Wednesday, September 3, 2025

सेवा-पूर्वकालीन अध्यापक शिक्षा (Pre-Service Teacher Education)

 सेवा-पूर्वकालीन अध्यापक शिक्षा 

(Pre-Service Teacher Education)


सेवा-पूर्व शिक्षक शिक्षा (Pre-Service Teacher Education)  से तात्पर्य उस शिक्षा और प्रशिक्षण से है, जो विद्यार्थी अध्यापकों को शिक्षण कार्य शुरू करने से पहले प्रदान किया जाता है। इसका उद्देश्य भावी शिक्षकों को आवश्यक शैक्षणिक ज्ञान, कौशल और मूल्य देने के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव उपलब्ध कराना है।

अध्यापक को प्रशिक्षित करने के लिए प्रायः अनेकों  विषयगत ज्ञान एवं अनुभवों का होना आवश्यक होता है। इसमें शिक्षण के सिद्धांत, शिक्षा का समाजशास्त्र, शैक्षिक मनोविज्ञान, शैक्षिक दर्शन, अर्थशास्त्र, इतिहास, हिंदी, गणित, विज्ञान एवं संस्कृत तथा अन्य विषय-विशेष शिक्षण का समावेश होता है। इसके आभाव में अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में दक्षता (Ability) की प्राप्ति में कठिनाई अनुभव होता है। 
सेवापूर्वकालीन अध्यापक शिक्षा (Pre-Service Teacher Education) कार्यक्रम के माध्यम से समाज उपयोगी एवं कुशल अध्यापक को तैयार करने का  प्रयास किया जाता है। उन्हें अनौपचारिक और वैकल्पिक विधाओं के बारे में भी जानकारी प्रदान करना अनपेक्षित नहीं माना जा सकता है। एक ओर जहाँ सेवापूर्वकालीन अध्यापक शिक्षा के माध्यम से भारतीय संस्कृति और मूल्यों के प्रति सचेतनता को विकसित किया जाना जरूरी माना जाता है, वहीं दूसरी ओर भावी अध्यापक/अध्यापिकाओं में शिक्षण दक्षता और प्रतिबद्धता के विकास को भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम एनसीटीई द्वारा स्वीकृत संस्थानों में संचालित होते हैं, जैसे बी.एड., डी.एल.एड., बी.एल.एड., एम.एड. आदि। अब शिक्षा संस्थानों में बहु-विषयक (मल्टीडिसिप्लिनरी) कोर्स भी शुरू किए जा सकेंगे, जैसे बी.ए., बी.एससी., बी.कॉम के साथ इंटीग्रेटेड बी.एड. आदि।

पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा वह प्रशिक्षण है जो किसी व्यक्ति को शिक्षक बनने से पहले प्रदान किया जाता है। इसका उद्देश्य भावी शिक्षकों को शिक्षण के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण से सुसज्जित करना है। इस शिक्षा के माध्यम से छात्र-शिक्षक शिक्षण पद्धतियों, शैक्षिक मनोविज्ञान, कक्षा प्रबंधन, मूल्यांकन तकनीकों तथा नैतिक मूल्यों को समझते और अपनाते हैं। पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा में सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों तरह के प्रशिक्षण शामिल होते हैं, जिनमें छात्रों को प्रशिक्षण अवधि के दौरान स्कूलों में इंटर्नशिप भी कराई जाती है।

इसका महत्व इसलिए भी है क्योंकि शिक्षक शिक्षा की गुणवत्ता सीधे तौर पर शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। एक प्रशिक्षित शिक्षक ही छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकता है और उनकी विविध आवश्यकताओं को समझकर उन्हें मार्गदर्शन कर सकता है। पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा से शिक्षक पेशे के प्रति प्रतिबद्ध और सजग बनते हैं, जिससे शिक्षा जगत में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

इसके अतिरिक्त, शिक्षकों को नयी-नयी शिक्षा तकनीकों, पाठ्यक्रम परिवर्तनों और बच्चों की मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक जरूरतों के बारे में सिखाया जाता है, ताकि वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के अनुरूप काम कर सकें। इस प्रक्रिया से वे खुद को एक प्रभावी शिक्षक के रूप में स्थापित कर पाते हैं जो समाज और विद्यार्थियों के विकास में सहायक होता है।

इसलिए, पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा शिक्षा प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा है जो शिक्षकों को शिक्षण कार्य में दक्ष और सफल बनाती है। यह शिक्षकों को अपने करियर की शुरुआत में ही आवश्यक प्रशिक्षण देकर उन्हें भविष्य के लिए तैयार करती है। इसका उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता सुधारना और बच्चों को बेहतर शिक्षण प्रदान करना है


 सेवा-पूर्वकालीन अध्यापक शिक्षा के उद्देश्य  

(Objectives of Pre-Service Teacher Education)


पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा के उद्देश्य प्रमुख रूप से भावी शिक्षकों को शिक्षण पेशे के लिए तैयार करना और उन्हें आवश्यक ज्ञान, कौशल एवं दृष्टिकोण से सुसज्जित करना हैं। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं&

  1. शिक्षण के उद्देश्य और शिक्षा के महत्व की समझ देना ताकि शिक्षक शिक्षा के सामाजिक और व्यक्तिगत आयामों को समझ सके।

  2. बाल विकास, मनोविज्ञान और सीखने की प्रक्रिया की गहरी जानकारी प्रदान करना, जिससे वे बच्चों की आवश्यकताओं और विकासात्मक चरणों को समझकर शिक्षा दे सकें।

  3. शिक्षण विधियों का परिचय देना और उन्हें इस प्रकार तैयार करना कि वे प्रभावी ढंग से विषय वस्तु को विद्यार्थियों तक पहुँचा सकें तथा रुचि उत्पन्न कर सकें।

  4. शिक्षक बनने के लिए आवश्यक संवाद कौशल, कक्षा प्रबंधन और व्यावहारिक अधिगम तकनीकों का विकास करना।

  5. सीखने वाले छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए सकारात्मक मनोवृत्तियाँ, नैतिकता और संवेदनशीलता विकसित करना।

  6. शिक्षण में नवीनतम तकनीकों और संसाधनों के उपयोग को प्रोत्साहित करना ताकि वे आधुनिक शैक्षिक परिवेश के अनुकूल बने रहे।

  7. सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समझते हुए बच्चों के व्यक्तित्व विकास और सामाजिक उत्तरदायित्वों के लिए जागरूक करना।


प्रारंभिक अध्यापक शिक्षा स्तर (Primary level Teacher Education)

इस स्तर को परिषद् के द्वारा प्राथमिक और उच्च प्राथमिक (कक्षा 1 से 5 तथा 6 से 8) सम्मिलित करते हुए संरचित किया गया  है और इन दोनों ही स्तरों के लिए प्रस्तावित विशिष्ट उद्देश्य एवं पाठ्यक्रम  को प्रारम्भिक स्तर के लिए उपयोगी माना गया। 14-15 वर्ष तक के वर्ग के बच्चों को इस स्तर में रखा गया। 

पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम बच्चों की सीखने की प्रक्रियाओं, व्यक्तिगत तथा सामाजिक विकास के सिद्धांतों को समझाने के साथ ही शिक्षण कौशल, कक्षा प्रबंधन और सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों को भी सिखाता है। यह कार्यक्रम शिक्षकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण देता है । उदाहरण के लिए स्कूल में व्यावसायिक अनुभव (प्रैक्टिकम) और इंटर्नशिप, जिससे वे वास्तविक कक्षा अनुभव प्राप्त कर सकें।

इस शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी होता है कि शिक्षक बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक कक्षाओं में पढ़ाने के लिए तैयार हों, क्योंकि प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में विभिन्न पृष्ठभूमि के बच्चे होते हैं। इसके अतिरिक्त, शिक्षक को तकनीकी उपकरणों का भी सही उपयोग करना सिखाया जाता है ताकि सीखने की प्रक्रिया अधिक प्रभावी और आकर्षक हो सके।

उद्देश्य (Objectives):-

कक्षा एक से पाँच तक के प्राथमिक स्तर के लिए अध्यापक शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्य निम्न हैं -

  • प्राथमिक स्तर उपयोगी मनोवैज्ञानिक तथा समाजशास्त्रीय शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में भावी अध्यापक/अध्यापिकाओं के मध्य अवबोध का विकास करना।
  • अध्यापकों को बच्चों के लिए अधिगम अनुभव को संगठित करने हेतु उपयुक्त संसाधनों से उन्हें परिचित कराना।
  • शिक्षार्थियों को शिक्षा के लक्ष्यों और उद्देश्यों की गहरी समझ देना।
  • बाल विकास, बच्चों के सीखने की प्रक्रियाओं और मनोविज्ञान के बारे में ज्ञान प्रदान करना ताकि शिक्षक बच्चों की आवश्यकताओं को समझ सकें।

  • सभी प्रकार के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षक में सही दृष्टिकोण, रुचि और नैतिक मूल्य विकसित करना।
  • नवीनतम शैक्षिक तकनीकों और उपकरणों का उपयोग करने के लिए शिक्षकों को सक्षम बनाना।
  • बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक कक्षा में पढ़ाने के लिए शिक्षकों को तैयार करना।
  • विद्यालय के बाहर और विद्यालय के अंदर बच्चों के विकास के लिए उचित पर्यावरण सुनिश्चित करना।

  • संचार कौशल, कक्षा प्रबंधन और व्यवहारिक शिक्षण क्षमताएं विकसित करना ताकि शिक्षक बच्चों के साथ प्रभावी संबंध बना सकें।
  • शिक्षण सामग्री को इस प्रकार प्रस्तुत करने के लिए प्रशिक्षित करना जिससे बच्चों में रुचि उत्पन्न हो और उनका समग्र विकास हो।

  • बच्चों में जिज्ञासा, कल्पना तथा सृजनात्मकता को विकसित करने के लिए उन्हें उपयुक्त एवं आवश्यक कौशलों में सक्षम बनाना।
  • सामाजिक और संवेगात्मक समस्याओं के विश्लेषण तथा अवबोध हेतु उनमें क्षमता को विकसित करना।

पाठ्यक्रम (Curriculum):-

प्राथमिक स्तर पर पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum) मुख्य रूप से शिक्षकों को शिक्षण के लिए आवश्यक सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने के उद्देश्य से तैयार किया जाता है। इसका उद्देश्य शिक्षा के बुनियादी तत्वों के साथ-साथ शिक्षण-कौशल को भी विकसित करना होता है ताकि शिक्षक बच्चों को प्रभावी ढंग से पढ़ा सकें।

 सैद्धांतिक ज्ञान (Theoretical Knowledge)

  1. बाल विकास और बाल मनोविज्ञान: इस विषय में बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास को समझना सिखाया जाता है ताकि शिक्षक बच्चों की आवश्यकताओं और विकासात्मक चरणों को ध्यान में रख कर शिक्षण कर सकें।

  2. शिक्षा का दार्शनिक और सामाजिक आधार: शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षकों की भूमिका और सामाजिक संदर्भों की समझ विकसित करना पाठ्यक्रम का एक हिस्सा है।

  3. शैक्षिक मनोविज्ञान और शिक्षण विधियाँ: बच्चों के सीखने के सिद्धांतों, समूह प्रबंध, कक्षा में व्यवहार नियंत्रण और प्रभावी शिक्षण तकनीकों की जानकारी दी जाती है।

  4. विषयविशेष पाठ्य सामग्री: जैसे मातृभाषा, गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन आदि विषयों को प्राथमिक कक्षा के लिए पढ़ाने की पद्धति पर जोर दिया जाता है।

  5. आंकलन, मूल्याङ्कन एवं सुधारात्मक शिक्षण। 

  6. विद्यालय प्रबंधन एवं प्रशासन। 

  7. मार्गदर्शन एवं परामर्श। 

  8. स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा 

  9. समावेशी शिक्षण। 

  10. प्राथमिक विद्यालयों के लिए विषयगत क्षेत्र। 

  11. क्रियात्मक अनुसन्धान। 


प्रायोगिक कार्य (Practical Work) : -

  1. प्रैक्टिकल या अभ्यास: छात्रों को स्कूल में इंटर्नशिप के माध्यम से वास्तविक कक्षा का अनुभव दिया जाता है, जिससे वे व्यवहारिक शिक्षण कौशल विकसित कर सकें।

  2. कार्य शिक्षा 

  3. विद्यालय समुदाय अंतक्रिया 

  4. सम्बंधित शैक्षिक क्रियाओं का संगठन। 


मूल्यांकन (Evaluation):-

प्राथमिक स्तर के शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रम का मूल्यांकन (Evaluation) इसका आवश्यक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि पाठ्यक्रम प्रभावशाली रूप से लागू हो रहा है और शिक्षार्थी उसके लक्ष्यों को प्राप्त कर रहे हैं। मूल्यांकन के माध्यम से पाठ्यक्रम की गुणवत्ता, प्रभावशीलता और प्रासंगिकता की जांच की जाती है।

सैद्धान्तिक भाग हेतु मूल्यांकन में  दीर्घ प्रश्न, लघु प्रश्न,  वस्तुनिष्ठ प्रश्न, उद्देश्य आधारित प्रश्न, मौखिक परीक्षा, विचार-समूह में सहभागिता आदि का उपयोग करना उचित है। निरन्तर और व्यापक मूल्यांकन जिसमें अंकों के स्थान पर बिन्दुक्रम या ग्रेड प्रदान किया जाय, अधिक उपयोगी हो सकता है। प्रायोगिक कार्यों का मूल्यांकन आन्तरिक ढंग से किये जाने पर बल दिया गया। मूल्यांकन प्रक्रिया को अधिक वस्तुनिष्ठ तथा वैध एवं विश्वसनीय बनाने के लिए सुनियोजित और उपयुक्त परीक्षण उपकरण निर्भर होना चाहिए।

मूल्यांकन के तरीके

  1. प्रश्नावली और टेस्ट
  2. साक्षात्कार और फोकस समूह चर्चाएँ
  3. शिक्षण अभ्यास के दौरान कक्षा अवलोकन
  4. प्रोजेक्ट एवं असाइनमेंट का मूल्यांकन
  5. आत्म-मूल्यांकन और सहकर्मी मूल्यांकन

इस प्रकार, प्राथमिक स्तर की पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा में मूल्यांकन प्रशिक्षण की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और प्रशिक्षणार्थियों के समुचित विकास के लिए एक आवश्यक प्रक्रिया है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बेहतर बनाने तथा शिक्षकों को उनके पेशे में दक्ष और प्रभावी बनाने में सहायक होता है.प्राथमिक स्तर की पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा में मूल्यांकन का उद्देश्य शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम की प्रभावशीलता और गुणवत्ता को जांचना होता है। यह प्रशिक्षण के दौरान और अंत में शिक्षार्थियों के ज्ञान, कौशल, व्यवहार और प्रशिक्षण के परिणामों का आकलन करता है। मूल्यांकन से यह पता चलता है कि प्रशिक्षण के लक्ष्यों की प्राप्ति हुई है या नहीं, और किस प्रकार सुधार की आवश्यकता है।


माध्यमिक अध्यापक शिक्षा स्तर (Secondary level Teacher Education)

माध्यमिक (Secondary) स्तर की पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा का उद्देश्य शिक्षार्थियों को इस स्तर की विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं के लिए तैयार करना है। इसमें शिक्षकों को विषय विशेषज्ञता के साथ-साथ शिक्षण कौशल, शैक्षिक मनोविज्ञान, पाठ्यक्रम अध्ययन और कक्षा प्रबंधन जैसी क्षमताएँ विकसित करनी होती हैं।

उद्देश्य (Objectives):-

माध्यमिक स्तर की पूर्व सेवा शिक्षक शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार हैं:

  1. शिक्षार्थियों को शिक्षा के मूल लक्ष्यों, सिद्धांतों और शिक्षक के कर्तव्यों की समझ प्रदान करना।

  2. बच्चों के विकास और मनोविज्ञान के बारे में गहन ज्ञान देना ताकि वे विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को समझ सकें।

  3. माध्यमिक स्तर के विषयों के लिए गहन सामग्री विशेषज्ञता विकसित करना और उसे प्रभावी ढंग से पढ़ाने के कौशल प्रदान करना।

  4. प्रभावी शिक्षण विधियों, कक्षा प्रबंधन, मूल्यांकन तकनीकों और पाठ्यक्रम नियोजन की प्रशिक्षण देना।

  5. शिक्षकों को नवाचार, तकनीकी कौशल और विभिन्न शिक्षण संसाधनों के प्रयोग के लिए सक्षम बनाना।

  6. शिक्षक में नैतिकता, सामाजिक जिम्मेदारी, समावेशी शिक्षा और सतत् सीखने की प्रवृत्ति विकसित करना।

  7. प्रशिक्षुओं को स्व-विश्लेषण एवं चिंतन से प्रेरित करना ताकि वे लगातार अपने शिक्षण कौशल में सुधार कर सकें।

  8. समग्र और समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देना तथा विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में योगदान देना।


पाठ्यक्रम (Curriculum):-

यह पाठ्यक्रम शिक्षा के व्यापक सिद्धांतों के साथ-साथ विशेष विषयों का गहन अध्ययन कराता है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख विषय शामिल होते हैं:

 सैद्धांतिक ज्ञान (Theoretical Knowledge):-

  • शिक्षा, स्कूल और समाज का अध्ययन

  • बाल्यावस्था और विकास

  • शिक्षण विधियाँ और पाठ्यक्रम अध्ययन

  • विशेष विषय जैसे हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान आदि के शिक्षण पद्धतियाँ

  • सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग शिक्षण में

  • विद्यालय अनुभव और शिक्षण अभ्यास (प्रैक्टिकम)

  • विद्यालय प्रबंधन 

  • पाठ्यक्रम  योजना एवं विकास 

  • मार्गदर्शन एवं परामर्शन 

  • भारत में माध्यमिक शिक्षा 

  • अध्ययन -अध्यापन का मनोविज्ञान 


चयनात्मक पाठ्यक्रम  (Optional curriculum ):-


किसी भी दो विषयों  का चयन करना अपेक्षित है।
  • पूर्व-विद्यालयीय शिक्षा (Pre-school education)
  • प्रारम्भिक शिक्षा (Primary education)
  • शैक्षिक तकनीकी (Educational technology)
  • व्यावसायिक शिक्षा (Vocational education)
  • प्रौढ़ शिक्षा (Adult education)
  • अनौपचारिक शिक्षा (Non-formal education)
  • दूरस्थ शिक्षा (Distance education)
  • पर्यावरण शिक्षा (Environmental education)
  • संगणकीय शिक्षा (Computer education)
  • विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा (Education for children with special needs)
  • स्वास्थ्य तथा शारीरिक शिक्षा (Health and physical education)
  • शिक्षा-इतिहास और समस्याएँ (History and issues in education)
  • जनसंख्या शिक्षा (Population education)

शिक्षण अभ्यास (Practice Teaching):

  • दो विद्यालयीय विषयों का शिक्षणशास्त्रीय विश्लेषण (Pedagogical analysis of two school subjects)
  • विद्यालयीय शिक्षण अभ्यास (School teaching practices)
  • प्रतिमान पाठों का निरीक्षण (Observation of model lessons)

प्रायोगिक कार्य (Practical Work)

इण्टर्नशिप और विद्यालय अनुभव, समुदायाधारित कार्यक्रम सहित क्षेत्रीय कार्य - सृजनशीलता और व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम (Creativity and personality development program), कार्य-अनुभव, सत्रीय/प्रायोगिक कार्य, शारीरिक शिक्षा - खेलकूद और अन्य विद्यालय क्रियाएं, क्रियात्मक शोध अध्ययन आदि। 




Monday, September 1, 2025

अध्यापक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Teacher Education)

 अध्यापक शिक्षा के उद्देश्य 
(Objectives of Teacher Education)


अध्यापक  शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों को आवश्यक ज्ञान, कौशल, पेशेवर दृष्टिकोण और समझ से सुसज्जित  करना है ताकि वे प्रभावी ढंग से सीखने में सहायता कर सकें और सामाजिक विकास में योगदान दे सकें।

  • शिक्षकों को उनके द्वारा पढ़ाए जाने वाले विषयों पर मजबूत पकड़ सुनिश्चित करने के लिए विषय ज्ञान का विकास करना।
  • शिक्षकों को शैक्षणिक कौशल से सुसज्जित  करना, प्रभावी शिक्षण और पाठ योजना के लिए तकनीकें और रणनीतियाँ बनाना। 
  • बाल मनोविज्ञान की समझ को बढ़ावा देना, जिससे शिक्षक छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को समझ सकें और उनका समाधान कर सकें।
  • आत्मविश्वास, लचीलापन, रचनात्मकता और शिक्षण के प्रति मानवीय दृष्टिकोण जैसे पेशेवर दृष्टिकोण का निर्माण करना।
  • कक्षा में बेहतर शिक्षण के लिए शिक्षण संसाधनों और सुविधाओं का उचित उपयोग संभव बनाना।
  • विविध पृष्ठभूमियों और क्षमताओं के अनुसार शिक्षण को अनुकूलित करना।
  • अन्वेषण और निरंतर स्व-शिक्षण को प्रोत्साहित करना।
  • शिक्षकों को स्कूल प्रणाली और समग्र समाज की बदलती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तैयार करना।
  • छात्रों के संतुलित विकास में सहयोग करना, जिसमें जीवन कौशल, सामाजिक मूल्य और ज़िम्मेदार नागरिकता शामिल है।
  • शिक्षकों के व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के अवसर प्रदान करना, जैसे परामर्श, कंप्यूटर और प्रबंधन कौशल।
  • सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक प्राथमिकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम के नवीनीकरण और प्रासंगिकता में योगदान देना।
  • शिक्षा प्रणालियों को आगे बढ़ाने के लिए अनुसंधान, नवाचार और सामुदायिक सहभागिता को सुगम बनाना।

पूर्व-प्राथमिक स्तर पर अध्यापक शिक्षा के उद्देश्य
(Objectives of Pre-primary Teacher Education)


"प्राथमिक स्तर" शब्द आमतौर पर शिक्षा के पूर्व-प्राथमिक स्तर को संदर्भित करता है, जो औपचारिक शिक्षा का प्रारंभिक चरण है, जिसे आमतौर पर 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश से पहले डिज़ाइन किया जाता है।
 पूर्व-प्राथमिक स्तर में नर्सरी, किंडरगार्टन और अन्य परिवेश शामिल हैं जहाँ बच्चे बुनियादी कौशल सीखते हैं और संरचित शिक्षण वातावरण में समायोजित होते हैं। यह चरण बच्चों को मुख्य रूप से खेल-आधारित और खोज-उन्मुख गतिविधियों के माध्यम से रंगों, आकृतियों, संख्याओं और अक्षरों जैसी बुनियादी अवधारणाओं से परिचित कराता है। पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य एक पोषणकारी वातावरण में मोटर कौशल, सामाजिक संपर्क, भाषा क्षमताओं और भावनात्मक विकास का निर्माण करना है।

फ्रॉयड को विश्वास था कि व्यक्ति के व्यक्तित्व की आधारशिला जीवन के पहले 5 वर्षों में पड़ जाती है। इसी कारणवश पूर्व-प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों को अत्यन्त सक्षम होना चाहिये ताकि वे एक दृढ़ व्यक्तित्व की नींव डाल सकें एवं शिक्षक में वे सभी कौशल होने चाहिये जिससे कि व्यक्तित्व की वास्तविक दबी हुई क्षमतायें सामने आये। हमारे देश में अध्यापक शिक्षा के पाठ्यक्रम का निर्माण अत्यन्त विचारणीय दृष्टिकोण से नहीं किया जाता है, जोकि भावी अध्यापक में ज्ञान कौशल एवं दृष्टिकोण को विकसित करने में सहायता प्रदान करता है ।

NCERT  के अनुसार पूर्व-प्राथमिक स्तर पर अध्यापक शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य है -

  • बाल्यावस्था की शिक्षा के सैद्धातिक एवं प्रयोगात्मक ज्ञान को प्राप्त करना।
  • बालक के विकास के आधारभूत सिद्धान्तों का ज्ञान।
  • भारत के सन्दर्भ में बालकों की शिक्षा में सैद्धान्तिक एवं प्रयोगात्मक ज्ञान का प्रयोग करना ।
  • बोध, कौशल, दृष्टिकोण एवं रुचि को विकसित करना, जोकि उसको इस योग्य बना सकें कि वह बालक का सम्पूर्ण विकास ठीक से कर सकें।
  • ऐसे कौशलों का विकास करना, जोकि बालक की शारीरिक भावात्मक स्वास्थ्य की रक्षा करें अर्थात् बालक को उचित वातावरण प्रदान कर सकें।
  • वार्तालाप कौशल को विकसित करना।
  • दृश्य-श्रव्य सामग्री का उचित प्रयोग करने के लिये कौशल का विकास करना।
  • बालक के घर के वातावरण को जानना तथा घर व स्कूल में सामंजस्य एवं सम्बन्ध स्थापित करना।
  • समग्र विकास को बढ़ावा देना—बौद्धिक, सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और नैतिक जागरूकता।
  • जिज्ञासा और रचनात्मकता को जगाने के लिए खेल और अन्वेषण के माध्यम से सीखने को बढ़ावा देना।
  • बुनियादी साक्षरता और अंकगणित कौशल प्रदान करके बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा के लिए तैयार करना।
  • संचार, टीम वर्क, साझाकरण और आत्म-नियंत्रण जैसे बुनियादी सामाजिक कौशल को प्रोत्साहित करना।
  • विशेष रूप से वंचित या विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए सहायक देखभाल और सुरक्षा प्रदान करना, एक सुरक्षित और प्रेरक वातावरण के उनके अधिकार को सुनिश्चित करना।
  • एक ऐसे वातावरण की रचना करना जहाँ बच्चा सुरक्षित, सम्मानित और सुखद अनुभव प्राप्त करे तथा अपनी क्षमताओं को पहचान सके ।
  • बच्चों को अच्छे स्वास्थ्य, सफाई और सुरक्षा संबंधी आदतों का विकास करना तथा इस विषय में जागरूकता फैलाना।

  • खेल और गतिविधियों के माध्यम से बच्चों की जिज्ञासा, समस्या समाधान व तार्किक सोच को विकसित करना ।
  • विविध पृष्ठभूमि और क्षमताओं के बच्चों के लिए उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग करना, जिससे हर बच्चा सीख सके ।


प्राथमिक स्तर पर अध्यापक शिक्षा के उद्देश्य
(Objectives of Primary Teacher Education)



प्राथमिक शिक्षक शिक्षा का उद्देश्य शिक्षकों को आधारभूत वर्षों में युवा बच्चों का प्रभावी ढंग से पोषण, शिक्षा और विकास करने के लिए तैयार करना है, तथा उन्हें समग्र विकास के लिए आवश्यक कौशल, ज्ञान और दृष्टिकोण से सुसज्जित करना है।  प्राथमिक शिक्षक शिक्षा के  निम्नलिखित उद्देश्य हैं  -

  • प्रथम एवं द्वितीय भाषा का ज्ञान, गणित का ज्ञान, सामाजिक एवं प्राकृतिक विज्ञान तथा वातावरण सम्बन्धी अध्ययनों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। 
  • शिक्षकों को आधुनिक शिक्षण विधियों, कक्षा प्रबंधन और आकर्षक शिक्षण वातावरण बनाने की क्षमता से लैस करना।
  • सामान्य स्कूल परिवेश के अनुकूल समावेशी, शारीरिक, स्वास्थ्य, योगिक और नागरिकता शिक्षा के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • मूल्य शिक्षा, जीवन कौशल और समावेशी प्रथाओं को शामिल करते हुए विद्यार्थियों के शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और बौद्धिक विकास को बढ़ावा देना।
  • बच्चे के स्वास्थ्य, शारीरिक एवं क्रियात्मक क्रियाओं, कार्य-अनुभवों नाटक, खेल, क्रियात्मक कला एवं संगीत आदि का सैद्धान्तिक एवं प्रयोगात्मक ज्ञान प्राप्त करना एवं उन सभी को व्यवस्थित करने के लिए कौशल प्राप्त करना।
  • बच्चे के विकास सम्बन्धी मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों ज्ञान विकसित करना।
  • बच्चों की शिक्षा के सन्दर्भ से सैद्धान्तिक एव प्रयोगात्मक ज्ञान प्राप्त करना।
  • औपचारिक एवं अनौपचारिक स्थितियों में सीखने के महत्वपूर्ण सिद्धान्तों को समझाना।
  • क्रियात्मक अनुसंधान करना।
  • बच्चों के व्यक्तित्व को बनाने में एवं घर-स्कूल में उचित सम्बन्धों को विकसित करने में स्कूल सम-आयु समूह एवं समुदाय में भूमिका को समझना।
  • परिवर्तनशील समाज में स्कूल एवं शिक्षक की भूमिका को समझना।
  • विविध एवं हाशिए पर स्थित पृष्ठभूमि के बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों को तैयार करना।
  • शिक्षण और सीखने की प्रक्रियाओं को बढ़ाने के लिए शिक्षा में आईसीटी के प्रभावी उपयोग को प्रोत्साहित करना।
  • शिक्षकों को समुदायों के साथ जुड़ने और प्रभावी शिक्षण एवं सीखने के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम बनाना।
  • मूल्यों, नागरिकता और पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करना, यह सुनिश्चित करना कि भावी पीढ़ियां सामाजिक रूप से जिम्मेदार हों।
  • छात्रों की प्रगति की निगरानी और समर्थन के लिए शिक्षकों को आधुनिक आकलन और मूल्यांकन तकनीकों में प्रशिक्षित करना।

माध्यमिक स्तर पर अध्यापक शिक्षा के उद्देश्य
(Objectives of Secondary Teacher Education)

माध्यमिक शिक्षक शिक्षा का उद्देश्य भावी शिक्षकों को माध्यमिक विद्यालय स्तर पर प्रभावी शिक्षण और समग्र छात्र विकास के लिए आवश्यक ज्ञान, शैक्षणिक कौशल, दृष्टिकोण और मूल्यों से सुसज्जित करना है।

  • नवीन स्कूल पाठ्यक्रमों के संदर्भ में शिक्षण एवं सीखने के मानवीय सिद्धांतों के अनुसार अपने विशिष्ट क्षेत्र के  विषय को पढ़ाने की क्षमता रखना।
  • समझदारी, कौशल, रुचि एवं दृष्टिकोण विकसित करना जो कि उसे इस योग्य बना सके जिससे कि वह बालक के  पूर्ण विकास की रक्षा कर सकें। 
  • किशोरावस्था के स्वास्थ्य, शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम, कार्य अनुभव एवं क्रियात्मक गतिविधियों के विषय में सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक ज्ञान रखना। 
  • अपने विशिष्ट विषय के प्रति चयन, नवीन खोज एवं सीखने के अनुभवों को विकसित कर सकें। 
  • विकास के मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों, व्यक्तिगत विभिन्नता एवं समानता और सर्जनात्मक कौशलात्मक, भावात्मक, सीखने के प्रति ज्ञान को विकसित करना। 
  • शैक्षिक एवं व्यवसायिक विषयों के साथ-साथ शैक्षिक एवं शारीरिक व्यक्तिगत समस्याओं के प्रति परामर्श एवं निर्देशन देने के कौशल को विकसित करना।

ज्ञान एवं शैक्षणिक कौशल (Knowledge & Pedagogic Skills)

  • शिक्षकों को जटिल अवधारणाओं को संप्रेषित करने में सक्षम बनाते हुए, पढ़ाए जाने वाले शैक्षणिक विषयों और विषयों पर मजबूत पकड़ विकसित करें।
  • माध्यमिक शिक्षा के लिए शिक्षकों को प्रभावी शिक्षण पद्धतियों, मूल्यांकन रणनीतियों और पाठ्यक्रम समझ से लैस करें।
छात्र विकास (Student Development)

  • छात्रों को स्वतंत्र शिक्षण, आलोचनात्मक चिंतन, आत्म-मूल्यांकन और समस्या-समाधान की दिशा में मार्गदर्शन करने की क्षमता को बढ़ावा देना।
  • राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों को बढ़ावा देना और नागरिकता एवं देशभक्ति की भावना को प्रोत्साहित करना।

सामाजिक परिवर्तनों के प्रति अनुकूलन (Adaptation to Societal Changes)

  • शिक्षकों को आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण (जैसे, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, बाजार में बदलाव) के शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने और उनके प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध एहतियाती उपाय अपनाने में सक्षम बनाना।
  • शिक्षकों को पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य शिक्षा और एचआईवी/एड्स निवारक शिक्षा और जीवन कौशल सहित वर्तमान सामाजिक चुनौतियों जैसे मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाना।

व्यावसायिकता और आत्म-विकास (Professionalism & Self-Development)

  • आत्मविश्वास, अनुकूलनशीलता, रचनात्मकता और चिंतनशील अभ्यास का विकास करना।
  • आजीवन सीखने, निरंतर आत्म-सुधार और समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देना।
  • शिक्षकों को शिक्षण संसाधनों का सकारात्मक उपयोग करने और समावेशी एवं आकर्षक कक्षा अनुभवों को सुगम बनाने के लिए प्रशिक्षित करना।

सहयोग और सामुदायिक सहभागिता (Collaboration & Community Engagement)

  • शिक्षकों को पूरक शैक्षिक गतिविधियाँ आयोजित करने और सामुदायिक सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • शिक्षा के भीतर व्यावसायिक और सौंदर्यपरक पहलुओं के एकीकरण का समर्थन करें, जिससे छात्रों के व्यापक व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के अवसरों का विस्तार हो।

छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण (Student-Centric Approaches)

  • व्यक्तिगत अधिगम आवश्यकताओं और भिन्नताओं को पूरा करने के लिए छात्र विविधता और बाल मनोविज्ञान को समझने पर ज़ोर दें।
  • शैक्षणिक और व्यक्तिगत विकास, दोनों में छात्रों का मार्गदर्शन करें, उन्हें शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से समायोजित होने में मदद करें।

ये उद्देश्य माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों को तैयार करने के लिए एक एकीकृत, मूल्य-संचालित और कौशल-केंद्रित दृष्टिकोण को दर्शाते हैं जो प्रभावी ढंग से शिक्षा दे सकें और छात्रों के बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास में योगदान दे सकें।

महाविद्यालय स्तर पर अध्यापक शिक्षा के उद्देश्य
(Objectives of College Teacher Education)

कॉलेज स्तरीय शिक्षक शिक्षा का उद्देश्य उच्च शिक्षा के छात्रों और बदलते समाज की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्नत शैक्षणिक, शैक्षणिक और अनुसंधान कौशल के साथ भावी शिक्षकों को तैयार करने पर केंद्रित है।

शिक्षण दक्षताएँ (Teaching Competencies)-
  • स्वीकृत सिद्धांतों और आधुनिक पद्धतियों का उपयोग करके विशिष्ट विषयों को पढ़ाने की क्षमता विकसित करें।
  • शिक्षकों को पाठ्यक्रम तैयार करने, शिक्षण की योजना बनाने और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए गहन शिक्षण अनुभव प्रदान करने हेतु सक्षम बनाएँ।

शैक्षिक दर्शन और सामाजिक आवश्यकताएँ (Educational Philosophy and Societal Needs)-

  • राष्ट्रीय और वैश्विक संदर्भों में उच्च शिक्षा के उद्देश्यों और लक्ष्यों की समझ को बढ़ावा दें।
  • शिक्षकों को उनके शिक्षण और सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक रूप से उत्तरदायी समुदायों के निर्माण के लिए तैयार करें।

प्रौद्योगिकी और अनुसंधान का एकीकरण (Integration of Technology and Research)-

  • शिक्षकों को शिक्षण रणनीतियों में शैक्षिक प्रौद्योगिकियों और डिजिटल संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करें।
  • व्यावसायिक विकास और शैक्षिक सुधार के लिए अपने क्षेत्र में अनुसंधान, क्रियात्मक अनुसंधान और डेटा-संचालित जाँच करने में दक्षता विकसित करें।
  • आजीवन सीखने, अनुकूलनशीलता और निरंतर व्यावसायिक विकास को प्रोत्साहित करें।

छात्र आवश्यकताएँ और परामर्श (Student Needs and Counseling)-

  • शिक्षकों को किशोरों और युवा वयस्कों की जैव-मनोवैज्ञानिक-सामाजिक आवश्यकताओं को समझने और उनका समाधान करने में सक्षम बनाएँ, जिससे समग्र विकास और समस्या-समाधान में सहायता मिले।
  • शैक्षणिक, व्यक्तिगत और करियर संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए छात्रों का मार्गदर्शन करने हेतु परामर्श और मार्गदर्शन कौशल विकसित करें।

व्यावसायिक एवं मूल्य-आधारित शिक्षा (Vocational and Value-Based Education)-

  • छात्रों को प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था के लिए तैयार करने हेतु व्यावसायिक कौशल, उद्यमशीलता क्षमताएँ और कार्य नैतिकता प्रदान करने की क्षमता का संचार करना।
  • नैतिक मानकों, कार्य की गरिमा और नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों के विकास को बढ़ावा देना।

व्यावसायिक और सामुदायिक जुड़ाव (Professional and Community Engagement)-

  • शैक्षणिक और व्यावसायिक समुदायों में नेतृत्व, टीम वर्क, पारस्परिक कौशल और सहयोग की भावना का विकास करना।
  • पाठ्यक्रम नवीनीकरण, नवाचार और बदलते शैक्षिक परिदृश्य के प्रति संवेदनशीलता में योगदान को प्रोत्साहित करना।

ये उद्देश्य उच्च-गुणवत्ता वाले, चिंतनशील और सामाजिक रूप से जागरूक शिक्षकों की आवश्यकता के अनुरूप हैं जो कॉलेज के छात्रों को शैक्षणिक उत्कृष्टता और आजीवन सफलता के लिए प्रेरित और मार्गदर्शन कर सकें।

 उद्धरण

  • शिक्षक शिक्षा के 8 महत्वपूर्ण उद्देश्य https://www.yourarticlelibrary.com/education/8-important-objectives-of-teacher-education/45259
  • शिक्षक शिक्षा- उद्देश्य और लक्ष्य |  PPTX https://www.slideshare.net/sj202/teacher-education-aims-and-objectives
  • EDCN-906E-Teacher Education.pdfhttps://tripurauniv.ac.in/site/images/pdf/StudyMaterialsDetail/EDCN-906E-Teacher%20Education.pdf
  • शिक्षक शिक्षा का उद्देश्य और... https://www.slideshare.net/slideshow/objective-of-teacher-education-and-teacher-education-ofpptx/251824011
  • परिचय, अर्थ, इसकी प्रकृति, आवश्यकता, दायरा और दृष्टि https://ghgkce.org/files/education/econtent/ECT-452.pdf
  • शिक्षक शिक्षा की अवधारणा https://archive.mu.ac.in/myweb_test/ma%20edu/Teacher%20Education%20-%20IV.pdf
  • शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम के उद्देश्य...  https://onlinenotebank.wordpress.com/2023/12/26/objectives-of-teacher-education-programme-at-secondary-level-as-recommended-by-the-ncte/
  • प्री-प्राइमरी स्कूल की परिभाषा https://www.lawinsider.com/dictionary/pre-primary-school
  • प्राइमरी स्कूल और प्री-प्राइमरी स्कूल में क्या अंतर है... https://vidyanchalschool.com/differences-between-pre-primary-and-primary-school/
  • प्री-प्राइमरी की परिभाषा और अर्थ https://www.merriam-webster.com/dictionary/preprimary
  • प्री-प्राइमरी शिक्षा - IIEP लर्निंग पोर्टल - यूनेस्को https://learningportal.iiep.unesco.org/en/glossary/pre-primary-education
  • प्री-प्राइमरी और प्राइमरी स्कूलों के बीच अंतर https://jbmsmartstart.in/differences-between-pre-primary-and-primary-schools/
  • प्री-प्राइमरी शिक्षा का एक उद्देश्य क्या है?  - टेस्टबुक https://testbook.com/question-answer/what-is-one-of-the-objectives-of-pre-primary-educa--60f5099d0bd834ad3090c72e
  • प्री-प्राइमरी शिक्षा क्या है? |  इसका महत्व और उद्देश्य https://mittsure.com/blog-details/what-is-pre-primary-education
  • प्री-प्राइमरी शिक्षक प्रशिक्षण के मुख्य उद्देश्य, महत्व और लाभ https://www.scdl.net/blog-details/why-are-pre-primary-teacher-training-courses-important?-key-objectives-explained.aspx




Sunday, August 31, 2025

अध्यापक शिक्षा (Teacher Education): अर्थ (Meaning), प्रकृति (Nature), क्षेत्र (Scope) एवं आवश्यकता (Need)

अध्यापक  शिक्षा (Teacher Education)


अर्थ (Meaning)


राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE)  के अनुसार अध्यापक शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसमें पूर्व-प्राथमिक से उच्च शिक्षा स्तर तक पढ़ाने के लिए व्यक्तियों को शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे अध्यापक को अपने पेशे (Profession) की आवश्यकताओं और चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम बनाया जाता है।

अध्यापक शिक्षा में तीन मुख्य तत्व शामिल हैं:

  • शिक्षण कौशल (Teaching Skills)

  • शैक्षणिक ज्ञान (Academic Knowledge)

  • व्यावसायिक कौशल (Professional Skills)

अध्यापक शिक्षा = शिक्षण कौशल + शैक्षणिक ज्ञान + व्यावसायिक कौशल

शिक्षण कौशल विभिन्न तकनीकों, उपागमों और रणनीतियों के साथ शिक्षकों को योजना बनाने, निर्देशन देने, प्रेरित करने और मूल्यांकन करने में सहायक होता है।

शैक्षणिक ज्ञान में दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय विचार शामिल हैं, जो शिक्षकों को कक्षा में शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।

व्यावसायिक कौशल शिक्षकों को अपने पेशे में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए उपागम, तकनीक और रणनीतियाँ प्रदान करता है।

अध्यापक शिक्षा, शिक्षण के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और व्यावसायिक दक्षताओं से व्यक्तियों को सुसज्जित करके उन्हें प्रभावी शिक्षक बनने के लिए तैयार करने की प्रक्रिया और कार्यक्रम है। इसमें शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण की औपचारिक और अनौपचारिक दोनों गतिविधियाँ शामिल हैं जो किसी व्यक्ति को शिक्षण पेशे के सदस्य के रूप में ज़िम्मेदारियाँ संभालने और पूर्व-प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक कक्षाओं में शिक्षण कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से निभाने के योग्य बनाती हैं।

गुड्स डिक्शनरी ऑफ़ एजुकेशन के अनुसार, अध्यापक शिक्षा में "वे सभी औपचारिक और अनौपचारिक गतिविधियाँ और अनुभव शामिल हैं जो किसी व्यक्ति को शैक्षिक पेशे के सदस्य के रूप में ज़िम्मेदारियाँ संभालने और उन ज़िम्मेदारियों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने के योग्य बनाते हैं।" यह केवल पढ़ाने का तरीका सिखाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शिक्षण पेशे के लिए उपयुक्त ज्ञान, कौशल और क्षमताओं का विकास भी शामिल है। अध्यापक शिक्षा में शिक्षण कौशल, शैक्षणिक सिद्धांत और व्यावसायिक कौशल शामिल हैं, जो इसे एक गतिशील और सतत प्रक्रिया बनाता है। यह शिक्षकों को न केवल शैक्षणिक रूप से, बल्कि व्यावसायिक और व्यावहारिक रूप से भी शिक्षा की उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।

अध्यापक शिक्षा को मोटे तौर पर सेवा-पूर्व शिक्षा (किसी व्यक्ति द्वारा शिक्षण शुरू करने से पहले प्रशिक्षण) और सेवाकालीन शिक्षा (सक्रिय शिक्षकों के लिए सतत व्यावसायिक विकास) में विभाजित किया जा सकता है। इसका लक्ष्य आत्मविश्वास का निर्माण करना, शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के ज्ञान को बढ़ाना, प्रभावी कक्षा प्रबंधन को बढ़ावा देना, छात्र मूल्यांकन तकनीकों में सुधार करना और शिक्षण-अधिगम के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।

 अध्यापक शिक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षा की गुणवत्ता काफी हद तक शिक्षकों की योग्यता, प्रेरणा और दक्षता पर निर्भर करती है। प्रभावी अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम छात्रों के अधिगम परिणामों को सीधे प्रभावित करते हैं और शैक्षिक विकास एवं सामाजिक प्रगति के व्यापक लक्ष्यों का समर्थन करते हैं।

इस प्रकार, अध्यापक शिक्षा भावी पीढ़ियों को प्रभावी और जिम्मेदारी से शिक्षित करने के लिए शिक्षकों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे यह किसी भी शैक्षिक प्रणाली का एक अनिवार्य अंग बन जाती है


अध्यापक शिक्षा की प्रकृति (Nature of Teacher Education)


अध्यापक शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें सेवा-पूर्व और सेवाकालीन घटक शामिल होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय विश्वकोश (International Encyclopedia 1987) के अनुसार, अध्यापक शिक्षा को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है: सेवा-पूर्व, प्रवेश और सेवा-कालीन।
  • शिक्षण को कला और विज्ञान माना जाता है, इसलिए अध्यापक को विकसित और प्रशिक्षित कौशल के साथ अच्छा ज्ञान होना चाहिए।

  • यह प्रक्रिया अध्यापक के पूरे करियर के दौरान चलती रहती है, जिसमें प्रारंभिक प्रशिक्षण और निरंतर व्यावसायिक विकास शामिल हैं।

  • अध्यापक शिक्षा केवल कक्षा में पढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और सामुदायिक भूमिकाओं के लिए भी शिक्षकों को तैयार किया जाता है।

  • अध्यापक शिक्षा व्यापक है और इसमें सामुदायिक भागीदारी, गैर-औपचारिक शिक्षा, वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों और समाज की साक्षरता गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित होता है।

  • अध्यापक शिक्षा में शिक्षक को समाज के प्रति संवेदनशील और नैतिक मूल्यों से युक्त बनाने पर जोर दिया जाता है, ताकि वह बच्चों में सही सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य विकसित कर सके।

  • यह प्रक्रिया गतिशील है और शिक्षकों को बच्चों में प्रभावशाली व्यक्तित्व विकसित करने में सहायता करती है ताकि वे सामाजिक चुनौतियों का सामना कर सकें।

  • एक अच्छे अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम को उसके पाठ्यक्रम, संरचना, संगठन और संचालन के तरीके तथा उसकी प्रभावशीलता की सीमा पर ध्यान देना चाहिए।

इस तरह अध्यापक शिक्षा न केवल शिक्षक को एक कुशल शिक्षण पेशेवर बनाती है, बल्कि उसे सामाजिक, नैतिक और व्यावहारिक दायित्वों के लिए भी तैयार करती है, ताकि वह समाज के विकास में अपना योगदान दे सके।


अध्यापक शिक्षा का क्षेत्र (Scope of Teacher Education)


अध्यापक शिक्षा की क्षेत्र (Scope of Teacher Education) का अर्थ है शिक्षक बनने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और विकास की वह व्यापक क्षेत्र जो शिक्षकों को शिक्षण कार्य कुशलता से करने हेतु तैयार करता है। इसका विस्तार सिर्फ कक्षा में पढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा के विभिन्न स्तरों, विषयों, और शिक्षण विधियों तक फैला होता है।

  1. शिक्षा के सभी स्तरों के लिए (Multiple Levels of Education): अध्यापक शिक्षा का कार्य प्री-प्राइमरी, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तरों के लिए शिक्षकों की तैयारियों का समन्वय करना है। हर स्तर पर शिक्षकों को विशेष कौशल और ज्ञान की आवश्यकता होती है।

  2. पूर्व-सेवा और सेवा-कालीन शिक्षा (Pre-service and In-service Education): अध्यापक शिक्षा का क्षेत्र पूर्व-सेवा (जो शिक्षक बनने से पहले होती है) और सेवा-कालीन (जो शिक्षक बनने के बाद लगातार होती रहती है) दोनों प्रकार की शिक्षा को समाहित करता है। इससे शिक्षक हमेशा नवीनतम विधियों और तकनीकों से परिचित रहते हैं।

  3. विषय और व्यवहारिक ज्ञान (Subject & Practical Knowledge): अध्यापक  शिक्षा शिक्षकों को उनके विषयों का गहन ज्ञान देने के साथ-साथ शैक्षणिक मनोविज्ञान, कक्षा प्रबंधन और शिक्षण कला में भी दक्ष बनाती है।

  4. सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण (Theortical & Practical Training)अध्यापक  शिक्षा में शिक्षक न केवल सिद्धांत सीखते हैं बल्कि शिक्षण का व्यावहारिक अनुभव भी प्राप्त करते हैं जैसे कि इंटर्नशिप और प्रैक्टिकल क्लासेज।

  5. समाज और तकनीकी परिप्रेक्ष्य (Social & Technical Perspective): यह शिक्षा समाज विज्ञान, शैक्षिक तकनीक, नैतिक शिक्षा और समसामयिक समस्याओं को समझने में भी शिक्षकों की मदद करती है।

  6. जीवन भर सीखना (Lifelong Learning): अध्यापक शिक्षा का विस्तार शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर सीखने और अपने कौशल को अपडेट करने की प्रक्रिया तक है।

इस प्रकार, अध्यापक शिक्षा की सीमा व्यापक और बहुआयामी है, जो शिक्षकों के सभी आवश्यक पहलुओं को कवर करती है ताकि वे अपने शैक्षणिक और व्यावसायिक दायित्वों को सर्वोत्तम रूप से निभा सकें। इसके बिना शिक्षण कार्य की गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं की जा सकती.


अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता (Need of Teacher Education)


 अध्यापक शिक्षा किसी भी राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह उन नीतियों और प्रक्रियाओं को संदर्भित करती है, जो भावी और वर्तमान शिक्षकों को आवश्यक ज्ञान, कौशल, व्यवहार और दृष्टिकोण प्रदान करती हैं, ताकि वे अपने कक्षा, स्कूल और समाज में प्रभावी ढंग से शिक्षा प्रदान कर सकें। 
  • अध्यापक शिक्षा, शिक्षकों को प्रभावी शैक्षणिक कौशल और ज्ञान से सुसज्जित करती है ताकि वे छात्रों को शामिल कर सकें और सार्थक शिक्षण परिणामों को सुगम बना सकें, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • यह शिक्षण में मानक और नैतिक आचरण स्थापित करती है, शिक्षण को एक सम्मानित पेशे के रूप में स्थापित करती है जिसके लिए निरंतर विकास की आवश्यकता होती है।
  • अध्यापक शिक्षा की जरूरत इसलिए महसूस की जाती है क्योंकि शिक्षकों का शैक्षणिक और व्यावसायिक स्तर देश के शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बहुत आवश्यक होता है।
  • शिक्षकों को विभिन्न शिक्षण शैलियों और पृष्ठभूमियों के अनुरूप समावेशी शिक्षण रणनीतियों के साथ विविध कक्षाओं को संभालने के लिए तैयार करती है।
  • शिक्षकों को प्रौद्योगिकी में प्रगति, पाठ्यक्रम में बदलाव और नवीन शिक्षण पद्धतियों से अद्यतन रखती है, जिससे अनुकूलनशीलता और नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
  • निरंतर व्यावसायिक विकास की मानसिकता पैदा करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि शिक्षक अपने पूरे करियर में प्रभावी बने रहें।
  • शिक्षक छात्रों के चरित्र, मूल्यों और सामाजिक उत्तरदायित्व को आकार देने में मदद करते हैं, शिक्षा स्थिरता और नागरिक जागरूकता जैसे व्यापक सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती है।
  • अध्यापक शिक्षा शिक्षकों को इस बहुआयामी भूमिका के लिए तैयार करती है ताकि वे विभिन्न प्रकार के छात्रों की आवश्यकताओं को समझ सकें और प्रभावी शिक्षण कर सकें।
  • आज के युग में शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है। इसी कारण से शिक्षकों को न केवल विषय वस्तु ज्ञान बल्कि मनोविज्ञान, दर्शन, समाजशास्त्र, आधुनिक मीडिया, और नवीनतम शिक्षण तकनीकों की समझ भी होनी चाहिए। 
  • अध्यापक शिक्षा के बिना शिक्षक केवल विषय पढ़ाने तक सीमित रहेंगे, जबकि आज छात्रों को जीवन के लिए भी तैयार करने की जरूरत है। शिक्षक शिक्षा शिक्षकों को शैक्षणिक कौशल के साथ-साथ व्यावहारिक जीवन कौशल भी सिखाती है, जिससे वे छात्रों को समस्याओं को समझने, आलोचनात्मक सोच विकसित करने और सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भों में निर्णय लेने में मदद कर सकें। इसके बिना शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर नहीं हो सकती।
  • शिक्षकों को समय-समय पर नए शैक्षणिक शोध, तकनीकी नवाचार और शिक्षण विधियों से अवगत कराना आवश्यक होता है, ताकि वे अपनी शिक्षा प्रणाली को आधुनिकतम बनाए रख सकें। इससे शिक्षक अपने शिक्षण कौशल को निरंतर विकसित करते हैं और विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर पाते हैं।
  • अध्यापक शिक्षा न केवल शिक्षकों को पेशेवर बनाने का कार्य करती है, बल्कि यह उन्हें एक मार्गदर्शक, प्रेरक, एवं समाज के निर्माता के रूप में भी विकसित करती है। शिक्षक समाज के मूल्यों, संस्कारों, और नैतिकता को पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाने का माध्यम होते हैं, इसलिए उनकी शिक्षा का स्तर उच्च होना अनिवार्य है।
अध्यापक  शिक्षा की आवश्यकता इसीलिए है कि शिक्षकों को विषय विशेषज्ञता के साथ-साथ शिक्षण की नवीनतम तकनीकों, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोणों का ज्ञान हो, जिससे वे छात्रों के समग्र विकास में योगदान दे सकें। इससे शिक्षकों की प्रभावकारिता बढ़ती है और देश की शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता बेहतर होती है। यही कारण है कि शिक्षक शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और इसे निरंतर सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।

Wednesday, February 15, 2023

VERBAL INTELLIGENCE TEST (VIT)

VERBAL INTELLIGENCE TEST (VIT)

(1) उद्देश्य (Objective):-  शाब्दिक बुद्धि परीक्षण के माध्यम से प्रयोज्य के बुद्धि के स्तर का मापन करना। 

(2) परीक्षण परिचय (Introduction):- यह प्रश्नावली Dr. R.K. Ojha एवं Dr. K. Ray Chaudhary द्वारा निर्मित की गई है। इस प्रश्नावली में 112 प्रश्न हैं। यह  प्रश्नावली 13 से 20 वर्ष के छात्रों   पर प्रशासित की जाती है। इस प्रश्नावली में 8 भाग हैं। प्रत्येक भाग में प्रश्नों की संख्या अलग -अलग है। 

बुद्धि का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Intelligence)

बुद्धि शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसिस गाल्टन  ने 1885 में किया था।

बुद्धि को सामान्यतः सोचने-समझने और सीखने एवं निर्णय करने की शक्ति के रूप में देखा-समझा जाता है, परन्तु वास्तव में बुद्धि इससे कुछ अधिक होती है। बुद्धि के विषय में सर्वप्रथम भारतीय दार्शनिकों ने चिन्तन किया था। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों के अनुसार मनुष्य के अन्तःकरण (Conscience) के तीन अंग हैं- मन, बुद्धि और अहंकार। 

इनमें मन बाह्य इन्द्रियों (External Senses)  और बुद्धि के बीच संयोजक (Coordinator) का कार्य करता है। मन के संयोग से ही बाह्य इन्द्रियाँ क्रियाशील होती हैं और मन के संयोग (Combination) से ही बुद्धि क्रियाशील होती है। इनके अनुसार इन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान मन के द्वारा बुद्धि पर पहुँचता है। बुद्धि इनमें काट-छाँट करती है और उसे अहम् से जोड़ती है और अन्त में उसे सूक्ष्म शरीर पर पहुँचा देती है जहाँ वह संचित हो जाता है। और जब कभी प्राणी विशेष को इस ज्ञान की आवश्यकता होती है तो उसकी बुद्धि उसे सूक्ष्म शरीर से मन तक पहुँचा देती है और मन प्राणी को तदनुकूल क्रियाशील कर देता है। 

आधुनिक युग में बुद्धि के स्वरूप एवं कार्यों को समझने का प्रयास पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने शुरू किया। परन्तु  मनोविज्ञान की उत्पत्ति से लेकर आज तक बुद्धि का स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया है। समय-समय पर जो परिभाषाएँ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की जाती रहीं, वह इसके एक पक्ष या विशेषता या क्षमता से सम्बन्धित थीं। अत: आज तक उपलब्ध सामग्री के आधार पर बुद्धि का स्वरूप तथा इसकी प्रकृति क्या है?  इस पर अलग -अलग विद्वानों के अलग - अलग मत है।

परिभाषायें (Definitions)

पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक फ्रीमैन (Freeman) ने बुद्धि सम्बन्धी इन विभिन्न मतों को  चार वर्गों में विभाजित किया है-

1. सीखने की योग्यता (Ability of learning)-

भारतीय मनीषियों एवं ऋषियों ने 'ज्ञान' को जीवन का प्रमुख साधन एवं साध्य माना है। अतः जो व्यक्ति अधिक से अधिक ज्ञान ग्रहण कर लेता है; उसे समाज उच्च स्थान देता है। मनोवैज्ञानिकों ने अधिक से अधिक ज्ञान को ग्रहण करने वाली योग्यता को ही बुद्धि' माना है।

मनोवैज्ञानिक- डियरबोर्न (Dearborn), फ्रांसिस गाल्टन (Fransisi Galton)किंघम (Bukingham), बुडवर्थ (Woodworth) आदि। 

2. समस्या समाधान की योग्यता (Ability to solve the problem)-

प्रत्येक व्यक्ति को विकास के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना होता है। जो व्यक्ति इन समस्याओं पर जितनी शीघ्र विजय प्राप्त कर लेता है या उनसे छुटकारा प्राप्त कर लेता है, वही सबसे अधिक बुद्धिमान माना जाता है। अतः समस्या समाधान में प्रयोग की गयी योग्यता ही 'बुद्धि' है ।

मनोवैज्ञानिक- रायबर्न (Rayburn), गैरेट (Garret) आदि। 

3. अमूर्त चिन्तन की योग्यता (Ability of think abstractly)-

प्रत्येक व्यक्ति दो प्रकार से चिन्तन प्रक्रिया को अपनाता है। प्रथम मूर्त रूप से चिन्तन करके ज्ञान प्राप्त करना और द्वितीय-अमूर्त रूप से चिन्तन करके। अमूर्त रूप से तात्पर्य, जो चीजें हमारे समक्ष नहीं हैं उनका कल्पना तथा स्मृति के आधार पर ज्ञान प्राप्त करना। अत: अमूर्त चिन्तन में जो व्यक्ति अधिक सफल होता है, उसे बुद्धिमान कहा जाता है।

मनोवैज्ञानिक- टरमन (Terman), अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) आदि। 

4. पर्यावरण से सामंजस्य की योग्यता (Ability of adjustment with Environment)-

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में विकास करता है। विकास के समय सफलताएँ और असफलताएँ दोनों ही आती हैं। जो व्यक्ति दोनों में समाजीकरण एवं सामंजस्य करते हुए विकास करता है, या जो जितनी शीघ्र  पर्यावरण के साथ समायोजन कर लेता है। उसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता है ।

मनोवैज्ञानिक- क्रूज (Cruz), स्टर्न (Stern), पिन्टनर (Pintner) , थॉर्नडाइक (Thorndike) आदि। 

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को अनेक योग्यताओं का समुच्चय माना है-

वैशलर (Wechsler) के अनुसार– “बुद्धि व्यक्ति की उद्देश्यपूर्ण ढंग से कार्य करने, विवेकपूर्ण ढंग से चिन्तन करने और अपने पर्यावरण के साथ प्रभावशाली ढंग से सामंजस्य करने की सम्पूर्ण अथवा व्यापक योग्यता है” (Intelligence is the aggregate or global capacity of the individual to act purposefully, to think rationally and to deal effectively with his environment.)

स्टोडार्ड (Stoddard)  के अनुसार-  बुद्धि उन कार्यों को करने की योग्यता है जिनमें कठिनाई, जटिलता, सूक्ष्मता, मितव्यता, उद्देश्य प्राप्ति की क्षमता, सामाजिक मूल्य एवं मौलिकता की अपेक्षा है तथा विशिष्ट परिस्थितियों में ऐसे कार्य करने की क्षमता जिनमें ऊर्जा के केन्द्रीकरण एवं संवेगात्मक शक्तियों पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता होती है । (Intelligence is the ability to undertake activities that are characterized by difficulty, complexity, abstractness, economy, adaptiveness to a goal, social value and the emergence of originals, and to maintain such activities under conditions that demand a concentration of energy and resistance to emotional forces.)

कोलस्निक (Kolesnik) के अनुसार-  बुद्धि कोई एक प्रकार की शक्ति, क्षमता  एवं योग्यता नहीं है जो सब परिस्थितियों में समान रूप से कार्य करती है अपितु यह विभिन्न योग्यताओं का योग है। (Intelligence is not a single power or capacity or ability which operates equally well in all situations. It is rather a composite of several different abilities.)

बुद्धि की प्रकृति एवं विशेषतायें (Nature and Characteristics of  Intelligence)

  1. बुद्धि जन्मजात शक्ति है।
  2. बुद्धि के उचित विकास के लिए पर्यावरण का महत्व है।
  3. योग की क्रियाओं द्वारा जन्मजात बुद्धि में वृद्धि सम्भव है।
  4. बुद्धि सीखने की योग्यता है।
  5. बुद्धि पर्यावरण के साथ समायोजन करने की योग्यता है।
  6. बुद्धि अमूर्त्त चिंतन की योग्यता है।
  7. बुद्धि पूर्व अनुभवों एवं अर्जित ज्ञान से लाभ उठाने की योग्यता है।
  8. बुद्धि समस्या समाधान की योग्यता है।
  9. बुद्धि अनेक योग्यताओं का समुच्चय है।
  10. बुद्धि संबंधों को समझने की शक्ति है।
  11. बुद्धि चिंतन करने, तर्क करने और निर्णय करने की शक्ति है।
  12. बुद्धि का विकास जन्म से लेकर किशोरावस्था तक होता है।
  13. बुद्धि में आत्म निरीक्षण की शक्ति होती है । व्यक्ति द्वारा किये गए कर्मों और विचारों की आलोचना बुद्धि स्वयं करती है।

बुद्धि  के प्रकार (Types of Intelligence)

मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक (Thorndike) ने बुद्धि के तीन प्रकार बताए थे- गामक या यान्त्रिक बुद्धि  (Motor or Mechanical Intelligence), अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) और सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence)। गैरेट (Garette) ने थॉर्नडाइक की गामक अथवा यान्त्रिक बुद्धि को मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) की संज्ञा दी। वर्तमान में बुद्धि के ये ही तीन प्रकार माने जाते हैं-


(1) गामक या यान्त्रिक बुद्धि  (Motor or Mechanical Intelligence)/ मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence)—

वह बुद्धि जो मनुष्यों को वस्तुओं के स्वरूप को समझने एवं तदनुकूल क्रिया करने में सहयोग करती है, उसे गैरेट ने मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) की संज्ञा दी। मूर्त बुद्धि इसलिए कि वह मूर्त वस्तुओं को समझने एवं मूर्त क्रियाओं को करने में सहायता करती है। इस प्रकार की बुद्धि को थॉर्नडाइक ने गत्यात्मक बुद्धि (Motor Intelligence) या यान्त्रिक बुद्धि (Mechanical Intelligence) कहा था। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है, वे वस्तुओं को तोड़ने-जोड़ने में विशेष रुचि लेते हैं। अन्य शारीरिक कार्य; जैसे-खेल-कूद एवं नृत्य आदि में भी उनकी रुचि होती है। ऐसे बच्चे आगे चलकर कुशल कर्मकार और इंजीनियर बनते हैं।

(2) अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence)- 

वह बुद्धि जो मनुष्यों को पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने में, विभिन्न तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने में, सोचने-समझने में और समस्याओं के समाधान खोजने में सहायता करती है, उसे थॉर्नडाइक ने अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) की संज्ञा दी। अमूर्त बुद्धि इसलिए क्योंकि वह अमूर्त चिन्तन-मनन और समस्या समाधान में सहायक होती है। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है, वे पुस्तक अध्ययन और चिन्तन-मनन में अधिक रुचि लेते हैं। ऐसे बच्चे आगे चलकर अच्छे वकील, डॉक्टर, अध्यापक, साहित्यकार (writer)  चित्रकार (painter) और दार्शनिक बनते हैं।

(3) सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence)- 

वह बुद्धि जो मनुष्यों को अपने समाज में समायोजन करने एवं सामाजिक कार्यों में भाग लेने में सहायता करती है, उसे थॉर्नडाइक ने सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) की संज्ञा दी है। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है वे परिवार के सदस्यों, समाज के लोगों और विद्यालय के सहपाठियों के साथ समायोजन करते हैं और सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं। ऐसे बच्चे आगे चलकर अच्छे व्यवसायी (Businessman), समाज सेवक  एवं राजनेता (Social worker and politician) बनते हैं।


बहुआयामी या बहुल बुद्धि (Multi-Dimensional or Multiple Intelligence)

बहुआयामी बुद्धि का शाब्दिक अर्थ होता है, एक ही व्यक्ति के अन्दर विभिन्न प्रकार के कौशलों (Skills) का विकास होना। अर्थात् उसमें सामाजिक समझ (Social Understanding), राजनैतिक समझ (Political Understanding), समस्या समाधान (Problem Solving) से सम्बन्धित समझ तथा नेतृत्व (Leadership) का गुण इत्यादि का होना। मनोवैज्ञानिकों ने बहुल बुद्धि के बारे में निम्न परिभाषाएँ दी हैं -
केली एवं थर्स्टन  ने बताया कि बुद्धि का निर्माण प्राथमिक मानसिक योग्यताओं के द्वारा होता है।

केली के अनुसार, - “बुद्धि का निर्माण इन योग्यताओं से होता है वाचिक योग्यता (Verbal Ability), गामक योग्यता (Motor Ability), सांख्यिक योग्यता (Statistical Ability), यान्त्रिक योग्यता (Mechanical Ability), सामाजिक योग्यता (Social Ability), संगीतात्मक योग्यता (Musical Ability), स्थानिक सम्बन्धों (spatial relations) के साथ उचित ढंग से व्यवहार करने की योग्यता, रुचि और शारीरिक योग्यता।”

थर्स्टन के अनुसार-  “बुद्धि इन प्राथमिक मानसिक योग्यताओं का समूह होता है प्रत्यक्षीकरण सम्बन्धी योग्यता (Perception related ability), तार्किक योग्यता (Reasoning ability) , सांख्यिकी योग्यता (Statistical Ability) समस्या समाधान की योग्यता (Problem Solving Ability), स्मृति सम्बन्धी योग्यता (Memory related ability)।” 

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने केली एवं थर्स्टन के बुद्धि सिद्धान्तों की आलोचना की, किन्तु अधिकतर मनोवैज्ञानिकों ने यह भी माना कि बुद्धि का बहुआयामी होना निश्चित रूप से सम्भव है। बहुआयामी बुद्धि होने के कारण ही कुछ लोग अनेक प्रकार के कौशलों में निपुण होते हैं।


संवेगात्मक बुद्धि (Emotional Intelligence)

सांवेगिक बुद्धि जैसे पद का प्रतिपादन  सेलोवी तथा मेयर (Salovey & Mayer, 1970) ने किया, किन्तु इसकी वैज्ञानिक एवं सैद्धान्तिक व्याख्या गोलमैन (Goleman, 1998) द्वारा दी गई है।

गोलमैन ने इस सम्प्रत्यय (Concept) की व्याख्या अपनी बहुचर्चित पुस्तक 'Emotional Intelligence: Why It Can Matter More than IQ में की है जिसमें उन्होंने स्पष्टत: यह दावा किया कि व्यक्ति को जिन्दगी में जो सफलताएँ मिलती हैं, उनका 20% ही बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient) के कारण होता है और शेष 80% सफलता का कारण सांवेगिक बुद्धि (Emotional Intelligence or EQ) होता है।

गोलमैन (Goleman, 1994) ने सांवेगिक बुद्धि को परिभाषित करते हुए यह कहा है कि यह दूसरों एवं स्वयं के भावों (Emotions) को पहचानने की क्षमता तथा अपने आपको अभिप्रेरित (Motivate) करने एवं  अपने सम्बन्धों में संवेग को प्रबन्धित करने की क्षमता है। 
गोलमैन ने अपने सिद्धान्त में यह भी स्पष्ट किया है कि ये सांवेगिक क्षमताएँ व्यक्ति को अपनी जिन्दगी के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सफलता प्रदान करने में काफी सहायता करती हैं, इसलिए गोलमैन ने अपने सांवेगिक बुद्धि के इस मॉडल को 'निष्पादन का सिद्धान्त'(principle of performance) कहकर पुकारना पसन्द किया है।

बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)

1. एक कारक या एक सत्तात्मक सिद्धान्त (Unitary or Monarchic Theory)

2. द्विकारक सिद्धान्त (Two factor or Bi-factor Theory)

3. त्रिकारक सिद्धान्त (Three Factor Theory)

4. बहुकारक सिद्धान्त (Multi-factor Theory)

5. समुह कारक सिद्धान्त (Group factor Theory)

6. त्रि-आयाम सिद्धान्त या बुद्धि  सरंचना प्रतिमान (Three Dimensional Theory or S.I. Model)

7. बहु बुद्धि सिद्धान्त (Multiple Intelligence Theory)

8. प्रतिदर्श सिद्धान्त (Sampling or Oligarchic Theory)



बुद्धि परीक्षणों के प्रकार (Types of Intelligence Tests)

बुद्धि  परीक्षण का जन्मदाता अल्फ्रेड बिने को माना जाता है बिने ने 1905 में सर्वप्रथम बुद्धि के मापन के लिए एक परीक्षण तैयार किया था। 

बुद्धि परीक्षणों को दो आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है-

1. प्रयोज्यों  या परीक्षार्थियों की संख्या (Number of Subjects or Examinees) के आधार पर। 

2. परीक्षणों के प्रस्तुतीकरण के स्वरूप (Forms of Presentation) के आधार पर। 

1. परीक्षार्थियों की संख्या के आधार पर बुद्धि परीक्षणों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है - 

(i) व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण (Individual Intelligence Test)।

(ii) सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group Intelligence Tests) ।

2. परीक्षणों के प्रस्तुतीकरण के स्वरूप के आधार पर भी उन्हें दो वर्गों में विभाजित किया जाता है - 

(i) शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Verbal Intelligence Tests) ।

(ii) अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Non-Verbal Intelligence Tests)। 













व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण (Individual Intelligence Test)-

ये वे  बुद्धि परीक्षण हैं जो एक समय मे केवल एक ही  प्रयोज्य या परीक्षार्थी पर प्रशासित किये जाते हैं। इन परीक्षणों के प्रशासन में सर्वप्रथम परीक्षणकर्ता परीक्षार्थी के साथ संबंध स्थापित करता है और इस संबंधित व्यवहार से उसे सामान्य मानसिक स्थिति में लाता है , उसे किसी भी प्रकार के भय व चिंता से मुक्त करता है। इसके बाद उसे परीक्षण संबंधित निर्देश देता है  और अंत मे उसे परीक्षण में निहित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहता है।

मुख्य परीक्षण-  स्टेनफोर्ड बिने बुद्धि परीक्षण (Stanford Binet Test of Intelligence), वैशलर बुद्धि परीक्षण (Wechsler Intelligence Scale), मैरिल एवं पामर बुद्धि परीक्षण (Merril and Palmer Intelligence Scale), पिन्टर-पैटरसन परफोरमेन्स स्केल (Pinter- Paterson Performance Scale), मैरिल-पामर ब्लाक बिल्डिंग परीक्षण (Merril Palmer Block Building Test) और पोर्टियस भूल भुलैया परीक्षण (Porteus Maze Test) ।


सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group Intelligence Tests)—

ये वे बुद्धि परीक्षण हैं जो एक समय में अनेक (सैंकड़ों-हजारों) प्रयोज्यों (व्यक्तियों) पर एक साथ प्रशासित किए जा सकते हैं। इन परीक्षणों के प्रशासन में परीक्षणकर्ता को प्रयोज्य से किसी प्रकार के सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वयं या अन्य साथियों के माध्यम से बुद्धि परीक्षण को वितरित करा देता है। परीक्षण सम्बनधी निर्देश परीक्षण पर ही मुद्रित होते हैं या उन्हें अलग से मुद्रित कराकर परीक्षण के साथ वितरित करा दिया जाता है ।  

मुख्य परीक्षण - आर्मी एल्फा परीक्षण (Army Alpha Test), बर्ट सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Burt's Group Intelligence Test), जलोटा बुद्धि परीक्षण (Jalota's Intelligence Test), रेविन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स (Raven's Progressive Matrix), कैटिल कल्चर फ्री परीक्षण (Cattell's Culture Free Test) और आर्मी बीटा परीक्षण (Army Beta Test)।

शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Verbal Intelligence Tests)-

  •  ये वे बुद्धि परीक्षण होते हैं जिनमें प्रश्नों एवं समस्याओं को शब्दों अर्थात् भाषा  के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है ।
  •  प्रयोज्यों (व्यक्तियों) को इनका उत्तर भाषा के माध्यम से ही देना होता है। 
  • इनका निर्माण एवं मानकीकरण करना सरल होता है ।

  • इनके निर्माण में खर्च कम  होता है ।
  • ये छोटे बच्चों की बुद्धि का मापन करने के लिए उपयुक्त नहीं होते। 

    • इनकी वैधता एवं विश्वसनीयता अधिक होती है। 
    • इसके  द्वारा मन्द बुद्धि बच्चों की बुद्धि का मापन सही ढंग से नही किया जा सकता।

    •  इन्हें व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में प्रयोग किया जा सकता है। 
    •  इनका प्रशासन सरलता से किया जा सकता है। 

    •  इनका अंकन वस्तुनिष्ठ होता है।

    • केवल शिक्षित व्यक्तियों पर ही प्रशासित किए जा सकते हैं। 


    अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Non-Verbal Intelligence Tests)-  

    • ये वे बुद्धि परीक्षण हैं जिनमें प्रश्नों एवं समस्याओं को भाषा में प्रस्तुत न करके बड़े आकार  की वस्तुओं और चित्रों आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है 
    • प्रयोज्यों (व्यक्तियों) को इनका उत्तर यथा क्रियाओं द्वारा देना होता है। ये परीक्षण केवल पेपर-पेन्सिल परीक्षण (Paper - Pencil Tests) के रूप में भी हो सकते हैं, केवल निष्पादन परीक्षण (Performance Tests) के रूप में भी हो सकते हैं और इन दोनों के संयुक्त रूप में भी हो सकते हैं। 
    • कागज-पेन्सिल परीक्षणों में वस्तुगत या चित्रात्मक समस्याएँ मुद्रित रूप में प्रस्तुत की जाती हैं और प्रयोज्य उनका हल पेन्सिल द्वारा करते हैं और निष्पादन परीक्षणों में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को प्रस्तुत कर उन्हें व्यवस्थित कराया जाता है और प्रयोज्य उन्हें यथा क्रम अथवा स्वरूप में व्यवस्थित करते हैं।

    • इनका निर्माण एवं मानकीकरण करना कठिन  होता है ।
    • इनका प्रयोग किसी पर भी किया जा सकता है ।

    • ये छोटे बच्चों एवं  मन्द बुद्धि बच्चों की बुद्धि के  मापन में विशेष उपयोगी होते हैं  ।
    • ये  अधिक वैध एवं विश्वसनीय होते  हैं । 

    • इनका प्रशासन  शिक्षित  एवं अशिक्षित व्यक्तियों  दोनों पर किया जाता है ।
    • इन्हें व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में प्रयोग किया जा सकता है। 

    (3) सामग्री (Tools):- Dr. R.K. Ojha एवं Dr. K. Ray Chaudhary द्वारा निर्मित प्रश्नावली, पेपर, पेंसिल, स्टॉपवॉच आदि।

    (4) प्रतिदर्श/प्रयोज्य परिचय (Sample):- 

    प्रयोज्य का नाम:-     ABC

    पिता का नाम :-.      XYZ

    लिंग : ................................

    आयु: .............................

    शैक्षिक योग्यता : ..............,...............

    संस्था का नाम: ..........................

    (5) नियंत्रण (Control) : -

    • परीक्षण के दौरान कमरे में प्रकाश की उचित व्यवस्था की गई।
    • कमरे का वातावरण शांत रखा गया।
    • प्रयोज्य के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का उचित प्रकार से ध्यान रखा गया।
    • बैठने की उचित व्यवस्था की गई।
    • ...............


    (6) निर्देश (Instructions):- प्रयोज्य को उचित स्थान पर बैठाने के पश्चात् उसके साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार स्थापित किया गया। उसके बाद परीक्षण से सम्बन्धित निर्देश दिए गए-

    1. यह एक साधारण बुद्धि परीक्षण है जिसके द्वारा मानसिक योग्यताओं को ज्ञात किया जाता है।   

    2. इस परीक्षण के पूरा करने हेतु आपको केवल 40 मिनट दिए जाएँगे। पूरे परीक्षण में आठ भाग है।

    3. प्रत्येक भाग के लिए निर्धारित समय एवं निर्देश उप-परीक्षण के ऊपर दे दिए गए हैं। आपसे जब यह कहा जाए कि कार्य प्रारम्भ कीजिए तो शीघ्रता से कार्य पूरा करने का प्रयास कीजिये।

    4. प्रारम्भ करने की आज्ञा मिलने से पूर्व किसी भी कार्य को न करिए। किसी भी कथन को, जिसे आप कठिन समझते हैं, उस पर समय व्यतीत मत करिएगा बल्कि अगले कथन का उत्तर दीजिए।

    5. आपको निर्धारित समय में ही प्रत्येक उप-परीक्षण के उत्तर देने हैं। यदि समय से पूर्व ही उप-परीक्षण समाप्त हो जाता है तो भी आगे का कार्य नहीं करना है। जब आपसे कहा जाए कि दूसरे परीक्षण का कार्य प्रारम्भ कीजिए तो पहले परीक्षण को छोड़कर आदेश का पालन कीजिए। 

    6. ध्यान रखिए कि आपको किसी भी  कथन का उत्तर किसी दूसरे से नहीं पूछना है।

    (7) परीक्षण प्रक्रिया (Test Procedure):-

    प्रयोज्य को निर्देश देने के बाद परीक्षण प्रक्रिया आरंभ की गई। इस दौरान प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोज्य का निरीक्षण किया गया। प्रयोज्य इस प्रक्रिया पहले घबराया। फिर प्रयोगकर्ता पुनः उसे निर्देश दिए गए और उसे सामान्य मानसिक स्थिति में लाया गया। परीक्षण के समय प्रत्येक भाग का समय समाप्त होने के बाद प्रयोज्य को रोक दिया गया और दूसरे भाग से आठवें भाग तक ऐसे ही उसका निरीक्षण किया गया

    (8) प्रदत संग्रह एवं परिणाम (Data Collection & Result):-

    शाब्दिक बुद्धि परीक्षण द्वारा प्रयोज्य का परीक्षण लिया गया। इस परीक्षण में आठ भाग हैं प्रत्येक भाग से प्रयोज्य द्वारा दिए गए उत्तरों की गणना की गयी। प्रत्येक सही उत्तर के लिए 1 अंक तथा गलत उत्तर के लिए 0 अंक दिया गया। 

    फलांकन तालिका


    (9) व्याख्या एवं निष्कर्ष (Discussion and Conclusion):- 

    इस परीक्षण प्रक्रिया में प्रयोज्य पर  Dr. R.K. Ojha एवं Dr. K. Ray Chaudhary द्वारा निर्मित शाब्दिक बुद्धि  उपकरण प्रयोज्य पर प्रशासित किया गया। जिसमे प्रयोज्य ने अलग -अलग भागों को मिलाकर कुल ............................ प्राप्तांक प्राप्त किया। इस प्रकार प्रयोज्य का बुद्धि स्तर .............................  प्राप्त हुआ। इसका प्रतिशतांक ................................... है 

    (10) संदर्भ ग्रंथ सूची (Reference):-

    QUESTIONNAIRE

    https://drive.google.com/drive/folders/1iMEBqKhtZ1nQl7rBz0PZocD9m_hKSzdL?usp=share_link

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