स्मृति के प्रकार (Types of Memory)
मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के अनेक प्रकार बताये हैं। याद की गयी सामग्री के समय अन्तराल (Time Interval) के आधार पर स्मरण करने की दृष्टि से स्मृति के चार प्रकार बताये हैं।
1. संवेदी स्मृति (Sensory Memory) -
संवेदी स्मृति को संवेदी संचयन (Sensory Storage) के नाम से भी जाना जाता है। सांवेदिक स्मृति ज्ञानेन्द्रियों (Sense Organs) के अनुसार रहती है। जितनी ज्ञानेन्द्रियां हैं उतनी प्रकार की सांवेदिक स्मृतियों की कल्पना की जा सकती है। ज्ञानेन्द्रियां (Sense Organs) अपने स्तर पर किसी उद्दीपन या उत्तेजना की सूचनाओं को प्राप्त करती है और ये सूचनाएं कुछ क्षणों के लिए ही बनी रहती हैं। जैसे आँखों से देखे गये कुछ दृश्यों के संवेदना की स्मृति, नाक से ली गई गंध के संवेदना की स्मृति, जिह्वा से प्राप्त रस संवेदना की स्मृति और त्वचा से स्पर्श संवेदना की स्मृति। इस स्मृति में प्राप्त सूचनाओं को बिना किसी बदलाव के ज्यों-का-त्यों एक सेकण्ड अथवा उससे भी कम समय के लिए संचित किया जाता है। यह संचयन (Storage) दो प्रकार से होता है।
(A) प्रतिमा स्मृति (Iconic memory) - जब व्यक्ति किसी वस्तु अथवा व्यक्ति की प्रतिमा का एक सेकण्ड तक दृष्टिचिन्ह (visual trace) के रूप में संचय कर पाता है। इस प्रकार की स्मृति को प्रतिमा स्मृति (Iconic memory) कहते हैं।
(B) प्रतिध्वनि स्मृति (Echoic memory)- जब व्यक्ति किसी सुनी गयी ध्वनि अथवा शब्दों को एक सेकण्ड की अवधि तक ध्वनि चिन्ह (Auditory trace) के रूप में संचय कर पाता है। इस प्रकार की स्मृति को प्रतिध्वनि स्मृति (Echoic memory) कहते हैं।
2. लघु कालिक स्मृति (Short Term Memory) -
इस स्मृति में किसी सूचना को 20 से 30 सेकण्ड तक की अवधि के लिए धारण किया जाता है। इस स्मृति को विलियम जेम्स ने प्राथमिक स्मृति (Primary Memory) का नाम दिया है। इस स्मृति में धारण करने वाली सामग्री को व्यक्ति एक- दो प्रयासों में ही याद कर लेता है। संवेदी स्मृति से आने वाली सूचनाएँ कुछ समय तक S.T.M. में रहती हैं फिर वे या तो विस्मरण (Forgetting) के गर्त में चली जाती हैं या फिर उनको दीर्घकालिक स्मृति में स्थानान्तरित कर दिया जाता है।
3. चलन स्मृति (Working Memory)-
इस स्मृति का प्रतिपादन बैडेली (Baddely) ने 1993 में किया था। इस स्मृति में सूचनाओं को संचय (Storage) करने तथा उनको संसाधित (Processing) करने की दोनों क्षमताएं होती हैं। इसमें सूचनाओं को 25-30 सेकण्ड तक संचय करने के साथ-साथ संसाधित (Processing) भी किया जाता है।
Ex. - यदि हम Mathematics की स्पेलिंग को देखकर 30 सेकण्ड तक इसका संचय (Storage) करते हैं तो यह लघु कालिक स्मृति (S.T.M.) का कार्य कहलायेगा और अगर हम इस तरह से संसाधित करके संचय करते हैं कि ma, ma बीच में दी (the) s से पहले tic तो यह चलन स्मृति के अन्तर्गत आयेगा अर्थात् चलन स्मृति में सूचनाओं को जोड़-तोड़ कर संसाधित किया जाता है। इसी कारण बैडेली ने इसे मानसिक वर्क बेंच (Mental work banch) का नाम दिया है। चलन स्मृति में सूचनाएं तीन रूप में संचित (Storage) तथा संसाधित (Processing) की जाती हैं।
(i) स्वरग्रामी लूप (Phonological loop)- शब्दों की ध्वनि के रूप में।
(ii) दृष्टि स्थानिक स्केच पैड (Visual Spatial Sketch Pad)- दृष्टि (Visual) तथा स्थान (Space) से सम्बन्धित सूचनाएं (वस्तुओं के रंग, रूप, आकार और उनकी स्थिति) ।
(iii)केन्द्रीय कार्यकारी(Central executive)-
स्वरगामी लूप (Phonological loop) तथा दृष्टि स्थानिक स्कैच पैड (Visual Spatial Sketch Pad) की सूचनाओं पर ध्यान केंद्रित करके उनको नियोजित (Planned) तथा संगठित (Organized) करता है। यह इस बात को निर्धारित करता है कि किस सूचना को महत्व देना है तथा किस सूचना की उपेक्षा करनी है एवं किसी समस्या के समाधान में कौन से उपायों से सूचनाओं को संसाधित करना है। चलन स्मृति के तीनों अंगों की क्षमताएँ बहुत सीमित होती हैं।
4. दीर्घकालीन स्मृति (Long Term Memory)-
जब किसी तथ्य या अनुभव को लम्बे समय तक धारण किया जाता है। तो उसे दीर्घकालीन स्मृति कहते हैं। इस स्मृति की क्षमता बहुत अधिक होती है। विलियम जेम्स ने इसे गौण स्मृति (Secondary Memory) कहा है। इस स्मृति में सूचनाओं को 30 सेकण्ड से लेकर जीवन पर्यन्त तक संचित रखा जा सकता है। जिस विषय वस्तु (Subject matter) की अति अधिगम (over learning) हो जाती है उसको कुछ व्यक्ति जीवन पर्यन्त याद रखते हैं; जैसे- बचपन में सीखी गयी कविता अथवा राष्ट्रगान आदि।
टुलविंग ने घटनाओं और अनुभवों के आधार पर दीर्घकालीन स्मृति को दो भागों में विभक्त किया है।
(i) प्रासंगिक स्मृति (Episodic Memory)- इस स्मृति में व्यक्ति के अपने पूर्व अनुभवों (Prior Experiences) तथा घटनाओं का लेखा-जोखा रहता है। अर्थात् प्रासंगिक स्मृति में व्यक्ति के जीवन में 'कब' तथा कहाँ 'क्या' घटित हुआ से सम्बन्धित सूचनाएं संचित रहती हैं।
(ii) अर्थगत स्मृति (Semantic Memory)- अर्थगत स्मृति में शब्दों (Words), संकेतों (Signals), विचारों (Thoughts) तथा नियमों (laws) से सम्बन्धित अमूर्त ज्ञान (Abstract Knowledge) का संचय रहता है;
जैसे—आप किसी सुनामी अथवा भूकम्प से सम्बन्धित कोई लेख पढ़ते हैं जिसमें बहुत से लोग मारे जाते हैं। कुछ समय बाद आप इस घटना के प्रसंग को पूरी तरह याद नहीं रख पाते लेकिन ये याद रहता है कि इस घटना में बहुत से लोगों की जान गयी थी। लोगों के मारे जाने की जानकारी याद रखने में अर्थगत स्मृति का ही मुख्य योगदान रहता है।
इनके अतिरिक्त भी मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रकार की स्मृतियां बताई हैं। जो कि निम्न हैं -
1. तात्कालिक स्मृति (Immediate Memory)- किसी तथ्य या विषय को याद करके पुनः तुरन्त ज्यों-का-त्यों सुना देना तात्कालिक स्मृति कहलाती है। इस प्रकार की स्मृति में भूलने की सम्भावना अधिक रहती है।
2. रटन्त स्मृति (Rote Memory)- किसी तथ्य को बिना समझे ही याद कर लेना और आवश्यकता पड़ने पर उसे ज्यों की त्यों प्रस्तुत कर देना रटन्त स्मृति कहलाती है। छोटे बच्चे बिना अर्थ समझे कई कविताएँ रट लेते हैं और जब उन्हें कहा जाता है तो वे उन्हें पुनः ज्यों-की-त्यों सुना देते हैं।
3. तार्किक स्मृति (Logical Memory)- किसी तथ्य को सोच- विचार कर एवं तर्क के आधार पर याद करना और आवश्यकता होने पर उसे सुना देना तार्किक स्मृति कहलाती है। इसेेे बौद्धिक स्मृति (Intellectual Memory) भी कहते हैं इस प्रकार की स्मृति बालक की शिक्षा में अधिक उपयोगी होती है।
4. सक्रिय स्मृति (Active Memory)- अनुभवों को इच्छा पूर्वक प्रयास करके पुनःस्मरण करना तथा उनको भली-भाँति प्रस्तुत करने की क्षमता (Ability) को सक्रिय स्मृति कहते हैं। छात्र परीक्षा भवन में सक्रिय स्मृति द्वारा ही प्रश्नों के उत्तर कापियों पर लिखते हैं।
5. निष्क्रिय स्मृति (Passive Memory) - जब पूर्व अनुभवों को बिना किसी सक्रिय प्रयास के पुनःस्मरण कर लेते हैं तो उसे निष्क्रिय स्मृति कहते हैं। इस प्रकार की स्मृति सोद्देश्य नहीं होती है;
जैसे— हाथी नाम लेते ही उसके कालेपन तथा विशालकाय आकार की याद आ जाती है।
6. यांत्रिक स्मृति (Mechanical Memory)- इस स्मृति को शारीरिक तथा आदतजन्य (Physical & Habit Memory) के नाम से भी जाना जाता है। किसी कार्य को बार-बार करते हुए शरीर के अंगों को वह कार्य करने की आदत पड़ जाती हैं तथा उस कार्य को करने के लिए व्यक्ति को कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता। इस प्रकार की स्मृति को यांत्रिक स्मृति कहते हैं। जैसे किसी सवारी गाड़ी की गति नियंत्रित करने के लिए उसके हाथ -पैर बिना मस्तिष्क पर जो डाले स्वतः ही कार्य करने लगते हैं।
7. वास्तविक स्मृति (True Memory)- जब किसी सीखी गई विषय वस्तु (Subject-matter) को स्वतंत्र रूप से पुनः स्मरण किया जाता है तो उसे वास्तविक स्मृति कहते हैं। यह स्मृति रुचि तथा साहचर्य के नियमों से अभिप्रेरित (Motivate) रहती है इस प्रकार की स्मृति में विषय वस्तु को क्रमबद्ध (Well organized) रूप से धारण किया जाता है जिससे पुनः स्मरण करने में आसानी होती है। शिक्षा के क्षेत्र में इस स्मृति को सर्वोत्तम माना जाता है।

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