स्किनर का क्रियाप्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त
(Skinner's Operant Conditioning Theory)
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक स्किनर (B. F. Skinner) ने सीखने की प्रक्रिया के स्वरूप को समझने के लिए सर्वप्रथम अन्य मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों के निष्कर्षों और सिद्धान्तों का अध्ययन किया और पावलोव के प्रत्यावर्तन (Reflex Action) और पुनर्बलन (Reinforcement) सम्प्रत्ययों को समझा। उसके बाद उन्होंने स्वतन्त्र रूप से प्रयोग किए। इस सन्दर्भ में उनके दो प्रयोगों का बड़ा महत्त्व है—एक चूहे पर किए गए प्रयोग का और दूसरा कबूतर पर किए गए प्रयोग का।
यह सिद्धान्त पुनर्बलन पर विशेष बल देता है। इसलिये पुनर्बलन को जानना भी आवश्यक है। जब किसी प्राणी को किसी अनुक्रिया से सुखद परिणाम प्राप्त होते हैं तो उस अनुक्रिया को बार-बार करता है , इस बार-बार दोहराने की इच्छा उत्पन्न होने को पुनर्बलन (Reinforcement) कहते हैं।
पुनर्बलन को मनोवैज्ञानिकों ने दो रूपों में विभाजित किया है-
1. धनात्मक पुनर्बलन (Positive Reinforcement)- धनात्मक पुनर्बलन में वे उद्दीपक (Stimulus) होते है जिनकी उपस्थिति में अनुक्रिया करने की शक्ति में बढ़ोतरी होती है।
जैसे- भूखे व्यक्ति के लिए भोजन धनात्मक पुनर्बलन है।
2. ऋणात्मक पुनर्बलन (Negative Reinforcement)- इसमे वे उद्दीपक होते हैं जिनकी अनुपस्थिति में अनुक्रिया शक्ति में बढ़ोतरी होती है। शोर, पीड़ा, दंड, अपमान आदि ऋणात्मक पुनर्बलन में आते हैं।
जैसे- किसी शिक्षक से डरने वाले बालक की अनुक्रियाओं में उस शिक्षक की अनुपस्थिति में वृद्धि होना।
इस सिद्धांत को सक्रिय अनुकूलन सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है। स्किनर के अनुसार अनुकूलन अधिगम की एक पद्धति है। उनके अधिगम संबंधी विचारों का प्रसार 1932 में हुआ था। उनकी दो पुस्तकें The Behaviour of Organism तथा Beyond freedom of Dignity प्रसिद्ध है। व्यावहारवादियों की श्रेणी में स्किनर का नाम प्रमुख रूप से जाना जाता है। स्किनर ने दो प्रकार के व्यवहारों का वर्णन किया है-
1. प्रकियात्मक व्यवहार (Respondent),
2. सक्रिय व्यवहार (Operant Behaviour)
1. प्रकियात्मक व्यवहार (Respondent)- इस प्रकार का व्यवहार उद्दीपक के नियंत्रण में रहता है । जैसे- प्रकाश पड़ने पर आंखों का बन्द होना, हाथ पर पिन चुभने से हाथ का हट जाना।
2. सक्रिय व्यवहार (Operant Behaviour)- इस प्रकार का व्यवहार प्रकियात्मक व्यवहार से कुछ अलग होता है। यह व्यवहार उद्दीपक के प्रत्यक्ष नियंत्रण में नही रहता है। इसमें व्यक्ति की स्वयं की इच्छा निहित होती है। जैसे- भोजन करना, हाथ पैर हिलाना।
क्रियाप्रसूत अनुबन्धन सिद्धांत के अन्य नाम-
अनुक्रिया उद्दीपन सिद्धांत (Response Stimulation Theory), सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत (Operant Conditioning Theory), नैमित्तिक अनुक्रिया का सिद्धांत (Theory of Instrumental response), पुनर्बलन का सिद्धांत (Theory of Reinforcement), कार्यात्मक अनुबंधन का सिद्धांत (Theory of functional commitment).
प्रयोग-1 : स्किनर का चूहे पर प्रयोग
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| स्किनर बॉक्स |
स्किनर ने चूहे को बंद करने के लिए एक पिंजड़ा बनवाया। इस पिंजड़े में चूहे को अंदर करने के लिए एक दरवाजा लगाया गया था। जिसमे अंदर एक स्थान पर लीवर लगा हुआ था। इस लीवर को दबाने से भोजन की नली का रास्ता खुल जाता था और ऊपर रखा भोजन पिंजड़े में रखी प्लेट में गिर जाता था। इस पिंजड़े को स्किनर बॉक्स कहते है। स्किनर ने इस बॉक्स में भूखे चूहे को अंदर कर दिया था उसने देखा कि चूहे ने अंदर जाते ही उछल कूद करना शुरू कर दिया। इस उछल कूद में उसका पंजा लीवर पर पड़ गया और भोजन उसकी प्लेट में आ गया। उसने भोजन प्राप्त किया और अपनी भूख मिटा ली। इससे उसे बड़ा संतोष मिला । उसकी फिर से कुछ खाने की इच्छा हुई तो उसने फिर से उछल कूद करना शुरू कर दिया। इस उछल कूद में लीवर फिर से दब गया और उसने भोजन प्राप्त किया ।
स्किनर ने यह देखा कि भोजन मिलने से चूहे की क्रिया को पुनर्बलन (Reinforcement) मिला। स्किनर ने चूहे पर यह प्रयोग कई बार दोहराया और देखा कि एक स्थिति ऐसी आयी कि भूखे चूहे ने पिंजड़े में पहुंचते ही लीवर दबाकर भोजन प्राप्त किया अथवा भोजन प्राप्त करना सीख लिया ।
अनुक्रिया (Response) → पुनर्बलन (Reinforcement)→ पुनरावृति (Repetition) → साधन अनुबंध (Instrumental Conditioning)
प्रयोग-2 :स्किनर का कबूतर पर प्रयोग
स्किनर ने यह प्रयोग एक कबूतर पर दोहराया। उन्होंने इस प्रयोग के लिए एक विशेष प्रकार का बॉक्स बनवाया। इस बॉक्स में एक ऐसी ऊंचाई पर जहां कबूतर की चोंच जा सकती थी एक प्रकाशपूर्ण की (Key) लगाई गई इस की (Key) के दबाने से कबूतर को खाने के लिए दाने मिल सकते थे साथ ही इसमें छह प्रकार की प्रकाश की ऐसी व्यवस्था की गई थी कि अलग -अलग बटन दबाने से अलग-अलग प्रकाश होता था। इस बॉक्स को कबूतर बॉक्स (pigeon box) कहते हैं।
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| कबूतर बॉक्स (Pigeon Box) |
स्किनर ने इस बॉक्स में एक भूखे कबूतर को बंद कर दिया। इसके बाद की (Key) में सबसे हल्के रंग का प्रकाश पहुँचाया गया। इसकी चमक से कबूतर उसकी ओर आकर्षित हुआ और उसने इसके इधर उधर चोंच मारना शुरू कर दिया। एक बार उसकी चोंच प्रकशित की (Key) के ऊपर लग गयी, उसके दबते ही उसे खाने के लिए दाने मिल गए। उस कबूतर पर यह प्रयोग 6 प्रकार के प्रकाश पर किया गया। स्किनर ने देखा कि प्रकाश में परिवर्तन करने से कबूतर की अनुक्रिया में थोड़ा परिवर्तन हुआ परन्तु भोजन मिलने से उसके सही जगह चोंच मारने की क्रिया को पुनर्बलन बराबर मिला और एक स्थिति ऐसी आयी जब भी इस कबूतर को भूखा रखने के बाद इस बॉक्स में बंद किया गया तो वह उस की (Key) को दबाकर भोजन प्राप्त करने लगा। दूसरे शब्दों में उसने की (Key) दबाकर भोजन प्राप्त करना सीख लिया।
स्किनर के प्रयोगों के निष्कर्ष-
1. क्रिया करने के लिए किसी उद्दीपक (Stimulus) का होना जरूरी नहीं होता जैसा कि थॉर्नडाइक एवं पावलोव ने समझा था। क्रिया प्राणी की जैविक रचना (Organism) का एक अंग है, जब उसे कोई जैविक अथवा पर्यावरणीय आवश्यकता (जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में प्रेरक (Drive) एवं अभिप्रेरक (Motive) कहते हैं) होती है, तो वह स्वतः क्रियाशील हो जाता है; जैसे कि कबूतर ने बॉक्स के अन्दर प्रवेश करते ही भूख (Drive) के कारण क्रिया करनी शुरू कर दी थी।
2. क्रिया के परिणामस्वरूप प्राप्त सफलता से सीखने वाले को पुनर्बलन (Reinforcement) मिलता है; जैसा कि कबूतर को भोजन प्राप्त करने से मिला । स्किनर के अनुसार यह महत्वपूर्ण नहीं है कि की (Key) किस प्रकार दबी, महत्वपूर्ण यह है कि 'की (Key)' दबने से कबूतर को भोजन मिला, उसकी भूख शान्त हुई।
3. पुनर्बलन से सीखने की क्रिया तीव्र होती है और सीखने वाला शीघ्र सीख जाता है; जैसे कि कबूतर भोजन प्राप्त होने से ‘की (Key)’ दबाना सीख गया। कबूतर द्वारा स्वतः की (Key) दबाना सीखने की अनुक्रिया को उन्होंने क्रियाप्रसूत अनुक्रिया (Emitted Response) कहा और इस प्रकार सीखने की क्रिया को क्रिया प्रसूत अनुबन्धन (Operant Conditioning) कहा। इस प्रक्रिया में सीखे जाने वाले व्यवहार को स्किनर ने क्रिया प्रसूत व्यवहार (Operant behaviour) कहा। यह व्यवहार स्वतः (Spontaneous) उत्पन्न होता है ।
4. क्रिया और पुनर्बलन के परिणामस्वरूप होने वाला अनुबन्धन ही क्रियाप्रसूत अथवा सक्रिय अनुबन्धन (Operant Conditioning) है क्योंकि यह उद्दीपक के द्वारा नहीं, क्रिया के द्वारा होता है; जैसा कि कबूतर की क्रिया और भोजन प्राप्ति में हुआ।
5. सभी प्राणी प्रायः सक्रिय अनुबन्धन द्वारा ही सीखते हैं, इस प्रकार के सीखने को सक्रिय अनुबन्धन सीखना अथवा अधिगम (Operant Conditioned Learning) कहते हैं ।
यह सिद्धांत पुनर्बलन (Reinforcement) पर विशेष बल देता है। जब किसी प्राणी को किसी अनुक्रिया से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं तो वह उस अनुक्रिया को बार-बार दोहराता है । इस बार-बार दोहराने की इच्छा उत्पन्न होने को ही पुनर्बलन(Reinforcement) कहते हैं।
जैसे- कबूतर को की(Key) दबाने से हुआ । इस सिद्धांत में पुनर्बलन पर अधिक बल दिया गया इसलिये इसे पुनर्बलन का सिद्धांत (Theory of Reinforcement) भी कहते हैं।
सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की विशेषताएँ
- यह सिद्धान्त क्रियाप्रसूत अनुबन्धन पर बल देता है। क्रियाप्रसूत अनुबन्धन में अनुक्रियाएँ मस्तिष्क से संचालित होती हैं, इसलिए इस प्रकार सीखना अधिक स्थायी होता है।
- यह सिद्धान्त क्रिया से अधिक क्रिया के परिणाम को महत्त्व देता है और सकारात्मक परिणाम से मिलने वाले पुनर्बलन पर बल देता है जो सीखने वाले की क्रिया को गति देता है।
- यह सिद्धान्त सीखने की क्रिया में सफलता पर विशेष बल देता है, सफलता से पुनर्बलन मिलता है।
- यह सिद्धान्त सीखने की क्रिया में अभ्यास पर बल देता है, अभ्यास से सीखना स्थायी होता है।
- सक्रिय अनुबन्धन द्वारा कम बुद्धि के बच्चों को भी सिखाया जा सकता है।
सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of Operant Conditioning Theory)
- यह सिद्धान्त पशु-पक्षियों पर प्रयोग करके प्रतिपादित किया गया है, यह उनके प्रशिक्षण के लिए अधिक उपयोगी है, यह मनुष्य के सीखने की प्रक्रिया की सही व्याख्या नहीं करता।
- यह सिद्धान्त बुद्धिहीन अथवा कम बुद्धि वाले प्राणियों पर लागू होता है, बुद्धि, चिन्तन एवं विवेक से पूर्ण प्राणी पर लागू नहीं होता।
- स्किनर ने पुनर्बलन को अधिक महत्व दिया है जबकि मनुष्य के सीखने में उद्देश्य प्राप्ति के लिए लगन/परिश्रम महत्वपूर्ण होता है।
- इस सिद्धान्त के अनुसार पुनर्बलन का प्रयोग सतत् होना आवश्यक होता है, इसके अभाव में सीखने की प्रक्रिया मन्द होती जाती है जबकि मनुष्य के सीखने में लक्ष्य प्राप्ति आवश्यक होती हैं ।
- इस सिद्धान्त के अनुसार सीखना यान्त्रिक होता है, इसमें अधिक बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती जबकि मनुष्य के सीखने की प्रक्रिया में बुद्धि, चिन्तन, तर्क एवं विवेक की आवश्यकता होती है।
- यह सिद्धान्त अधिगम की निम्न स्तर की क्रियाओं में प्रयुक्त किया जा सकता है लेकिन उच्च स्तरीय क्रियाओं जैसे कल्पना करना, चिन्तन करना तथा समस्या समाधान के लिए उपयोगी नहीं है।
शिक्षा में स्किनर के क्रियाप्रसूत सिद्धान्त का उपयोग-
1. पुनर्बलन का शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक महत्व है। अधिगम की प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु पुनर्बलन का प्रयोग शिक्षक को करना चाहिए।
2. शिक्षक को, छात्रों के समक्ष विषय-वस्तु को छोटे-छोटे पदों के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि इससे छात्र अत्यन्त शीघ्र एवं सरलता से सीख सकता है ।
3. शिक्षक इस सिद्धान्त के द्वारा अधिगम में सक्रियता पर बल दे सकता है।
4. इस सिद्धान्त के आधार पर अध्यापक वैयक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण प्रदान कर सकता है।
5. पाठयक्रम, शिक्षण पद्धतियों व विषय-वस्तु को छात्रों की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाकर शिक्षक शिक्षण प्रदान कर छात्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।
6. छात्रों ने कितना सीख लिया है? इसकी जानकारी छात्रों को प्रदान करनी चाहिए क्योंकि परिणाम की जानकारी अधिगम में सहायक सिद्ध होती है ।
7. बालकों को जटिल कार्य सिखाने हेतु इस सम्बन्ध का प्रयोग किया जा सकता है शिक्षक को, छात्रों को वर्तनी सिखाने हेतु अपेक्षित अनुक्रियाओं का संयोजन करना चाहिए जिससे बालक शब्दों का शुद्ध उच्चारण करने के साथ ही उसे लिखना भी सीख सके ।
8. इस सिद्धान्त के द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ बालकों को भी प्रशिक्षित किया जा सकता है।


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