Saturday, April 24, 2021

अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Learning)

अधिगम  का अर्थ  (Meaning of Learning)

मनोविज्ञान में सीखने (अधिगम) शब्द का प्रयोग दो रूपों में होता है-
1. प्रक्रिया (Process) के रूप में । 
2. परिणाम (Product) के रूप में। 
प्रक्रिया रूप में सीखने का अर्थ उस प्रक्रिया से होता है जिसके द्वारा मनुष्य नए-नए तथ्यों को ग्रहण करता है और नई-नई क्रियाओं को करना सीखता है।   
परिणाम के रूप में सीखने का अर्थ मनुष्य के उस व्यवहार परिवर्तन से होता है जो नए-नए तथ्यों की जानकारी और नई-नई क्रियाओं में प्रशिक्षण के फलस्वरूप होता है। मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि से सीखने का तब तक कोई अर्थ नहीं होता जब तक कि उससे मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन न हो ।

  • व्यवहार में वांछित एवं स्थायी परिवर्तन होना अधिग कहलाता है । (Desired and permanent change in behaviour is called Learning.) 

मनुष्य कुछ कार्य तो स्वाभाविक रूप से करता है; जैसे—सांस लेना, पलक झपकना, देखना, सुनना, हाथ-पैर हिलाना, उठना-बैठना, चलना-फिरना और मुँह से ध्वनि निकालना। इनके अतिरिक्त कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें वह अपने शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ स्वयं करने लगता है; जैसे प्राण रक्षा के लिए भागना और भूख लगने पर भोजन की तलाश करना। इन सब कार्यों को मनोवैज्ञानिक मूलप्रवृत्यात्मक व्यवहार (Instinctive Behaviour) कहते हैं। इन सब कार्यों को मनुष्य को सीखना नहीं पड़ता, इसलिए इन्हें अनर्जित कार्य (Unlearned Actions) कहते हैं। संवेगों की अनायास अभिव्यक्ति; जैसे—रोना और हँसना आदि भी अनर्जित कार्यों की कोटि में आते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें मनुष्य अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण के आधार पर ग्रहण करता है, जैसे पेड़ पर चढ़ना, पानी में तैरना और भाषा विशेष का बोलना आदि। इन कार्यों को मनोवैज्ञानिक अर्जित कार्य (Learned Actions) कहते हैं और इन कार्यों को ग्रहण करने की प्रक्रिया को सीखना अथवा अधिगम (Learning) कहते हैं। 


अधिगम की परिभाषायें  (Definition of Learning) 


1. वुडवर्थ (Woodworth)  के अनुसार -       नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को ग्रहण करने की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया है । (The process of acquiring new knowledge and new responses is the process of Learning.)

2. को एवं क्रो (Crow & Crow)  के अनुसार -    सीखना आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है। (Learning is the acquisition of habits, knowledge and attitudes.)

3. गेट्स तथा अन्य के  अनुसार -  सीखना अनुभव और प्रशिक्षण के द्वारा व्यवहार में होने वाला सुधारात्मक परिवर्तन है। (Learning is the modification of behaviour through experience and training.) 
4. चार्ल्स सी० ई० स्किनर (C.E. Skiner) के अनुसार -  सीखना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य प्रगतिशील व्यवहार को स्वीकार करता है। (Learning is a process of progressive behaviour adaptation.) 
5. हिलगार्ड (Hilgard) के अनुसार  सीखना वह प्रक्रिया है जिसमें अभ्यास अथवा प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन होता है। (Learning is the process by which behaviour is changed through practice or training.)

उपरोक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर -
     अधिगम वह प्रक्रिया है जिसमें अनुभव, अभ्यास, प्रशिक्षण तथा अध्ययन आदि से व्यक्ति का कोई व्यवहार उदभव होता  है अथवा उसके व्यवहार में परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थाई होता है। अधिगम के अन्तर्गत वे परिवर्तन सम्मिलित नहीं किये जाते हैं जो व्यक्ति में परिपक्वता, थकान, नशीले पदार्थों के सेवन अथवा चोट आदि अन्य अधिगम न होने  वाले  कारकों के कारण होते हैं।
                         

अधिगम की प्रकृति एवं विशेषताएं (Nature and Characteristics of Learning)

  1. सीखना मनुष्य की जन्मजात प्रकृति है। 
  2. सीखना प्रक्रिया एवं परिणाम दोनों हैं ।
  3. सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है ।
  4. सीखने की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है ।
  5. सीखने की प्रक्रिया के तीन तत्व होते हैं - (i ) नए ज्ञान अथवा कौशल को सीखना , (ii) ज्ञान एवं कौशल को बहुत दिनों तक धारण करना तथा  (iii) आवश्यकता पड़ने पर इस ज्ञान या कौशल का प्रयोग करना। 
  6. सीखना वंशानुक्रम एवं पर्यावरण पर निर्भर करता है ।
  7. सीखने की प्रक्रिया में पूर्व अनुभवों का महत्व  होता है ।
  8. सीखने में अभिप्रेरणा का बड़ा महत्व है ।
  9. सीखना एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है ।
  10. सीखने का एक परिस्थिति से दूसरी  में स्थान्तरण होता है ।
  11. सीखना व्यक्तिगत एवं सामाजिक आवश्यताओं पर निर्भर करता है ।
  12. सीखना ज्ञानात्मक , भावात्मक तथा क्रियात्मक किसी भी प्रकार का हो सकता है ।


Saturday, April 17, 2021

अधिगम के सिद्धांत- थार्नडाइक का उद्दीपक- अनुक्रिया सिद्धान्त (Theories of Learning-Thorndike's Stimulus - Response Theory)

 अधिगम के सिद्धांत (Theories of Learning)

 अधिगम (Learning) एक प्रक्रिया है । जब हम किसी कार्य को करते हैं तो हमे एक निश्चित क्रम से गुजरना पड़ता है। मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम(learning) की प्रकृति को समझने  तथा प्रक्रिया की स्पष्ट रूप से व्याख्या करने के लिए अनेक प्रयोग किये जिसके आधार पर उन्होंने सीखने के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। 
Hergenhann के अनुसार अधिगम के सिद्धांतों में तीन प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास किया जाता है-
1. व्यक्ति क्यों सीखता है? (Why does individual learn?)
2. व्यक्ति कैसे सीखता है? (How does individual learn?)
3. व्यक्ति क्या सीखता है? (What does individual learn?)




थार्नडाइक का उद्दीपक- अनुक्रिया सिद्धान्त

(Thorndike's Stimulus - Response Theory)



 एडवर्ड एल. थार्नडाईक (Edward L. Thorndike) ने अपनी पुस्तक 'एनीमल इन्टेलीजेन्स’ (Animal Intelligence), 1898 में प्रसिद्ध 'सम्बन्धवाद' (Connectionism) का प्रतिपादन किया। अधिगम मनोविज्ञान के क्षेत्र में 'सम्बन्धवाद' का तात्पर्य है उद्दीपक के साथ अनुक्रिया का सम्बन्ध बनाना। सम्बन्धवाद में उद्दीपक तथा अनुक्रिया के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। अतः इसे 'उद्दीपक-अनुक्रिया सिद्धान्त'(Stimulus-Response Theory) के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धान्त में व्यक्ति के जन्मजात कारकों के साथ-साथ उद्दीपक अनुक्रिया के बाहरी तथा आन्तरिक (Internal and external) उद्दीपकों के मध्य व्यवहार रहता है। ‘उद्दीपक-अनुक्रिया सिद्धान्त' अधिगम मनोविज्ञान में एक व्यापक सिद्धान्त है । इसमे थार्नडाईक, वुडवर्थ, पॉवलव, वॉटसन, गुथरी, टॉलमैन तथा हल आदि मनोवैज्ञानिकों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन   मनोवैज्ञानिकों के विचार से प्रत्येक क्रिया के पीछे एक उद्दीपक होता है जिसका प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है और वह उसी के अनुरूप अनुक्रिया करता है। इस प्रकार उद्दीपक अनुक्रिया से सम्बन्धित होते हैं। इस विचारधारा के प्रमुख प्रवर्तक थार्नडाईक ने उद्दीपक तथा अनुक्रिया के बीच अनुबंध (Bond) स्थापित करने पर जोर दिया है। इसी कारण इस  को  अनुबन्ध सिद्धांत  (Bond Theory)  कहते हैं।
 इस सिद्धांत के अन्य नाम - सम्बन्धवाद  का सिद्धान्त (Theory of Connectionism), प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत (Trial and Error Theory) , अधिगम संबंधों का सिद्धांत (Bond theory of Learning),  हर्ष व दुःख का सिद्धांत (Theory of Joy and Sorrow) परिश्रम एवं धैर्य का सिद्धांत, S-R Theory।

थार्नडाइक का प्रयोग (Experiment of Thorndike)




थॉर्नडाइक ने सीखने की प्रक्रिया का स्वरूप जानने  के लिए कुत्ते, बिल्ली एवं बंदर आदि जानवरों  पर सीखने से संबंधित अनेक प्रयोग किये । उनका बिल्ली पर किया गया एक प्रयोग बहुत ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने बिल्ली को बंद करने के लिए एक पिंजड़ा बनवाया। इस पिंजड़े का दरवाजा  लीवर के दबने से खुल जाता था। इस पिंजड़े को इन्होंने पहेली पेटी (Puzzle Box) नाम दिया ।

थॉर्नडाइक ने एक दिन इस पिंजड़े में एक भूखी बिल्ली को बन्द कर दिया। उसे पिंजड़े में बन्द करने के बाद  बाहर एक प्लेट में मछली रख दी। मछली देखते ही भूखी बिल्ली ने पिंजड़े से बाहर आने का प्रयत्न शुरू कर दिया । उसने बाहर आने के लिए कई प्रकार के प्रयत्न किए, कभी इधर-उधर कूदी और कभी इधर-उधर पंजे मारे। इस प्रयत्न एक बार उसका पंजा अचानक उस लीवर पर पड़ गया जिसके दबने से पिंजड़े का दरवाजा खुलता था। परिणामस्वरूप दरवाजा खुल गया और बिल्ली ने पिंजड़े से बाहर निकलकर मछली खाई और अपनी भूख शान्त की। थॉर्नडाइक ने बिल्ली पर यह प्रयोग कई बार (10 दिन तक) दोहराया और यह देखा कि बिल्ली ने धीरे-धीरे लीवर दबाने की स्थिति तक पहुँचने में  कम भूलें कीं और अन्त में एक स्थिति ऐसी आई कि वह बिना कोई भूल किए पहले ही प्रयास में लीवर दबाकर पिंजड़े से बाहर आ गई। दूसरे शब्दों में उसने पिंजड़ा खोलना सीख लिया।

 थॉर्नडाइक के  प्रयोग से  निकले निष्कर्ष (Conclusion)


१. सीखने के लिए सबसे पहली आवश्यकता उद्देश्य होता है; जैसे ऊपर के प्रयोग में भोजन प्राप्त करना।  
२.उद्देश्य के पीछे कोई प्रेरक (Drive) अथवा अभिप्रेरक (Motive) होता है; जैसे ऊपर के प्रयोग में 'भूख'।  
३. उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कोई उद्दीपक (Stimulus)  का होना आवश्यक होता है; जैसे कि ऊपर के प्रयोग में मछली (भोजन) ।
४. उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनुक्रिया (Response) आवश्यक होती है,  जैसे कि ऊपर के प्रयोग में बिल्ली का पिंजड़े से बाहर आने के लिए प्रयत्न करना ।
५. जो अनुक्रियाएँ उद्देश्य प्राप्ति में सहायक होती हैं, उन्हें सीखने वाला अपनाता चलता है और जो क्रियाएँ निरर्थक होती हैं, उन्हें छोड़ता चलता है; जैसे ऊपर के प्रयोग में बिल्ली ने किया।


विशेषतायें(Characteristics)

.यह सिद्धान्त सम्बन्धवाद (Connectionism) का समर्थक है, सीखने की प्रक्रिया में तो पूर्व अनुभवों का  नए अनुभवों के साथ सम्बन्ध स्थापित करता  है।

२. इस सिद्धान्त के अनुसार सीखे हुए ज्ञान का प्रयोग कर सकना ही सीखना है। जब तक सीखे हुए ज्ञान का प्रयोग नहीं होता, उसे सीखना नहीं कह सकते।

३. यह सिद्धान्त सीखने के लिए उद्देश्य का होना आवश्यक मानता है और उद्देश्य के पीछे किसी प्रेरक (Drive) अथवा अभिप्रेरक (Motive) का होना आवश्यक मानता है और साथ ही उद्देश्य प्राप्ति में सहायक उद्दीपक (Stimulus) का होना भी आवश्यक मानता है। 

४. यह सिद्धान्त उद्देश्य प्राप्ति के लिए सीखने वाले के प्रयत्न को आवश्यक मानता है। इसके अनुसार प्रयत्न एवं भूल (Trial & Error) के द्वारा ही सीखने वाला सही अनुक्रिया करना सीखता है। 

५. इस सिद्धान्त के आधार पर थॉर्नडाइक ने सीखने के कुछ नियम प्रतिपादित किए हैं जिनके प्रयोग से सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाया जा सकता है।

थॉर्नडाइक  के सीखने के सिद्धांत का शिक्षा में प्रयोग 
(Application of Thorndike's Theory of Learning in  Education)

1. समस्या -समाधान के क्षेत्र में इस सिद्धांत का सफल प्रयोग किया जा सकता है।

2. यह सिद्धांत प्रयत्न पर बहुत अधिक बल देता है और इस बात पर बल देता है कि छात्रों द्वारा सही अनुक्रिया करने पर उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। उनके असफल होने पर उन्हें बार-बार प्रयत्न करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

3. यह सिद्धांत बच्चों में स्वयं के प्रयत्न से सीखने के अवसर प्रदान करता है। स्वयं के प्रयास से सीखा हुआ ज्ञान एवं कौशल अधिक स्थाई होता है।

4. यह सिद्धांत इस बात पर बल देता  है कि अनुकरण सीखने की स्वाभाविक विधि है और इस विधि में बच्चे प्रायः प्रयत्न एवं भूल द्वारा ही सीखते हैं । इसलिये बच्चों को प्रयत्न एवं भूल से सीखने के अवसर देने चाहिए। इस विधि का प्रयोग मंदबुद्धि बालकों की शिक्षा में बड़ा उपयोगी होता है।
5. इस सिद्धान्त के अनुसार बालकों को सिखाते समय उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
6. यह सिद्धांत निरंतर प्रयास पर बल देता है।
7. यह सिद्धांत प्रेरणा पर बहुत अधिक बल देता है । अतः बालकों को कुछ भी सिखाने से पहले उन्हें भली प्रकार से अभिप्रेरित कर लेना चाहिये।


Sunday, November 15, 2020

मनोविज्ञान के क्षेत्र एवं शिक्षा को देन(Scope and Contribution of Psychology)

 मनोविज्ञान के क्षेत्र 
(Scope of Psychology)

 इसके प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

(1) सामान्य मनोविज्ञान (Normal Psychology)- इसमें साधारण परिस्थितियों में सामान्य व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

(2) असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology)- इसमें असाधारण व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के असाधारण व्यक्तियों के अन्तर्गत मानसिक रोगग्रस्त व्यक्ति तथा बौद्धिक या शारीरिक दोषयुक्त व्यक्ति या बालक आते हैं।

(3) बाल मनोविज्ञान (Child Psychology)- इसमें बालकों के व्यवहार का साधारण तथा असाधारण परिस्थितियों में अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत जन्म के पूर्व (गर्भावस्था) से उनकी परिपक्वता (Maturity) तक शारीरिक एवं मानसिक विकास का अध्ययन होता है।

(4) किशोर मनोविज्ञान (Adolescent Psychology)- इसमें बाल्यावस्था (लगभग 12 वर्ष की आयु के बाद किशोर व्यक्ति (लगभग 21 वर्ष की आयु) के शारीरिक, मानसिक, व्यक्तिगत और सामाजिक विकास का अध्ययन किया जाता है।

(5) वैयक्तिक मनोविज्ञान (Individual Psychology)- सभी व्यक्ति एक समान नहीं होते। इसमें व्यक्ति की वैयक्तिक विशेषताओं तथा विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है।

(6) समाज मनोविज्ञान (Social Psychology)- इसमें विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में, व्यक्ति और समाज की पारस्परिक क्रियाओं (Interactions) का अध्ययन किया जाता है जैसे- एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ तथा बहुत से व्यक्ति मिलकर समूह रूप में किस प्रकार का व्यवहार करते हैं। समाजशास्त्र की शाखा के रूप में यह सामूहिक कार्यों या समूहों के व्यवहारों का अध्ययन करता है। 

(7) पशु मनोविज्ञान (Animal Psychology)- इसमें पशुओं की क्रियाओं और व्यवहारों का अध्ययन नियंत्रित वातावरण में किया जाता है। इनसे प्राप्त सिद्धान्तों द्वारा मानव-मनोविज्ञान के अध्ययन में सहायता मिलती है। 

(8) प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Experimental Psychology)- इसमें प्राणियों के व्यवहार का प्रयोगात्मक अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत विशेष रूप से संवेदन, प्रत्यक्षीकरण, संवेग, सीखना, स्मरण-विस्मरण आदि क्रियाओं का अध्ययन होता है। इन प्रयोगों द्वारा प्राप्त नियमों का विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। 

(9) विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान (Analytical Psychology)- इसमें मानव मस्तिष्क की जटिल प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

(10) उत्पत्तिमूलक मनोविज्ञान (Genetic Psychology)- इसमें व्यक्ति तथा प्रजाति की उत्पत्ति और उनके क्रमिक विकास का अध्ययन किया जाता है।

(11) विकास मनोविज्ञान (Developmental Psychology)- इसमें व्यवहार तथा मानसिक क्रियाओं का एक क्रम से अध्ययन किया जाता है और क्रमिक विकास के कारणों का विश्लेषण किया जाता है तथा व्यक्तियों के विकास का तुलनात्मक अध्ययन करके उनके अन्तर के कारणों का पता लगाया जाता है। 

(12) शारीरिक मनोविज्ञान (Physiological Psychology)- मानसिक क्रियाओं का शारीरिक क्रियाओं से अभिन्न सम्बन्ध है। शारीरिक मनोविज्ञान में मानसिक क्रियाओं और नाड़ीमंडल (Nervous System), ज्ञानेन्द्रियों (Sense Organs) तथा गति इन्द्रियों ( Motor Organs) की क्रियाओं का अध्ययन होता है। 

(13) प्रौढ़ मनोविज्ञान (Adult Psychology)- इसमें केवल प्रौढ़ व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

(14) सैन्य मनोविज्ञान (Military Psychology)- प्रथम विश्व युद्ध के समय से ही इसका प्रारम्भ हुआ। वास्तव में यह व्यवहार मनोविज्ञान की एक विशिष्ट शाखा है। सेना के विभिन्न प्रकार के सैनिकों और अधिकारियों के चुनाव में, उनके प्रशिक्षण में, उनकी पदोन्नति में तथा उनके स्थानान्तरण में मनोविज्ञान बहुत ही उपयोगी है।

(15) औद्योगिक मनोविज्ञान (Industrial Psychology)- यह उद्योग, व्यापार, वाणिज्य सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन करता है। इसमें उत्पादन वृद्धि की समस्या तथा मजदूर समस्याओं का अध्ययन करके, उनके समाधान के उपाय बताए जाते हैं।

(16) कानूनी मनोविज्ञान (Legal Psychology)- इसमें अपराधियों, न्यायाधीशों, वकीलों, गवाहों आदि के व्यवहारों और क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

(17) चिकित्सा मनोविज्ञान (Clinical Psychology)- इसमें मानसिक रोगग्रस्त व्यक्तियों के असाधारण व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है और उनके कारणों का पता लगाकर उपचार करने का प्रयत्न किया जाता है। 

(18) शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)- आधुनिक समय में शिक्षा और मनोविज्ञान का घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षा का उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करना है। बाल विकास का अध्ययन मनोविज्ञान करता है। मार्गन महोदय के शब्दों में, "बालक के विकास का अध्ययन हमें यह जानने योग्य बनाता है कि क्या पढ़ाएँ और कैसे पढ़ाएँ? शिक्षा मनोविज्ञान में छात्रों की अध्ययन सम्बन्धी तथा शिक्षकों की अध्यापन सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

मनोविज्ञान की शिक्षा को देन (Contribution of Psychology)


  • मनोविज्ञान ने शिक्षा को सूक्ष्म व व्यापक आयाम प्रदान करके व्यक्ति विकास में सार्थक बनाया है।

  • शिक्षा व मनोविज्ञान को जोड़ने वाली कड़ी  मानव व्यवहार है।

  • मनोविज्ञान में छात्रों की क्षमताओं एवं विभिन्नताओं का विश्लेषण करके शिक्षा में योगदान दिया है। 

  • 'मनोविज्ञान शिक्षा का आधारभूत विज्ञान है।'- स्कीनर

  • शिक्षा की प्रक्रिया मनोविज्ञान की कृपा पर निर्भर है। - बी.एन.झा

  • शिक्षा को बाल केन्द्रित बनाना।

  • बालक की अवस्थाओं को महत्त्व देना। 

  • रुचियों व मूल प्रवृत्तियों को महत्त्व देकर शिक्षण प्रदान करना ।

  • बालक के सर्वांगीण विकास के लिए पाठ्य सहगामी क्रियाओं को महत्त्व देता है। 

  • निदानात्मक परीक्षाओं का प्रयोग करके मापन व मूल्यांकन की नयी विधियों का निर्माण करना।

  • डाल्टन, मॉण्टेसरी इत्यादि खेल आधारित विधियों को महत्त्व देना। 

  • आत्मानुशासन की धारणा प्रदान करना।

  • मनोविज्ञान शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति में योगदान देता है।

  • सीखने की प्रक्रिया के उन्नति में सहायक है।

  • व्यक्तिगत विभिन्नताओं को महत्त्व देना।

  • मनोविज्ञान की सबसे बड़ी देन नवीन ज्ञान का विकास पूर्व ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिए यह है।

  • शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के विकास की व्याख्या करता है।




Saturday, November 14, 2020

मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकृति (Meaning, Definition and Nature of Psychology)

 


मनोविज्ञान का अर्थ 
(Meaning of Psychology)

मनोविज्ञान शब्द के अंग्रेजी भाषा  के  Psychology का हिन्दी रूपांतरण है  ।  Psychology शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक  भाषा के दो शब्दों- साइके (Psyche) और लोगस (Logos) से हुई है। ग्रीक भाषा में Psyche का अर्थ है- आत्मा (Soul) और Logos का अर्थ है- विज्ञान (Science)। इसलिए Psychology का अर्थ होता है- आत्मा का विज्ञान (Science of Soul)।
मनोविज्ञान के आदि जनक (Originator)  - अरस्तु (Aristotle)
आधुनिक मनोविज्ञान के जनक-  विश्व स्तर पर विलियम वुण्ट (Wilhelm Wundt) को माना जाता है व अमेरिका में विलियम जेम्स (William James) को माना जाता है क्योंकि 1912 में मनोविज्ञान को दर्शन शास्त्र से अलग किया।

मनोविज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग - रूडोल्फ गोक्लेनियस (Rudolph Goclenius) (1590 ई.) ने अपनी पुस्तक  साईक्लोजिया (Psychologia) में किया था।

प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक- विलियम वुण्ट जिन्होंने जर्मनी के लिपजिंग नगर, 1879 में पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की स्थापना की थी ।

मनोविज्ञान को सामान्यतः मन (Mind) और मानसिक क्रियाओं (Mental Activities) का विज्ञान माना जाता है परन्तु वास्तव में इसका अर्थ इससे कुछ भिन्न है और कुछ अधिक है। वर्तमान में मनोविज्ञान से तात्पर्य एक ऐसे विधायक विज्ञान से है जिसमें मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के शारीरिक एवं मानसिक व्यवहारों के कारक (Factor), प्रेरक (Motive) एवं नियन्त्रक (Controller)  तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है।

भारतीय वेद संसार के प्राचीनतम् ग्रन्थ हैं। इनमें मनुष्य के व्यवहार (शारीरिक एवं मानसिक) के कारक, प्रेरक एवं नियन्त्रक तत्त्वों से सम्बन्धित अथाह सामग्री उपलब्ध है परन्तु वह सब क्रमिक ढंग से नही है।  इसको व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास सर्वप्रथम हमारे उपनिषदकारों ने किया। उन्होंने मनुष्य के व्यवहार की व्याख्या उसके प्रथम चार कोषों (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय) के आधार पर की है। अन्नमय कोश में मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियाँ (sense organs) एवं कर्मेन्द्रियाँ आती हैं, प्राणमय कोष में उसकी शारीरिक क्षमता एवं प्राण शाक्ति आती है, मनोमय कोश में मन आता है और विज्ञानमय कोश में बुद्धि आती है। इस कार्य को  आगे बढ़ाने का  का श्रेय हमारे भारतीय पट्दर्शनकारों को जाता है । जिन्होंने समय समय पर इस पर अपने विचार प्रस्तुत किये।  भारतीय षट्दर्शनों (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, वेदान्त और मीमांसा) में मनुष्य के व्यवहार के कारक, प्रेरक एवं नियन्त्रक तत्त्वों की विस्तार से व्याख्या की गयी है।

 20 वीं शताब्दी में भारत मे पाश्चत्य मनोविज्ञान के अध्ययन की शुरुआत हुई। 1916  डा0 एन0एन0 सेन ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना की। इसी प्रकार की दूसरी प्रयोगशाला मैसूर विश्वविद्यालय में डॉ० एम० वीo गोपालास्वामी ने स्थापित की। इसके बाद भारत के अन्य विश्वविद्यालयों में भी पाश्चात्य मनोविज्ञान का अध्ययन धीरे -धीरे प्रारम्भ हुआ और इस क्षेत्र में वैज्ञानिक विधि से शोध कार्य भी शुरू होने लग गए।

मनोविज्ञान की परिभाषाएं 
(Definitions of Psychology)

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपने अनुसार अलग - अलग परिभाषाएं दी हैं-

  • वाटसन के अनुसार- मनोविज्ञान, व्यवहार का  धनात्मक विज्ञान है। (Psychology is the positive science of behaviour. - Watson)
  • वुडवर्थ के अनुसार- मनोविज्ञान, वातावरण के सम्पर्क में होने वाले मानव व्यवहारों का विज्ञान है।(Psychology is the science of human behavior in contact with the environment.- Woodworth)
  • सबसे पहले मनोविज्ञान ने आत्मा का त्याग किया, फिर अपने मन को छोड़ा, इसके पश्चात अपनी चेतना का त्याग किया और अब उसके पास एक प्रकार का व्यवहार है।
  • क्रो एण्ड क्रो के अनुसार- मनोविज्ञान मानव–व्यवहार और मानव सम्बन्धों का अध्ययन है। (Psychology is the study of human behavior and human relationships.-Crow and Crow)
  • बोरिंग के अनुसार- मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है। (Psychology is the study of human nature.- Boring)
  • स्किनर के अनुसार- मनोविज्ञान, व्यवहार और अनुभव का विज्ञान है। (Psychology is the science of behavior and experience.- Skinner)
  • गैरिसन व अन्य के अनुसार- मनोविज्ञान का सम्बन्ध प्रत्यक्ष मानव – व्यवहार से है। (Psychology is directly related to human behavior.- Garrison and Other)
  • गार्डनर मर्फी के अनुसार- मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जो जीवित व्यक्तियों का उनके वातावरण के प्रति अनुक्रियाओं का अध्ययन करता है। (Psychology is the science that studies the responses of living people to their environment. - Gardner Murphy)
  • कॉलेसनिक के अनुसार - "मनोविज्ञान मानव व्यवहार का विज्ञान है।" (Psychology is the the science of human behaviour. -Kolesnic)
  • फ्रायड एवं जुंग के अनुसार-  मनोविज्ञान चेतन तथा अचेतन मन का विज्ञान है। (Psychology is the science of the conscious and unconscious mind. - Freud & Jung)
  • जेम्स ड्रेवर के शब्दों में - मनोविज्ञान वह विधायक विज्ञान है जो मनुष्य एवं पशुओं के उस व्यवहार का अध्ययन करता है जो उनके अंतर्जगत के मनोभावों और विचारों की अभिव्यक्ति करता है। (Psychology is that methodological science that studies the behavior of humans and animals which expresses their feelings and thoughts within them.-  James Drever)
 सभी  परिभाषाओं को ध्यान में रखते हुए मनोविज्ञान की परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में देे सकते  हैं-    मनोविज्ञान जीव के  पर्यावरण से  संबद्ध अनुभव तथा व्यवहार का अध्ययन करने वाला, एक वस्तुपरक या विधायक विज्ञान है। (Psychology is an objective science, which studies the experience and behavior of an organism related to its environment.)

मनोविज्ञान की प्रकृति
(Nature of Psychology)


  • मनोविज्ञान मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के व्यवहार का विज्ञान है।
  •  इसमें मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के बाह्य (शारीरिक) एवं आन्तरिक (मानसिक) दोनों प्रकार के व्यवहार का अध्ययन किया जाता हैं।
  • इसमें मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के व्यवहार के जन्मजात एवं पर्यावरणीय, दोनों प्रकार कारक , प्रेरक एवं नियंत्रक तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है।
  • मनोविज्ञान द्वारा मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों के व्यवहार को समझा जाता है, उनके व्यवहार को नियन्त्रित एवं परिवर्तित किया जाता है और उनके व्यवहार के बारे में भविष्यवाणी की जाती है। 
  • मनोविज्ञान द्वारा मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के व्यवहार से सम्बन्धित नई-नई समस्याओं का समाधान किया जाता है।
  • यह एक विधायक विज्ञान है; इसके द्वारा खोजे एवं स्थापित किये गये सिद्धान्त एवं नियम वस्तुनिष्ठ, सार्वभौमिक एवं प्रामाणिक होते हैं, उन्हें प्रयोगों के द्वारा देखा-परखा और सिद्ध किया जा सकता है। 
  • यह विधायक विज्ञान होते हुए भी पूर्ण रूप से शुद्ध विज्ञान नहीं है, यह निकटतम् शुद्ध विज्ञान है।



संदर्भ सूची

https://hi.m.wikipedia.org/wiki
मानव, आर०एन०, उच्चतर शिक्षा मनोविज्ञान, आर०लाल०, पब्लिकेशन, मेरठ।
सारस्वत, मालती (2012), शिक्षा मनोविज्ञान की रूपरेखा, आलोक प्रकाशन, इलाहाबाद।



मनोविज्ञान का विकास (Development of Psychology)

  

मनोविज्ञान का विकास 
(Development of Psychology)

मनोविज्ञान का विकास निम्न चरणों मे हुआ है -

1. मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान है (Psychology is the science of soul) -

 यूनानी (ग्रीक) दार्शनिक प्लेटो (Plato) इस प्रकार के जनक माने जाते हैं। उनके बाद उनके शिष्य अरस्तू (Aristotle) ने इस चिन्तन को आगे बढ़ाया। उन्होंने बताया कि आत्मा प्राणी का मुख्य तत्त्व है और यह उसका सभी क्रियाओं का आधार है। इस प्रकार के चिन्तन को तब आत्मा के विज्ञान (Science of Soul) की संज्ञा प्रदान की गई। 16 वीं शताब्दी के अंत तक यह आत्मा का विज्ञान ही माना जाता रहा। 


2. मनोविज्ञान मन का विज्ञान है (Psychology is the Science of Mind) - 

17वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कुछ पाशचात्य दार्शनिकों ने मनुष्य की समस्त क्रियाओं का आधार उसके मन को बताया।  इनमें इटली के दार्शनिक पोम्पोनाजी (Poimponazzi) का नाम उल्लेखनीय है। लीबनीज (Leibnitez), हॉब्स (Hobbes), लॉक (Locke) और कान्ट (Kant) भी इसी मत के  समर्थक थे।  तब से इस प्रकार के चिन्तन को मन का विज्ञान (Science of Mind) कहा गया। परन्तु पाश्चात्य दार्शनिकों के सामने मन सम्प्रत्यय को स्पष्ट करने में भी वे सब बाधाएँ उत्पन्न हुई जो आत्मा का सम्प्रत्यय स्पष्ट करने में उत्पन्न हुई थीं। अतः  आगे चलकर इसे मन का विज्ञान भी नहीं माना गया।


3. मनोविज्ञान चेतना का विज्ञान है (Psychology is the Science of Consciousness)-

 19वीं शताब्दी में कुछ पाश्चात्य चिन्तकों ने मनुष्य की समस्त क्रियाओं का आधार उसकी चेतना (Consciousness) को बताया। इनमें अमेरिका के विलियम जेम्स (William James) और जर्मनी के विलियम वुन्ट (Wilhelm Wundt) मुख्य हैं। इनका तर्क था कि मनुष्य की सभी क्रियायें उसकी चेतना से नियन्त्रित होती हैं, अतः इस प्रकार के चिन्तन को चेतना का विज्ञान (Science of Consciousness माना जाना चाहिए। विलियम जेम्स संसार के पहले चिन्तक हैं जिन्होंने मनोविज्ञान को दर्शन से अलग कर एक स्वतन्त्र अनुशासन (Discipline) का रूप प्रदान किया और  मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित कर प्रायोगिक मनोविज्ञान की शुरूआत की। पाश्चात्य जगत में विलियम जेम्स वर्तमान मनोविज्ञान के जनक माने जाते हैं।


 4. मनोविज्ञान चेतना तथा अचेतना का विज्ञान है (Psychology is the Science of consciousness and Unconsciousness)-

 मनोवैज्ञानिक फ्रायड (Freud) तथा जुंग (Jung) ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध किया कि मन  के दो भाग है- चेतन (Conscious) तथा अचेतन (Unconscious)। मानव चेतन मन के 1/10 भाग का प्रतिनिधित्व करता है जबकि 9/10 भाग का प्रतिनिधित्व अचेतन मन करता है। अतः उन्होंने मनोविज्ञान को चेतन तथा अचेतन मन का अध्ययन करने वाले विज्ञान के रूप में परिभाषित किया। 

5. मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है (Psychology is the science of behaviour)-

20 वीं शताब्दी में जीव वैज्ञानिकों (Biologists), शरीर वैज्ञानिकों (Physiologists) और मनो चिकित्सकों ने मनोविज्ञान के विकास में बड़ा योगदान दिया। यह मनुष्य के अन्तरिक तथा बाह्य व्यवहार के विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। तब से मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान माना जाता है।                                                 

कॉलेसनिक के अनुसार "मनोविज्ञान मानव व्यवहार का विज्ञान है।"

मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology)

मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology) मनोविज्ञान के सम्प्रदाय से अभिप्राय उन विचारधाराओं से है जिनके अनुसार मनोवैज्ञानिक मन, व्यवह...