व्यक्तित्व का मनो-विश्लेषणात्मक सिद्धान्त (Psycho-analytical Theory of Personality)
प्रतिपादक - सिगमंड फ्रायड (1856-1939, Australian Neurologist, Fields- Neurology, Psychotherapy, Psychoanalysis)
व्यक्तित्व का अध्ययन करने का सबसे प्रथम सिद्धान्त मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त (1896) है। फ्रायड ने व्यक्ति के व्यवहार को समझने तथा मानसिक विकारों से पीड़ित व्यक्तियों की चिकित्सा करने में मनोविश्लेषण विधि का अधिक प्रयोग किया जिससे उनको काफी प्रसिद्धि प्राप्त हुई। फ्रायड ने मूल प्रवृत्तियों को मानव व्यवहार का निर्धारक तत्व माना है। फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त में मूल प्रवृत्तियों की अवधारणा व्यक्तित्व की गतिशीलता को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। मूल-प्रवृत्तियों का उल्लेख व्यक्ति की जन्म-जात समस्त मनःऊर्जा (Psychic) के रूप में किया जाता है। इन्होंने दो मूल प्रवृत्तियों को माना।
(1) जीवन मूल-प्रवृत्ति या यौन-प्रेम (Life instinct or Eros ) : - काम-वासना, भूख तथा प्यास मुख्य हैं। जीवन मूल-प्रवृत्ति से सम्बन्धित सभी मूल-प्रवृत्तियों में निहित सम्पूर्ण मानसिक शक्ति को फ्रायड ने काम-शक्ति (Libido) का नाम दिया है।जीवन मूल-प्रवृत्ति के सभी कार्य इस काम शक्ति के द्वारा ही संचालित होते है।
(2) मृत्यु मूल -प्रवृत्ति या मूमुर्षा (Death instinct or Thanatos) : -फ्रायड के अनुसार प्राणी के जीवन का उद्देश्य मृत्यु है। मृत्यु मूल-प्रवृत्ति में मृत्यु प्राप्त करने की अचेतन भावना निहित रहती है।
व्यक्तित्व की सरंचना (Structure of Personality)
व्यक्तित्व का स्थलाकृतिक पहलू (Topographical Aspect of Personality)
(i) चेतन (Conscious) :- चेतन मन का वह भाग है जिसमें वे अनुभूतियाँ (experiences) निहित रहती हैं, जिनके बारे में व्यक्ति पूर्णतः अवगत रहता है। यह उन विचारों, भावनाओं, तथा सूचनाओं का भण्डार होता है जिनका व्यक्ति आसानी से तुरन्त स्मरण कर सकता है।
(ii) अर्द्ध-चेतन अथवा अवचेतन (Subconscious or Preconscious) : - व्यक्ति के अर्द्ध-चेतन मन में वे अनुभूतियाँ निहित रहती हैं जिनकी उसे वर्तमान में पूर्णतः जानकारी नहीं रहती है लेकिन थोड़ा प्रयास करने पर उनसे अवगत हुआ जा सकता है ।
(iii) अचेतन (Unconscious): फ्रायड का मानना था कि व्यक्ति का व्यवहार उसके चेतन मन की अपेक्षा अचेतन मन अधिक प्रभावित करता है। व्यक्ति का अचेतन मन उन इच्छाओं तथा प्रवृत्तियों का भण्डार होता है जिनकी पूर्ति वह वास्तविक जीवन (real life) में नहीं कर पाता है। स्वप्न में दमित इच्छाओं की पूर्ति होते हुए दिखाई देना, किसी चीज का अचानक याद आ जाना, सम्मोहन की अवस्था में प्रश्नों का उत्तर देना, अनायास मुँह से अवांछित शब्दों का निकलना, लिखते समय असंभावित त्रुटियाँ होना तथा सोते समय समस्याओं का समाधान होना आदि क्रियाएँ अचेतन के अस्तित्व (existence) को दर्शाती हैं।
व्यक्तित्व का गत्यात्मक पहलू (Dynamic Aspect of Personality)
(i) Id (इदम् ) :-
- जन्म के साथ।
- व्यक्ति की जन्मजात मनःशक्तियों का भण्डार होता है। इसकी प्रकृति मूल प्रवृत्तियों पर निर्भर करती है।
- यह आनन्द प्राप्ति के सिद्धान्त पर कार्य करता है। अतः यह तनाव कम करने के लिए आनन्द पथ का अनुसरण करता है, चाहे वह पथ अच्छा हो अथवा बुरा हो ।
- इदम् यौन प्रवृत्ति तथा आक्रामकता पर आधारित होता है और यह पूर्णतः अचेतन होता है।
- यह व्यक्तित्व का जैविक पहलू है|
(ii) अहम् (Ego):-
- 1-2 वर्ष के विकास से प्रारम्भ।
- यह इदम् तथा बाह्य जगत् दोनों के सम्पर्क में रहता है तथा इदम् की इच्छाओं को सामाजिक परिवेश के दायरे में सन्तुष्ट करने के उपाय जुटाता है।
- न तो पूर्णतया सुखवादी और न ही आदर्शवादी। इसकी प्रकृति तार्किक होती है तथा यह इदम् तथा पराहम् के बीच सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करता है।
- इसकी गतिविधियाँ वास्तविक चिन्तन (realistic thinking) पर आधारित होती हैं।
- अहम् का विकास माता-पिता तथा बालक के सम्पर्क में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा होता है।
- सपनों पर नियंत्रण।
- सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेना।
- अहम् को व्यक्तित्व का मनोवैज्ञानिक पहलू माना जाता है ।
(iii) पराहम् (Super Ego) :-
- 3-4 वर्ष के विकास से प्रारम्भ।
- पराहम् नैतिकता के सिद्धान्त पर कार्य करता है यह पूर्णतः चेतन होता है। यह मन का वह भाग है जिसे हम अन्तरात्मा (Conscience) कहते हैं।
- यह अहम् को उन्हीं कार्यों को करने की स्वीकृति देता है जो नैतिक मूल्यों (Moral values) के दायरे में आते हैं।
- पराहम् हमेशा इद्म के सम्पर्क में रहता है तथा उसकी अवांछित इच्छा पर नियन्त्रण करने की हर कोशिश करता है। यह अहं को भी नियन्त्रित करता है।
- इसका विकास माता-पिता तथा अध्यापक द्वारा दिए संस्कारों और अपनाये गए आदर्शों द्वारा होता है ।
- पराह्म व्यक्तित्व का सामाजिक पहलु माना जाता है ।
फ्रॉयड ने आगे स्पष्ट किया कि अहम् (Ego) सदैव इदम् (Id) और पराहम् (Super Ego) के बीच साम॑ज॒स्य॒ स्थापित करने का प्रयास करता है; जिन व्यक्तियों में यह सामंजस्य हो जाता है वे व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों क्षेत्रों में समायोजन करने में समर्थ होते हैं और उन्हें सुसमायोजित व्यक्तित्व (Well Adjusted Personality) कहा जाता है।
व्यक्तित्व का मनोलैंगिक विकास (Psychosexual Development of Personality)
फ्रॉयड ने मनोलैंगिक विकास की पाँच अवस्थाएं बताई हैं -
(1) मुखावस्था (Oral Stage) : -
- 0 -1 वर्ष ।
- बालक मुख की क्रियाओं द्वारा लैंगिक सुख प्राप्त करता है। स्तनपान करना, अंगूठा चूसना तथा अन्य चीजों को मुँह में डालना आदि ऐसी ही क्रियाएँ हैं।
(2) गुदा अवस्था (Anal Stage):
- 2- 3 वर्ष।
- इस अवस्था में बच्चा मल-मूत्र को त्यागने तथा कभी-कभी रोकने में लैंगिक सुख की प्राप्ति करता है। मल त्यागते समय वे काफी देर तक बैठे रहते हैं।
(3) लिंग प्रधान अवस्था (Phallic Stage):
- 3 - 5 वर्ष।
- इस अवस्था में बच्चे अपने हाथों से जननेन्द्रियों को स्पर्श करके लैंगिक सुख की प्राप्ति करते हैं। इस में दो प्रकार की ग्रंथियों का निर्माण होता है -
1. Oedipus Complex- मातृ-मनोग्रंथि -
- लड़कों में पायी जाती है ।
- माँ के प्रति प्रेम ।
2. Electra Complex- पितृ -ग्रंथि
- लड़कियों में पायी जाती है ।
- पिता के प्रति प्रेम ।
(4) अव्यक्त अवस्था (Latency Stage):
- 6 - 12 वर्ष।
- इस अवस्था में बच्चे सामाजिक दबाव में आकर लैंगिक इच्छाओं को अनैतिक मानकर उनका दमन करते हैं।
(5) जननेन्द्रिय अवस्था (Genital Stage) :
- 13 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होती है।
- इस अवस्था में किशोर पहले समलिगियों तथा बाद में विषमलिगियों (Opposite sex) के साथ सम्बन्ध बनाने में आनन्द की अनुभूति प्राप्त करते हैं ।

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