Tuesday, May 12, 2020

Modern trends of World Education

आधुनिक विश्व शिक्षा की प्रवृतियाँ (राष्ट्रीयकरण एवं भूमण्डलीकरण)
Modern trends of World Education (Nationalization and Globalization)

विश्व मे किन्हीं दो देशों की शिक्षा प्रणालियां समान नही होती हैं। विश्व के प्रत्येक देश की शिक्षा प्रणाली का अपना प्रारूप है और अन्य देशों से अलग है। किसी देश की शिक्षा प्रणाली उस देश की संस्कृति पर निर्भर करती है। भारत जैसे देश में शिक्षा की व्यवस्था का उत्तदायित्व राज्यों का होता है। प्रत्येक राज्य की शिक्षा प्रणाली में  स्थानीय आवश्यकताओं को महत्व दिया जाता है । आज शिक्षा की राष्ट्रीयकरण की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाने लगा है।
आधुनिक समय मे राष्ट्रीयकरण को संकुचित विचारधारा से प्रभावित मानते है, क्योंकि आज कोई भी देश आत्म निर्भर नही हैं तथा एक देश की समस्याएं एवं गतिविधियां पड़ोसी देशों को प्रभावित करती है।  आज विश्व के सभी देश विश्व युद्ध की विभीषिकाओं से बचना चाहते हैं। इसका शिक्षा ही एक मात्र शसक्त उपाय है  जो मानव को विश्व युद्धों से बचा सकती है।

राष्ट्रीयकरण(Nationalization)

"किसी सरकार द्वारा निजी सामित्व वाली वस्तु को सार्वजनिक वस्तु में बदलना या रूप प्रदान करना राष्ट्रीयकरण कहलाता है।"
उदाहरण के लिए किसी निजी बैंक को राष्ट्रीकृत कर के सभी जनता के लिए सार्वजनिक बनाया जाता है। राष्ट्रीकरण में यह भी आता है जिसमे सरकार किसी निचले स्तर की संपत्ति को ऊपरी स्तर तक ले जाया जाए। जैसे- नगरपालिका को प्रदेश की संपत्ति घोषित करना।
राष्ट्रीयकरण के विपरीत निजीकरण को समझा जाता है। शिक्षा में राष्ट्रीयकरण की प्रणाली को शिक्षा के राष्ट्रीयकरण से समझा जा सकता है।
शिक्षा को एक सस्त्र के रूप में माना जाता है। इसलिए शिक्षा का सार्वजनिक प्रसार होना आवश्यक है। शिक्षा का अधिकार 2010 एक ऐसी पहल है जिसमें शिक्षा को 6-14 वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क किया गया एवं सभी तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया।
शिक्षा का राष्ट्रीयकरण संविधान के आधार पर विश्वभर में शिक्षा का सार्वजनीकरण किया गया। हमारे संविधान निर्माता संविधान निर्माण की कठिन चुनौती को स्वीकार करते हुए एक ऐसे जीवंत दस्तावेज तैयार करने में सफल रहे जिसमें वे सभी तत्त्व शामिल हैं जो कि एक देश के कुशल प्रशासन तथा एक प्रभुत्व सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य की  स्थापना के लिए आवश्यक थे। यह दस्तावेज प्रत्येक भारतीय के अधिकारों, कर्तव्यों एवं अन्य नागरिकों के साथ तथा सरकार के साथ अटूट सम्बधों का वर्णन करता है।

राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता (Need of Nationalization) 

1. शिक्षा में राष्ट्रीयकरण द्वारा एक पूर्ण राष्ट्र में शिक्षा का पाठ्यक्रम, कार्यक्रम तथा विषयवार शिक्षा व्यवस्था का  प्रबंधन किया जाता है, जो राष्ट्र को समानता तथा एकता में बांधे रखती है।
2. राष्ट्रीयकरण द्वारा छात्रों के लिए पाठ्य पुस्तकों के राष्ट्रीयकरणबाकी बात को समय- समय पर गठित आयोगों ने सही बताया है तथा 14 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की गई है।
3. राष्ट्र की आर्थिक तथा विश्व मे राष्ट्र की साक्षरता दर को बनाये रखने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।
4. राष्ट्रीयकरण द्वारा विश्वभर में प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के द्वार खुल जाते हैं।
5. राष्ट्रीयकरण द्वारा समाज के उस वर्ग को शिक्षित किया जा सकता है जो शिक्षा नही कर पाया है । इसके द्वारा सर्वशिक्षा अभियान, स्कूल चलो अभियान और ऐसे ही बहुत कार्यक्रम समय-समय पर चलाये जाते हैं।
6. राष्ट्रीयकरण के द्वारा वैश्वीकरण की राह भी सफल होती है। शिक्षा का राष्ट्रीयकरण होगा तो शिक्षा का वैश्वीकरण होगा तथा यह आज के दौर में आवश्यक हो गया है।

राष्ट्रवाद एवं शिक्षा (Nationalism and Education)

राष्ट्रवाद एवं शिक्षा के सम्बंध के विषय मे निम्न बिंदुओं से समझा जा सकता है-
  • राष्ट्रवाद द्वारा देश विदेशों में अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार किया जाता है।
  • शिक्षा में राष्ट्रवाद द्वारा देश की एकता एवं अखण्डता को बनाये रखने में सहायता प्राप्त की जाती है।
  • शिक्षा में राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है क्योंकि यह एक देश के विभाजन को तथा अंतर्राष्ट्रीय ख़तरों से बचाए रखती है।
  • देश प्रेम की भावना, शिक्षा को डिजिटल रूप प्रदान कर देश विदेशों में अपनी पहचान बनाना एवं तकनीकी के प्रयोग से देश मे बाहरी व आंतरिक खतरों से निपटना।

वैश्वीकरण (Globalization)



वैश्वीकरण विभिन्न देशों के लोगों, कंपनियों और सरकारों के बीच बातचीत और एकीकरण की प्रक्रिया है। वैश्वीकरण में सम्पूर्ण विश्व को एक  बाजार का  रूप प्रदान  किया जाता है।  वैश्वीकरण से  आशय विश्व अर्थव्यवस्था में आये खुलेपन, बढ़ती हुई अन्तनिर्भरता तथा आर्थिक एकीकरण के फैलाव से है।
इसके अंतर्गत विश्व बाजारों के मध्य पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न होती है तथा व्यवसाय देश की सीमाओं को पार करके विश्वव्यापी रूप धारण कर लेता है । वैश्वीकरण के द्वारा ऐसे प्रयास किये जाते है कि विश्व के सभी देश व्यवसाय एवं उद्योग के क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ सहयोग एवं समन्वय स्थापित करें।
नाईट के अनुसार- वैश्वीकरण के अर्थ तकनीकी, वित्त, व्यापार, ज्ञान, मूल्यों एवं विचारों के सीमा पार बढ़ते प्रवाह से है।
दुनिया के सभी देशों का सामाजिक,आर्थिक,सांस्कृतिक आदि के आधार पर एक-दूसरे से जुड़ने की प्रक्रिया वैश्वीकरण का मोटे तैर पर अर्थ है। डेविड हेल्ड इसका परिभाषा परस्पर निर्भरता के रूप में करते हैं,क्योंकि सामाजिक और आर्थिक संबंधों ने दुनिया को बाँध दिया है। आज विश्व में वैश्वीकरण के प्रति कई दृष्टिकोण हैं,जो इसके स्वरुप,परिणाम और प्रभाव का विशद् विवेचना करते हैं। इन परिप्रेक्ष्यों के माध्यम से हम वैश्वीकरण के अर्थ को सही मायने में जान पाएंगे। इनमें से एक दृष्टिकोण के. ओहमी जैसे अति भूमण्डलवादी विचारकों का है। जिनके अनुसार बहुराष्ट्रीय निगम और अंतर्राष्ट्रीय बाजार शक्तिशाली हो चुके हैं तथा अव्यक्तिक ताकतें विश्व को नियंत्रित करते हैं।
परन्तु संशयवादी भूमंडलीकरण को एक मिथक मानते हैं। इनका कहना है कि 19वीं सदी में व्यापार में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि हुयी,श्रमिकों का संख्या तेजी से बढ़ा और अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के रूप में राज्यों के एकीकरण का अपेक्षाकृत उच्च स्तर पर आर्थिक अंतर-निर्भरता बढ़ी। साथ ही एडम स्मिथ के तुलनात्मक लाभ के सिद्धांत का प्रचार हुआ,आज हम जो अनुभव कर रहे हैं,वह इन प्रक्रियाओं का बढ़ता हुआ स्तर है। अति भूमण्डलवादी के विपरीत संशयवादी आर्थिक शक्ति के बजाय राजनीतिक शक्ति को ज्यादा महत्त्व देते हैं। इनका मानना है कि बाजार शासन नहीं करता है बल्कि राज्य सभी आर्थिक कार्यकलापों का नियमन करता है।
तीसरा और सबसे संतुलित दृष्टिकोण परिवर्तनवादियों द्वारा दिया जाता है,जिनका विश्वास है कि भूमंडलीकरण दुनिया में परिवर्तन ला रहा है अर्थात सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों को लाने में यह एक प्रमुख शक्ति है।
वैश्वीकरण के युग ने देश-विदेश की सीमाओं को परे रख कर लोगों को एक दूसरे से जुड़ने का बड़ा मौका दिया है। सूचना और संचार तकनीक के क्षेत्र में जिस तेजी से बढ़ोतरी हो रही है उसने दुनिया भर के लोगों के बीच संपर्क को औऱ बढ़ा दिया है। खासकर विश्वविद्यालयों को किस तरह उच्चस्तरीय शिक्षा प्रदान करनी चाहिए, इस पर भी गौर किया है।
''हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा यह नहीं है कि हमारा लक्ष्य ऊंचा है और हम उस तक नहीं पहुंच पाते, बल्कि यह है कि वह इतना नीचा है कि हम आसानी से पहुंच जाते हैं।'' सर माइकल एंजेलो के ये शब्द जीएलए यूनिवर्सिटी के लिए प्रेरणादायक बन चुके हैं
विश्वभर में भी वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है । शिक्षा के क्षेत्र में भी वैश्वीकरण द्वारा Come to teach की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। जिससे शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जा रहा है। भारत मे वैश्वीकरण के क्या प्रभाव पड़ता है यह देखना भी आवश्यक है।

विश्व में शिक्षा का वैश्वीकरण -





Globalization of Education in World





भारत मे शिक्षा का वैश्वीकरण


शिक्षा में वैश्वीकरण से तात्पर्य केवल संसार के विभिन्न देशों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार देश -विदेशों में जाकर शिक्षा प्राप्त करने से ही नही बल्कि एक दूसरे देश मे अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने से भी है। वर्तमान में हमारे देश मे ऐसे कई संस्थान हैं जो विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा मान्यता प्राप्त हैं या सम्बद्ध हैं। इसी प्रकार विदेशों में भी हमारे देश के शिक्षण संस्थान एवं संस्थायें चल रही हैं जो वहाँ मान्य हैं। जैसे IGNOU कई देशों में स्थापित है।




















वैश्वीकरण में शिक्षा की भूमिका

1. शिक्षा की नीति में पर्याप्त रूप से विविधता होनी चाहिए। शिक्षा का प्रारूप इस प्रकार विकसित किया जाए जिससे सामाजिक मतभेद उत्पन्न न हो बल्कि परस्पर सदभावना का विकास हो।
2. छात्रों के सामाजीकरण में व्यक्तिगत विकास के सम्बंध में कोई द्वंद्व उत्पन्न न हो । यह आवश्यक रूप में एक प्रणाली का ही अनुसरण किया जाए और विविध प्रकार के मूल्यों को विकसित किया जाए।
3. शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिये जिससे अपनी सामाजिक समस्याओं का समाधान किया जा सके । बल्कि अन्य देशों को साथ लेकर भी चल सके और उनकी सहायता एवं सहयोग कर सकें।
4. विद्यालय की सफलता अपने कार्यों को सम्पन्न करने तक ही सीमित नही होनी चाहिए , अपितु उन्हें विकास एवं एकीकरण में अपना योगदान देना चाहिए।
5. शिक्षा की यह भी भूमिका है कि यह उसे बच्चों और युवाओं को सांस्कृतिक आधार प्रदान करें और समाज व राष्ट्र स्तर पर हो रहे परिवर्तन की जानकारी प्रदान करें। जो घटनायें हो रही हैं उनकी अतीत के संदर्भ में व्याख्या भी कर सके।





संदर्भ ग्रन्थ सूची






मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology)

मनोविज्ञान के सम्प्रदाय (Schools of Psychology) मनोविज्ञान के सम्प्रदाय से अभिप्राय उन विचारधाराओं से है जिनके अनुसार मनोवैज्ञानिक मन, व्यवह...