्धांत का शैक्षिक अनुप्रयोग (Educational Implication of Maslow's Theory)


1. मास्लो के आवश्यकताओं के सिद्धांत के पदानुक्रम ने स्कूलों में शिक्षण और कक्षा प्रबंधन में एक बड़ा योगदान दिया है। 

2. वातावरण में एक प्रतिक्रिया के लिए व्यवहार को कम करने के बजाय , मास्लो  शिक्षा और सीखने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाता है।

 3. मास्लो  व्यक्ति के पूर्ण शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और बौद्धिक गुणों को देखता है और कैसे वे सीखने पर प्रभाव डालते हैं। इसको स्पष्ट करता है।

4. एक छात्र की संज्ञानात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने से पहले, उन्हें पहले अपनी बुनियादी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करना होगा।

5. मास्लो का सुझाव है कि छात्रों को दिखाया जाना चाहिए कि वे कक्षा में मूल्यवान और सम्मानित हैं, और शिक्षक को एक सहायक वातावरण बनाना चाहिए। कम आत्म-सम्मान वाले छात्र अकादमिक रूप से एक सर्वोत्तम दर पर प्रगति नहीं करेंगे जब तक कि उनका आत्म-सम्मान मजबूत नहीं हो जाता।

6. छात्रों को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने और पहुंचाने के लिए कक्षा के भीतर भावनात्मक और शारीरिक रूप से सुरक्षित और स्वीकृत महसूस करने की आवश्यकता है।



















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