Sunday, November 15, 2020

मनोविज्ञान के क्षेत्र एवं शिक्षा को देन(Scope and Contribution of Psychology)

 मनोविज्ञान के क्षेत्र 
(Scope of Psychology)

 इसके प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

(1) सामान्य मनोविज्ञान (Normal Psychology)- इसमें साधारण परिस्थितियों में सामान्य व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

(2) असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology)- इसमें असाधारण व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के असाधारण व्यक्तियों के अन्तर्गत मानसिक रोगग्रस्त व्यक्ति तथा बौद्धिक या शारीरिक दोषयुक्त व्यक्ति या बालक आते हैं।

(3) बाल मनोविज्ञान (Child Psychology)- इसमें बालकों के व्यवहार का साधारण तथा असाधारण परिस्थितियों में अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत जन्म के पूर्व (गर्भावस्था) से उनकी परिपक्वता (Maturity) तक शारीरिक एवं मानसिक विकास का अध्ययन होता है।

(4) किशोर मनोविज्ञान (Adolescent Psychology)- इसमें बाल्यावस्था (लगभग 12 वर्ष की आयु के बाद किशोर व्यक्ति (लगभग 21 वर्ष की आयु) के शारीरिक, मानसिक, व्यक्तिगत और सामाजिक विकास का अध्ययन किया जाता है।

(5) वैयक्तिक मनोविज्ञान (Individual Psychology)- सभी व्यक्ति एक समान नहीं होते। इसमें व्यक्ति की वैयक्तिक विशेषताओं तथा विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है।

(6) समाज मनोविज्ञान (Social Psychology)- इसमें विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में, व्यक्ति और समाज की पारस्परिक क्रियाओं (Interactions) का अध्ययन किया जाता है जैसे- एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ तथा बहुत से व्यक्ति मिलकर समूह रूप में किस प्रकार का व्यवहार करते हैं। समाजशास्त्र की शाखा के रूप में यह सामूहिक कार्यों या समूहों के व्यवहारों का अध्ययन करता है। 

(7) पशु मनोविज्ञान (Animal Psychology)- इसमें पशुओं की क्रियाओं और व्यवहारों का अध्ययन नियंत्रित वातावरण में किया जाता है। इनसे प्राप्त सिद्धान्तों द्वारा मानव-मनोविज्ञान के अध्ययन में सहायता मिलती है। 

(8) प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Experimental Psychology)- इसमें प्राणियों के व्यवहार का प्रयोगात्मक अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत विशेष रूप से संवेदन, प्रत्यक्षीकरण, संवेग, सीखना, स्मरण-विस्मरण आदि क्रियाओं का अध्ययन होता है। इन प्रयोगों द्वारा प्राप्त नियमों का विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। 

(9) विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान (Analytical Psychology)- इसमें मानव मस्तिष्क की जटिल प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

(10) उत्पत्तिमूलक मनोविज्ञान (Genetic Psychology)- इसमें व्यक्ति तथा प्रजाति की उत्पत्ति और उनके क्रमिक विकास का अध्ययन किया जाता है।

(11) विकास मनोविज्ञान (Developmental Psychology)- इसमें व्यवहार तथा मानसिक क्रियाओं का एक क्रम से अध्ययन किया जाता है और क्रमिक विकास के कारणों का विश्लेषण किया जाता है तथा व्यक्तियों के विकास का तुलनात्मक अध्ययन करके उनके अन्तर के कारणों का पता लगाया जाता है। 

(12) शारीरिक मनोविज्ञान (Physiological Psychology)- मानसिक क्रियाओं का शारीरिक क्रियाओं से अभिन्न सम्बन्ध है। शारीरिक मनोविज्ञान में मानसिक क्रियाओं और नाड़ीमंडल (Nervous System), ज्ञानेन्द्रियों (Sense Organs) तथा गति इन्द्रियों ( Motor Organs) की क्रियाओं का अध्ययन होता है। 

(13) प्रौढ़ मनोविज्ञान (Adult Psychology)- इसमें केवल प्रौढ़ व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

(14) सैन्य मनोविज्ञान (Military Psychology)- प्रथम विश्व युद्ध के समय से ही इसका प्रारम्भ हुआ। वास्तव में यह व्यवहार मनोविज्ञान की एक विशिष्ट शाखा है। सेना के विभिन्न प्रकार के सैनिकों और अधिकारियों के चुनाव में, उनके प्रशिक्षण में, उनकी पदोन्नति में तथा उनके स्थानान्तरण में मनोविज्ञान बहुत ही उपयोगी है।

(15) औद्योगिक मनोविज्ञान (Industrial Psychology)- यह उद्योग, व्यापार, वाणिज्य सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन करता है। इसमें उत्पादन वृद्धि की समस्या तथा मजदूर समस्याओं का अध्ययन करके, उनके समाधान के उपाय बताए जाते हैं।

(16) कानूनी मनोविज्ञान (Legal Psychology)- इसमें अपराधियों, न्यायाधीशों, वकीलों, गवाहों आदि के व्यवहारों और क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

(17) चिकित्सा मनोविज्ञान (Clinical Psychology)- इसमें मानसिक रोगग्रस्त व्यक्तियों के असाधारण व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है और उनके कारणों का पता लगाकर उपचार करने का प्रयत्न किया जाता है। 

(18) शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)- आधुनिक समय में शिक्षा और मनोविज्ञान का घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षा का उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करना है। बाल विकास का अध्ययन मनोविज्ञान करता है। मार्गन महोदय के शब्दों में, "बालक के विकास का अध्ययन हमें यह जानने योग्य बनाता है कि क्या पढ़ाएँ और कैसे पढ़ाएँ? शिक्षा मनोविज्ञान में छात्रों की अध्ययन सम्बन्धी तथा शिक्षकों की अध्यापन सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

मनोविज्ञान की शिक्षा को देन (Contribution of Psychology)


  • मनोविज्ञान ने शिक्षा को सूक्ष्म व व्यापक आयाम प्रदान करके व्यक्ति विकास में सार्थक बनाया है।

  • शिक्षा व मनोविज्ञान को जोड़ने वाली कड़ी  मानव व्यवहार है।

  • मनोविज्ञान में छात्रों की क्षमताओं एवं विभिन्नताओं का विश्लेषण करके शिक्षा में योगदान दिया है। 

  • 'मनोविज्ञान शिक्षा का आधारभूत विज्ञान है।'- स्कीनर

  • शिक्षा की प्रक्रिया मनोविज्ञान की कृपा पर निर्भर है। - बी.एन.झा

  • शिक्षा को बाल केन्द्रित बनाना।

  • बालक की अवस्थाओं को महत्त्व देना। 

  • रुचियों व मूल प्रवृत्तियों को महत्त्व देकर शिक्षण प्रदान करना ।

  • बालक के सर्वांगीण विकास के लिए पाठ्य सहगामी क्रियाओं को महत्त्व देता है। 

  • निदानात्मक परीक्षाओं का प्रयोग करके मापन व मूल्यांकन की नयी विधियों का निर्माण करना।

  • डाल्टन, मॉण्टेसरी इत्यादि खेल आधारित विधियों को महत्त्व देना। 

  • आत्मानुशासन की धारणा प्रदान करना।

  • मनोविज्ञान शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति में योगदान देता है।

  • सीखने की प्रक्रिया के उन्नति में सहायक है।

  • व्यक्तिगत विभिन्नताओं को महत्त्व देना।

  • मनोविज्ञान की सबसे बड़ी देन नवीन ज्ञान का विकास पूर्व ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिए यह है।

  • शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के विकास की व्याख्या करता है।




Saturday, November 14, 2020

मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकृति (Meaning, Definition and Nature of Psychology)

 


मनोविज्ञान का अर्थ 
(Meaning of Psychology)

मनोविज्ञान शब्द के अंग्रेजी भाषा  के  Psychology का हिन्दी रूपांतरण है  ।  Psychology शब्द की व्युत्पत्ति ग्रीक  भाषा के दो शब्दों- साइके (Psyche) और लोगस (Logos) से हुई है। ग्रीक भाषा में Psyche का अर्थ है- आत्मा (Soul) और Logos का अर्थ है- विज्ञान (Science)। इसलिए Psychology का अर्थ होता है- आत्मा का विज्ञान (Science of Soul)।
मनोविज्ञान के आदि जनक (Originator)  - अरस्तु (Aristotle)
आधुनिक मनोविज्ञान के जनक-  विश्व स्तर पर विलियम वुण्ट (Wilhelm Wundt) को माना जाता है व अमेरिका में विलियम जेम्स (William James) को माना जाता है क्योंकि 1912 में मनोविज्ञान को दर्शन शास्त्र से अलग किया।

मनोविज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग - रूडोल्फ गोक्लेनियस (Rudolph Goclenius) (1590 ई.) ने अपनी पुस्तक  साईक्लोजिया (Psychologia) में किया था।

प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक- विलियम वुण्ट जिन्होंने जर्मनी के लिपजिंग नगर, 1879 में पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की स्थापना की थी ।

मनोविज्ञान को सामान्यतः मन (Mind) और मानसिक क्रियाओं (Mental Activities) का विज्ञान माना जाता है परन्तु वास्तव में इसका अर्थ इससे कुछ भिन्न है और कुछ अधिक है। वर्तमान में मनोविज्ञान से तात्पर्य एक ऐसे विधायक विज्ञान से है जिसमें मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के शारीरिक एवं मानसिक व्यवहारों के कारक (Factor), प्रेरक (Motive) एवं नियन्त्रक (Controller)  तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है।

भारतीय वेद संसार के प्राचीनतम् ग्रन्थ हैं। इनमें मनुष्य के व्यवहार (शारीरिक एवं मानसिक) के कारक, प्रेरक एवं नियन्त्रक तत्त्वों से सम्बन्धित अथाह सामग्री उपलब्ध है परन्तु वह सब क्रमिक ढंग से नही है।  इसको व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास सर्वप्रथम हमारे उपनिषदकारों ने किया। उन्होंने मनुष्य के व्यवहार की व्याख्या उसके प्रथम चार कोषों (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय) के आधार पर की है। अन्नमय कोश में मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियाँ (sense organs) एवं कर्मेन्द्रियाँ आती हैं, प्राणमय कोष में उसकी शारीरिक क्षमता एवं प्राण शाक्ति आती है, मनोमय कोश में मन आता है और विज्ञानमय कोश में बुद्धि आती है। इस कार्य को  आगे बढ़ाने का  का श्रेय हमारे भारतीय पट्दर्शनकारों को जाता है । जिन्होंने समय समय पर इस पर अपने विचार प्रस्तुत किये।  भारतीय षट्दर्शनों (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, वेदान्त और मीमांसा) में मनुष्य के व्यवहार के कारक, प्रेरक एवं नियन्त्रक तत्त्वों की विस्तार से व्याख्या की गयी है।

 20 वीं शताब्दी में भारत मे पाश्चत्य मनोविज्ञान के अध्ययन की शुरुआत हुई। 1916  डा0 एन0एन0 सेन ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना की। इसी प्रकार की दूसरी प्रयोगशाला मैसूर विश्वविद्यालय में डॉ० एम० वीo गोपालास्वामी ने स्थापित की। इसके बाद भारत के अन्य विश्वविद्यालयों में भी पाश्चात्य मनोविज्ञान का अध्ययन धीरे -धीरे प्रारम्भ हुआ और इस क्षेत्र में वैज्ञानिक विधि से शोध कार्य भी शुरू होने लग गए।

मनोविज्ञान की परिभाषाएं 
(Definitions of Psychology)

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपने अनुसार अलग - अलग परिभाषाएं दी हैं-

  • वाटसन के अनुसार- मनोविज्ञान, व्यवहार का  धनात्मक विज्ञान है। (Psychology is the positive science of behaviour. - Watson)
  • वुडवर्थ के अनुसार- मनोविज्ञान, वातावरण के सम्पर्क में होने वाले मानव व्यवहारों का विज्ञान है।(Psychology is the science of human behavior in contact with the environment.- Woodworth)
  • सबसे पहले मनोविज्ञान ने आत्मा का त्याग किया, फिर अपने मन को छोड़ा, इसके पश्चात अपनी चेतना का त्याग किया और अब उसके पास एक प्रकार का व्यवहार है।
  • क्रो एण्ड क्रो के अनुसार- मनोविज्ञान मानव–व्यवहार और मानव सम्बन्धों का अध्ययन है। (Psychology is the study of human behavior and human relationships.-Crow and Crow)
  • बोरिंग के अनुसार- मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है। (Psychology is the study of human nature.- Boring)
  • स्किनर के अनुसार- मनोविज्ञान, व्यवहार और अनुभव का विज्ञान है। (Psychology is the science of behavior and experience.- Skinner)
  • गैरिसन व अन्य के अनुसार- मनोविज्ञान का सम्बन्ध प्रत्यक्ष मानव – व्यवहार से है। (Psychology is directly related to human behavior.- Garrison and Other)
  • गार्डनर मर्फी के अनुसार- मनोविज्ञान वह विज्ञान है, जो जीवित व्यक्तियों का उनके वातावरण के प्रति अनुक्रियाओं का अध्ययन करता है। (Psychology is the science that studies the responses of living people to their environment. - Gardner Murphy)
  • कॉलेसनिक के अनुसार - "मनोविज्ञान मानव व्यवहार का विज्ञान है।" (Psychology is the the science of human behaviour. -Kolesnic)
  • फ्रायड एवं जुंग के अनुसार-  मनोविज्ञान चेतन तथा अचेतन मन का विज्ञान है। (Psychology is the science of the conscious and unconscious mind. - Freud & Jung)
  • जेम्स ड्रेवर के शब्दों में - मनोविज्ञान वह विधायक विज्ञान है जो मनुष्य एवं पशुओं के उस व्यवहार का अध्ययन करता है जो उनके अंतर्जगत के मनोभावों और विचारों की अभिव्यक्ति करता है। (Psychology is that methodological science that studies the behavior of humans and animals which expresses their feelings and thoughts within them.-  James Drever)
 सभी  परिभाषाओं को ध्यान में रखते हुए मनोविज्ञान की परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में देे सकते  हैं-    मनोविज्ञान जीव के  पर्यावरण से  संबद्ध अनुभव तथा व्यवहार का अध्ययन करने वाला, एक वस्तुपरक या विधायक विज्ञान है। (Psychology is an objective science, which studies the experience and behavior of an organism related to its environment.)

मनोविज्ञान की प्रकृति
(Nature of Psychology)


  • मनोविज्ञान मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के व्यवहार का विज्ञान है।
  •  इसमें मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के बाह्य (शारीरिक) एवं आन्तरिक (मानसिक) दोनों प्रकार के व्यवहार का अध्ययन किया जाता हैं।
  • इसमें मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के व्यवहार के जन्मजात एवं पर्यावरणीय, दोनों प्रकार कारक , प्रेरक एवं नियंत्रक तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है।
  • मनोविज्ञान द्वारा मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों के व्यवहार को समझा जाता है, उनके व्यवहार को नियन्त्रित एवं परिवर्तित किया जाता है और उनके व्यवहार के बारे में भविष्यवाणी की जाती है। 
  • मनोविज्ञान द्वारा मनुष्य एवं पशु-पक्षियों के व्यवहार से सम्बन्धित नई-नई समस्याओं का समाधान किया जाता है।
  • यह एक विधायक विज्ञान है; इसके द्वारा खोजे एवं स्थापित किये गये सिद्धान्त एवं नियम वस्तुनिष्ठ, सार्वभौमिक एवं प्रामाणिक होते हैं, उन्हें प्रयोगों के द्वारा देखा-परखा और सिद्ध किया जा सकता है। 
  • यह विधायक विज्ञान होते हुए भी पूर्ण रूप से शुद्ध विज्ञान नहीं है, यह निकटतम् शुद्ध विज्ञान है।



संदर्भ सूची

https://hi.m.wikipedia.org/wiki
मानव, आर०एन०, उच्चतर शिक्षा मनोविज्ञान, आर०लाल०, पब्लिकेशन, मेरठ।
सारस्वत, मालती (2012), शिक्षा मनोविज्ञान की रूपरेखा, आलोक प्रकाशन, इलाहाबाद।



मनोविज्ञान का विकास (Development of Psychology)

  

मनोविज्ञान का विकास 
(Development of Psychology)

मनोविज्ञान का विकास निम्न चरणों मे हुआ है -

1. मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान है (Psychology is the science of soul) -

 यूनानी (ग्रीक) दार्शनिक प्लेटो (Plato) इस प्रकार के जनक माने जाते हैं। उनके बाद उनके शिष्य अरस्तू (Aristotle) ने इस चिन्तन को आगे बढ़ाया। उन्होंने बताया कि आत्मा प्राणी का मुख्य तत्त्व है और यह उसका सभी क्रियाओं का आधार है। इस प्रकार के चिन्तन को तब आत्मा के विज्ञान (Science of Soul) की संज्ञा प्रदान की गई। 16 वीं शताब्दी के अंत तक यह आत्मा का विज्ञान ही माना जाता रहा। 


2. मनोविज्ञान मन का विज्ञान है (Psychology is the Science of Mind) - 

17वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कुछ पाशचात्य दार्शनिकों ने मनुष्य की समस्त क्रियाओं का आधार उसके मन को बताया।  इनमें इटली के दार्शनिक पोम्पोनाजी (Poimponazzi) का नाम उल्लेखनीय है। लीबनीज (Leibnitez), हॉब्स (Hobbes), लॉक (Locke) और कान्ट (Kant) भी इसी मत के  समर्थक थे।  तब से इस प्रकार के चिन्तन को मन का विज्ञान (Science of Mind) कहा गया। परन्तु पाश्चात्य दार्शनिकों के सामने मन सम्प्रत्यय को स्पष्ट करने में भी वे सब बाधाएँ उत्पन्न हुई जो आत्मा का सम्प्रत्यय स्पष्ट करने में उत्पन्न हुई थीं। अतः  आगे चलकर इसे मन का विज्ञान भी नहीं माना गया।


3. मनोविज्ञान चेतना का विज्ञान है (Psychology is the Science of Consciousness)-

 19वीं शताब्दी में कुछ पाश्चात्य चिन्तकों ने मनुष्य की समस्त क्रियाओं का आधार उसकी चेतना (Consciousness) को बताया। इनमें अमेरिका के विलियम जेम्स (William James) और जर्मनी के विलियम वुन्ट (Wilhelm Wundt) मुख्य हैं। इनका तर्क था कि मनुष्य की सभी क्रियायें उसकी चेतना से नियन्त्रित होती हैं, अतः इस प्रकार के चिन्तन को चेतना का विज्ञान (Science of Consciousness माना जाना चाहिए। विलियम जेम्स संसार के पहले चिन्तक हैं जिन्होंने मनोविज्ञान को दर्शन से अलग कर एक स्वतन्त्र अनुशासन (Discipline) का रूप प्रदान किया और  मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित कर प्रायोगिक मनोविज्ञान की शुरूआत की। पाश्चात्य जगत में विलियम जेम्स वर्तमान मनोविज्ञान के जनक माने जाते हैं।


 4. मनोविज्ञान चेतना तथा अचेतना का विज्ञान है (Psychology is the Science of consciousness and Unconsciousness)-

 मनोवैज्ञानिक फ्रायड (Freud) तथा जुंग (Jung) ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध किया कि मन  के दो भाग है- चेतन (Conscious) तथा अचेतन (Unconscious)। मानव चेतन मन के 1/10 भाग का प्रतिनिधित्व करता है जबकि 9/10 भाग का प्रतिनिधित्व अचेतन मन करता है। अतः उन्होंने मनोविज्ञान को चेतन तथा अचेतन मन का अध्ययन करने वाले विज्ञान के रूप में परिभाषित किया। 

5. मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है (Psychology is the science of behaviour)-

20 वीं शताब्दी में जीव वैज्ञानिकों (Biologists), शरीर वैज्ञानिकों (Physiologists) और मनो चिकित्सकों ने मनोविज्ञान के विकास में बड़ा योगदान दिया। यह मनुष्य के अन्तरिक तथा बाह्य व्यवहार के विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। तब से मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान माना जाता है।                                                 

कॉलेसनिक के अनुसार "मनोविज्ञान मानव व्यवहार का विज्ञान है।"

Wednesday, August 19, 2020

तुलनात्मक शिक्षा के प्रभावकारी कारक (FACTORS INFLUENCING COMPARATIVE EDUCATION)

 तुलनात्मक शिक्षा के प्रभावकारी कारक 
(FACTORS INFLUENCING COMPARATIVE EDUCATION)

तुलनात्मक शिक्षा का विकास इस अवधारणा से हुआ कि दो अथवा दो से  अधिक  राष्ट्रों की शिक्षा प्रणालियों में भिन्नता होती है। जिससे तार्किक, निरीक्षण एवं अनुभव के आधार पर कारकों की पहचान की गई तथा सामान्य तुलनात्मक विधि से उन  कारकों की  पुष्टि भी की गई। शिक्षा एक सामाजिक एवं मानवीय प्रक्रिया है जिसका लक्ष्य व्यक्ति में मानवीय गुणों का विकास करना है। आज के सन्दर्भ में योग्य नागरिकों का निर्माण करना शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य है।

निकोलस हंस ने प्रभावकारी कारकों को तीन भागों में बाँटा है.

(1) संरचनात्मक कारक (Structural Factors) - संरचनात्मक कारक उन कारकों को कहा जाता है, जो शिक्षा प्रणाली के स्वरूप को प्रभावित करते हैं या शिक्षा के सैद्धान्तिक प्रारूप को प्रस्तुत करते हैं।

(2) कार्यपरक कारक (Functional Factors)शिक्षा प्रक्रिया व्यावहारिक तथा कार्यपरक अधिक है। इसके अन्तर्गत तीन क्रियाएँ शिक्षण, अनुदेशन तथा प्रशिक्षण का सम्पादन किया जाता है जिसे शिक्षण शास्त्र भी कहा जाता है। शिक्षा प्रणाली को कार्य-परक बनाने में शिक्षा तकनीकी, मनोविज्ञान, अनुदेशन तकनीकी तथा शिक्षणशास्त्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह समस्त वैज्ञानिक कारक शिक्षा प्रणाली को कार्यपरक बनाते हैं।

(3) मिश्रित कारक (Mixed Factors)-  शिक्षा प्रणाली में कुछ ऐसे कारक भी होते हैं जो शिक्षा प्रणाली की संरचना तथा कार्य-परक पक्ष दोनों को ही प्रभावित करते हैं। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक पक्ष शिक्षा प्रणाली के दोनों पक्षों को प्रभावित करते हैं।

वर्नन मैलिन्सन रॉबर्ट ने एक पुस्तक 'तुलनात्मक शिक्षा की भूमिका' (An Introduction in the Study of Comparative Education) का प्रकाशन  1957 में किया। इस पुस्तक में शिक्षा प्रणालियों का अध्ययन राष्ट्रीय चरित्र के सन्दर्भ में किया। इनका विश्वास था कि राष्ट्रीय चरित्र को अनेक कारक प्रभावित करते हैं। इन्होंने मुख्य कारकों का उल्लेख किया, वे इस प्रकार हैं-भौगोलिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा तकनीकी कारक।


 

(1) भौगोलिक कारक  (Geographical Factors)

किसी देश की भौगोलिक परिस्थिति मानव जीवन के अतिरिक्त सभ्यता एवं संस्कृति तथा शिक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करती है। विकसित राष्ट्रों की जलवायु उस देश के निवासियों की कार्यक्षमता के अधिक उपयोग के अनुकूल होती है। इन राष्ट्रों के व्यक्ति बारह से चौदह घंटे दिन में कार्य कर सकते हैं। इन देशों की जलवायु सामान्य या ठण्डी होती है। अधिक गर्म जलवायु वाले देशों के व्यक्ति सात से आठ घण्टे ही दिन में काम कर पाते हैं क्योंकि गर्म जलवायु उन्हें क्रियाशील तथा आलसी  बनाती है। ठण्डे देशों तथा गर्म देशों के मानवीय भूगोल में भी सार्थक अन्तर होता है। देश की जलवायु से भाषाओं की संरचना तथा उच्चारण प्रत्यक्ष रूप में प्रभावित होते हैं। भौगोलिक कारक  शिक्षा प्रणाली की संरचना को भी प्रभावित करता है। किसी भी देश की सभ्यता एवं संस्कृति तथा शिक्षा प्रणाली पर उस देश की भौगोलिक स्थिति का काफी प्रभाव पड़ता है। विश्व के विभिन्न देशों की भौगोलिक स्थिति अलग-अलग है अतएव वहाँ के निवासियों के रहन-सहन, सभ्यता, संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली में भेद पाया जाता है। ठण्डे देश की जलवायु गर्म  देश की जलवायु से भिन्न होती है। फलस्वरूप ठंड और गर्म देश के रहन-सहन तथा सामाजिक गर्म व्यवस्था आदि में विभिन्नता होती है। शिक्षा प्रणाली सामाजिक व्यवस्था एवं रहन-सहन से सदैव प्रभावित होती है। जो देश कृषि प्रधान होता है  वहाँ की शिक्षा प्रणाली में कृषि की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जिस देश में विविध औद्योगिक केन्द्र होते हैं और जहाँ की आय का प्रधान स्रोत विभिन्न उद्योग ही होते हैं। इस प्रकार शिक्षा को भौगोलिक कारक प्रभावित करते हैं । 

(2) दार्शनिक कारक (Philosophical Factors)

किसी देश का जीवन दर्शन उस देश की शिक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है अत: शिक्षा पर भी उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। रॉस ने शिक्षा की व्याख्या एक सिक्के के दो पहलू के रूप में की है। उनके अनुसार एक पहलू सैद्धान्तिक तथा दूसरा गतिशील होता है। सैद्धान्तिक पक्ष को शिक्षा दर्शन कहा जाता है। गतिशील पक्ष को शिक्षा मनोविज्ञान तथा शिक्षा तकनीकी कहा जाता है। देश के जीवन दर्शन में तत्त्व-विचार, प्रमाण विचार, मूल्य मीमांसा तथा आचार संहिता उस देश की शिक्षा प्रणाली के नियमों, सिद्धांतों, शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम के प्रारूप, शिक्षण विधियों तथा प्रविधियों, अनुशासन, शिक्षक-छात्र सम्बन्ध तथा उनकी भूमिका के स्वरूप को प्रदान करते हैं।  योजना विधि का शिक्षण में उपयोग किया जाता है तथा सामूहिक क्रियाओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है। शिक्षा का जीवन में उपयोग होना चाहिए। शिक्षा का जीवन से घनिष्ठ एवं सार्थक सम्बन्ध होता है।

भारत के जीवन-दर्शन में वैदिक दर्शन को अपनाया गया है इसलिए शिक्षा में चारित्रिक विकास तथा नैतिक मूल्यों के विकास को प्राथमिकता दी जाती है। शिक्षा में प्रवचन एवं प्रश्नोत्तर विधियों का अधिक उपयोग किया गया है। शिक्षक छात्रों के लिए आदर्श प्रस्तुत करता है। अध्यापक को गुरू का स्थान दिया जाता है। भारत में गुरुकुल प्रणाली का विकास किया गया जो वैदिक दर्शन पर आधारित है।

दर्शन जीवन को प्रभावित करता है। अतः शिक्षा पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। प्राचीन यूनान का उदाहरण हमारे समक्ष है। वहाँ के सुकरात, प्लेटो तथा अरस्तू ने एक विशिष्ट दर्शन पर देश की शिक्षा व्यवस्था को आधारित किया तथा देश के सम्पूर्ण शासन को दार्शनिकों के हाथ में सौंपने की बात कही।  प्राचीन भारत में वैदिक दर्शन के आधार पर गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का विकास किया गया था। इसके पश्चात् बौद्ध दर्शन पर विहार और मठो की शिक्षा पद्धति का विकास किया गया। स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रतिपादित गुरुकुल के प्रमुख तत्त्वों को सम्मिलित करते हुए एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की स्थापन पर जोर दिया गया जो आधुनिक युग के जीवन के अनुरूप हो। इसी प्रकार श्री अरविन्द दर्शन पर आधारित कुछ शिक्षा संस्थाएँ भारत में खोली गयी। अत: तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में इस घटक पर  समुचित ध्यान देना आवश्यक है।

(3) ऐतिहासिक कारक (Historical Factors)


किसी देश की शिक्षा प्रणाली को समझने के लिए यह जरूरी है कि उसके अंतर्गत  अतीत को समझा जाए। वर्तमान को समझने में अतीत के इतिहास की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि वर्तमान में अतीत निहित होता है। शिक्षा प्रणाली पर अतीत के सामाजिक तथा राजनैतिक परिवर्तनों का प्रभाव रहता है। विश्व के अधिकतर देशों में राजनैतिक तथा सामाजिक परिवर्तन होते रहे हैं जिससे वहाँ की शिक्षा प्रणालियाँ भी प्रभावित होती रहती है।\भारत की शिक्षा प्रणाली की ऐतिहासिक समीक्षा से ज्ञात होता है कि शिक्षा प्रणालियों का इतिहास युगों में विभाजन किया गया है वैदिक शिक्षा, बौद्ध शिक्षा, जैन शिक्षा, मुस्लिम शिक्षा, ब्रिटिश शिक्षा 1947 तक उसके पाश्चात्य आधुनिक शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ है। स्वतन्त्रता के पश्चात् तीन राष्ट्रीय शिक्षा आयोगों का गठन हुआ सन् 1968. सन् 1979 तथा 1986 क्योंकि इस अवधि में सत्ता के राजनैतिक दल परिवर्तित होते रहे और राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का स्वरूप भी बदलता रहा। प्रत्येक राजनैतिक दल के लक्ष्य तथा उद्देश्य अपने होते हैं वे उसी के अनुरूप शिक्षा प्रणाली को बोलने का प्रयत्न करते हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व प्रत्येक देश अपनी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के प्रारूप को अपने धार्मिक, राजनैतिक एवं राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित कर राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करता था। परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के दुष्परिणाम से सभी राष्ट्र बचना चाहते थे इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) तथा यूनेस्को (UNESCO) को स्थापना की गई और शिक्षा प्रणालियों के उद्देश्यों में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना एवं विश्वबन्धुत्व की भावना तथा विश्व नागरिकता को शामिल किया गया। इस प्रकार ऐतिहासिक तथा राजनैतिक कारक देशों तथा विश्व की शिक्षा प्रणालियों को प्रभावित करते रहे हैं और शिक्षा के उद्देश्यों में बदलाव हुआ। 

(4) भाषायी कारक (Linguistic Factors)


किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली में भाषा का विशेष स्थान होता है। शिक्षा प्रणाली में अन्य विषयों की भाँति एक विषय के रूप में भाषा को स्थान दिया जाता है। इसके अतिरिक्त भाषा शिक्षा एक माध्यम तथा आधारभूत सम्प्रेषण का साधन है। बिना भाषा के शिक्षा प्रणाली का सम्पादन सम्भव नहीं हो सकता। भाषा शिक्षा प्रणाली का महत्त्वपूर्ण प्रभावकारी कारक है। जिस देश की शिक्षा प्रणाली का माध्यम मातृभाषा होती है, वहाँ का राष्ट्रीय चरित्र उन्नत तथा प्रबल होता है। जिस देश की शिक्षा का माध्यम कोई विदेशी भाषा होती है, उस देश का राष्ट्रीय चरित्र प्रबल नहीं होता है। यद्यपि राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में कई अन्य कारक प्रभावित करते हैं। भाषा की राष्ट्रीयता की भावना के विकास में अहम् भूमिका होती है। किसी देश की सभ्यता तथा संस्कृति आदि अनेक अर्थों में उस देश की भाषा से सम्बन्धित होती है। भाषा का साहित्य पक्ष उस समाज का दर्पण माना जाता है। साहित्य सामाजिक गतिविधियों एवं उसके स्वरूप का चित्रण करता है। 
भाषा विचार विनिमय का सर्वोत्तम साधन माना जाता इसलिये यह शिक्षा प्रदान करने का भी सर्वोत्तम साधन है। अतएव यह अन्य विषयों की भाँति एक विषय मात्र ही नहीं है, वरन् यह एक आधारभूत माध्यम है, जिसके अध्ययन एवं अध्यापन पर सम्पूर्ण शिक्षा आधारित है। " इसी सन्दर्भ में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने (1905) ने कहा था, "जब तक मातृ-भाषा को उच्च शिक्षा का माध्यम नहीं बनाया जायेगा, तब तक पाठ्य-पुस्तकें कैसे लिखी जायेंगी, नई शब्दावली कैसे बनेगी, भाषा का विकास उसके उपयोग से होता है।"


(5) वैज्ञानिक कारक (Scientific Factors)


वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास ने विश्व में देशों की भौतिक दूरी को कम कर दिया है अर्थात् वैज्ञानिक आविष्कारों ने संसार को छोटा कर दिया है। सम्प्रेषण उपकरणों तथा माध्यमों के विकास ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में अधिक निकटता ला दी है। किसी राष्ट्र के वैज्ञानिक प्रयोगों का प्रभाव पड़ोसी देशों पर पड़ता है। वायुयानों की अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों ने भी विश्व के देशों की सद्भावनाओं को विकसित किया है। वैज्ञानिक आविष्कारों एवं माध्यमों के विकास ने शिक्षा प्रणाली को भी प्रभावित किया है। माध्यमों के उपयोग ने वैकल्पिक शिक्षा प्रणाली का विकास किया है, जिसे दूरवर्ती शिक्षा (Distance Education) कहते हैं। दूरवर्ती शिक्षा के लिये विश्व के देशों में मुक्त विश्वविद्यालयों (Open Universities) की स्थापना की गई है। प्रजातान्त्रिक राष्ट्रों के संविधानों में शिक्षा के समान अवसरों का प्रावधान किया गया है। मुक्त विश्वविद्यालयों तथा दूरवर्ती शिक्षा की व्यवस्था से इस प्रावधान की पूर्ति की जाती है। दूरवर्ती शिक्षा में बहुमाध्यमों का उपयोग किया जाता है। मुद्रित तथा अमुद्रित माध्यमों का उपयोग किया जाता है। मुक्त विश्वविद्यालयों तथा दूरवर्ती शिक्षा की व्यवस्था औपचारिक शिक्षा प्रणाली से अधिक मितव्ययी है। सर्वप्रथम इस प्रणाली का विकास ब्रिटेन तथा फ्रांस में हुआ तत्पश्चात् अन्य राष्ट्रों ने इस प्रणाली को अपनाया गया। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना 1985 में नई दिल्ली में की गई। यह प्रणाली मितव्ययी तथा प्रभावशाली होने के कारण भारत के राज्यों में भी मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना की जाने लगी। वैज्ञानिक आविष्कारों में मोबाइल, कम्प्यूटर पर अधिक शीघ्रता से मितव्ययी रूप में अन्य राष्ट्रों से सम्पर्क किया जाने लगा है।



(6) सामाजिक कारक (Social Factors)


आज हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर समाजवाद का प्रभाव दिखलाई पड़ रहा है। सामाजिक कारक शिक्षा प्रणालियों को सबसे अधिक प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करते हैं। विद्वानों का कथन है—समाज शिक्षा को जन्म देता है और शिक्षा समाज का निर्माण करती है। इस कथन का आशय है कि समाज शिक्षा को प्रभावित करती है और शिक्षा समाज को प्रभावित करती है। समाज जनता को शिक्षित करने के लिए शिक्षा की व्यवस्था करता है जिससे शिक्षा ऐसे नागरिकों का निर्माण करती है जो समाज के भावी विकास में समुचित योगदान कर सकें।  शिक्षा का लक्ष्य भावी समाज का निर्माण करना है। शिक्षा को भविष्य का विज्ञान भी कहा जाता है। शिक्षा भावी जीवन के लिए तैयार करती है। प्राचीनकाल में सामाजिक परिवर्तन युद्धों, महायुद्धों तथा विश्व युद्धों से होते थे परन्तु आधुनिक समय में शिक्षा के द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् महापुरुषों ने विचार किया कि युद्ध की प्रवृत्ति मानव कल्याण के लिए अहितकारी है। अतः इसको कैसे बदला जाए इसके लिए यूनेस्को की स्थापना की गई जिसने शिक्षा के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना एवं विश्वबन्धुत्व की भावना के विकास को महत्त्व दिया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसमें महत्त्वपूर्ण सहयोग किया। शिक्षा के नवीन परावर्तन द्वारा समाज में समस्या भी उत्पन्न होती हैं और शिक्षा उनके समाधान में योगदान करती है। शिक्षा के द्वारा सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक समस्याओं का समाधान किया जाता है।
समाजवादी कारक का शिक्षा के स्वरूप पर  गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में इस कारक पर ध्यान देना होगा कि तभी तुलनात्मक अध्ययन सार्थक होगा।


(7) धार्मिक कारक(Religious Factors) 

व्यक्ति के जीवन में धर्म का विशेष स्थान होता है। किसी देश की दार्शनिक विचारधारा को उस देश की शिक्षा एवं धर्म से आचरण में लाया जाता है। शिक्षा एवं धर्म आचरण का साधन है और उसका सैद्धान्तिक पक्ष होता है। सामाजिक एवं परिस्थितिको कारकों में धार्मिक कारक भी निहित होते हैं। धर्म का सम्बन्ध व्यक्ति के मूल्यों, आस्था तथा विश्वास से अधिक होता है। इसलिए व्यक्ति के जीवन में धर्म का विशेष महत्त्व होता है। धर्म के नाम पर व्यक्ति अपना सब कुछ कर देता है। धर्म सामाजिक आचरण के मानक निर्धारित करता है।
भारत तथा यूरोप के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने धर्म के लिए अपने आपको हँसते-हँसते बलिदान किया। धर्म प्रधान देश रूढ़िवादी होते हैं। प्राचीन परम्पराओं में परिवर्तन का विरोध करते हैं। महात्मा गांधी ने छुआ-छूत की रूढ़िवादी परम्पराओं में परिवर्तन के काफी प्रयास किये परन्तु सफलता नहीं मिली, लेकिन अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा तथा विद्यालय में सभी छात्रों के लिए एक ही ड्रेस ने इस बुराई को छात्रों के लिए समाज से समाप्त कर दिया। शिक्षा धर्म को प्रभावित करती है और धर्म शिक्षा को प्रभावित करता है। धर्म में सुधार तथा विकास शिक्षा द्वारा लाया जा सकता है। परन्तु समाज शिक्षा संस्थाओं की स्थापना अपने धर्म एवं मूल्यों की रक्षा के लिए करता है। वैज्ञानिक, तकनीकी, औद्योगिक विकास एवं माध्यमों के विकास ने प्राचीन परम्पराओं और नैतिक रूढ़ियों को प्रभावित किया है। इस दिशा में शिक्षा ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में धार्मिक रूढ़िवादिता अधिक है। परन्तु शिक्षा द्वारा कृषि विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा ने धीरे-धीरे इन रूढ़ियों को समाप्त किया है। शिक्षा ने भारत की कृषि के स्वरूप को बदल दिया है। शिक्षा में धार्मिक तथा नैतिक मूल्यों का आदर करना आवश्यक होता है। धार्मिक आस्थाओं एवं विश्वासों के आधार विभिन्न देशों की शिक्षा प्रणालियाँ प्रभावित हुई हैं। भारत को स्वतन्त्रता के बाद से धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित कर दिया गया है। 


(8) आर्थिक कारक (Economic Factors)

किसी देश की शिक्षा प्रणाली का वहाँ की आर्थिक दशा से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। शिक्षा को आर्थिक स्थिति प्रभावित करती है और आर्थिक स्थिति को शिक्षा प्रभावित करती है। यदि किसी देश की साक्षरता दर अधिक हो तो उस देश की प्रति व्यक्ति आय दर में भी वृद्धि हो जाती है। शिक्षा को एक उत्तम विनियोग (Investment) माना जाता है। शिक्षा पर लागत का लाभांश सबसे अधिक होता है परन्तु किसी देश की शिक्षा प्रणाली को विकसित करने के लिए उसके आर्थिक संसाधनों पर ध्यान दिया जाता है। शिक्षा प्रणाली किसी देश की आर्थिक स्थिति पर निर्भर होती है। देश की आर्थिक स्थिति के अनुसार ही शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जाती है। वित्तीय व्यवस्था के सम्बन्ध में राष्ट्र अथवा सत्ता का जैसा विश्वास तथा धारणा होती है उसे शिक्षा द्वारा बालकों में विकसित करने का प्रयोग किया जाता है।

समाजवादी आर्थिक व्यवस्था में समस्त सम्पत्ति राज्य (State) की होती है। इस प्रकार छात्रों में प्राथमिक स्तर से ही ऐसी भावना विकसित की जाती है कि सम्पूर्ण सम्पत्ति राज्य की है और सभी को उसकी रक्षा करनी है तथा उसमें वृद्धि करनी है। भारत में प्रजातान्त्रिक सत्ता है यहाँ प्रत्येक व्यक्ति को सम्पत्ति का संवैधानिक अधिकार है और सम्पत्ति निजी मानी जाती है और प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना मौलिक अधिकार माना जाता है। कुछ देशों में आज भी शिक्षा प्राप्त करने की स्वतन्त्रता नहीं है। प्रजातन्त्र शासन प्रणाली में शिक्षा की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है राज्य और समाज का उत्तरदायित्व शिक्षा प्रदान करना है। शिक्षा का सभी को समान अवसर दिया जाये। आज उच्च शिक्षा तकनीकी शिक्षा एवं मेडीकल शिक्षा अधिक महंगी है इसलिए आज विश्व के देशों में मुक्त विश्वविद्यालयों की स्थापना की जाने लगी है। मुक्त शिक्षा तथा दूरवर्ती शिक्षा अपेक्षाकृत मितव्ययी वैकल्पिक शिक्षा प्रणाली है। इसे सेवारत व्यक्तियों के प्रोन्नत हेतु आवश्यक माना जाता है। शिक्षा प्रणालियों की स्थापना तथा शिक्षा को विकसित करने में आर्थिक कारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में इसका विशेष महत्त्व होता है।


(9 ) जातीय  कारक (Racial Factors)


विश्व के विभिन्न देशों में कई प्रकार की जातियाँ पाई जाती हैं जिनका उस देश की शिक्षा-व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। इन जातियों में कुछ जातियाँ ऐसी होती हैं जो अपने आपको दूसरों से अधिक श्रेष्ठ समझती हैं और इस कारण वे दूसरों पर शासन करने का प्रयास करती हैं। यदि वे अपने इस कार्य में सफल हो जाती हैं तो सामाजिक व्यवस्था पर उनका नियन्त्रण अधिक सुदृढ़ हो जाता है और उसी के अनुरूप फिर शिक्षा प्रणाली का विकास किया जाता है। उदाहरण के लिए इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के लोगों ने अफ्रीका में अपना उपनिवेश इसलिए स्थापित किया क्योंकि वे गोरे होने के कारण काले अफ्रीकियों से खुद को अधिक श्रेष्ठ समझते थे और फिर उन्होंने अफ्रीका के अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी उपनिवेशों हेतु विशेष प्रकार की शिक्षा प्रणाली का विकास किया। इस कारण इन क्षेत्रों की शिक्षा प्रणाली में जातीय घटक की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। हमारे देश का भी यहाँ पर उदाहरण देना आप्रासंगिक नहीं है। भारत में ब्रिट्रिश उपनिवेश की स्थापना के बाद वहाँ के लोगों ने यहाँ पर अंग्रेजी भाषा का विकास किया और जन-साधारण को यह सन्देश दिया कि अंग्रेजी ही विकास की भाषा है और भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति से अंग्रेजी सभ्यता अधिक श्रेष्ठ है। उसके पश्चात् उन्होंने उसी आधार पर पाठ्यक्रम तथा शिक्षा प्रणाली का विकास किया जिसका फल यह हुआ कि भारत की निरन्तर अवनति होती गई। इस प्रकार स्पष्ट है कि जातीय कारक का शिक्षा प्रणाली के विकास में विशेष रूप से महत्त्व होता है। अतः तुलनात्मक शिक्षा के अध्ययन में जातीय कारक की उपेक्षा नहीं जा सकती है।


संदर्भ ग्रंथ सूची
  • यादव, सुकेश एवं सक्सेना, सविता (2010), तुलनात्मक शिक्षा, आगरा, साहित्य प्रकाशन।
  • शर्मा, आर0ए0 (2011), तुलनात्मक शिक्षा, मेरठ, आर0लाल बुक डिपो।
  • चौबे, सरयू प्रसाद (2007), तुलनात्मक शिक्षा, आगरा, अग्रवाल पब्लिकेशन।


Monday, August 17, 2020

Role of UNESCO in Education

  यूनेस्को (UNESCO)


 यूनेस्को (UNESCO) 'संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization)' का लघुरूप है।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) संयुक्त राष्ट्र का एक घटक निकाय है। इसका कार्य शिक्षा, प्रकृति तथा समाज विज्ञान, संस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतराष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना है। संयुक्त राष्ट्र की इस विशेष संस्था का गठन 16 नवम्बर 1945 को हुआ था। इसका उद्देश्य शिक्षा एवं संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय सहयोग से शांति एवं सुरक्षा की स्थापना करना है, ताकि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में वर्णित न्याय, कानून का राज, मानवाधिकार एवं मौलिक स्वतंत्रता हेतु वैश्विक सहमति बने|

यूनेस्को के 193 सदस्य देश हैं और 11 सहयोगी सदस्य देश और दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं। इसके कुछ सदस्य स्वतंत्र देश भी हैं। इसका मुख्यालय पेरिस (फ्रांस) में है। इसके ज्यादार क्षेत्रीय कार्यालय क्लस्टर के रूप में है, जिसके अंतर्गत तीन-चार देश आते हैं, इसके अलावा इसके राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं। यूनेस्को के 27 क्लस्टर कार्यालय और 21 राष्ट्रीय कार्यालय हैं।

यूनेस्को मुख्यतः शिक्षा, प्राकृतिक विज्ञान, सामाजिक एवं मानव विज्ञान, संस्कृति एवं सूचना व संचार के जरिये अपनी गतिविधियां संचालित करता है। वह साक्षरता बढ़ानेवाले कार्यक्रमों को प्रायोजित करता है और वैश्विक धरोहर की इमारतों और पार्कों के संरक्षण में भी सहयोग करता है। यूनेस्को की विरासत सूची में हमारे देश के कई ऐतिहासिक इमारत और पार्क शामिल हैं। दुनिया भर के 332 अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठनों के साथ यूनेस्को के संबंध हैं। भारत 1946 से यूनेस्को का सदस्य देश है।

यूनेस्को की भूमिका में लिखा है- "चूंकि युद्ध मनुष्यों के मस्तिष्कों में आरम्भ होते है, इसलिये शान्ति की रक्षा के साधन भी मनुष्य के मस्तिष्क से ही निर्मित किये जाने  चाहिये। न्याय तथा शान्ति बनाये रखने के लिये मानवता की शिक्षा तथा संस्कृति का व्यापक  प्रसार मानव की महत्ता के लिये आवश्यक है। यह एक ऐसा पवित्र कर्तव्य है, जो प्रत्येक राष्ट्र के आपसी सहयोग की भावना के आधार पर पूरा करना चाहिये। केवल सरकार के राजनीतिक तथा आर्थिक समझौतों तथा बन्धनों द्वारा स्थापित की हुई शान्ति को ऐसी शान्ति नहीं कहा जा सकता, जिसे संसार के सभी लोग एकमत होकर स्वीकार कर ले इस दृष्टि से यदि शान्ति को कभी असफल नहीं होना है तो उसे मानव जाति की बौद्धिक तथा नैतिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।"


यूनेस्को के कार्य
(Functions of UNESCO)


अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये यूनेस्को निम्नलिखित कार्य कर रहा है-

1. यूनेस्को इस बात का प्रयास कर रहा है कि विभिन्न राष्ट्रों के बीच फैला हुआ भय, स्नेह तथा अविश्वास दूर हो जाये, जिससे उनके आपसी सम्बन्ध अच्छे बन सकें।

2. यह संघ इस बात के लिये विशेष प्रयास कर रहा है कि संसार के सभी पिछड़े हुये देशों से निरक्षरता तथा अज्ञानता समाप्त हो जाये। 

3. यह संस्था प्रत्येक राष्ट्र के साहित्य, विज्ञान, संस्कृति तथा कला को अन्य राष्ट्रों के निकट पहुँचाने का प्रयास करती है, जिससे संसार के प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों के बौद्धिक विकास का ज्ञान हो जाये। 

4. यूनेस्को शोधकर्ताओं को आर्थिक सहायता देता है, जिससे अधिक से अधिक शोध कार्य हो सके।

5. यह संस्था शिक्षकों, विचारकों तथा वैज्ञानिकों को इस बात के अवसर प्रदान करती है कि वे परस्पर विचार-विमर्श कर सकें, जिससे रचनात्मक कलाओं का सृजन होता रहे।

6. यह विभाग पिछड़े हुये राष्ट्रों के स्कूलों को आर्थिक सहायता देता है। 

7. यूनेस्को विभिन्न राष्ट्रों की पाठ्यपुस्तकों में शोध तथा पाठ्यक्रमों के निर्माण हेतु परामर्श देता है एवं महत्त्वपूर्ण साहित्यिक ग्रन्थों का अनुवाद भी करता है।

8. यह विभाग अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य की प्रदर्शनियों का आयोजन करता है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित हो जाये।

यूनेस्को की शिक्षा में भूमिका 


यूनेस्को के कार्य शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति तथा जन-संचार के विविध एवं विस्तृत क्षेत्रों से सम्बन्धित होते हैं। यूनेस्को के माध्यम से लेखकों, कलाकारों, वैज्ञानिक तथा अन्य बुद्धिजीवियों के बीच राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का विकास होता है। शिक्षा का विकास, विज्ञान का मानव कल्याण के लिये प्रयोग तथा मानव-जाति की संस्कृति के संरक्षण आदि की व्यवस्था यूनेस्को के प्रयासों से सम्भव है। यूनेस्को ज्ञान को संचय करता है, उसकी अभिवृद्धि करता है तथा उसका प्रसार करता है। प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्रों में सचिवालय ने समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान आदि की वार्षिक ग्रन्थ-सूचियाँ प्रकाशित की हैं। ये ग्रन्थ-सूचियाँ विशेष अध्ययन एवं शोध के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध हुई हैं।


1- सभी तीन फोकस क्षेत्रों – पहुंच, गुणवत्‍ता एवं अंतर्वस्‍तु पर शिक्षा में भारत सरकार और यूनेस्‍को के बीच घनिष्‍ट एवं सतत सहयोग का इतिहास रहा है। भारत सबके लिए शिक्षा (ई.एफ.ए.) के लक्ष्‍यों, 2015 पश्‍चात वैश्विक शिक्षा एजेंडा तथा संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव की वैश्विक शिक्षा प्रथम पहल (जी.ई.एफ.आई.) की दिशा में यूनेस्‍को के प्रयासों का हिस्‍सा रहा है, जिसकी यूनेस्‍को अग्रणी कार्यान्‍वयन एजेंसी है। प्रारंभिक बाल्‍यावस्‍था देखरेख एवं शिक्षा, माध्‍यमिक शिक्षा, तकनीकी एवं व्‍यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण, उच्‍च शिक्षा आदि में भारत सरकार को नीतिगत एवं कार्यक्रम संबंधी सहायता के माध्‍यम से भारत में यूनेस्‍को द्वारा ई एफ ए के लक्ष्‍यों की प्राप्ति में सहयोग किया जाता है। इस समय भारत शिक्षकों पर ई एफ ए कार्य बल का अध्‍यक्ष है। यूनेस्‍को अपनी पीठ के कार्यक्रम के माध्‍यम से अनुसंधान की क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।

2- भारत में शिक्षा पर यूनेस्‍को के हाल के महत्‍वपूर्ण सम्‍मेलनों में कौशल एवं शिक्षा पर एशियाई शिखर बैठक शामिल है जिसमें संपूर्ण एशियाई क्षेत्र से शिक्षाविदों, मंत्रियों और नीतिनिर्माताओं ने भाग लिया। अफगानिस्‍तान इस्‍लामिक गणराज्‍य के माननीय शिक्षा मंत्री डा. फारूक वारडक ने शिखर बैठक का उद्घाटन किया। सार्क के शिक्षा मंत्रियों की दूसरी बैठक नई दिल्‍ली में 30-31 अक्‍टूबर, 2014 को हुई जिसमें सार्क शिक्षा विकास के लक्ष्‍यों पर प्रगति की समीक्षा की गई

3- संस्‍कृति और विरासत भारत में यूनेस्‍को की सबसे प्रमुख गतिविधियों में से एक है तथा इसमें यूनेस्‍को की विश्‍व विरासत सूची में शामिल भारत की सांस्‍कृतिक एवं सभ्‍यतागत विरासत की रक्षा करना शामिल है। वास्‍तव में, 1972 का विश्‍व विरासत अभिसमय और प्रख्‍यात भारतीय श्री किशोर राव की अध्‍यक्षता में विश्‍व विरासत केंद्र के माध्‍यम से इसका कार्यान्‍वयन यूनेस्‍को का एक फ्लैगशिप कार्यक्रम है तथा यह संस्‍कृति मंत्रालय तथा भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण के निकट सहयोग से काम करता है। संयुक्‍त राष्‍ट्र विश्‍व विरासत समिति के सदस्‍य के रूप में भारत इस समय अनेक सांस्‍कृतिक एवं प्राकृतिक परियोजनाओं के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय मान्‍यता प्राप्‍त करने का प्रयास कर रहा है।

4- संस्‍कृति एवं सूचना प्रौद्योगिकी के तहत, यूनेस्‍को डिजिटल सशक्तीकरण प्रतिष्‍ठान के साथ साझेदारी कर रहा है। ग्रामीण भारत के कारीगरों एवं कलाकारों के लिए ‘आई सी टी का प्रयोग’ पर हाल के सम्‍मेलन में कलाकार एवं ग्रामीण कारीगर, शिल्‍पी संगठन, ऑन लाइन शिल्‍प रिटेलर तथा कला एवं संस्‍कृति के क्षेत्र में आई सी टी का प्रयोग करके नवाचारी कार्य करने वाले संगठन एकत्र हुए। डिजिटल अर्काइव, ग्रामीण क्षेत्रों से लोक कंसल्‍ट का लाइव वेब कास्‍ट, विरासत का समुदाय आधारित प्रलेखन तथा परफार्मर का कापीराइट सहित विविध पहलों पर प्रस्‍तुतियां दी गई।

5- भारत में 25 मिलियन श्रोताओं के साथ विश्‍व रेडियो दिवस मनाने में यूनेस्‍को ‘सामुदायिक रेडियो एवं सामाजिक समावेशन’ पर एक राष्‍ट्रीय कार्यक्रम के लिए सहायता प्रदान कर रहा है। इसके तहत यूनेस्‍को द्वारा स्‍थापित ''सामुदायिक मीडिया पर दक्षिण एशिया नेटवर्क’’ के उद्घाटन तथा ''आंतरिक पलायन – सामुदायिक रेडियो के लिए मैनुअल’’ नामक यूनेस्‍को के प्रशिक्षण मैनुअल के समर्पण के साथ एक उद्घाटन सत्र शामिल होगा।

6- यह रेखांकित करना जरूरी है कि यूनेस्‍को में विज्ञान के लिए ‘एस’ को उस समय विशेष स्‍थान दिया गया जब संगठन स्‍थापित किया गया। द्वितीय विश्‍व युद्ध की समाप्ति के शीघ्र बाद संक्षेपाक्षर यूनेस्‍को में से विज्ञान के लिए ‘एस’ गायब हो गया। सर जूलियन, हक्‍सले के नेतृत्‍व में यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिक समूह ने सुनिश्चित किया कि नवंबर, 1945 में ‘एस’ जोड़ा गया जिससे इसके बाद संयुक्‍त राष्‍ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्‍कृतिक संगठन (यूनेस्‍को) का सृजन हुआ। पहली बार, किसी अंतर्सरकारी संगठन को विज्ञान में अंतर्राष्‍ट्रीय संबंधों के विकास की महती जिम्‍मेदारी सौंपी गई थी। इस क्षेत्र की गतिविधियों में निम्‍नलिखित शामिल हैं :


· विज्ञान में क्षमता का सुदृढ़ीकरण;
· विज्ञान नीति से संबंधित गतिविधियां;
· विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए सूचना प्रणालियां; और
· विज्ञान, समाज एवं विकास।

7- प्रमुख विशेषताओं में भारत के प्राकृतिक बायोस्फियर भंडार, महासागरीय संसाधन तथा जल शामिल हैं, जो प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में भारत - यूनेस्‍को सहयोग के फोकस क्षेत्र हैं। भारत 2015 में आई आई ओ ई की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए दूसरे अंतर्राष्‍ट्रीय हिंद महासागर अन्‍वेषण (आई आई ओ ई – 2) के लिए अंतर्सरकारी महासागर आयोग का समर्थन करने की योजना बना रहा है। भारत इस आयोग की कार्यपालक परिषद का सदस्‍य है। मानव एवं बायोस्फियर कार्यक्रम वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्‍यम से मानव जाति एवं उनके पर्यावरण के बीच संबंध को संवारने की दिशा में काम कर रहा है तथा भारत के नौ बायोस्फियर भंडार यूनेस्‍को के बायोस्फियर भंडार के विश्‍व नेटवर्क में शामिल हैं।


सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 


१-https://mea.gov.in/in-focus-article-hi.htm?25040/India+and+UNESCO+The+dynamics+of+a+historic+and+time+tested+friendship

२- https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B

३- शर्मा, आर0ए0 (2011), तुलनात्मक शिक्षा, मेरठ, आर0लाल बुक डिपो।

मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology)

मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology) मनोविज्ञान के सम्प्रदाय से अभिप्राय उन विचारधाराओं से है जिनके अनुसार मनोवैज्ञानिक मन, व्यवह...