Tuesday, April 27, 2021

पॉवलव का शास्त्रीय अनुबन्धन सिद्धांत (Pavlov's Classical Conditioning Theory)

पॉवलव का शास्त्रीय अनुबन्धन  सिद्धांत

(Pavlov's Classical Conditioning Theory)

 

आई0पी
 पॉवलव ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1904 में किया था। पॉ
वलव रूस के निवासी और प्रसिद्ध शरीर वैज्ञानिक (Physiologists) थे। यह सिद्धांत शरीर विज्ञान से संबंधित है और इस सिद्धांत के प्रबल समर्थक व्यवहारवादी (Behaviourist) है। पॉवलव को 1904 में पाचन प्रक्रिया पर किए गए कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। 
पावलोव के इस सिद्धांत को शिक्षा के क्षेत्र में लाने का श्रेय लेस्टर एंडरसन को जाता है । 

इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई अस्वाभाविक उद्दीपक (Unnatural Stimulus) कई बार स्वाभाविक उद्दीपक (Natural Stimulus) के साथ आता है तो व्यक्ति अस्वाभाविक उद्दीपक (Unnatural Stimulus) के प्रति भी स्वाभाविक प्रतिक्रिया (Natural Response) करने   लग जाता है। अस्वाभाविक उद्दीपक के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया करने के सम्बंध को अनुबन्धन / प्रत्यावर्तन (Conditioning)   कहते हैं।

पॉवलव के सिद्धांत के अन्य नाम-

अनुबंधित प्रत्यावर्तन सिद्धांत (Conditioned Reflex Theory), अनुबंधित  या अनुकूलित अनुक्रिया  (Conditioned Response Theory), अनुबन्धन सिद्धान्त (Conditioning Theory), अधिगम का प्राचीन सिद्धांत (The Oldest theory of Learning), प्रतिबद्ध अनुक्रिया सिद्धान्त (Committed Response Theory)।

पॉवलव का प्रयोग (Experiment of Pavlov's)

पॉवलव द्वारा कुत्ते पर प्रयोग

पावलोव कुत्तों की पाचन क्रिया में लार के स्राव का अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने उस अध्ययन में देखा कि भोजन देखकर ही कुत्ते के लार स्राव में वृद्धि हो जाती है। कुछ दिन बाद उन्होंने देखा कि भोजन लाने वाले की पैरों की आवाज सुनते ही उसमें लार स्रावित होना शुरू हो जाता है और भोजन देखकर और अधिक होने लगता है। कुत्तों की भोजन (उद्दीपक, Stimulus) के प्रति इस अनुक्रिया (Response-R) ने उन्हें मनोवैज्ञानिक अध्ययन की ओर मोड़ दिया।

पावलोव ने लकड़ी का एक उपकरण तैयार किया। इसमें बीच में लकड़ी का एक तख्ता लगा था और इस तख्ते में एक खिड़की लगी थी जिसके द्वारा कुत्ते के सामने भोजन आता है। इस उपकरण में एक स्थान पर एक घण्टी (Bell) लगी थी। पावलोव ने इस उपकरण में कुछ ऐसा प्रबन्ध किया था कि घण्टी का बटन दबाने से घण्टी बजने लगती थी और भोजन का बटन दबाते ही कुत्ते के सामने भोजन की प्लेट आ जाती थी। इस उपकरण में कुत्ते की लार एकत्रित करने के लिए एक स्थान पर बीकर की व्यवस्था थी। 
पावलोव ने यह प्रयोग एक ध्वनि बाधित (Sound Proof) कमरे में किया। उन्होंने इस उपकरण को इस कमरे में रखा और उसके एक ओर भूखे कुत्ते को बाँध दिया। इस कुत्ते की लार ग्रन्थि में ऑपरेशन द्वारा एक नली लगायी हुई थी। इस नली के दूसरे छोर को उन्होंने लार एकत्रित करने वाले बीकर में डाल दिया। उन्होंने भोजन का बटन दबाया, भोजन का बटन दबाते ही कुत्ते के सामने भोजन की प्लेट आ गयी। भोजन देखकर ही कुत्ते का लार स्राव होने लगा। पावलोव की दृष्टि से भोजन कुत्ते के लिए स्वाभाविक उद्दीपक (Natural Stimulus) था और भोजन देखते ही उसके मुंह से लार आना सहज अनुक्रिया (Reflex Action) थी। दूसरे दिन पावलोव ने घण्टी का बटन दबाया। घण्टी की ध्वनि सुनते ही कुत्ते के कान खड़े हो गए, पावलव ने भोजन के स्थान पर घण्टी की ध्वनि से लार स्राव अनुक्रिया के लिए अस्वाभाविक उद्दीपक (Unnatural Stimulus) था । इसलिए अनुक्रिया में कान खड़े हुए। ध्वनि की प्रतिक्रिया स्वरूप कान खड़े होने में अपने में सहज क्रिया (Reflex action) है। तीसरे दिन पावलोव ने पहले घण्टी बजाई, घण्टी सुनते ही कुत्ते के कान खड़े हो गए। उन्होंने घण्टी के बटन के दो सेकण्ड बाद भोजन का बटन दबा दिया, भोजन देखते ही कुत्ते की लार ग्रन्थि से लार स्राव होने लगा। पावलोव ने यह प्रयोग कई दिनों तक किया और कुछ दिन बाद देखा कि घण्टी की ध्वनि सुनते ही कुत्ते का लार स्राव शुरू हो जाता था जो भोजन देखकर और अधिक होने का लगता था। पावलोव ने अनुबन्धित उद्दीपक (Conditioned Stimulus- CS) घण्टी की ध्वनि के साथ स्वाभाविक उद्दीपक (Unconditioned Stimulus) भोजन से स्राव में वृद्धि होने को पुनर्बलन (Reinforcement) कहा है। कुछ दिन यह प्रयोग करने के बाद पावलोव ने केवल घण्टी का बटन दबाया। उन्होंने देखा कि घण्टी की ध्वनि सुनते ही कुत्ते की लार ग्रन्थि से उतनी ही मात्रा में लार स्राव हुआ जैसा कि घण्टी की ध्वनि और भोजन से होता था। इसका कारण यह था कि वह घण्टी की ध्वनि से भोजन प्राप्त करने के लिए अनुबन्धित (Conditioned) हो गया था। पावलोव ने इस स्थिति में घण्टी की ध्वनि को अनुबन्धित उद्दीपक (Conditioned Stimulus) कहा।  पॉवलव ने स्वाभाविक उद्दीपक (US)  के स्थान पर अस्वाभाविक उद्दीपक (Conditioned Stimulus- CS) के प्रति स्वाभाविक अनुक्रिया  करने को सीखने की संज्ञा।  इस प्रकार से सीखने को पावलोव ने अनुबन्धित सहज क्रिया (Conditioned Reflex Action) कहा। आज के मनोवैज्ञानिक यह शास्त्रीय अनुबंधन (Classical Conditioning) कहते है।




पॉवलव के प्रयोग के निष्कर्ष

1. किसी स्वाभाविक उद्दीपक (Unconditioned Stimulus, US) के लिए स्वाभाविक अनुक्रिया (Unconditioned Response, UR) होती है जिसे मनोविज्ञान की भाषा में सहज क्रिया (Reflex Action) कहते हैं जैसे कि प्रयोग में भोजन (US) के प्रति लार आना (UR)। 
 US      ➡️    UR

2. किसी भी अस्वाभाविक उद्दीपक (CS) और स्वाभाविक उद्दीपक (US) को एक साथ प्रस्तुत करने से स्वाभाविक अनुक्रिया (UR) होती है जैसे  प्रयोग में घंटी + भोजन में लार स्राव होना ।

CS + US     ➡️   UR

3. स्वाभाविक उद्दीपक (Unconditioned Stimulus, US) को अनुबन्धित उद्दीपक (Conditioned Stimulus, CS) से प्रतिस्थापित (Replace) किया जा सकता है, जैसे कि प्रयोग में भोजन को घंटी की ध्वनि से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। यहाँ CS की प्रतिक्रिया UR को उन्होंने CR कहा।  
CS          ➡️     UR   or  CR

पावलोव ने CS तथा CR के बीच सम्बन्ध स्थापित होने को अनुबन्धित प्रत्यावर्तन (Conditioned Reflex) की संज्ञा दी। वर्तमान में मनोवैज्ञानिक इसे शास्त्रीय अनुबन्धन (Classical Conditioning) कहते हैं। 

4.अनुबन्धित उद्दीपक (CS) कुछ ही समय तक प्रभावित रहता है जैसा कि प्रयोग में कुछ दिनों बाद केवल घण्टी की ध्वनि (CS) से लार स्राव (CR) का बन्द होना ।

सिद्धान्त से सम्बन्धित नियम (Theory related rules)


1. समय सिद्धान्त (Time Principle) इस सिद्धान्त के अनुसार सीखने में उद्दीपनों  के मध्य समय का अन्तराल एक महत्त्वपूर्ण कारक है। दोनों उद्दीपनों के मध्य समय अन्तराल जितना अधिक होगा उद्दीपनों का प्रभाव भी उतना ही कम होगा। 

2. तीव्रता का सिद्धान्त (Principle of Intensity ) इस सिद्धान्त के अनुसार यदि हम यह चाहते हैं कि कृत्रिम उद्दीपक अपना स्थायी प्रभाव बनाये रखें तो इसके लिये उसका प्राकृतिक उद्दीपक की तुलना में अधिक सशक्त होना एक अनिवार्य शर्त है, अन्यथा प्राकृतिक उद्दीपक के सशक्त होने पर सीखने वाला कृत्रिम उद्दीपक अर्थात् नये उद्दीपक पर कोई ध्यान नहीं देगा। 

3. एकरूपता का सिद्धान्त (Principle of Consistency) एकरूपता के इस सिद्धान्त के अन्तर्गत अनुबन्धन की प्रक्रिया उसी स्थिति में सुदृढ़ होती है जब एक ही प्रयोग प्रक्रिया को बार-बार बहुत दिनों तक ठीक उसी प्रकार दोहराया जाये जैसा कि प्रयोग को उसके प्रारम्भिक चरण में क्रियान्वित किया गया था। 

4. पुनरावृत्ति का सिद्धान्त (Principle of Repetition)-  इस सिद्धान्त की यह मान्यता है कि किसी क्रिया के बार-बार करने पर वह स्वभाव में आ जाती है और हमारे व्यक्तित्व का एक स्थायी अंग बन जाती है। अतः सीखने के लिये यह आवश्यक है कि दोनों उद्दीपक साथ-साथ बहुत बार प्रस्तुत किये जायें। एक-दो बार की पुनरावृत्ति से अनुकूलन सम्भव नहीं होता। यही कारण है कि पॉवलाव के प्रयोग में कई बार घण्टी बजाने के बाद ही कुत्ते को भोजन दिया जाता था। 

5. व्यवधान का सिद्धान्त (Principle of Inhibition) इस नियम के अनुसार अनुबन्धन स्थापना के लिये यह आवश्यक है कि उस कक्ष का वातावरण जहाँ प्रयोग किया जा रहा है, शान्त एवं नियंत्रित  होना चाहिये । इसीलिये दो उद्दीपनों के अतिरिक्त अन्य कोई उद्दीपन चाहे वह ध्यान आकर्षित करने वाला है अथवा ध्यान बाँटने वाला, नहीं होना चाहिये। पॉवलाव ने इसी कारण अपना प्रयोग एक बन्द कमरे में किए जहाँ कोई आवाज भी नहीं पहुँच पाती थी। 


गुण या विशेषताएँ (Merits or Characteristics)

1. यह सिद्धान्त, सीखने की स्वाभाविक विधि बताता है। अतः यह बालकों को शिक्षा देने में सहायता देता है। 
2. यह सिद्धान्त, बालकों की अनेक क्रियाओं और असामान्य व्यवहार की व्याख्या करता है।
3. यह सिद्धान्त, बालकों के समाजीकरण और वातावरण से उनका सामंजस्य स्थापित करने में सहायता देता है।
4. इस सिद्धान्त का प्रयोग करके बालकों के भय-सम्बन्धी रोगों का उपचार किया जा सकता है।
5. समाज-मनोविज्ञान के विद्वानों के अनुसार, इस सिद्धान्त का समूह के निर्माण में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। 
6. इस सिद्धान्त की सहायता से बालकों में अच्छे व्यवहार और उत्तम अनुशासन की भावना का विकास किया जा सकता है

शास्त्रीय अनुबन्धन का शिक्षा में प्रयोग 

(Use of Classical Conditioning in Education)


1. यह सिद्धान्त सीखने में क्रिया (Activity), अनुबन्धन (Conditioning) और पुनर्बलन (Reinforcement) पर बल देता है। शिक्षकों को बच्चों को कुछ भी पढ़ाते-सिखाते समय इनका प्रयोग करना चाहिए। इससे सीखने की प्रक्रिया प्रभावशाली होती है । 
2. यह सिद्धान्त विषयों के शिक्षण में शिक्षण साधनों (Teaching Aids) के प्रयोग और अनुशासन स्थापित करने में पुरस्कार एवं दण्ड के प्रयोग पर बल देता है। शिक्षा के क्षेत्र में इनका प्रयोग लाभकर सिद्ध हुआ। 
3. इस विधि से ऐसे विषयों को सरलता से पढ़ाया जा सकता है जिनमें बुद्धि, चिन्तन एवं तर्क की आवश्यकता नहीं होती;  जैसे शिशुओं को अक्षरों का पढ़ना-लिखना सिखाना।
4. शास्त्रीय अनुबन्धन द्वारा बच्चों की बुरी आदतों को अच्छी आदतों से प्रतिस्थापित किया जा सकता है एवं भय आदि मानसिक रोगों को दूर किया जा सकता है। अवांछित आदतों को जड़ से समाप्त करने के लिए विलोपन
की प्रक्रिया का अनुप्रयोग सतर्कता के साथ करना चाहिए।
5. शास्त्रीय अनुबन्धन द्वारा बच्चों का समाजीकरण सरलता से किया जा सकता है।
6. प्रत्येक अधिगम सामग्री की अपनी अलग प्रकृति होती है अतः उनके लिए सामान्यीकरण तथा विभेदन के लिए उचित क्षेत्रों की पहचान करना आवश्यक है। 
7. यह सिद्धान्त छात्रों में शिक्षक, विद्यालय तथा अधिगम के प्रति सकारात्मक अथवा नकारात्मक अभिवृत्ति विकसित करने में प्रयोग किया जा सकता है । 
8. सर्कस आदि में पशुओं के प्रशिक्षक इसी सिद्धान्त के आधार पर अनेक प्रकार की क्रियाएँ सिखाने में सफल हो पाते हैं।

शास्त्रीय अनुबन्धन सिद्धांत की आलोचना (Criticism of Classical Conditioning Theory)


  1. यह सिद्धांत मनुष्य को एक मशीन या यंत्र मानता है
  2. यह सिद्धांत मनुष्य के विवेक , तर्क , चिंतन आदि की अवहेलना करता है।
  3. यह सिद्धांत सीखने की प्रक्रिया की वैज्ञानिक व्याख्या नहीं करता है यह केवल उन्ही परिस्थितियों का वर्णन करता है जिनमे सीखने की प्रक्रिया होती है ।
  4. यह सिद्धांत केवल सरल विषय वस्तु अधिगम तक सीमित है ।
  5. इस सिद्धांत द्वारा सीखा हुआ ज्ञान अस्थायी होता है ।
  6. यह सिद्धांत उच्च स्तरीय विषय तथा विचारों  को समझाने में अनुपयोगी है 

 


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