Sunday, August 31, 2025

अध्यापक शिक्षा (Teacher Education): अर्थ (Meaning), प्रकृति (Nature), क्षेत्र (Scope) एवं आवश्यकता (Need)

अध्यापक  शिक्षा (Teacher Education)


अर्थ (Meaning)


राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE)  के अनुसार अध्यापक शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसमें पूर्व-प्राथमिक से उच्च शिक्षा स्तर तक पढ़ाने के लिए व्यक्तियों को शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे अध्यापक को अपने पेशे (Profession) की आवश्यकताओं और चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम बनाया जाता है।

अध्यापक शिक्षा में तीन मुख्य तत्व शामिल हैं:

  • शिक्षण कौशल (Teaching Skills)

  • शैक्षणिक ज्ञान (Academic Knowledge)

  • व्यावसायिक कौशल (Professional Skills)

अध्यापक शिक्षा = शिक्षण कौशल + शैक्षणिक ज्ञान + व्यावसायिक कौशल

शिक्षण कौशल विभिन्न तकनीकों, उपागमों और रणनीतियों के साथ शिक्षकों को योजना बनाने, निर्देशन देने, प्रेरित करने और मूल्यांकन करने में सहायक होता है।

शैक्षणिक ज्ञान में दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय विचार शामिल हैं, जो शिक्षकों को कक्षा में शिक्षण कौशल का अभ्यास करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।

व्यावसायिक कौशल शिक्षकों को अपने पेशे में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए उपागम, तकनीक और रणनीतियाँ प्रदान करता है।

अध्यापक शिक्षा, शिक्षण के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और व्यावसायिक दक्षताओं से व्यक्तियों को सुसज्जित करके उन्हें प्रभावी शिक्षक बनने के लिए तैयार करने की प्रक्रिया और कार्यक्रम है। इसमें शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण की औपचारिक और अनौपचारिक दोनों गतिविधियाँ शामिल हैं जो किसी व्यक्ति को शिक्षण पेशे के सदस्य के रूप में ज़िम्मेदारियाँ संभालने और पूर्व-प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक कक्षाओं में शिक्षण कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से निभाने के योग्य बनाती हैं।

गुड्स डिक्शनरी ऑफ़ एजुकेशन के अनुसार, अध्यापक शिक्षा में "वे सभी औपचारिक और अनौपचारिक गतिविधियाँ और अनुभव शामिल हैं जो किसी व्यक्ति को शैक्षिक पेशे के सदस्य के रूप में ज़िम्मेदारियाँ संभालने और उन ज़िम्मेदारियों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने के योग्य बनाते हैं।" यह केवल पढ़ाने का तरीका सिखाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शिक्षण पेशे के लिए उपयुक्त ज्ञान, कौशल और क्षमताओं का विकास भी शामिल है। अध्यापक शिक्षा में शिक्षण कौशल, शैक्षणिक सिद्धांत और व्यावसायिक कौशल शामिल हैं, जो इसे एक गतिशील और सतत प्रक्रिया बनाता है। यह शिक्षकों को न केवल शैक्षणिक रूप से, बल्कि व्यावसायिक और व्यावहारिक रूप से भी शिक्षा की उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।

अध्यापक शिक्षा को मोटे तौर पर सेवा-पूर्व शिक्षा (किसी व्यक्ति द्वारा शिक्षण शुरू करने से पहले प्रशिक्षण) और सेवाकालीन शिक्षा (सक्रिय शिक्षकों के लिए सतत व्यावसायिक विकास) में विभाजित किया जा सकता है। इसका लक्ष्य आत्मविश्वास का निर्माण करना, शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के ज्ञान को बढ़ाना, प्रभावी कक्षा प्रबंधन को बढ़ावा देना, छात्र मूल्यांकन तकनीकों में सुधार करना और शिक्षण-अधिगम के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है।

 अध्यापक शिक्षा महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षा की गुणवत्ता काफी हद तक शिक्षकों की योग्यता, प्रेरणा और दक्षता पर निर्भर करती है। प्रभावी अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम छात्रों के अधिगम परिणामों को सीधे प्रभावित करते हैं और शैक्षिक विकास एवं सामाजिक प्रगति के व्यापक लक्ष्यों का समर्थन करते हैं।

इस प्रकार, अध्यापक शिक्षा भावी पीढ़ियों को प्रभावी और जिम्मेदारी से शिक्षित करने के लिए शिक्षकों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे यह किसी भी शैक्षिक प्रणाली का एक अनिवार्य अंग बन जाती है


अध्यापक शिक्षा की प्रकृति (Nature of Teacher Education)


अध्यापक शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें सेवा-पूर्व और सेवाकालीन घटक शामिल होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय विश्वकोश (International Encyclopedia 1987) के अनुसार, अध्यापक शिक्षा को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है: सेवा-पूर्व, प्रवेश और सेवा-कालीन।
  • शिक्षण को कला और विज्ञान माना जाता है, इसलिए अध्यापक को विकसित और प्रशिक्षित कौशल के साथ अच्छा ज्ञान होना चाहिए।

  • यह प्रक्रिया अध्यापक के पूरे करियर के दौरान चलती रहती है, जिसमें प्रारंभिक प्रशिक्षण और निरंतर व्यावसायिक विकास शामिल हैं।

  • अध्यापक शिक्षा केवल कक्षा में पढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और सामुदायिक भूमिकाओं के लिए भी शिक्षकों को तैयार किया जाता है।

  • अध्यापक शिक्षा व्यापक है और इसमें सामुदायिक भागीदारी, गैर-औपचारिक शिक्षा, वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों और समाज की साक्षरता गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित होता है।

  • अध्यापक शिक्षा में शिक्षक को समाज के प्रति संवेदनशील और नैतिक मूल्यों से युक्त बनाने पर जोर दिया जाता है, ताकि वह बच्चों में सही सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य विकसित कर सके।

  • यह प्रक्रिया गतिशील है और शिक्षकों को बच्चों में प्रभावशाली व्यक्तित्व विकसित करने में सहायता करती है ताकि वे सामाजिक चुनौतियों का सामना कर सकें।

  • एक अच्छे अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम को उसके पाठ्यक्रम, संरचना, संगठन और संचालन के तरीके तथा उसकी प्रभावशीलता की सीमा पर ध्यान देना चाहिए।

इस तरह अध्यापक शिक्षा न केवल शिक्षक को एक कुशल शिक्षण पेशेवर बनाती है, बल्कि उसे सामाजिक, नैतिक और व्यावहारिक दायित्वों के लिए भी तैयार करती है, ताकि वह समाज के विकास में अपना योगदान दे सके।


अध्यापक शिक्षा का क्षेत्र (Scope of Teacher Education)


अध्यापक शिक्षा की क्षेत्र (Scope of Teacher Education) का अर्थ है शिक्षक बनने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और विकास की वह व्यापक क्षेत्र जो शिक्षकों को शिक्षण कार्य कुशलता से करने हेतु तैयार करता है। इसका विस्तार सिर्फ कक्षा में पढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शिक्षा के विभिन्न स्तरों, विषयों, और शिक्षण विधियों तक फैला होता है।

  1. शिक्षा के सभी स्तरों के लिए (Multiple Levels of Education): अध्यापक शिक्षा का कार्य प्री-प्राइमरी, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तरों के लिए शिक्षकों की तैयारियों का समन्वय करना है। हर स्तर पर शिक्षकों को विशेष कौशल और ज्ञान की आवश्यकता होती है।

  2. पूर्व-सेवा और सेवा-कालीन शिक्षा (Pre-service and In-service Education): अध्यापक शिक्षा का क्षेत्र पूर्व-सेवा (जो शिक्षक बनने से पहले होती है) और सेवा-कालीन (जो शिक्षक बनने के बाद लगातार होती रहती है) दोनों प्रकार की शिक्षा को समाहित करता है। इससे शिक्षक हमेशा नवीनतम विधियों और तकनीकों से परिचित रहते हैं।

  3. विषय और व्यवहारिक ज्ञान (Subject & Practical Knowledge): अध्यापक  शिक्षा शिक्षकों को उनके विषयों का गहन ज्ञान देने के साथ-साथ शैक्षणिक मनोविज्ञान, कक्षा प्रबंधन और शिक्षण कला में भी दक्ष बनाती है।

  4. सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण (Theortical & Practical Training)अध्यापक  शिक्षा में शिक्षक न केवल सिद्धांत सीखते हैं बल्कि शिक्षण का व्यावहारिक अनुभव भी प्राप्त करते हैं जैसे कि इंटर्नशिप और प्रैक्टिकल क्लासेज।

  5. समाज और तकनीकी परिप्रेक्ष्य (Social & Technical Perspective): यह शिक्षा समाज विज्ञान, शैक्षिक तकनीक, नैतिक शिक्षा और समसामयिक समस्याओं को समझने में भी शिक्षकों की मदद करती है।

  6. जीवन भर सीखना (Lifelong Learning): अध्यापक शिक्षा का विस्तार शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर सीखने और अपने कौशल को अपडेट करने की प्रक्रिया तक है।

इस प्रकार, अध्यापक शिक्षा की सीमा व्यापक और बहुआयामी है, जो शिक्षकों के सभी आवश्यक पहलुओं को कवर करती है ताकि वे अपने शैक्षणिक और व्यावसायिक दायित्वों को सर्वोत्तम रूप से निभा सकें। इसके बिना शिक्षण कार्य की गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं की जा सकती.


अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता (Need of Teacher Education)


 अध्यापक शिक्षा किसी भी राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह उन नीतियों और प्रक्रियाओं को संदर्भित करती है, जो भावी और वर्तमान शिक्षकों को आवश्यक ज्ञान, कौशल, व्यवहार और दृष्टिकोण प्रदान करती हैं, ताकि वे अपने कक्षा, स्कूल और समाज में प्रभावी ढंग से शिक्षा प्रदान कर सकें। 
  • अध्यापक शिक्षा, शिक्षकों को प्रभावी शैक्षणिक कौशल और ज्ञान से सुसज्जित करती है ताकि वे छात्रों को शामिल कर सकें और सार्थक शिक्षण परिणामों को सुगम बना सकें, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • यह शिक्षण में मानक और नैतिक आचरण स्थापित करती है, शिक्षण को एक सम्मानित पेशे के रूप में स्थापित करती है जिसके लिए निरंतर विकास की आवश्यकता होती है।
  • अध्यापक शिक्षा की जरूरत इसलिए महसूस की जाती है क्योंकि शिक्षकों का शैक्षणिक और व्यावसायिक स्तर देश के शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए बहुत आवश्यक होता है।
  • शिक्षकों को विभिन्न शिक्षण शैलियों और पृष्ठभूमियों के अनुरूप समावेशी शिक्षण रणनीतियों के साथ विविध कक्षाओं को संभालने के लिए तैयार करती है।
  • शिक्षकों को प्रौद्योगिकी में प्रगति, पाठ्यक्रम में बदलाव और नवीन शिक्षण पद्धतियों से अद्यतन रखती है, जिससे अनुकूलनशीलता और नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
  • निरंतर व्यावसायिक विकास की मानसिकता पैदा करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि शिक्षक अपने पूरे करियर में प्रभावी बने रहें।
  • शिक्षक छात्रों के चरित्र, मूल्यों और सामाजिक उत्तरदायित्व को आकार देने में मदद करते हैं, शिक्षा स्थिरता और नागरिक जागरूकता जैसे व्यापक सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती है।
  • अध्यापक शिक्षा शिक्षकों को इस बहुआयामी भूमिका के लिए तैयार करती है ताकि वे विभिन्न प्रकार के छात्रों की आवश्यकताओं को समझ सकें और प्रभावी शिक्षण कर सकें।
  • आज के युग में शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है। इसी कारण से शिक्षकों को न केवल विषय वस्तु ज्ञान बल्कि मनोविज्ञान, दर्शन, समाजशास्त्र, आधुनिक मीडिया, और नवीनतम शिक्षण तकनीकों की समझ भी होनी चाहिए। 
  • अध्यापक शिक्षा के बिना शिक्षक केवल विषय पढ़ाने तक सीमित रहेंगे, जबकि आज छात्रों को जीवन के लिए भी तैयार करने की जरूरत है। शिक्षक शिक्षा शिक्षकों को शैक्षणिक कौशल के साथ-साथ व्यावहारिक जीवन कौशल भी सिखाती है, जिससे वे छात्रों को समस्याओं को समझने, आलोचनात्मक सोच विकसित करने और सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भों में निर्णय लेने में मदद कर सकें। इसके बिना शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर नहीं हो सकती।
  • शिक्षकों को समय-समय पर नए शैक्षणिक शोध, तकनीकी नवाचार और शिक्षण विधियों से अवगत कराना आवश्यक होता है, ताकि वे अपनी शिक्षा प्रणाली को आधुनिकतम बनाए रख सकें। इससे शिक्षक अपने शिक्षण कौशल को निरंतर विकसित करते हैं और विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर पाते हैं।
  • अध्यापक शिक्षा न केवल शिक्षकों को पेशेवर बनाने का कार्य करती है, बल्कि यह उन्हें एक मार्गदर्शक, प्रेरक, एवं समाज के निर्माता के रूप में भी विकसित करती है। शिक्षक समाज के मूल्यों, संस्कारों, और नैतिकता को पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाने का माध्यम होते हैं, इसलिए उनकी शिक्षा का स्तर उच्च होना अनिवार्य है।
अध्यापक  शिक्षा की आवश्यकता इसीलिए है कि शिक्षकों को विषय विशेषज्ञता के साथ-साथ शिक्षण की नवीनतम तकनीकों, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोणों का ज्ञान हो, जिससे वे छात्रों के समग्र विकास में योगदान दे सकें। इससे शिक्षकों की प्रभावकारिता बढ़ती है और देश की शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता बेहतर होती है। यही कारण है कि शिक्षक शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और इसे निरंतर सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।

Wednesday, February 15, 2023

VERBAL INTELLIGENCE TEST (VIT)

VERBAL INTELLIGENCE TEST (VIT)

(1) उद्देश्य (Objective):-  शाब्दिक बुद्धि परीक्षण के माध्यम से प्रयोज्य के बुद्धि के स्तर का मापन करना। 

(2) परीक्षण परिचय (Introduction):- यह प्रश्नावली Dr. R.K. Ojha एवं Dr. K. Ray Chaudhary द्वारा निर्मित की गई है। इस प्रश्नावली में 112 प्रश्न हैं। यह  प्रश्नावली 13 से 20 वर्ष के छात्रों   पर प्रशासित की जाती है। इस प्रश्नावली में 8 भाग हैं। प्रत्येक भाग में प्रश्नों की संख्या अलग -अलग है। 

बुद्धि का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Intelligence)

बुद्धि शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसिस गाल्टन  ने 1885 में किया था।

बुद्धि को सामान्यतः सोचने-समझने और सीखने एवं निर्णय करने की शक्ति के रूप में देखा-समझा जाता है, परन्तु वास्तव में बुद्धि इससे कुछ अधिक होती है। बुद्धि के विषय में सर्वप्रथम भारतीय दार्शनिकों ने चिन्तन किया था। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों के अनुसार मनुष्य के अन्तःकरण (Conscience) के तीन अंग हैं- मन, बुद्धि और अहंकार। 

इनमें मन बाह्य इन्द्रियों (External Senses)  और बुद्धि के बीच संयोजक (Coordinator) का कार्य करता है। मन के संयोग से ही बाह्य इन्द्रियाँ क्रियाशील होती हैं और मन के संयोग (Combination) से ही बुद्धि क्रियाशील होती है। इनके अनुसार इन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान मन के द्वारा बुद्धि पर पहुँचता है। बुद्धि इनमें काट-छाँट करती है और उसे अहम् से जोड़ती है और अन्त में उसे सूक्ष्म शरीर पर पहुँचा देती है जहाँ वह संचित हो जाता है। और जब कभी प्राणी विशेष को इस ज्ञान की आवश्यकता होती है तो उसकी बुद्धि उसे सूक्ष्म शरीर से मन तक पहुँचा देती है और मन प्राणी को तदनुकूल क्रियाशील कर देता है। 

आधुनिक युग में बुद्धि के स्वरूप एवं कार्यों को समझने का प्रयास पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने शुरू किया। परन्तु  मनोविज्ञान की उत्पत्ति से लेकर आज तक बुद्धि का स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया है। समय-समय पर जो परिभाषाएँ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की जाती रहीं, वह इसके एक पक्ष या विशेषता या क्षमता से सम्बन्धित थीं। अत: आज तक उपलब्ध सामग्री के आधार पर बुद्धि का स्वरूप तथा इसकी प्रकृति क्या है?  इस पर अलग -अलग विद्वानों के अलग - अलग मत है।

परिभाषायें (Definitions)

पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक फ्रीमैन (Freeman) ने बुद्धि सम्बन्धी इन विभिन्न मतों को  चार वर्गों में विभाजित किया है-

1. सीखने की योग्यता (Ability of learning)-

भारतीय मनीषियों एवं ऋषियों ने 'ज्ञान' को जीवन का प्रमुख साधन एवं साध्य माना है। अतः जो व्यक्ति अधिक से अधिक ज्ञान ग्रहण कर लेता है; उसे समाज उच्च स्थान देता है। मनोवैज्ञानिकों ने अधिक से अधिक ज्ञान को ग्रहण करने वाली योग्यता को ही बुद्धि' माना है।

मनोवैज्ञानिक- डियरबोर्न (Dearborn), फ्रांसिस गाल्टन (Fransisi Galton)किंघम (Bukingham), बुडवर्थ (Woodworth) आदि। 

2. समस्या समाधान की योग्यता (Ability to solve the problem)-

प्रत्येक व्यक्ति को विकास के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना होता है। जो व्यक्ति इन समस्याओं पर जितनी शीघ्र विजय प्राप्त कर लेता है या उनसे छुटकारा प्राप्त कर लेता है, वही सबसे अधिक बुद्धिमान माना जाता है। अतः समस्या समाधान में प्रयोग की गयी योग्यता ही 'बुद्धि' है ।

मनोवैज्ञानिक- रायबर्न (Rayburn), गैरेट (Garret) आदि। 

3. अमूर्त चिन्तन की योग्यता (Ability of think abstractly)-

प्रत्येक व्यक्ति दो प्रकार से चिन्तन प्रक्रिया को अपनाता है। प्रथम मूर्त रूप से चिन्तन करके ज्ञान प्राप्त करना और द्वितीय-अमूर्त रूप से चिन्तन करके। अमूर्त रूप से तात्पर्य, जो चीजें हमारे समक्ष नहीं हैं उनका कल्पना तथा स्मृति के आधार पर ज्ञान प्राप्त करना। अत: अमूर्त चिन्तन में जो व्यक्ति अधिक सफल होता है, उसे बुद्धिमान कहा जाता है।

मनोवैज्ञानिक- टरमन (Terman), अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) आदि। 

4. पर्यावरण से सामंजस्य की योग्यता (Ability of adjustment with Environment)-

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में विकास करता है। विकास के समय सफलताएँ और असफलताएँ दोनों ही आती हैं। जो व्यक्ति दोनों में समाजीकरण एवं सामंजस्य करते हुए विकास करता है, या जो जितनी शीघ्र  पर्यावरण के साथ समायोजन कर लेता है। उसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता है ।

मनोवैज्ञानिक- क्रूज (Cruz), स्टर्न (Stern), पिन्टनर (Pintner) , थॉर्नडाइक (Thorndike) आदि। 

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को अनेक योग्यताओं का समुच्चय माना है-

वैशलर (Wechsler) के अनुसार– “बुद्धि व्यक्ति की उद्देश्यपूर्ण ढंग से कार्य करने, विवेकपूर्ण ढंग से चिन्तन करने और अपने पर्यावरण के साथ प्रभावशाली ढंग से सामंजस्य करने की सम्पूर्ण अथवा व्यापक योग्यता है” (Intelligence is the aggregate or global capacity of the individual to act purposefully, to think rationally and to deal effectively with his environment.)

स्टोडार्ड (Stoddard)  के अनुसार-  बुद्धि उन कार्यों को करने की योग्यता है जिनमें कठिनाई, जटिलता, सूक्ष्मता, मितव्यता, उद्देश्य प्राप्ति की क्षमता, सामाजिक मूल्य एवं मौलिकता की अपेक्षा है तथा विशिष्ट परिस्थितियों में ऐसे कार्य करने की क्षमता जिनमें ऊर्जा के केन्द्रीकरण एवं संवेगात्मक शक्तियों पर नियन्त्रण रखने की आवश्यकता होती है । (Intelligence is the ability to undertake activities that are characterized by difficulty, complexity, abstractness, economy, adaptiveness to a goal, social value and the emergence of originals, and to maintain such activities under conditions that demand a concentration of energy and resistance to emotional forces.)

कोलस्निक (Kolesnik) के अनुसार-  बुद्धि कोई एक प्रकार की शक्ति, क्षमता  एवं योग्यता नहीं है जो सब परिस्थितियों में समान रूप से कार्य करती है अपितु यह विभिन्न योग्यताओं का योग है। (Intelligence is not a single power or capacity or ability which operates equally well in all situations. It is rather a composite of several different abilities.)

बुद्धि की प्रकृति एवं विशेषतायें (Nature and Characteristics of  Intelligence)

  1. बुद्धि जन्मजात शक्ति है।
  2. बुद्धि के उचित विकास के लिए पर्यावरण का महत्व है।
  3. योग की क्रियाओं द्वारा जन्मजात बुद्धि में वृद्धि सम्भव है।
  4. बुद्धि सीखने की योग्यता है।
  5. बुद्धि पर्यावरण के साथ समायोजन करने की योग्यता है।
  6. बुद्धि अमूर्त्त चिंतन की योग्यता है।
  7. बुद्धि पूर्व अनुभवों एवं अर्जित ज्ञान से लाभ उठाने की योग्यता है।
  8. बुद्धि समस्या समाधान की योग्यता है।
  9. बुद्धि अनेक योग्यताओं का समुच्चय है।
  10. बुद्धि संबंधों को समझने की शक्ति है।
  11. बुद्धि चिंतन करने, तर्क करने और निर्णय करने की शक्ति है।
  12. बुद्धि का विकास जन्म से लेकर किशोरावस्था तक होता है।
  13. बुद्धि में आत्म निरीक्षण की शक्ति होती है । व्यक्ति द्वारा किये गए कर्मों और विचारों की आलोचना बुद्धि स्वयं करती है।

बुद्धि  के प्रकार (Types of Intelligence)

मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक (Thorndike) ने बुद्धि के तीन प्रकार बताए थे- गामक या यान्त्रिक बुद्धि  (Motor or Mechanical Intelligence), अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) और सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence)। गैरेट (Garette) ने थॉर्नडाइक की गामक अथवा यान्त्रिक बुद्धि को मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) की संज्ञा दी। वर्तमान में बुद्धि के ये ही तीन प्रकार माने जाते हैं-


(1) गामक या यान्त्रिक बुद्धि  (Motor or Mechanical Intelligence)/ मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence)—

वह बुद्धि जो मनुष्यों को वस्तुओं के स्वरूप को समझने एवं तदनुकूल क्रिया करने में सहयोग करती है, उसे गैरेट ने मूर्त बुद्धि (Concrete Intelligence) की संज्ञा दी। मूर्त बुद्धि इसलिए कि वह मूर्त वस्तुओं को समझने एवं मूर्त क्रियाओं को करने में सहायता करती है। इस प्रकार की बुद्धि को थॉर्नडाइक ने गत्यात्मक बुद्धि (Motor Intelligence) या यान्त्रिक बुद्धि (Mechanical Intelligence) कहा था। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है, वे वस्तुओं को तोड़ने-जोड़ने में विशेष रुचि लेते हैं। अन्य शारीरिक कार्य; जैसे-खेल-कूद एवं नृत्य आदि में भी उनकी रुचि होती है। ऐसे बच्चे आगे चलकर कुशल कर्मकार और इंजीनियर बनते हैं।

(2) अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence)- 

वह बुद्धि जो मनुष्यों को पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने में, विभिन्न तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने में, सोचने-समझने में और समस्याओं के समाधान खोजने में सहायता करती है, उसे थॉर्नडाइक ने अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) की संज्ञा दी। अमूर्त बुद्धि इसलिए क्योंकि वह अमूर्त चिन्तन-मनन और समस्या समाधान में सहायक होती है। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है, वे पुस्तक अध्ययन और चिन्तन-मनन में अधिक रुचि लेते हैं। ऐसे बच्चे आगे चलकर अच्छे वकील, डॉक्टर, अध्यापक, साहित्यकार (writer)  चित्रकार (painter) और दार्शनिक बनते हैं।

(3) सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence)- 

वह बुद्धि जो मनुष्यों को अपने समाज में समायोजन करने एवं सामाजिक कार्यों में भाग लेने में सहायता करती है, उसे थॉर्नडाइक ने सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) की संज्ञा दी है। जिन बच्चों में इस प्रकार की बुद्धि की अधिकता होती है वे परिवार के सदस्यों, समाज के लोगों और विद्यालय के सहपाठियों के साथ समायोजन करते हैं और सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं। ऐसे बच्चे आगे चलकर अच्छे व्यवसायी (Businessman), समाज सेवक  एवं राजनेता (Social worker and politician) बनते हैं।


बहुआयामी या बहुल बुद्धि (Multi-Dimensional or Multiple Intelligence)

बहुआयामी बुद्धि का शाब्दिक अर्थ होता है, एक ही व्यक्ति के अन्दर विभिन्न प्रकार के कौशलों (Skills) का विकास होना। अर्थात् उसमें सामाजिक समझ (Social Understanding), राजनैतिक समझ (Political Understanding), समस्या समाधान (Problem Solving) से सम्बन्धित समझ तथा नेतृत्व (Leadership) का गुण इत्यादि का होना। मनोवैज्ञानिकों ने बहुल बुद्धि के बारे में निम्न परिभाषाएँ दी हैं -
केली एवं थर्स्टन  ने बताया कि बुद्धि का निर्माण प्राथमिक मानसिक योग्यताओं के द्वारा होता है।

केली के अनुसार, - “बुद्धि का निर्माण इन योग्यताओं से होता है वाचिक योग्यता (Verbal Ability), गामक योग्यता (Motor Ability), सांख्यिक योग्यता (Statistical Ability), यान्त्रिक योग्यता (Mechanical Ability), सामाजिक योग्यता (Social Ability), संगीतात्मक योग्यता (Musical Ability), स्थानिक सम्बन्धों (spatial relations) के साथ उचित ढंग से व्यवहार करने की योग्यता, रुचि और शारीरिक योग्यता।”

थर्स्टन के अनुसार-  “बुद्धि इन प्राथमिक मानसिक योग्यताओं का समूह होता है प्रत्यक्षीकरण सम्बन्धी योग्यता (Perception related ability), तार्किक योग्यता (Reasoning ability) , सांख्यिकी योग्यता (Statistical Ability) समस्या समाधान की योग्यता (Problem Solving Ability), स्मृति सम्बन्धी योग्यता (Memory related ability)।” 

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने केली एवं थर्स्टन के बुद्धि सिद्धान्तों की आलोचना की, किन्तु अधिकतर मनोवैज्ञानिकों ने यह भी माना कि बुद्धि का बहुआयामी होना निश्चित रूप से सम्भव है। बहुआयामी बुद्धि होने के कारण ही कुछ लोग अनेक प्रकार के कौशलों में निपुण होते हैं।


संवेगात्मक बुद्धि (Emotional Intelligence)

सांवेगिक बुद्धि जैसे पद का प्रतिपादन  सेलोवी तथा मेयर (Salovey & Mayer, 1970) ने किया, किन्तु इसकी वैज्ञानिक एवं सैद्धान्तिक व्याख्या गोलमैन (Goleman, 1998) द्वारा दी गई है।

गोलमैन ने इस सम्प्रत्यय (Concept) की व्याख्या अपनी बहुचर्चित पुस्तक 'Emotional Intelligence: Why It Can Matter More than IQ में की है जिसमें उन्होंने स्पष्टत: यह दावा किया कि व्यक्ति को जिन्दगी में जो सफलताएँ मिलती हैं, उनका 20% ही बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient) के कारण होता है और शेष 80% सफलता का कारण सांवेगिक बुद्धि (Emotional Intelligence or EQ) होता है।

गोलमैन (Goleman, 1994) ने सांवेगिक बुद्धि को परिभाषित करते हुए यह कहा है कि यह दूसरों एवं स्वयं के भावों (Emotions) को पहचानने की क्षमता तथा अपने आपको अभिप्रेरित (Motivate) करने एवं  अपने सम्बन्धों में संवेग को प्रबन्धित करने की क्षमता है। 
गोलमैन ने अपने सिद्धान्त में यह भी स्पष्ट किया है कि ये सांवेगिक क्षमताएँ व्यक्ति को अपनी जिन्दगी के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सफलता प्रदान करने में काफी सहायता करती हैं, इसलिए गोलमैन ने अपने सांवेगिक बुद्धि के इस मॉडल को 'निष्पादन का सिद्धान्त'(principle of performance) कहकर पुकारना पसन्द किया है।

बुद्धि के सिद्धान्त (Theories of Intelligence)

1. एक कारक या एक सत्तात्मक सिद्धान्त (Unitary or Monarchic Theory)

2. द्विकारक सिद्धान्त (Two factor or Bi-factor Theory)

3. त्रिकारक सिद्धान्त (Three Factor Theory)

4. बहुकारक सिद्धान्त (Multi-factor Theory)

5. समुह कारक सिद्धान्त (Group factor Theory)

6. त्रि-आयाम सिद्धान्त या बुद्धि  सरंचना प्रतिमान (Three Dimensional Theory or S.I. Model)

7. बहु बुद्धि सिद्धान्त (Multiple Intelligence Theory)

8. प्रतिदर्श सिद्धान्त (Sampling or Oligarchic Theory)



बुद्धि परीक्षणों के प्रकार (Types of Intelligence Tests)

बुद्धि  परीक्षण का जन्मदाता अल्फ्रेड बिने को माना जाता है बिने ने 1905 में सर्वप्रथम बुद्धि के मापन के लिए एक परीक्षण तैयार किया था। 

बुद्धि परीक्षणों को दो आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है-

1. प्रयोज्यों  या परीक्षार्थियों की संख्या (Number of Subjects or Examinees) के आधार पर। 

2. परीक्षणों के प्रस्तुतीकरण के स्वरूप (Forms of Presentation) के आधार पर। 

1. परीक्षार्थियों की संख्या के आधार पर बुद्धि परीक्षणों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है - 

(i) व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण (Individual Intelligence Test)।

(ii) सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group Intelligence Tests) ।

2. परीक्षणों के प्रस्तुतीकरण के स्वरूप के आधार पर भी उन्हें दो वर्गों में विभाजित किया जाता है - 

(i) शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Verbal Intelligence Tests) ।

(ii) अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Non-Verbal Intelligence Tests)। 













व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण (Individual Intelligence Test)-

ये वे  बुद्धि परीक्षण हैं जो एक समय मे केवल एक ही  प्रयोज्य या परीक्षार्थी पर प्रशासित किये जाते हैं। इन परीक्षणों के प्रशासन में सर्वप्रथम परीक्षणकर्ता परीक्षार्थी के साथ संबंध स्थापित करता है और इस संबंधित व्यवहार से उसे सामान्य मानसिक स्थिति में लाता है , उसे किसी भी प्रकार के भय व चिंता से मुक्त करता है। इसके बाद उसे परीक्षण संबंधित निर्देश देता है  और अंत मे उसे परीक्षण में निहित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहता है।

मुख्य परीक्षण-  स्टेनफोर्ड बिने बुद्धि परीक्षण (Stanford Binet Test of Intelligence), वैशलर बुद्धि परीक्षण (Wechsler Intelligence Scale), मैरिल एवं पामर बुद्धि परीक्षण (Merril and Palmer Intelligence Scale), पिन्टर-पैटरसन परफोरमेन्स स्केल (Pinter- Paterson Performance Scale), मैरिल-पामर ब्लाक बिल्डिंग परीक्षण (Merril Palmer Block Building Test) और पोर्टियस भूल भुलैया परीक्षण (Porteus Maze Test) ।


सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group Intelligence Tests)—

ये वे बुद्धि परीक्षण हैं जो एक समय में अनेक (सैंकड़ों-हजारों) प्रयोज्यों (व्यक्तियों) पर एक साथ प्रशासित किए जा सकते हैं। इन परीक्षणों के प्रशासन में परीक्षणकर्ता को प्रयोज्य से किसी प्रकार के सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वयं या अन्य साथियों के माध्यम से बुद्धि परीक्षण को वितरित करा देता है। परीक्षण सम्बनधी निर्देश परीक्षण पर ही मुद्रित होते हैं या उन्हें अलग से मुद्रित कराकर परीक्षण के साथ वितरित करा दिया जाता है ।  

मुख्य परीक्षण - आर्मी एल्फा परीक्षण (Army Alpha Test), बर्ट सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Burt's Group Intelligence Test), जलोटा बुद्धि परीक्षण (Jalota's Intelligence Test), रेविन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स (Raven's Progressive Matrix), कैटिल कल्चर फ्री परीक्षण (Cattell's Culture Free Test) और आर्मी बीटा परीक्षण (Army Beta Test)।

शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Verbal Intelligence Tests)-

  •  ये वे बुद्धि परीक्षण होते हैं जिनमें प्रश्नों एवं समस्याओं को शब्दों अर्थात् भाषा  के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है ।
  •  प्रयोज्यों (व्यक्तियों) को इनका उत्तर भाषा के माध्यम से ही देना होता है। 
  • इनका निर्माण एवं मानकीकरण करना सरल होता है ।

  • इनके निर्माण में खर्च कम  होता है ।
  • ये छोटे बच्चों की बुद्धि का मापन करने के लिए उपयुक्त नहीं होते। 

    • इनकी वैधता एवं विश्वसनीयता अधिक होती है। 
    • इसके  द्वारा मन्द बुद्धि बच्चों की बुद्धि का मापन सही ढंग से नही किया जा सकता।

    •  इन्हें व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में प्रयोग किया जा सकता है। 
    •  इनका प्रशासन सरलता से किया जा सकता है। 

    •  इनका अंकन वस्तुनिष्ठ होता है।

    • केवल शिक्षित व्यक्तियों पर ही प्रशासित किए जा सकते हैं। 


    अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Non-Verbal Intelligence Tests)-  

    • ये वे बुद्धि परीक्षण हैं जिनमें प्रश्नों एवं समस्याओं को भाषा में प्रस्तुत न करके बड़े आकार  की वस्तुओं और चित्रों आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है 
    • प्रयोज्यों (व्यक्तियों) को इनका उत्तर यथा क्रियाओं द्वारा देना होता है। ये परीक्षण केवल पेपर-पेन्सिल परीक्षण (Paper - Pencil Tests) के रूप में भी हो सकते हैं, केवल निष्पादन परीक्षण (Performance Tests) के रूप में भी हो सकते हैं और इन दोनों के संयुक्त रूप में भी हो सकते हैं। 
    • कागज-पेन्सिल परीक्षणों में वस्तुगत या चित्रात्मक समस्याएँ मुद्रित रूप में प्रस्तुत की जाती हैं और प्रयोज्य उनका हल पेन्सिल द्वारा करते हैं और निष्पादन परीक्षणों में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को प्रस्तुत कर उन्हें व्यवस्थित कराया जाता है और प्रयोज्य उन्हें यथा क्रम अथवा स्वरूप में व्यवस्थित करते हैं।

    • इनका निर्माण एवं मानकीकरण करना कठिन  होता है ।
    • इनका प्रयोग किसी पर भी किया जा सकता है ।

    • ये छोटे बच्चों एवं  मन्द बुद्धि बच्चों की बुद्धि के  मापन में विशेष उपयोगी होते हैं  ।
    • ये  अधिक वैध एवं विश्वसनीय होते  हैं । 

    • इनका प्रशासन  शिक्षित  एवं अशिक्षित व्यक्तियों  दोनों पर किया जाता है ।
    • इन्हें व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में प्रयोग किया जा सकता है। 

    (3) सामग्री (Tools):- Dr. R.K. Ojha एवं Dr. K. Ray Chaudhary द्वारा निर्मित प्रश्नावली, पेपर, पेंसिल, स्टॉपवॉच आदि।

    (4) प्रतिदर्श/प्रयोज्य परिचय (Sample):- 

    प्रयोज्य का नाम:-     ABC

    पिता का नाम :-.      XYZ

    लिंग : ................................

    आयु: .............................

    शैक्षिक योग्यता : ..............,...............

    संस्था का नाम: ..........................

    (5) नियंत्रण (Control) : -

    • परीक्षण के दौरान कमरे में प्रकाश की उचित व्यवस्था की गई।
    • कमरे का वातावरण शांत रखा गया।
    • प्रयोज्य के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का उचित प्रकार से ध्यान रखा गया।
    • बैठने की उचित व्यवस्था की गई।
    • ...............


    (6) निर्देश (Instructions):- प्रयोज्य को उचित स्थान पर बैठाने के पश्चात् उसके साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार स्थापित किया गया। उसके बाद परीक्षण से सम्बन्धित निर्देश दिए गए-

    1. यह एक साधारण बुद्धि परीक्षण है जिसके द्वारा मानसिक योग्यताओं को ज्ञात किया जाता है।   

    2. इस परीक्षण के पूरा करने हेतु आपको केवल 40 मिनट दिए जाएँगे। पूरे परीक्षण में आठ भाग है।

    3. प्रत्येक भाग के लिए निर्धारित समय एवं निर्देश उप-परीक्षण के ऊपर दे दिए गए हैं। आपसे जब यह कहा जाए कि कार्य प्रारम्भ कीजिए तो शीघ्रता से कार्य पूरा करने का प्रयास कीजिये।

    4. प्रारम्भ करने की आज्ञा मिलने से पूर्व किसी भी कार्य को न करिए। किसी भी कथन को, जिसे आप कठिन समझते हैं, उस पर समय व्यतीत मत करिएगा बल्कि अगले कथन का उत्तर दीजिए।

    5. आपको निर्धारित समय में ही प्रत्येक उप-परीक्षण के उत्तर देने हैं। यदि समय से पूर्व ही उप-परीक्षण समाप्त हो जाता है तो भी आगे का कार्य नहीं करना है। जब आपसे कहा जाए कि दूसरे परीक्षण का कार्य प्रारम्भ कीजिए तो पहले परीक्षण को छोड़कर आदेश का पालन कीजिए। 

    6. ध्यान रखिए कि आपको किसी भी  कथन का उत्तर किसी दूसरे से नहीं पूछना है।

    (7) परीक्षण प्रक्रिया (Test Procedure):-

    प्रयोज्य को निर्देश देने के बाद परीक्षण प्रक्रिया आरंभ की गई। इस दौरान प्रयोगकर्ता द्वारा प्रयोज्य का निरीक्षण किया गया। प्रयोज्य इस प्रक्रिया पहले घबराया। फिर प्रयोगकर्ता पुनः उसे निर्देश दिए गए और उसे सामान्य मानसिक स्थिति में लाया गया। परीक्षण के समय प्रत्येक भाग का समय समाप्त होने के बाद प्रयोज्य को रोक दिया गया और दूसरे भाग से आठवें भाग तक ऐसे ही उसका निरीक्षण किया गया

    (8) प्रदत संग्रह एवं परिणाम (Data Collection & Result):-

    शाब्दिक बुद्धि परीक्षण द्वारा प्रयोज्य का परीक्षण लिया गया। इस परीक्षण में आठ भाग हैं प्रत्येक भाग से प्रयोज्य द्वारा दिए गए उत्तरों की गणना की गयी। प्रत्येक सही उत्तर के लिए 1 अंक तथा गलत उत्तर के लिए 0 अंक दिया गया। 

    फलांकन तालिका


    (9) व्याख्या एवं निष्कर्ष (Discussion and Conclusion):- 

    इस परीक्षण प्रक्रिया में प्रयोज्य पर  Dr. R.K. Ojha एवं Dr. K. Ray Chaudhary द्वारा निर्मित शाब्दिक बुद्धि  उपकरण प्रयोज्य पर प्रशासित किया गया। जिसमे प्रयोज्य ने अलग -अलग भागों को मिलाकर कुल ............................ प्राप्तांक प्राप्त किया। इस प्रकार प्रयोज्य का बुद्धि स्तर .............................  प्राप्त हुआ। इसका प्रतिशतांक ................................... है 

    (10) संदर्भ ग्रंथ सूची (Reference):-

    QUESTIONNAIRE

    https://drive.google.com/drive/folders/1iMEBqKhtZ1nQl7rBz0PZocD9m_hKSzdL?usp=share_link

    Monday, September 12, 2022

    अभिक्षमता का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Aptitude)

     अभिक्षमता का अर्थ  (Meaning of Aptitude): -

    प्रत्येक व्यक्ति में कुछ ऐसी जन्मजात योग्यताएं, क्षमताएँ अथवा प्रतिभाएँ होती है जो उसे भविष्य में किसी क्षेत्र विशेष में सफलता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती हैं। इन योग्यताओं को जैसे-जैसे अनुकूल वातावरण मिलता है इनमें निखार आने लगता है। और यदि व्यक्ति को इन विशेष योग्यताओं एवं क्षमताओं में शिक्षित किया जाए या प्रशिक्षण दिया जाए तो उनमें और अधिक निखार आता है और व्यक्ति क्षेत्र विशेष में और अधिक सफलता प्राप्त करता है। इस प्रकार की जन्मजात एवं भविष्योन्मुखी योग्यताओं, क्षमताओं अथवा प्रतिभाओं को व्यक्ति की अभिक्षमता कहते हैं। 

    परिभाषा (Definitions):-

    ट्रेक्सलर के अनुसार - अभिक्षमता व्यक्ति की वह स्थिति है, एक गुण अथवा गुणों का समुच्चय है जो उस संभव सीमा को  इंगित करता है जहाँ तक वह व्यक्ति उपयुक्त प्रशिक्षण द्वारा किसी ज्ञान, कुशलता या ज्ञान के समूह को प्राप्त कर सकता है।(Aptitude is a condition, a quality or set of qualities in an individual which is indicative of the probable extent to which he will be able to acquire under suitable training some knowledge, skill, or composite of knowledge.)


    टकमैन के अनुसार- क्षमताओं एवं अन्य गुणों चाहे जन्मजात हों चाहे अर्जित हो, का एक इस तरह का संयोग जिससे व्यक्ति में सीखने की क्षमता अथवा किसी क्षेत्र विशेष में दक्षता विकसित करने की क्षमता का पता चलता है, अभिक्षमता कहलाता है। (An aptitude is defined as "a combination of abilities and other characteristics whether native or aquired, known or believed to be indicative of an individual's ability to learn or to develop proficiency in some particular area. -Tuckman)


    अभिक्षमता किसी व्यक्ति की यह योग्यता है जिस पर उसकी किसी क्षेत्र विशेष में सफलता प्राप्त करना निर्भर करती है। जैसे यदि किसी व्यक्ति में संगीत की अभिक्षमता है तो वह थोड़ा ही प्रशिक्षण प्राप्त करके अच्छा संगीतकार बन सकता है। लता मंगेशकर इसका ज्वलंत उदाहरण है।


    अभिक्षमता की विशेषतायें (Characteristics of Aptitude):-

     1. अभिक्षमता दक्षता प्राप्त करने की योग्यता है (Aptitude is the capability to acquire proficiency.)

    2. अभिक्षमताएं जन्मजात होती हैं। (Aptitudes are innate.)

    3. अभिक्षमताएं वातावरण से प्रभावित होती हैं।(Aptitude are influenced by environment.)

    4. अभिक्षमताएं स्थाई होती हैं।(Aptitudes are constant.)

    5. अभिक्षमताएं अनेक मानसिक गुणों का संयोग है। (Aptitudes are pluralistic.)


    TO BE CONTINUE ...........




    Sunday, September 11, 2022

    परीक्षण (Test): अर्थ, परिभाषायें एवं प्रकार (Meaning, definitions and Types)


    अर्थ (Meaning):-

    मूल्यांकन की प्रविधियों के निर्माण के लिए मनोवैज्ञानिक आधार की आवश्यकता होती है इसलिए इन्हें मनोवैज्ञानिक परीक्षण कहा जाता है। इन परीक्षणों के निर्माण में कुछ विशेष बातों पर ध्यान दिया जाता है ताकि व्यक्ति की विभिन्न योग्यताओं का मापन बिल्कुल सही ढंग से हो और उस पर विश्वास किया जा सके।
     "परीक्षण एक व्यक्ति या समूह के कौशल, ज्ञान, क्षमताओं या प्रवृति का मूल्यांकन करने का साधन है।" 

    परीक्षण की परिभाषाएं :-

    "मनोवैज्ञानिक परीक्षण मानकीकृत एवं नियंत्रित स्थितियों का वह विन्यास है जो व्यक्ति से अनुक्रिया प्राप्त करने हेतु उसके सम्मुख पेश किया जाता है जिससे वह पर्यावरण की माँगों के अनुकूल प्रतिनिधित्व व्यवहार का चयन कर सके आज हम बहुधा उन सभी परिस्थितियों एवं अवसरों के विन्यास को मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के अन्तर्गत सम्मिलित कर लेते हैं जो किसी भी प्रकार की क्रिया चाहे उसका सम्बन्ध कार्य या निष्पादन से हो या नहीं करने की विशेष पद्धति का प्रतिपादन करती है ।"

    क्रोनबेक के अनुसार, "दों या अधिक व्यक्तियों के व्यवहार का तुलनात्मक अध्ययन करने की व्यवस्थित प्रक्रिया को परीक्षण कहते हैं।"

    फ्रीमेन के शब्दों में, "मनोवैज्ञानिक परीक्षण वह मानकीकृत यन्त्र है जो समस्त व्यक्तित्व के एक पक्ष या अधिक पहलुओं का मापन शाब्दिक या अशाब्दिक अनुक्रियाओं या अन्य किसी प्रकार के व्यवहार के माध्यम से करता है।"

    ऐनेस्टेसी की शब्दों में, "मनोवैज्ञानिक परीक्षण आवश्यक रूप से व्यवहार के प्रतिदर्श का एक वस्तुनिष्ठ एवं मानकीकृत मापन है।"

    मन के शब्दों में, "परीक्षण वह परीक्षा है जो किसी समूह से सम्बन्धित व्यक्ति की बुद्धि, व्यक्तित्व, अभिक्षमता एवं उपलब्धि को व्यक्त करती है."

    टाइलर के अनुसार, "परीक्षण वह मानकीकृत परिस्थिति है जिससे व्यक्ति का प्रतिदर्श व्यवहार निर्धारित होता है।"

    परीक्षण के प्रकार (Types Of Test)



    (I) प्रशासन के आधार पर (On the Basis of Administration):-

    1. व्यक्तिगत परीक्षण (Individual Test):-

    व्यक्तिगत परीक्षण में एक समय में केवल एक ही व्यक्ति का अध्ययन किया जाता है। इनमें परीक्षक को परीक्षार्थी के साथ आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक होता है। अतः इसके लिये एक कुशल और प्रशिक्षित परीक्षक की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत परीक्षणों में शाब्दिक के साथ-साथ क्रियात्मक पद भी होते हैं, जैसे- भाटिया बैटरी बुद्धि परीक्षण। इन परीक्षणों से प्राप्त परिणाम अधिक विश्वसनीय होते हैं, क्योंकि परीक्षण की सम्पूर्ण परिस्थिति पर परीक्षक का पूरा नियन्त्रण होता है। बिने साइमन बुद्धि परीक्षण व्यक्तिगत परीक्षण का एक अच्छा उदाहरण है। 

    2. सामूहिक परीक्षण (Group Test):-

    सामूहिक परीक्षण उस परीक्षण को कहा जाता है जिसका प्रशासन एक समय में सामान्यतः एक से अधिक व्यक्तियों पर या व्यक्ति-समूह पर एक ही साथ किया जाता है। ऐसे परीक्षण के प्रशासन में परीक्षणकर्ता या परीक्षक का बहुत प्रशिक्षित या ज्ञानी होना आवश्यक नहीं है। कम प्रशिक्षित परीक्षक भी परीक्षण प्रशासन की अच्छी भूमिका निभा लेते हैं। बुद्धि मापन हेतु निर्मित श्याम स्वरूप जलोटा का मानसिक बुद्धि परीक्षण, एम0सी0 जोशी का मानसिक बुद्धि परीक्षण सामूहिक परीक्षण का अच्छा उदाहरण है।

    (II) मानकीकरण के आधार पर (On the Basis of Standardization):-

    1. मानकीकृत परीक्षण (Standardized Test):-

    ऐसे परीक्षण जो शिक्षाशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों, अनुसंधान संस्थाओं द्वारा अनेक विशेषज्ञों की सहायता से बनाए जाते हैं तथा एक विशाल समुह पर प्रशासित करके विश्वसनीयता, वैधता एवं मानको का निर्धारण किया जाता है, मानकीकृत परीक्षण कहलाते है। वास्तव में परीक्षण के मानकीकरण में केवल वैधता, विश्वसनीयता एवं मानकों को ज्ञात करना ही पर्याप्त नहीं है। इसके साथ-साथ परीक्षण प्रशासन की विधि तथा फलांकन प्रक्रिया को निश्चित करना भी आवश्यक होता है। इस सम्बन्ध में एनेस्टेसी ने लिखा है- "मानकीकरण का तात्पर्य परीक्षण की प्रशासन एवं फलांकन विधि में एकरूपता से है।

    2. अध्यापक निर्मित परीक्षण (Teachers Made Test):-

    अध्यापक निर्मित परीक्षण वे हैं जिन्हें अध्यापक अपने प्रयोग के लिये समय-समय पर बनाते हैं। इनका प्रयोग केवल स्कूल में ही किया जा सकता है, स्कूल के बाहर नहीं। कभी-कभी कुछ अध्यापक मिलकर भी इन परीक्षणों की रचना करते हैं। मानकीकृत परीक्षणों की भाँति इन परीक्षणों में भी वस्तुनिष्ठ पदों का प्रयोग किया जाता है। किसी विशेष परिस्थिति में इनका प्रकाशन भी किया जाता है, लेकिन फिर भी अध्यापक निर्मित परीक्षण मानकीकृत नहीं हो पाते, क्योंकि वे मानकीकृत परीक्षणों के समान वैध तथा विश्वसनीय नहीं होते। इसीलिये स्कूल के बाहर इनकी उपयोगिता नहीं होती। अध्यापक निर्मित परीक्षणों में निबन्धात्मक वस्तुनिष्ठ एवं निदानात्मक परीक्षणों को सम्मिलित किया जाता है।
    अध्यापक निर्मित उपलब्धि परीक्षण तीन प्रकार के होते हैं -
    1. निबन्धात्मक परीक्षण
    2. वस्तुनिष्ठ परीक्षण
    3. निदानात्मक परीक्षण

    1. निबन्धात्मक परीक्षण (Essay test):-

    इस प्रकार के परीक्षण में परीक्षार्थी किसी प्रश्न का उत्तर एक निबन्ध के रूप में देता है जिसके द्वारा विद्यार्थी के विषय सम्बन्धी ज्ञान के साथ-साथ विचारों को व्यक्त करने की शक्ति, लेखन शैली, भाषा आदि का भी मूल्यांकन हो जाता है।

    2. वस्तुनिष्ठ परीक्षण (Objective Test):-

    अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में विषय से सम्बन्धित छोटे, सरल एवं स्पष्ट प्रश्न पूछे जाते हैं जिनका उत्तर निश्चित होता है। यह उत्तर विद्यार्थी को निश्चित प्रकार से संक्षेप में देना होता है। जैसे परिवार शिक्षा का अनौपचारिक साधन है- हाँ/नहीं। इस प्रकार के परीक्षण में फलांकन सरल एवं वस्तुनिष्ठ होता है। परीक्षक के निर्णय या राय का कोई प्रभाव विद्यार्थी के अंकों पर नहीं पड़ता तथा विभिन्न परीक्षकों द्वारा विभिन्न समय में उत्तर-पत्रक का मूल्यांकन करने पर एक-से ही अंक प्राप्त होते हैं।

    3. निदानात्मक परीक्षण (Diagnostic Test):-

    विभिन्न उपलब्धि परीक्षण एक या अधिक विषयों में विद्यार्थी द्वारा अर्जित ज्ञान का मापन करते हैं, परन्तु निदानात्मक परीक्षण उस ज्ञान प्राप्ति में आ रही बाधाओं को जानने का प्रयास करते हैं। निदानात्मक परीक्षण से प्राप्त सूचनाओं के विस्तृत विश्लेषण से छात्र की कमजोरियों का पता चल जाता है। इस आधार पर शिक्षक अपनी शिक्षण विधि में और विद्यार्थी की सीखने की प्रक्रिया में आवश्यक परिवर्तन करके उपचारात्मक शिक्षण दे सकता है।

    (III) फलांकन के आधार पर (On the Basis of Scoring) 

    1. वस्तुनिष्ठ परीक्षण (Objective Test)- 
    स्तुनिष्ठ परीक्षण वैसे परीक्षण को कहा जाता है जिनके उत्तरों को अंक देने की विधि अर्थात् प्राप्तांक-लेखन विधि स्पष्ट होती है और वह परीक्षकों के आत्मगत निर्णय से बिल्कुल ही प्रभावित नहीं होती है। ऐसे परीक्षणों के एकांशों के उत्तर का अंकन में सभी परीक्षक एक ही निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। बहु विकल्पी एकांश, सही गलत एकांश तथा मिलान एकांश वाले परीक्षण वस्तुनिष्ठ परीक्षण होते हैं।
    2. आत्मनिष्ठ परीक्षण (Subjective)-
     
    आत्मनिष्ठ परीक्षण वैसे परीक्षण को कहा है जिनके एकांशों के उत्तरों को अंक देने की विधि में काफी भिन्नता पाई जाती है। निबन्धात्मक परीक्षा जिसका प्रयोग शिक्षक कक्षा के उपलब्धियों की जाँच करने में अक्सर करते हैं आत्मनिष्ठ परीक्षण का अच्छा उदाहरण है।

    (IV) रूप के आधार पर (One the Basis of Form):-

    1. गति परीक्षण (Speed Test):-

    गति परीक्षणों में प्रश्न सामान्यतः कम कठिनाई के होते हैं जिन्हें परीक्षार्थी को शीघ्रातिशीघ्र हल करना होता है। इनमें प्रश्नों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई भी परीक्षार्थी किसी निश्चित अवधि में इन्हें हल नहीं कर सकता। इस प्रकार किसी निश्चित समय में उसने कितनी समस्याएँ हल कीं, इस आधार पर गति का मापन हो जाता है। ओझा द्वारा निर्मित लिपिक गति एवं परिशुद्धता परीक्षण एवं सिनेसोटा लिपिक अभियोग्यता परीक्षण गति परीक्षण का अच्छा उदाहरण है।

    2. शक्ति परीक्षण (Power Test):-

    इस प्रकार के परीक्षणों में प्रारम्भ कम कठिनाई स्तर के प्रश्नों से शुरू होकर क्रमानुसार अत्यन्त कठिनाई स्तर के प्रश्न रहते है अर्थात् प्रश्नों की कठिनाई आरोही क्रम में बढ़ती जाती है। कोई परीक्षार्थी सभी प्रश्नों को हल नहीं कर पाता। इस प्रकार शक्ति परीक्षण के माध्यम से परीक्षार्थी की किसी विषय या क्षेत्र में योग्यता की सीमा का मापन किया जाता है।  

    व्यावहारिक दृष्टि से गति और शक्ति परीक्षणों में केवल अंशों का अन्तर होता है। अधिकांश परीक्षणों में शक्ति और गति दोनों को विभिन्न अनुपात में सम्बन्धित किया जाता है।


    Wednesday, September 7, 2022

    निष्पत्ति / उपलब्धि परीक्षण (Achievement Test)

     निष्पत्ति / उपलब्धि परीक्षण (Achievement Test)

     अर्थ (Meaning):-

    विद्यालय में विभिन्न कक्षाओं में विद्यार्थी साल भर विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। कक्षा के सभी विद्यार्थियों का ज्ञान तथा ज्ञानार्जन करने की सीमा या प्रगति एक समान नहीं होती है। किसी कक्षा विशेष के विद्यार्थियों ने कितनी मात्रा में ज्ञानार्जन या प्रगति की है, इसकी जाँच करना आवश्यक होता है। विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विभिन्न विषयों में अर्जित की गयी योग्यता जांच परीक्षा द्वारा की जाती है। उसे ज्ञानार्जन परीक्षण या निष्पत्ति परीक्षण कहते हैं। निष्पत्ति परीक्षण द्वारा विभिन्न पाठ्य विषयों में अर्जित ज्ञान, योग्यता और कार्यकुशलता का मापन होता है। इन परीक्षणों में उसी विषय सामग्री को रखा जाता है जिनका विशेष रूप से विद्यार्थी विद्यालय में अध्ययन करता है। ये परीक्षण कक्षा अनुसार, निर्दिष्ट पाठ्यक्रमों के अनुसार बनाये जाते हैं। 

    दूसरे शब्दों में -  विद्यार्थी के विद्यालय में अध्ययन विषय सम्बन्धी प्रगति, प्राप्ति या उपलब्धि को मापने या जांचने के लिए उपलब्धि-परीक्षणों (Achievement Tests) का निर्माण किया गया है।

    परिभाषायें (Definitions):-

    गैरीसन व अन्य के अनुसार - "उपलब्धि परीक्षण, बालक की वर्तमान योग्यता या किसी विशिष्ट विषय के क्षेत्र में, उसके ज्ञान की सीमा का मापन करती है।" ("The achievement test measures the present ability of the child or the extent of his knowledge in a specific content area." -Garrison & Others)

    डॉ. माथुर के अनुसार-  “उपलब्धि- परीक्षण एक निश्चित कार्य क्षेत्र में जो ज्ञान अर्जित किया जाता है, उसकी माप करते हैं।" (“Achievement tests measure the knowledge acquired in a certain area of work.”)

    थार्नडाइक के अनुसार- "जब हम उपलब्धि परीक्षणों का प्रयोग करते हैं, तब हम इस बात को निश्चित करने में रुचि रखते हैं कि एक विशेष प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति ने क्या सीखा है? (When we use an achievement test we are interested in determining what a person has learned to after he has been exposed to a specific kind of instruction." -Thorndike )

    एबेल के अनुसार- उपलब्धि परीक्षण वह है जो किसी छात्र के द्वारा अर्जित ज्ञान या कौशलों में निपुणता का मापन के लिए बनाया जाता है। (An achievement test is one designed to measure a student's grasp of knowledge or his proficiency in certain skills. - Ebel)

    छात्रों में विद्यालयी विषयों के अध्ययन द्वारा होने वाले ज्ञानात्मक, क्रियात्मक एवं भावात्मक वर्तनों को मापने के लिए जो परीक्षण तैयार किए जाते हैं, उन्हें उपलब्धि परीक्षण कहते हैं।


    उपलब्धि- परीक्षणों का उद्देश्य एवं कार्य  (Aims  & Function of Achievement Test)

    1. विद्यालय में विभिन्न कक्षाओं में पढ़ाये जाने वाले विषयों में विद्यार्थियों ने कितनी योग्यता प्राप्त की है, इस बात की जांच  करना। 

    2.  शिक्षकों के अध्यापन की सफलता का अनुमान लगाना।

    3. विद्यार्थियों का वर्गीकरण करने में सहायता देना।

    4. परीक्षाओं के परिणामों को जानकर विद्यार्थियों को अध्ययन करने की प्रेरणा प्रदान करना ।

    5. विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर का अनुमान लगाना ।

    6. परीक्षणों से जो आँकड़े प्राप्त होते हैं, उन्हें सामने रखकर पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना । 

    7. उपलब्धि परीक्षणों के आधार पर शिक्षण विधियों की उपयोगिता और कमियों का ज्ञान प्राप्त करना ।

    8. शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता देना ।

    9. कक्षोन्नति में सहायता लेना ।

    10. परीक्षण के परिणाम के अनुसार, विद्यार्थियों की वैयक्तिक विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए योग्यता के अनुकूल श्रेणी बनाना तथा उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था करना ।

    11. शैक्षिक दृष्टि से व्यवस्थापन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करने में सहायता लेना ।


    उपलब्धि - परीक्षणों के प्रकार (Types of Achievement Tests)


    उपलब्धि-परीक्षणों का वर्गीकरण दो दृष्टिकोणों से किया जा सकता है 

    (A) परीक्षण के उद्देश्य की दृष्टि से-  उपलब्धि परीक्षणों के निम्नांकित दो प्रकार हैं

    (1) सामान्य निष्पत्ति-परीक्षण (General Achievement Tests)-  इसके द्वारा बालक या व्यक्ति के अर्जित  ज्ञान की परीक्षा की जाती है।

    (2) निदानात्मक परीक्षण (Diagnostic Tests)- इन परीक्षणों द्वारा यह पता चलता है कि शिक्षक ने जो ज्ञान या शिक्षा बालक को प्रदान की है, उसमें वह कहाँ तक सफल हुआ है।

    (B) परीक्षण विधि की दृष्टि से-  उपलब्धि परीक्षणों के निम्नलिखित चार प्रकार हैं-

    (1) मौखिक परीक्षण (Oral Tests)-  इस परीक्षण में बालक से लिखित के स्थान पर मौखिक प्रश्न पूछे जाते हैं। इस प्रकार के परीक्षण का प्रमुख दोष यह है कि इससे बालक के विस्तृत ज्ञान की जाँच नहीं हो पाती और इसमें पक्षपात भी हो सकता है।

    (2) क्रियात्मक परीक्षण (Performance Tests)- इस परीक्षण में लिखित प्रश्न करने के स्थान पर ज्ञान के परीक्षण के लिए चित्रों और लकड़ी के टुकड़ों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग प्रायः व्यावसायिक कुशलता की जाँच करने के लिए किया जाता है। इनमें शाब्दिक योग्यता पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

    (3) निबन्धात्मक परीक्षण (Essay Type Tests)-  इस प्रकार के परीक्षणों में विद्यार्थियों को निबन्ध के रूप में प्रश्नों का उत्तर देना होता है।

    (4) वस्तुनिष्ठ परीक्षण (Objective Tests) - वर्तमान समय में इन परीक्षणों को बहुत महत्व दिया जाने लगा है। 

    (C) परीक्षणों में प्रयुक्त सामग्री के आधार पर - परीक्षणों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है

    1. शाब्दिक परीक्षण (Verbal Tests) - इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनमें शब्दों अर्थात् भाषा का प्रयोग किया जाता है, चाहे मौखिक रूप में और चाहे लिखित रूप में। शिक्षा के क्षेत्र में इसी प्रकार के परीक्षणों का अधिक प्रयोग होता है।

    2. अशाब्दिक परीक्षण (Non-Verbal Tests) - इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनमें शब्दों अर्थात भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता अपितु दृश्य, चिह्नों, संकेतों अथवा चित्रों आदि का प्रयोग किया जाता है। छोटे बच्चों और निरक्षर व्यक्तियों की मानसिक क्षमताओं का मापन करने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। शिक्षित और अशिक्षित किसी की भी बुद्धि और व्यक्तित्व के मापन में भी इस प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है।

    (D) परीक्षणों की रचना के आधार पर - परीक्षणों को उनकी निर्माण प्रक्रिया और गुणों के आधार पर निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है- 

    1. शिक्षक निर्मित परीक्षण  (Teacher Made Test ) - इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनका निर्माण सामान्यतः शिक्षक करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रयोग इन्हीं परीक्षणों का किया जाता है, छात्रों की साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्ध वार्षिक और वार्षिक परीक्षाओं सभी में इन्ही परीक्षणों  का प्रयोग किया जाता हैं  अब इस प्रकार के परीक्षणों को वैध, विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ बनाने का प्रयत्न किया जा रहा  है  सार्वजनिक परीक्षाओं के लिए पूर्णरूप से वैध, विश्वसनीय एवं वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का निर्माण नहीं किया जा सकता है  इसलिए इन परीक्षणों को ही अधिक-से-अधिक वैध, विश्वसनीय एवं वस्तुनिष्ठ बनाने पर बल दिया जाता है।

    2. मानकीकृत परीक्षण (Standardized Tests) - इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनका निर्माण विषय - विशेषज्ञों द्वारा किया जाता  हैं इस प्रकार  के परीक्षण  वैध, विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ माने  जाते  हैं। इसके लिए मानक तैयार किये जाते हैं 

    (E) परीक्षणों के प्रशासन के आधार पर -

    परीक्षणों के प्रशासन के आधार पर उन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है 

    1. व्यक्तिगत परीक्षण (Individual Tests) - वे परीक्षण  जिनका प्रशासन एक समय में एक ही छात्र पर किया जाता है। मौखिक परीक्षण प्रायः व्यक्तिगत रूप से ही प्रशासित किए जाते हैं। इन परीक्षणों का सबसे बड़ा गुण यह है कि मापनकर्ता का पूरा ध्यान छात्र विशेष पर ही रहता है। परन्तु साथ ही इनमें समय, शक्ति और धन अधिक लगता है।

    2. सामूहिक परीक्षण (Group Tests)-  वे परीक्षण  जिनका प्रशासन एक समय और एक साथ छात्रों के बड़े-से-बड़े समूह पर किया जाता है। लिखित परीक्षण प्रायः सामूहिक रूप से ही प्रशासित किए जाते हैं। इन परीक्षणों का सबसे बड़ा गुण यह है कि इनके द्वारा एक समय में एक साथ छात्रों के बड़े-से-बड़े समूह की योग्यता का मापन किया जा सकता है. समय शक्ति और धन की बचत होती है। परन्तु साथ ही एक कमी भी है और वह यह कि इनके द्वारा छात्र विशेष की समस्या नहीं समझी जा सकती, उसके लिए व्यक्तिगत परीक्षणों का प्रयोग करना होता है।

    (F) परीक्षणों के मापन स्वरूप के आधार पर -

    अमरीकी मनोवैज्ञानिक ग्लेसर (Robert Glaser) ने मापन को दो वर्गों में विभाजित किया है-

    1. मानक सन्दर्भित परीक्षण (Norm Referenced Tests)-  इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जो केवल मानक सन्दर्भित मापन करते हैं अर्थात् केवल इतना मापन करते हैं कि किसी समूह में किसी छात्र की किसी विषय में योग्यता की दृष्टि से सापेक्षिक स्थिति क्या है। परम्परागत निबन्धात्मक परीक्षण जिनमें 10-12 प्रश्न पूछकर उनमें से 5-6 प्रश्नों का उत्तर देने को कहा जाता है, वे इसी वर्ग में आते हैं। इस प्रकार के परीक्षणों की मुख्य विशेषता यह है कि यदि इनके निर्माण में वैधता, विश्वसनीयता और वस्तुनिष्ठता का ध्यान रखा जाए तो इनसे छात्रों के यथा विषय में ज्ञान के साथ-साथ उस विषय में उनकी सूझ-बूझ का मापन भी किया जा सकता है। इस प्रकार के परीक्षणों का सम्पादन एवं मूल्यांकन करना भी सरल होता है। 

    परन्तु  इनमें विषय से सम्बन्धित सम्पूर्ण सामग्री पर प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं इसलिए इनसे छात्रों के किसी भी विषय में सम्पूर्ण ज्ञान का मापन नहीं किया जा सकता। वर्तमान में मानक संदर्भित  परीक्षणों में सुधार का प्रयत्न किया जा रहा  है।

    2. निष्कर्ष  सन्दर्भित परीक्षण (Criterian Referenced Tests)-  इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जो निष्कर्ष  सन्दर्भित मापन करते हैं अर्थात् किसी समूह में किसी छात्र की किसी विषय में योग्यता की वास्तविक स्थिति का मापन करते हैं।  परिणामतः विद्वान इसका अर्थ अपने-अपने तरीकों से लगाते हैं। कुछ विद्वान निष्कर्ष  का अर्थ पाठ्यवस्तु (Contents) से लगाते हैं। उनका तर्क है कि मानक सन्दर्भित परीक्षणों से छात्रों की योग्यता का सही  मापन नहीं होता, इसके लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर प्रश्न पूछने चाहिए। इस वर्ग के विद्वान निष्कर्ष  सन्दर्भित परीक्षणों को पाठ्यवस्तु सन्दर्भित परीक्षण (Content Referenced Tests) अथवा योग्यता सन्दर्भित परीक्षण (Ability Referenced Tests) कहते हैं। 

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