सीखने के नियम (Laws of Learning)
प्रतिपादक- Edward Lee Thorndike (American Psychologist)
थार्नडाइक ने अपने प्रयोगों के आधार पर मानव अधिगम के तीन मुख्य नियमों (Primary Laws) एवं पांच गौण नियमों (Secondary Laws) का प्रतिपादन किया।
(A) सीखने के मुख्य नियम (Primary Laws of Learning)
(I) तत्परता का नियम (Law of Readiness)/मानसिक तैयारी का नियम (Law of mental preparation) -
सीखने के लिए यह आवश्यक है कि सीखने वाला (Learner) सीखने के लिए तैयार हो एवं तत्पर हो। जब सीखने वाले के सामने कोई समस्या होती है और वह उस समस्या को हल करने के लिए प्रयत्न करता है तो हम कहते हैं कि वह सीखने के लिए तत्पर है। जब तक मनुष्य सीखने के लिए तत्पर नहीं होते तब तक वह न तो स्वयं सीख सकते हैं और न ही कोई दूसरा उन्हें सिखा सकता है। अतः आवश्यक है कि सर्वप्रथम शिक्षार्थियों को सीखने के लिए तत्पर किया जाए। तत्परता ध्यान केन्द्रित करने में सहायता देती है और शिक्षार्थी किसी भी कार्य को शीघ्र सीख लेते हैं, उन्हें सीखने में सन्तोष मिलता है। सीखने के लिए तत्पर नहीं होने पर उन्हें सीखने की क्रिया से असंतोष मिलता है।
जैसे- घोड़े को तालाब तक ले जाया जा सकता है लेकिन पानी पीने के लिए बाध्य नहीं की जा सकता है।
तत्परता के नियम के शैक्षिक उपयोग :-
शिक्षकों को विषय-वस्तु प्रस्तुत करने से पहले छात्रों को उस विषय-वस्तु के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए अभिप्रेरित करना चाहिये ताकि वे उसे सीखने के लिए तत्पर हो जायें।
अध्यापक को चाहिये कि वह विषय-वस्तु का परिचय इस तरह से प्रस्तुत करे कि छात्रों का रुझान (interest) तथा ध्यान (attention) विषय-वस्तु की ओर केन्द्रित हो जाये।
छात्रों से ऐसे प्रश्न पूछे जायें ताकि उनमें विषय-वस्तु के अधिगम हेतु जिज्ञासा (curiosity) उत्पन्न हो जाये।
पढ़ाने से पहले अध्यापक को छात्रों की अभिवृत्तियों (attitudes), अभिक्षमताओं (abilities) तथा रुचियों का पता लगाना चाहिये और फिर उसके अनुकूल शिक्षण करें।
(II) अभ्यास का नियम (Law of exercise) –
इस नियम को उपयोग और अनुप्रयोग का नियम (Law of Use and Disuse) भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार यदि अन्य परिस्थितियाँ सामान्य रहें तो अभ्यास करने से सीखने की दक्षता में वृद्धि होती है और अभ्यास की कमी के कारण उद्दीपक तथा अनुक्रिया में सम्बन्ध कमजोर पड़ जाता है। अर्थात् सीखने की क्षमता में कमी जा जाती है। बार-बार अभ्यास करने से सीखी गई बातें अधिक समय तक याद रहती हैं और अभ्यास न करने से हम उनको भूल जाते हैं। अतः उपयोग और अभ्यास सीखने तथा याद करने में सहायक होता है तथा अनुप्रयोग तथा अभ्यास न करना सीखने तथा धारण करने में बाधा डालते हैं।
जो पाठ्य-सामग्री आवश्यकता से अधिक बार दोहरा ली जाती है वे हमारी स्मृति में स्थायी रूप संचित रहती हैं। जैसे- राष्ट्रगान, बचपन में सीखी गयी कविताएँ, पहाड़ें तथा प्रार्थना आदि। जिन शब्दों को हम प्रतिदिन प्रयोग में लाते हैं उन शब्दों को हम अधिक शुद्ध लिखते तथा बोलते हैं, जबकि कभी-कभी प्रयोग में आने वाले शब्दों के लिखने ने प्रायः अशुद्धियाँ हो जाती हैं। इस पंक्ति से समझा जा सकता है।
करत करत अभ्यास के जडमति होत सुजान
रसरी आवत जात ते, सिल पर होत निशानअभ्यास के नियम के शैक्षिक उपयोग :-
अध्यापक को चाहिये कि वह छात्रों में विषय-वस्तु को दोहराने की प्रकृत्ति विकसित करे ताकि वे सामग्री को अधिक समय तक धारण कर सकें।
अध्यापकों को छात्रों को यह बताना चाहिए कि अभ्यास न करने की स्थिति में वे सीखी गयी सामग्री को भूल जायेगें।
जीवन भर काम आने वाली बातों को तो अति अधिगम (Over learning) तक करा देनी चाहिये ताकि छात्रों को ये चीज आजीवन याद रहे; जैसे—राष्ट्रीय गान, पहाड़ें, दैनिक जीवन में काम आने वाले सूत्र आदि ।
अभ्यास के द्वारा हस्तलेख (Handwriting) को सुधारा जा सकता है।
अभ्यास के द्वारा संगीत, ड्राइंग, शार्टहैंड आदि में निपुणता प्राप्त की जा सकती है।
(III) प्रभाव का नियम (Law of Effect)/सन्तोष का नियम (Law of Satisfaction)/ परिणाम का नियम -
इस नियम को सन्तोष या असन्तोष का नियम भी कहा जाता है जिस कार्य को करने से हमें संतोष या सुख प्राप्त होता है, उसे हम बार-बार करना चाहते हैं। शिक्षा में परस्कार और दण्ड देने का नियम इसी ओर संकेत करता है। जिस कार्य को करने से बालक को पुरस्कार मिलता है उसे वह बार-बार करना चाहता है और सीखी हुई विषय वस्तु को अधिक समय तक अपनी स्मृति में सुरक्षित रखता है। किन्तु जिस कार्य को करने के लिए उसे दण्ड मिलता है उसे वह दोबारा नहीं करना चाहता है। अतः उसे वह सीखता नही है।
यदि किसी बच्चे के गणित के प्रश्न हल करते समय उत्तर ठीक-ठीक मिलते जाते हैं तो वह आगे के प्रश्न अधिक उत्साह के साथ हल करता रहता है परन्तु यदि प्रश्नों के उत्तर गलत आते हैं तो वह हताश होता है तथा झुंझला कर आगे के प्रश्न करने बन्द कर देता है। सन्तोषप्रद परिणाम व्यक्ति को कार्य करने अथवा सीखने के लिए प्रेरित करते हैं। जबकि कष्टकर अथवा असन्तोषप्रद परिणाम व्यक्ति को क्रिया करने में बाधा डालते हैं।
प्रभाव के नियम के शैक्षिक उपयोग :-
अध्यापकों को यह प्रयत्न करना चाहिये कि छात्र उनके शिक्षण से सन्तुष्ट हो ।
छात्रों को उनकी क्रियाओं के परिणाम की जानकारी तुरन्त प्रदान की जानी चाहिये ताकि उनको पृष्ठ-पोषण (feed-back) द्वारा उचित दिशा-निर्देश मिल सकें।
छात्रों के समस्यात्मक व्यवहार (Problematic behaviour) को दण्ड से सम्बन्धित करके सुधारा जा सकता है।
इस नियम के द्वारा छात्रों की बुरी आदतों को दण्ड से सम्बन्धित करके छुड़ाया जा सकता है तथा अच्छी आदतों को पुरस्कार द्वारा प्रोत्साहित करके सुदृढ़ (Strong) किया जा सकता है।
